Super Exam General Studies Sculpture in India / भारत में मूर्तिकला Question Bank प्राचीन भारत में मूर्तिकला (मूर्तिकला भाग 1)

  • question_answer
    अभय मुद्रा के संदर्भ में निम्न कथनों पर विचार करें -
    1. यह मुद्रा “बुद्ध शाक्यमुनि” और “ध्यानी बुद्ध अमोघसिद्धी” की विशेषताओं को प्रदर्ति शत करती है।
    2. इस मुद्रा का निर्माण दायें हाथ को कंधे तक उठा कर, बाह को मोड़कर किया जाता है। उपरोक्त में से सत्य कथनों का चुनाव करें

    A) केवल 1

    B) केवल 2

    C) 1 और 2

    D) न तो 1 न ही 2

    Correct Answer: C

    Solution :

    उत्तर - 1 और 2
    व्याख्या - अभय मुद्रा निर्भयता या आशीर्वाद को दर्शाता है। जोकि सुरक्षा, शांति, परोपकार और भय को दूर करने का प्रतिनिधित्व करता है। इस मुद्रा का निर्माण दायें हाथ को कंधे तक उठा कर, बांह को मोड़कर किया जाता है और अंगुलियों को ऊपर की ओर उठाकर हथेली को बाहर की ओर रखा जाता है, जबकि बायां हाथ खड़े रहने पर नीचे लटका रहता है। यह मुद्रा “बुद्ध शाक्यमुनि” और “ध्यानी बुद्ध अमोघसिद्धी” की विशेषताओं को प्रदर्ति शत करती है।
    टिप्पणी -
    उत्तरबोधी मुद्रा दिव्य सार्वभौमिक ऊर्जा के साथ अपने आप को जोड़कर सर्वोच्च आत्मज्ञान की प्राप्ति को दर्शाती है। इस मुद्रा का निर्माण दोनों हाथ की मदद से करते हैं, जिन्हें हृदय के पास रखा जाता है और तर्जनी उंगलियां एक दूसरे को छूते हुए ऊपर की ओर होती हैं और अन्य उंगलियां अंदर की ओर मुड़ी होती हैं।
    अंजलि मुद्रा को “नमस्कार मुद्रा” या “हृदयांजलि मुद्रा” भी कहते हैं जो अभिवादन, प्रार्थना और आराधना के इशारे का प्रतिनिधित्व करती है। इस मुद्रा में, कर्ता के हाथ आमतौर पर पेट और जांघों के ऊपर होते हैं, दायां हाथ बायें के आगे होता है, हथेलियां ऊपर की ओर, उंगलियां जुड़ी हुई और अंगूठे एक-दूसरे के अग्रभाग को छूती हुई अवस्था में होते हैं।


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