प्राक् इतिहास या प्रागैतिहासिक काल

प्राक् इतिहास या प्रागैतिहासिक काल

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प्राक् इतिहास या प्रागैतिहासिक काल

       

        प्राक् इतिहास या प्रागैतिहासिक काल - इस काल में मनुष्य ने घटनाओं का कोई लिखित विवरण नहीं रखा इस काल में विषय में जो भी जानकारी मिलती है वह पाषाण के उपकरणों मिट्टी के बर्तनों, खिलौने आदि से प्राप्त होती है

        आद्य ऐतिहासिक काल - इस काल में लेखन कला के प्रचलन के बाद भी उपलब्ध लेख पढ़े नहीं जा सके हैं

                ऐतिहासिक काल - मानव विकास के उस काल को इतिहास कहा जाता है, जिसके लिए लिखित विवरण उपलब्ध है मनुष्य की कहानी आज से लगभग दस लाख वर्ष पूर्व प्रारम्भ होती है, पर ‘ज्ञानी मानव’ होमो सैपियंस का प्रवेश इस धरती पर आज से करीब 30000 या 40000 वर्ष पहले ही हुआ

पाषाण काल - यह काल मनुष्य की सभ्यता का प्रारंभिक काल माना जाता है

§  इस काल को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है-

§  पुरा पाषाण काल (अज्ञात से 8000. पू. )

§  मध्य पाषाण काल (8000. पू. से 4000. पू. )

§  नव पाषाण काल अथवा उत्तर पाषाण काल (4000. पू. से 3500. पू. )

        पुरापाषाण काल - यूनानी भाषा में पैलोइस (Palaios) प्राचीन एवं लिथोस (Lithos) पाषाण के अर्थ में प्रयुक्त होता था इन्हीं शब्दों के आधार पर पाषाणकाल  (Palelolithic Age) शब्द बना यह काल आखेटक एवं खाद्य - संग्रहण काल के रूप में भी जाना जाता है

       

        अभी तक भारत में पुरा पाषाणकालीन मनुष्य के अवशेष कहीं से भी नहीं मिल पाये हैं, जो कुछ भी अवशेष के रूप में मिला है, वह है उस समय प्रयोग में लाये जाने वाले पत्थर के उपकरण

                प्राप्त उपकरणों के आधार पर यह अनुमान लगाया जा रहा है कि ये लगभग 2,50,000. पू. के होंगे

                अभी हाल में महाराष्ट्र के ‘बोरी’ नामक स्थान खुदाई में मिले अवशेषों से ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि इस पृथ्वी पर ‘मनुष्य’ की उपस्थिति लगभग 14 लाख वर्ष पुरानी है गोल पत्थरों से बनाये गये प्रस्तर उपकरण मुख्य रूप से सोहन नदी घाटी में मिले हैं

§  सामान्य पत्थरों के कोर तथा फ्लॅक्स प्रणाली द्वारा बनाये गये औजार मुख्य रूप से मद्रास एवं वर्तमान चेन्नई में पाये गये हैं  साथ ही कुछ भागों में इन दोनों प्रणालियों से निर्मित प्रस्तर के औजार सिंगरौली घाटी, मिर्जापुर एवं बेलन घाटी, इलाहाबाद (वर्तमान प्रयागराज)में मिले हैं

§  मध्य प्रदेश के भीमबेटका अब्दुल्लागंज (रायसेन) में मिली पर्वत गुफायें एवं शैलाश्रृय भी महत्वपूर्ण हैं  इस समय के मनुष्यों का जीवन पूर्णरूप से शिकार पर निर्भर था

§  वे अग्नि के प्रयोग से अनभिज्ञ थे  सम्भवतः इस समय के मनुष्य नीग्रेटो जाति के थे

§  भारत में पुरापाषाण युग को औजार-प्रौद्योगिकी के आधार पर तीन अवस्थाओं में बांटा जा एकता हैं

        यह अवस्थाएं हैं -

§  पुरापाषाण कालीन संस्कृतियां        

 

काल

अवस्थाएं

1.

