A) सांख्य
B) योग
C) चार्वाक
D) बौद्ध
Correct Answer: C
Solution :
उत्तर - चार्वाक |
व्याख्या - सुखवाद से तात्पर्य सुखों की प्राप्ति करना है और सुख प्राप्ति ही नैतिक कर्म है। हमारे जो भी कार्य सुख प्रदान करते हैं, वे नैतिक हैं और दुख प्रदान करने वाले कार्य हैं वे अनैतिक है। चार्वाक संप्रदाय का स्पष्ट मत है कि जब तक जियो सुख से जियो, उधार लेकर पियो, एक बार देह भस्म हो जाने के बाद वापस कोई लौटकर नहीं आता है। यावज्जीवेत्सुखं जीवेत् ऋणं कृत्वा घृतं पिबेत्। भस्मीभूतस्य देहस्य पुनरागमनं कुत:।। त्रयोवेदस्य कर्तारौ भण्डधूर्तनिशाचरा: । चार्वाक दर्शन के सिद्धांत - भविष्य की अनिश्चित सुख की जगह वर्तमान के निश्चित सुख का भोग किया जाना चाहिये। सुख पूर्णत: शुद्ध नहीं होता, उसमें कुछ मात्रा में दुख भी शामिल होता है। किंतु, उस छोटे-मोटे दुख से डरकर सुख की कामना छोड़ना निरर्थक है। |
जैसे - मछली खाना इसलिये नहीं छोड़ना चाहिये कि उसमें कांटा होता है। चार्वाक पूर्णत: भौतिकवादी थे, वे पारलौकिक सत्ता को स्वीकार नहीं करते। इनके अनुसार आत्मा नामक कोई वस्तु नहीं होती है और मृत्यु के अतिरिक्त कोई मोक्ष नहीं है। |
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