चट्टान

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चट्टान

 

विश्लषणात्मक अवधारणा

 

पृथ्वी की ठोस परत को स्थल मंडल कहा जाता है जो लगभग 100 किलोमीटर मोटी है। पृथ्वी को बनाने में 95 प्रतिशत योगदान चट्टानों का है। ये चट्टानें मुख्यत: खनिज पदार्थों से बने होते हैं। भूपटल के वे सभी पदार्थ, जो खनिज नहीं हैं, चट्टानें कहलाती हैं। ये ग्रेनाइंट के समान कठोर हो सकती हैं और मिट्टी जैसी मुलायम भी हो सकती है। सामान्यत: वनस्पति एवं जैविक पदार्थों को चट्टानों से अलग माना जाता है।

 

§     आग्नेय चट्टानों को प्रारंभिक चट्टाने अथवा मूल चट्टानें भी कहते है, क्योंकि इनकी रचना सबसे पहले हुर्इ थी।

§     यद्यपि सभी आग्नेय चट्टानें गर्म एवं पिघले हुए मैग्मा एवं लावा के ठंडे होने से बनी हैं, लेकिन भूपटल की सभी आग्नेय चट्टानें एक जैसी नहीं हैं।

§     आग्नेय चट्टानें कठोर, रवेदार तथा परतहीन होती हैं।

§     आग्नेय चट्टानों के बीच जीवाश्म नहीं पाये जाते।

§     भूपृष्ठ के जिन चट्टानों में व्यवस्थित परतें होती हैं, उन्हें अवसादी (परतदार) चट्टानें कहते हैं। इनका निर्माण अपरदन के तत्वों, जैसे-नदियों आदि के द्वारा बहाकर लाये गये पदाथोर्ं के जमाव से होता है।

§     अवसादी चट्टानें अवसादों के जमाव से बनते हैं, इसीलिए इन चट्टानों में परतें पार्इ जाती हैं। अत: इन्हें परतदार चट्टानें भी कहा जाता है।

§     बालू का पत्थर, चीका मिट्टी, चूने का पत्थर, कोयला, शैल, खडिया तथा नमक की चट्टानों का निर्माण पृथ्वी के अन्दर अवसादों के निक्षेप से होता है।

§     गर्म एवं शुष्क प्रदेशों में वायु के द्वारा भी अवसादी चट्टानों का निर्माण होता है। लोयस इसका उदाहरण है

§     अवसादी और आग्नेय चट्टानें रूप बदलकर कायान्तरित चट्टानें बन जाती हैं।

§     कभी-कभी रूपान्तरित चट्टानों का भी रूपान्तरण हो जाता है

§     अधिकांश चट्टानों का रूपांतरण दबाव एवं ताप के कारण ही होता है, लेकिन इस प्रक्रिया में अन्य तत्वों का भी प्रभाव देखा गया है, जैसे- रासायनिक प्रक्रिया, घर्षण आदि।

 

 

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