Super Exam General Studies Dance and Music / नृत्य और संगीत Question Bank शास्त्रीय, अर्धशास्त्रीय एवं उप शास्त्रीय संगीत (संगीत कला भाग 2)

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    संगीतकार तानसेन का संम्बंध किस राज दरबार से रहा है?

    A) रीवा, ग्वालियर, मुगल

    B) ग्वालियर , मुगल मालवा

    C) रीवा, मुगल, मालवा

    D) रीवा,ग्वालियर,मालवा

    Correct Answer: A

    Solution :

    उत्तर - रीवा, ग्वालियर, मुगल
    व्याख्या - संगीतकार तानसेन का संम्बंध रीवा, ग्वालियर, मुगल राजदरबार से रहा है। संगीत सम्राट तानसेन का जन्म 1563 संवत में बेहट ग्राम में हुआ था। तानसेन का वास्तविक नाम रामतनु पांडेय था, जो मुकुंद पांडेय के पुत्र थे। ग्वालियर दरबार मे तानसेन - संगीत सम्राट तानसेन का का जन्म ग्वालियर में 1506 में हुआ था। इन्होने संगीत गुरु हरिदास से सीखा। इन्होने अपनी शिक्षा दीक्षा ग्वालियर में ही ली, और कुछ समय ग्वालियर दरबार मे रहे। रीवा दरबार मे तानसेन - ग्वालियर तानसेन की जन्मस्थल था परन्तु उनकी शिक्षा दीक्षा रीवा राज्य में हुई, वे रीवा राज्य के राजा रामचंद्र के दरबार की शान थे। राजा रामचंद्र की सभा के गायक जीन खां अकबर के दरबारी गायकों में शामिल हो गए थे। उन्होंने अकबर से तानसेन की विशिष्ट गायकी की प्रशंसा की। अकबर ने अपने सेनापति जलाल खां को तानसेन को लाने के लिए रीवा नरेश रामचंद्र के पास बांधवगढ़ भेज दिया गया। शास्त्रीय, अर्धशास्त्रीय मुगल दरबार मे तानसेन - अकबर के नवरत्नों तथा मुगलकालीन संगीतकारों में तानसेन का नाम परम-प्रसिद्ध है। तानसेन के मधुर कंठ और गायन शैली की ख्याति सुनकर 1562 ई. के लगभग अकबर ने उन्हें अपने दरबार में बुला लिया। अबुल फजल ने ‘आइन-ए-अकबरी’ में लिखा है कि अकबर ने जब पहली बार तानसेन का गाना सुना तो प्रसन्न होकर पुरस्कार में दो लाख टके दिए।
    टिप्पणी - तानसेन और संगीत तानसेन द्वारा नये रागों का अविष्कार - तानसेन ग्वालियर परंपरा की मूच्र्छना पद्धति के एवं ध्रुपद शैली के विख्यात गायक और कई रागों के विशेषज्ञ थे। इनको ब्रज की कीर्तन पद्धति का भी पर्याप्त ज्ञान था। साथ ही वह ईरानी संगीत की मुकाम पद्धति से भी परिचित थे। उन सब के समन्वय से तानसेन ने अनेक नये रागों का आविष्कार किया था, जिनमें “मियां की मलार” अधिक प्रसिद्ध है। तानसेन द्वारा ध्रुपदों की रचना - तानसेन गायक होने के साथ ही कवि भी थे। उसने अपने गान के लिए स्वयं बहुसंख्यक ध्रुपदों की रचना की थी। उनमें से अनेक ध्रुपद संगीत के विविध ग्रंथों में और कलावंतों के पुराने घरानों में सुरक्षित हैं। विशेष दृ तानसेन ने तीन ग्रंथों की रचना की। यह ग्रंथ संगीत सार, राग माला और गणेश स्त्रोत हैं। संगीत सार में उन्होंने संगीत के समस्त अंगों जैसे नाद, तान, स्वर, राग, वाद्य एवं ताल का विवेचन किया है। जबकि राग माला में राग-रागिनियों द्य के बारे में जानकारी है। ग्रंथ “संगीत-सम्राट तानसेन” में उनके रचे हुए 288 ध्रुपदों का संकलन है। ये ध्रुपद विविध विषयों से संबंधित हैं।


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