वायुमंडल
विश्लेषणात्मक अवधारणा
पृथ्वी के चारो ओर फैले हुए वायु के विस्तृत फैलाव को वायुमंडल कहते हैं। वायुमंडल की ऊपरी परत के अध्ययन को वायुविज्ञान और निचली परत के अध्ययन को ऋतु विज्ञान कहते हैं। गैसों के अतिरिक्त वायुमंडल में जलवाष्प और धूल के कण भी उपस्थित हैं। नाइट्रोजन की उपस्थिति के कारण ही वायुदाब, पवनों की शक्ति और प्रकाश के परावर्तन का आभास होता है। सूर्य सौरमंडल का जनक तथा ऊर्जा का स्रोत है। यह सौरमंडल के केन्द्र मे स्थित है। सूर्य एक मध्यम आयु का तारा है। सूर्य के केन्द्र का तापमान 15 मिलियन डिग्री सेंटीग्रेट होता है। किसी भी सतह से विकरित की गयी ऊर्जा के परावर्तित भाग को एल्बिडो कहा जाता है।
- वायुमंडल में सर्वाधिक मात्रा में पार्इ जाने वाली गैस नाइट्रोजन है, जो की एक रंगहीन, गंधहीन, स्वादहीन गैस है।
- कार्बन डार्इऑक्साइड सबसे भारी गैस है, इस कारण यह सबसे निचली परत में मिलती है।
- ओजोन, ऑक्सीजन का ही एक विशेष रूप है। यह वायुमंडल में अधिक ऊंचाइयों पर ही बहुत कम मात्रा में मिलती है।
- वायुमंडल में जलवाष्प सबसे अधिक परिवर्तनशील तथा असमान वितरण वाली गैस है।
- कार्बन डार्इऑक्साइड और जलवाष्प ही पृथ्वी के ताप को बनाये रखने के लिए उत्तरदायी है।
- क्षोभमंडल, वायुमंडल की सबसे निचली परत है। इसकी उंचार्इ ध्रुरुवों पर 8 किलोमीटर तथा विषुवत रेखा पर लगभग 18 किलोमीटर होती है।
- समताप मंडल 18 से 32 किलोमीटर की उंचार्इ तक है।
- इसमें ताप समान रहता है।
- आयनमंडल की ऊंचार्इ 60 किलोमीटर से 640 किलोमीटर तक होती है, यह भाग कम वायुदाब तथा पराबैगनी किरणों द्वारा आयनीकृत होता रहता है।
- 640 किलोमीटर से ऊपर के भाग को बहिर्मडल कहा जाता है।
- आकाश का नीला रंग, सूर्योदय तथा सूर्यास्त के समय सूर्य का लाल प्रकाश के प्रकीर्णन के कारण ही दिखार्इ देता है।
- जब वायुमंडल में अवश्य कणों का व्यास विकिरण तरंग से बड़ा होता है तो परावर्तन की क्रिया होती है।
- सौर्यिक ऊर्जा का 14% भाग जलवाष्प आदि गैसों द्वारा अवशोषित कर लिया जाता हैं।
- सूर्य से प्राप्त होने वाली ऊर्जा का 35 % भाग मौलिक रूप से परावर्तन एवं प्रकीर्णन द्वारा अन्तरिक्ष मे लौट जाता हैं।