निम्न पुरापाषाण काल

हस्तकुठा और विदारणी उद्योग

2.

मध्य पुरापाषाण काल

शल्क (फ्लॅक्स) से बने औजार

3.

उच्च पुरापाषाण काल

शल्कों और फलकों (ब्लेड) से बने औजार

 

       पूर्व पुरापाषाण काल के महत्वपूर्ण स्थल हैं

स्थल

क्षेत्र

पहलगाम

कश्मीर

वेनलघाटी

प्रयागराज (उत्तर प्रदेष)

भीमबेटका और आदमगढ़

होशंगाबाद (मध्य प्रदेष), रायसेन

सिंगी तालाब

नागौर (राजस्थान)

नेवासा

अहमदनगर (महाराष्ट्र)

हुंसगी

गुलबर्गा (कर्नाटक)

अट्टिरामपक्कम

तमिलनाडु

                                   

§  मध्य पुरापाषाण युग के महत्वपूर्ण स्थल हैं-

§  भीमबेटका (मध्य प्रदेश)

§  नेवासा (महाराष्ट्र)

§  पुष्कर (राजस्थान)

§  ऊपरी सिंध की रोहिरी पहाड़ियां

§  नर्मदा के किनारे स्थित समानापर                     

                               

पुरापाषाण काल में प्रयुक्त होने वाले प्रस्तर उपकरणों के आकार एवं जलवायु में होने वाले परिवर्तन के आधार पर इस काल को हम तीन वर्गों में विभाजित कर सकते हैं -

§  निम्न पुरा पाषाण काल (2,50,000 - 1,00,000. पू.)

§  मध्य पुरापाषाण काल (1,00,000 - 40,000. पू.)

§  उच्च पुरापाषाण काल. (40,000 - 10,000. पू.)        

               मध्य पाषाण काल     

इस काल में प्रयुक्त  होने वाले उपकरण आकार में बहुत छोटे होते थे, जिन्हें लघु पाषाणोपकरण (माइक्रोलिथ)कहते थे पुरापाषाण काल में प्रयुक्त होने वाले कच्चे पदार्थ क्वार्टजाइट के स्थान पर मध्य पाषाण काल में जेस्पर, एगेट, चर्ट और चालसिडनी जैसे पदार्थ प्रयुक्त किये गये इस समय के प्रस्तर उपकरण राजस्थान, मालवा (मध्य प्रदेश), गुजरात, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, आंध्र प्रदेश एवं मैसूर में पाये गये हैं

                               

मध्य पाषाणकालीन मानव अस्थि पंजर

§  पंजर के कुछ अवशेष प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश के सराय नाहर राय तथा महदहा नामक स्थान से प्राप्त हुए हैं मध्य पाषाणकालीन जीवन भी शिकार पर अधिक निर्भर था इस समय तक लोग पशुओं में गाय, बैल, भेड़, घोड़े एवं भैंसों का शिकार करने लगे थे

§  जीवित व्यक्ति के अपरिवर्तित जैविक गुणसूत्रों के प्रमाणों के आधार पर भारत में मानव का सबसे पहला प्रमाण केरल से मिला है जो सत्तर हजार साल पुराना होने की संभावना है इस व्यक्ति के गुणसूत्र अफ्रीका के प्राचीन मानव के जैविक गुणसूत्रों (जीन्स) से पूरी तरह मिलते हैं

§  यह वह काल है जब अफ्रीका से आदि मानव ने विश्व के अनेक हिस्सों में बसना प्रारम्भ किया जो पचास से सत्तर हजार साल पहले का माना जाता है| कृषि संबंधी प्रथम साक्ष्य ‘साम्भर’ राजस्थान में पौधे बोने का है जो ईसा से सात हजार वर्ष पुराना है

