भारत के धार्मिक इतिहास के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए (IAS 2016) |
1. बोधिसत्व, बौद्धमत के हीनयान संप्रदाय की केंद्रीय संकल्पना |
2. बोधिसत्व अपने प्रबोध के मार्ग पर बढ़ता हुआ करुणामय |
3. बोधिसत्व समस्त सचेतन प्राणियों को उनके प्रबोध के मार्ग पर चलने में सहायता करने के लिए स्वयं की निर्वाण प्राप्ति विलिंबित करता है। उपर्यक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? |
A) केवल 1
B) केवल 2 और 3
C) केवल 2
D) 1, 2 और 3
Correct Answer: B
Solution :
उत्तर- केवल 2 और 3 |
व्याख्या -कथन 1 असत्य है। वस्तुत: बोधिसत्व बौद्धमत के महायान संप्रदाय का आदर्श एवं केंद्रीय संकल्पना है। दस पारमिताओं का पूर्ण पालन करने वाला बोधिसत्व कहलाता है। बोधिसत्व जब दस बलों या भूमियों (मुदिता, विमला, दीप्ति, अर्चिष्मती, सुदुर्जया, अभिमुखी, दूरंगमा, अचल, साधुमती, धम्म-मेघा) को प्राप्त कर लेते हैं तब बुद्ध कहलाते हैं। बुद्ध बनना ही बोधिसत्व के जीवन की पराकाष्ठा है। इस पहचान को बोधि (ज्ञान) नाम दिया गया है। बौद्ध धर्म का अंतिम लक्ष्य संपूर्ण मानव समाज से दु:ख का अंत है। बौद्ध धर्म के अनुसार चार आर्य सत्य है |
1. दु:ख, |
2. दु:ख प्रारंभ |
3. दु:खं निरोध तथा |
4. दुख निरोध का मार्गी |
बौद्ध धर्म के अनुयायी अष्टांगिक मार्ग के अनुसार जीवन जीकर अज्ञानता और दु:ख से मुक्ति और निर्वाण पाने की कोशिश करते है। कहा जाता है कि बुद्ध शाक्यमुनि केवल एक बुद्ध है - उनके पहले बहुत सारे थे और भविष्य में और होंगे। |
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