Super Exam Physics Thermal Properties of Matter / द्रव्य के तापीय गुण Question Bank द्रव्य के तापीय गुण एवं ऊष्मागतिकी

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    वह प्रक्रम जो उपलब्ध ऊर्जा का क्षय नहीं करता कहलाता है-         (UPSC 1996)

    A) रुद्धोष्म प्रक्रम

    B) समतापी प्रक्रम

    C) आदर्श प्रक्रम

    D) घर्षणहीन प्रक्रम

    Correct Answer: A

    Solution :

    उत्तर - रुद्धोष्म प्रक्रम
    व्याख्या - रुद्धोष्म प्रक्रम- वह परिवर्तन जिसमे निकाय न तो अपने बाहर के वातावरण में कोई ऊष्मा दे पाए और न वहां से ऊष्मा ग्रहण करे अर्थात निकाय की संपूर्ण ऊष्मा नियत बनी रहे। समतापी प्रक्रम- वह प्रक्रम जिनकी पूरी अवधि में निकाय का ताप स्थिर रहता है। समतापी प्रक्रम कहलाता है। समतापी प्रक्रम में नियत ताप पर किसी निकाय का दाब और आयतन में परिवर्तन होता है। इससे निकाय की आंतरिक ऊर्जा नियत रहती रहती है।
    विशेष
    ऊष्मागतिकी प्रक्रम (Thermodynamics Process)
    1. समतापी प्रक्रम- वह प्रक्रम जिनकी पूरी अवधि में निकाय का ताप स्थिर रहता है समतापी प्रक्रम (Isothermal Process) होता है। समतापी प्रक्रम में नियत ताप पर किसी निकाय का दाब और आयतन में परिवर्तन होता है। इसमें निकाय की आन्तरिक ऊर्जा नियत रहती है। PV=nRT, PV = स्थिरांक होता है।
    किसी गैस का धीमी गति से संपीडन एवं प्रसार- जब किसी गैस को दाब लगाकर संपीडित किया जाता है। तब उत्पन्न ऊष्मा परिवेश में त्याग दी जाए तो गैस का ताप नियत. रहता है। इसी प्रकार यदि गैस का प्रसार होता है तब परिवेश के विरुद्ध कार्य करना पड़ता है जिससे गैस के ताप में कमी होती है। यदि गैस परिवेश से ऊष्मा अवशोषित कर ले तो गैस का ताप नियत रहता है।
    अवस्था परिवर्तन के समय भी निकाय का ताप नियत रहता है। जैसे- बर्फ का गलना; मोम का जलना, जल का वाष्प में बदलना समतापीय प्रक्रम के लिए विशिष्ट ऊष्मा \[(C)=\frac{\Delta \theta }{m.dT}\]
    यहां (समतापीय प्रक्रम के लिए T= नियतांक तब dt = 0)
    समतापी प्रक्रम में कार्य- आदर्श गैस के समतापी प्रक्रम में आंतरिक ऊर्जा में कोई परिवर्तन नहीं होता है। अत: ऊष्मा गतिकी के प्रथम नियम से गैस को दी गई ऊष्मा की मात्रा गैस द्वारा किये गये कार्य के बराबर होती है।
    \[Q=W=2.30nRT\,{{\log }_{10}}\left( \frac{{{V}_{2}}}{{{V}_{1}}} \right)\]
    जब \[{{V}_{2}}>{{V}_{1}}\] तो W> 0 [ ऊष्मा का अवशोषण]
    तथा \[{{V}_{2}}>{{V}_{1}}\]तो W< 0 [ ऊष्मा का निष्काषन]
    2. रुद्धोष्म प्रक्रम- यदि किसी निकाय में परिवर्तन इस प्रकार हो की संपूर्ण प्रक्रिया में निकाय तथा परिवेश में ऊष्मा का आदान-प्रदान नहीं हो अथार्त निकाय की संपूर्ण ऊष्मा नियत बनी रहे तब प्रक्रम को रुद्धोष्म प्रक्रम (Adiabatic Process) कहते हैं। रुद्धोष्म परिवर्तन के लिए यह आवश्यक है की निकाय की परी सीमाएं (Boundaries) पूर्णत: ऊष्मारोधी हो ताकि प्रक्रम में उत्पन्न तथा अवशोषित ऊष्मा का परिवेश से आदान-प्रदान न हो।
    उदाहरण-जब कोई गैस (चलन शील) पिस्टन युक्त सिलिंडर में भरकर पिस्टन पर शीघ्रता से बांट रखकर गैस को दबाया जाए तब निकाय पर किये गये कार्य से उत्पन्न ऊष्मा गैस में ही रहेगी। जिससे गैस की आंतरिक ऊर्जा बढ़ जाएगी तथा गैस का ताप बढ़ जाएगा।
    ध्वनि तरंगो का हवा में संचरण
    रुद्धोष्म प्रक्रम की अवस्था समीकरण \[P.{{V}^{r}}\] = नियतांक
    रुद्धोष्म प्रक्रम के लिए विशिष्ट ऊष्मा \[c=\frac{\Delta \theta }{m.dT}=0\]
    (क्योंकि रुद्धोष्म प्रक्रम के लिए \[\Delta \theta =0\])
    रुद्धोष्म प्रक्रम में कार्य गैस द्वारा संपन्न होता है।
    \[W=\frac{nR}{r-1}\left( {{T}_{1}}-{{T}_{2}} \right)\]
    (W> 0) तब \[{{T}_{1}}>{{T}_{2}}\] अर्थात गैस का ताप घटता है। यदि कार्य गैस पर किया जाता है (W<0) तब \[{{T}_{1}}<{{T}_{2}}\] अर्थात गैस का ताप बढ़ जाता है।
    3. समआयतनिक प्रक्रम- ऐसा प्रक्रम जिसके तहत निकाय का आयतन स्थिर रहता है समआयतनिक प्रक्रम (Isochoric. Process) कहलाता है। इस प्रक्रम में न तो गैस पर कोई कार्य होता है और न ही गैस द्वारा कोई संपादित होता है। गैस द्वारा अवशोषित ऊष्मा पूर्ण रूप से उसकी आंतरिक ऊर्जा तथा उसके ताप को परिवर्तित करने में व्यय होती है। किसी दी गई ऊष्मा की मात्रा के लिये ताप में परिवर्तन नियत आयतन पर गैस की विशिष्ट ऊष्मा द्वारा निर्धारित किया जाता है।
    4. समदाबी प्रक्रम- ऐसा प्रक्रम जिसके अन्तर्गत निकाय का दाब स्थिर रहता है, समदाबी प्रक्रम (Isobaric Process) कहलाता है। इस प्रक्रम में ताप परिवर्तित होता है। अतः आंतरिक ऊर्जा भी परिवर्तित होती है। अवशोषित ऊष्मा आंशिक रूप से आंतरिक ऊर्जा में वृद्धि करने में तथा आंशिक रूप से कार्य करने में व्यय होती है।
    5. चक्रीय प्रक्रम- चक्रीय प्रक्रम (Cycle Process) में निकाय अपनी प्रारंभिक अवस्था में वापिस लौट आता है। चूंकि प्रारंभिक अवस्था को पुनः प्राप्त कर लिया गया। इसलिए आंतरिक ऊर्जा में परिवर्तन शून्य होगा। अतः अवशोषित ऊष्मा की कुल मात्रा निकाय द्वारा किये गये कार्य के बराबर होती है।


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