§  मध्य पाषाण काल के अन्तिम चरण में कुछ साक्ष्यों के आधार पर प्रतीत होता है कि लोग कृषि एवं पशुपालन की ओर आकर्षित हो रहे थे इस समय मिली समाधियों से स्पष्ट होता है कि लोग अन्त्येष्टि क्रिया से परिचित थे  मानव अस्थिपंजर के साथ कहीं-कहीं पर कुत्ते के अस्थिपंजर भी मिले है, जिनसे प्रतीत होता है कि ये लोग मनुष्य के प्राचीन काल से ही सहचर थे           

        मध्य पाषाण युगीन संस्कृति के महत्वपूर्ण स्थल हैं

 

स्थल

क्षेत्र

बागोर

राजस्थान

लंघनाज

गुजरात

सराय नाहरराय, चोपनी माण्डो, महदहा व दमदमा

उत्तर प्रदेष

भीमबेटका, आदमगढ़

मध्य प्रदेष

 

                नव पाषाण अथवा उत्तर पाषाण काल

§  साधारणतया इस काल की सीमा 4000. पू. से 2500. पू. के बीच मानी जाती है यूनानी भाषा का (Neo) शब्द नवीन के अर्थ में प्रयुक्त होता है  इसलिए इस काल को नवपाषाण ‘काल’ भी कहा जाता है

§  इस काल की सभ्यता भारत के विशाल क्षेत्र में फैली हुई थी  सर्वप्रथम 1860. में ‘ली मेसुरियर’ ने इस काल का प्रथम प्रस्तर उपकरण उत्तर प्रदेश की टौंस नदी की घाटी से प्राप्त किया

§  इसके बाद 1872. में ‘निबलियन फ्रेजर’ ने कर्नाटक के ‘बेलारी’ क्षेत्र को दक्षिण भारत के उत्तर-पाषाण कालीन सभ्यता का मुख्य स्थल घोषित किया

§  इसके अतिरिक्त इस सभ्यता के मुख्य केन्द्र बिन्दु हैंकश्मीर, सिंध प्रदेश, बिहार, झारखंड, बंगाल, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, असम आदि

§  ताम्र-पाषाणिक काल - जिस काल में मनुष्य ने पत्थर और तांबे के औजारों का साथ-साथ प्रयोग किया, उस काल को ‘ताम्र-पाषाणिक काल’ कहते हैं

                सर्वप्रथम जिस धातु को औजारों में प्रयुक्त किया गया वह ‘तांबा’ थी

               

§  भारत में ताम्रपाषाण अवस्था के मुख्य क्षेत्र दक्षिण-पूर्वी राजस्थान, मध्य प्रदेश के पश्चिमी भाग, पश्चिमी महाराष्ट्र तथा दक्षिण-पूर्वी भारत में हैं

§  दक्षिण-पूर्वी राजस्थान में स्थित ‘बनास घाटी’ के सूखे क्षेत्रों में ‘अहाड़ा’ एवं ‘गिलुंड’ नामक स्थानों की खुदाई की गयी

§  पश्चिमी महाराष्ट्र में हुए व्यापक उत्खनन क्षेत्रों में अहमदनगर के जोर्वे, नेवासा एवं दायमाबाद, पुणे जिले में सोनगांव, इनामगांव आदि क्षेत्र सम्मिलित हैं  ये सभी क्षेत्र ‘जोर्वे संस्कृति के अन्तर्गत आते हैं

§  इस संस्कृति का समय 1,400-700. पू. के करीब माना जाता है वैसे तो यह सभ्यता पर कुछ भागों जैसे ‘दायमाबाद’ एवं ‘इनामगांव’ में नगरीकरण की प्रक्रिया प्रारम्भ हो गयी थी

 

ताम्र पाषणिक संस्कृतियां संस्कृति

संस्कृति

काल

अहाड़ संस्कृति

लगभग 2100-1800. पू.

कायथ संस्कृति

लगभग 2000-1800. पू.

मालवा संस्कृति

लगभग 1500-1200. पू.

सावलदा संस्कृति

लगभग 2300-2200.पू

जोर्वे संस्कृति लगभग

1400-700. पू.

प्रभास संस्कृति लगभग

1800-1200. पू.

रंगपुर संस्कृति

लगभग 1500-1200. पू.

 

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