हड़प्पा सभ्यता की वास्तुकला (स्थापत्य कला भाग 1)

हड़प्पा सभ्यता की वास्तुकला (स्थापत्य कला भाग 1)

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हड़प्पा सभ्यता की वास्तुकला (स्थापत्य कला भाग 1)

 

विश्लेषणात्मक अवधारणा

सिन्धु घाटी की सभ्यता भारत की प्रथम नगरीय सभ्यता थी। सिंधु सभ्यता की सबसे प्रभावशाली विशेषता उसकी नगर निर्माण योजना एवं जल-मल निकास प्रणाली थी।

सिंधु सभ्यता की नगर योजना में दुर्ग योजना, स्नानागार, अन्नागार, गोदीवाड़ा, वाणिज्यिक, परिसर आदि महत्त्वपूर्ण हैं। हडप्पा सभ्यता के समस्तं नगर आयताकार खंड में विभाजित थे जहा सड़कें एक-दूसरे को समकोण पर काटती थीं। इसे ग्रिड प्लानींग कहा जाता है। हड़प्पा सभ्यता के नगरीय क्षेत्र के दो हिस्से थे- पश्चिमी टोला और पूर्वी टीला।

 

वास्तुकला का परिचय

’वास्तु’ शब्द की व्युत्पत्ति संस्कृत के ‘वस’ धातु से हुई है जिसका अर्थ ‘बसना’ हो जाता है। चूंकि बसने के लिये भवन की आवश्यकता होती है अत: ‘वास्तु’ का अर्थ ‘रहने हेतु भवन’ है। ‘वस’ धातु से ही वास, आवास, निवास, बसति, बस्ती आदि शब्द बने हैं।

 

वास्तुकला ललितकला की वह शाखा रही है और है, जिसका उद्देश्य औद्योगिकी का सहयोग लेते हुए उपयोगिता की दृष्टि से उत्तम भवननिर्माण करना है, जिनके पर्यावरण सुसंस्कृत एवं कलात्मक रुचि के लिए अत्यंत प्रिय, सौंदर्य-भावना के पोषक तथा आनंदकर एवं आनंदवर्धक हों। प्रकृति, बुद्धि एवं रुचि द्वारा निर्धारित और नियमित कतिपय सिद्धांतों और अनुपातों के अनुसार रचना करना इस कला का संबद्ध अंग है। नक्शों और पिंडों का ऐसा विन्यास करना और संरचना को अत्यंत उपयुक्त ढंग से समृद्ध करना, जिससे अधिकतम सुविधाओं के साथ रोचकता, सौंदर्य, महानता, एकता और शक्ति की सृष्टि हो यही वास्तुकौशल है।

 

सिन्धु घाटी सभ्यता की वास्तुकला

  • सैंधव कला उपयोगितामूलक थी। इस सभ्यता की सबसे प्रमुख विशेषता इसकी “नगर योजना” थी।
  • इस सभ्यता के दौरान शहरों को दो भागों दुर्ग (शासक वर्ग द्वारा अधिकृत) और निचले शहर (आम लोगों का निवास स्थान) में विभाजित किया गया था।
  • धौलावीरा इस सभ्यता का एकमात्र स्थल है जहां शहर को तीन भागों में विभाजित किया गया था।
  • चन्हूदड़ो एकमात्र ऐसा शहर था जहां दुर्ग नहीं थे।
  • इस सभ्यता में नगर योजना “ग्रिड प्रणाली” पर आधारित थी।
  • इस सभ्यता के लोग भवन निर्माण के लिए पके हुए र्इंटों को इस्तेमाल करते थे। इसके अलावा नालियों का उत्तम प्रबंध, किलाबन्द दुर्ग और लोहे के औजारों की अनुपस्थिति इस सभ्यता की प्रमुख विशेषताएं थी।
  • सिंधु सभ्यता की नगर योजना में दुर्ग योजना, स्नानागार, अन्नागार, गोदीवाड़ा, वाणिज्यिक परिसर आदि महत्त्वपूर्ण हैं।
  • हड़प्पा सभ्यता के समस्त नगर आयताकार खंड में विभाजित थे जहां सड़कें एक-दूसरे को समकोण पर काटती थीं। । इसे ग्रिड प्लानींग कहा जाता है।
  • हड़प्पा सभ्यता के नगरीय क्षेत्र के दो हिस्से थे- पश्चिमी टीला और पूर्वी टीला। हड़प्पा काल में भवनों में पक्की और निश्चित आकार की ईटों के प्रयोग के अलावा लकड़ी और पत्थर का भी प्रयोग होता था।
  • घर के बीचोंबीच बरामदा बनाया जाता था और मुख्य द्वार हमेशा घर के पीछे खुलता था।
  • घर के गंदे पानी की निकासी के लिये ढकी हुई नालियां बनाई गई और इन्हें मुख्य नाले से जोड़कर गंदे पानी की निकासी की जाती थी।
  • जल-आपूर्ति व्यवस्था का साक्ष्य ‘धौलावीरा’ से मिला है जहां वर्षा जल को शुद्ध कर उसकी आपूर्ति की जाती थी।
  • हड़प्पा सभ्यता में दोमंजिला भवन हैं, सीढ़ियां हैं, पक्की -कच्ची ईटों का इस्तेमाल है, किंतु गोलाकार स्तंभ और घर में खिड़की का चलन नहीं है।
  • हड़प्पा सभ्यता के नगरों में कहीं भी मंदिर का स्पष्ट प्रमाण नहीं मिला।

