Super Exam Biology Plant Growth and Development / पौधे की वृद्धि और विकास Question Bank जैव विकास

  • question_answer
    डार्विन द्वारा प्रस्तुत प्राकृतिक वरणवाद निम्न में से किस पर आधारित है?                        (MPPSC 2010)

    A) ओवरप्रोडक्शन

    B) स्ट्रगल फॉर एक्जिस्टेन्स एण्ड वेरिएशन्स

    C) सरवाइवल ऑफ द फिटेस्ट

    D) उपर्युक्त सभी

    Correct Answer: D

    Solution :

    उत्तर - उपर्युक्त सभी
    व्याख्या - डार्विन द्वारा प्रस्तुत प्राकृतिक वरणवाद ‘ओवर प्रोडक्शन’, ‘स्ट्रगल फार एक्जिस्टेन्स एण्ड वेरिएशन्स’ तथा ‘सरवाइवल आफ फिटेस्ट’ की अवधारणा पर आधारित है। डार्विनवाद सिद्धांत का प्रतिपादन 1831 र्इ. में चार्ल्स राबर्ट डार्विन ने किया था। चार्ल्स डार्विन विकासवाद का सिद्धान्त भी कहा गया। यह जैव विकास का सर्वाधिक प्रसिद्ध सिद्धांत हैं। यह आज भी दो बहुत महत्त्वपूर्ण योगदानों के कारण विकास का जन्मदाता माना जाता है-उन्होंने सुझाव दिया कि (i) समस्त प्राणी पूर्वजता द्वारा एक दूसरे से संबंधित हैं व (ii) उन्होंने विकास की एक प्रक्रिया सुझार्इ और इसका नाम प्राकृतिक वरण (natural selection) दिया। डार्विन के अनुसार, जीव बड़ी संख्या में संतति पैदा करते हैं जो जीवित रह सकने वाले जीवों से कहीं अधिक होते हैं। क्योंकि पर्यावरणीय संसाधन सीमित हैं अत: उनमें अस्तित्व के लिए संघर्ष होता है। ये संघर्ष सजातीय, अन्तर्जातीय तथा पर्यावरणीय होते हैं। दो सजातीय जीव आपस में बिल्कुल एक समान नहीं होते। ये विभिन्नताएं इन्हें इनके जनकों से वंशानुक्रम से प्राप्त हुर्इ हैं। कुछ विभिन्नताएं जीवन-संघर्ष के लिए लाभदायक होती हैं, जबकि कुछ अन्य हानिकारक होती हैं। जीवन संघर्ष में, केवल वे ही जीव बने रहते हैं जिनमें लाभकारी अनुकूलन हो चुके होते हैं और जनन करते हैं जबकि हानिकारी अनुकूलन वाले जीव प्रकृति से समाप्त कर दिए जाते हैं। डार्विन ने इसे प्राकृतिक वरण कहा। डार्विन के अनुसार जैसे-जैसे पर्यावरण बदलता है वैसे-वैसे प्रकृति में नए अनुकूलनों का वरण होता है और कर्इ पीढ़ियों के पश्चात् एक जाति को दूसरी• जाति में परिवर्तित करने के लिए पर्याप्त अभिलक्षण विकसित हो चुके होते हैं ताकि एक नर्इ जाति बन जाए (जातियों की उत्पत्ति)। डार्विन ने विविधता की बात की लेकिन उन्हें विविधता के स्रोतों की जानकारी नहीं थी। आनुवंशिकी में प्रगति के साथ विविधता के स्रोतों की खोज भी हुर्इ और डार्विन के प्राकृतिक वरण के मूल सिद्धान्त में थोड़ा परिवर्तन कर दिया गया। इस नए सिद्धान्त को नव डार्विनाद या आधुनिक संश्लेषी सिद्धान्त कहा गया।


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