प्रथ्वी की आंतरिक संरचना

प्रथ्वी की आंतरिक संरचना

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पृथ्वी की आंतरिक संरचना

 

विश्लेषणात्मक अवधारणा

 

सूर्य से दुरी के क्रम में पृथ्वी तीसरा ग्रह हैं। पृथ्वी का निर्माण लगभग 4.6 अरब वर्ष पूर्व हुआ था। पृथ्वी नाम पौराणिक कथाओं पर आधारित है जिसका सम्बन्ध ‘‘महाराजा पृथु’’ से हैं। यह सौरमंडल का एकमात्र ऐसा ग्रह हैं जिस पर जीवन हैं। पृथ्वी बृहस्पति के समान गैसीय ग्रह नहीं हैं बल्कि एक पथरीला ग्रह हैं। पृथ्वी की आंतरिक संरचना शल्कीय रूप में अर्थात प्याज के छिलकों के समान परत . रूप में हैं, इन परतों की मोटार्इ का सीमांकन रासायनिक एवं यांत्रिक विशेषताओं के आधार पर किया जा सकता हैं।. पृथ्वी का अपने अक्ष पर घूमना घूर्णन कहलाता हैं, पृथ्वी पश्चिम से पूर्व दिशा की ओर घूर्णन करती हैं। पृथ्वी का एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह चन्द्रमा है और यह सौरमंडल का पांचवा सबसे विशाल प्राकृतिक उपग्रह हैं।

 

सामान्य परिचय

  • पृथ्वी की आंतरिक संरचना शल्कीय है।
  • इन परतों की मोटार्इ का सीमांकन रसायनिक अथवा यांत्रिक विशेषताओं के आधार पर किया जाता है।
  • पृथ्वी के धरातल का विन्यास मुख्यत: पृथ्वी के आंतरिक भाग में होने वाले प्रक्रियाओं के फलस्वरुप है।

 

पृथ्वी की आंतरिक संरचना के स्रोत

  • पृथ्वी की आंतरिक परिस्थितियों के कारण यह संभव नहीं है कि कोर्इ पृथ्वी के केंद्र तक पहुंचकर उसका निरीक्षण तथा वहां के पदार्थ का नमूना प्राप्त कर सके।
  • खनन, ज्वालामुखी आंतरिक संरचना के संदर्भ में जानकारी प्राप्त करने के प्रत्यक्ष स्रोत हैं जबकि घनत्व, दबाव, तापमान अप्रत्यक्ष स्रोत हैं। उल्कायें भी पृथ्वी की आंतरिक जानकारी का दूसरा अप्रत्यक्ष स्रोत है।
  • भूकंपीय तरंगों का अध्ययन पृथ्वी की आंतरिक परतों का संपूर्ण चित्र प्रकट करता है।

 

पृथ्वी की संरचना

सामान्यत: पृथ्वी की आंतरिक संरचना का अध्ययन भू-पर्पटी, मेंटल और क्रोड के आधार में किया जाता है।

 

भू-पर्पटी

  • पृथ्वी के ऊपरी क्षेत्र को भू-पर्पटी कहते हैं।
  • भू-पर्पटी का निर्माण सिलिका और एलमुनियम से हुआ है, इसलिए इस परत को सियाल कहा जाता है। इस परत को लिथोस्फीयर भी कहा जाता है।
  • महाद्वीपों में भू-पर्पटी की मोटार्इ महासागरों की तुलना में अधिक महाद्वीपों के नीचे भू- पर्पटी की मोटार्इ 30 किलोमीटर तक है। जबकि महासागरों के नीचे भू-पर्पटी की औसत मोटार्इ लगभग 5 किलोमीटर तक होती है।
  • पर्वतीय शृंखलाओं के क्षेत्र में यह मोटार्इ और अधिक होती है।
  • हिमालय पर्वत श्रृंखलाओं के नीचे भू-पर्पटी की मोटार्इ लगभग 70 किलोमीटर है।
  • भू-पर्पटी का घनत्व 3 ग्राम प्रति घन सेंटीमीटर है।

मैंटल

  • भू-पर्पटी के नीचे वाले भाग को मैंटल कहते हैं।
  • यह 2900 किलोमीटर की गहरार्इ तक पाया जाता है।
  • पृथ्वी के आयतन का 83% तथा द्रव्यमान का 67% भाग ही होता है।
  • मैंटल का निर्माण सिलिका और मैग्नीशियम से हुआ है।
  • मैंटल के ऊपरी भाग को दुर्बलता मंडल कहा जाता है। दुर्बलता मंडल का विस्तार 400 किलोमीटर तक देखा गया है। यही भाग ज्वालामुखी उद्गार के समय धरातल पर पहुंचने वाले लावा का मुख्य स्रोत है।
  • मैंटल का घनत्व 4 ग्राम प्रति घन सेंटीमीटर से अधिक होता है।
  • निचला मैंटल ठोस अवस्था में होता है। इस परत को पाइरोस्फीयर भी कहा जाता है।

क्रोड

  • क्रोड को दो भागों बाह्य क्रोड और आंतरिक क्रोड में विभाजित किया जाता है।
  • क्रोड का निर्माण निकल व लोहे से होता है। इससे निफे (Nife) भी कहा जाता है। इस परत को बैरीस्फीयर भी कहा जाता है।
  • बाह्य क्रोड तरल अवस्था में होता है जबकि आंतरिक क्रोड ठोस अवस्था में होता है।
  • मैंटल व क्रोड की सीमा पर चट्टानों का घनत्व लगभग 5 ग्राम प्रति घन सेंटीमीटर होता है। केंद्र में 6300 किलोमीटर की गहरार्इ तक घनत्व लगभग 13 प्रति घन सेंटीमीटर तक हो जाता है।

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