 

पश्चिमी टीला और पूर्वी टीला में अंतर

 

आधार

पश्चिमी टीला

पुर्वी टीला

दिशा

अपेक्षाकृत यह पश्चिम दिशा में स्थित था।

यह पुर्व दिशा में स्थित था।

ऊंचार्इ

यह ज्यादा ऊंचार्इ पर था।

यह कम ऊंचार्इ पर था।

दुर्गीकरण

यह पूर्णतया दुर्गीकृत क्षेत्र था

यह दुर्गीकृत नहीं था।

जनसंख्या

यह कम आबादी वाला क्षेत्र था।

यह अधिक आबादी वाला क्षेत्र था।

इमारतें

यहां विशिष्ट इमारतें मौजुद थीं, जैसे- स्नानागार, अन्नगार आदि।

यहां साधारण इमारतें थीं, जैसे- एककक्षीय श्रमिक भवन आदि।

 

हड़प्पा सभ्यता में ईटों का संदर्भ

  • हड़प्पा सभ्यता के पहले भारत में भवन निर्माण या स्थापना में मिट्टी, पत्थर, बांस, काष्ठ, घास-फूस, लट्ठ और कच्ची ईटों का प्रयोग होता था। लेकिन हड़प्पा सभ्यता के लोगों ने ही पहली बार पक्की ईटों का निर्माण किया, जो सूडौल, हल्के रंग की तथा निश्चित अनूपात की होती थीं।
  • इनकी लंबाई, चौड़ाई से दोगूनी और मोटाई आधी होती है। अत: इनका उपयोग भवन निर्माण या स्थापत्य में किया जाता था। हड़प्पा सभ्यता के लोगों का र्इंट निर्माण का ढंग वही था, जो आज है।
  • हड़प्पा सभ्यता के लागों ने विविध प्रकार की ईटों का जो इस्तेमाल किया, उससे उनकी वैज्ञानिकता प्रमाणित होती है। हड़प्पा सभ्यता में ईटों के आकार में समरुपता दिखती है। चाहे वह लोथल में बने हों या हड़प्पा या मोहनजोदडो में, हर जगह पक्की ईटों का अनुपात 1:2:4 है।
  • इस प्रकार हड़प्पा सभ्यता में लोकप्रिय ईटों का आकार \[6cm\times 12cm\times 24cm\] है। चबूतरा, रक्षा दीवार, बूर्ज, सड़क आदि बनाने में प्राय: कच्ची ईटों का ही इस्तेमाल हुआ है, जबकि स्नानागार, अन्नागार, गोदीवाड़ा, नाली, कूआं, शौचालय आदि बनाने में पक्की र्इंटों का इस्तेमाल होता था। चन्हदडों की र्इंटों पर बिल्ली और कुत्ते के पंजे के निशान मिले है। इससे पता चलता हैं कि र्इंटों को पहले सुखाया जाता था।

 

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