दक्षिण भारत का प्राचीन राजनैतिक इतिहास : संगम काल

दक्षिण भारत का प्राचीन राजनैतिक इतिहास : संगम काल

Category :

विश्लेषणात्मक अवधारणा

 

                दक्षिण भारत के तमिल साहित्य के संदर्भ में संगमकाल शब्द का प्रयोग होता है। यह तमिल प्रदेश दक्षिण में बहने वाली कृष्णा एवं तुंगभद्रा नदी के बीच के स्थान को कहा जाता है। यह वही स्थान है जहां चेर, चोल और पाण्ड्य शासकों के द्वारा छोटे-छोटे राज्यों पर शासन किया जाता था। इस प्रदेश में तमिल साहित्यकारों की नियमित गोष्ठियों और सभाओं का आयोजन किया जाता था। इन सभाओं में तमिल प्रदेश के सभी कवि, लेखक व रचनाकर नियमित रूप से मिलकर विभिन्न विषयों पर साहित्यिक विचार-विमर्श किया करते थे। इस कारण भी इतिहासकार इस कालखंड को 'संगमकाल' कहते हैं क्योंकि इस समय साहित्य जगत के सभी शीर्षस्थ रचनाकारों का आपस में मिलन अथार्थ संगम हुआ करता था

 

 

दक्षिण भारत का प्राचीन राजनैतिक इतिहास:

संगम काल

  • दक्षिण भारत (कृष्णा एवं तुंगभद्रा नदी के दक्षिण में स्थित क्षेत्र) में लगभग 300 ई. पू. से 3 ई. के बीच की अवधि को संगम काल के नाम से जाना जाता है।
  • संगम तमिल कवियों का एक संगम या सम्मलेन था, जो संभवतः किन्हीं प्रमुखों या राजाओं के संरक्षण में ही आयोजित होता था।
  • आठवीं सदी में तीन संगमों का वर्णन मिलता है। पाण्ड्य राजाओं द्वारा इन संगमों को शाही संरक्षण प्रदान किया गया।
  • ये साहित्यिक रचनाएं द्रविड़ साहित्य के शुरुआती उदाहरण थे।

 

संगम काल के बारे में विवरण देने वाले मुख्य स्रोत हैं

  • मेगस्थनीज, स्ट्रैबो, पिलनी और टॉलेमी जैसे यूनानी लेखकों ने पश्चिम तथा दक्षिण भारत के बीच वाणिज्यिक व्यापार संपर्को के बारे में उल्लेख किया है।
  • अशोक के अभिलेखों में चोल, पाण्ड्य और चेर के बारे में बताया गया है।
  • आठवीं सदी में इरैयनार अगप्पोरुल के भाष्य की भूमिका में तीनों संगमों का वर्णन किया गया है।

तमिल किंवदंतियों के अनुसार, प्राचीन दक्षिण भारत में तीन संगमों (तमिल कवियों का समागम) का आयोजन किया गया था, जिसे मुच्चंगम कहा जाता था।

 

दक्षिण भारत का प्राचीन राजनैतिक इतिहास: संगम काल

 

  • दक्षिण भारत (कृष्णा एवं तुंगभद्रा नदी के दक्षिण में स्थित क्षेत्र) में लगभग 300 ई. पू. से 300 ई. के बीच की अवधि को संगम काल के नाम से जाना जाता है।
  • संगम तमिल कवियों का एक संगम या सम्मलेन था, जो संभवतः किन्हीं प्रमुखों या राजाओं के संरक्षण में ही आयोजित होता था।
  • आठवीं सदी में तीन संगमों का वर्णन मिलता है। पाण्ड्य राजाओं द्वारा इन संगमों को शाही संरक्षण प्रदान किया गया।
  • ये साहित्यिक रचनाएं द्रविड़ साहित्य के शुरुआती नमूने थे।
  • तमिल किंवदंतियों के अनुसार, प्राचीन दक्षिण भारत में तीन संगमों (तमिल कवियों के समागम) का आयोजन किया गया था, जिसे मुच्चंगम कहा जाता था।
  • प्रथम संगम मदुरै में आयोजित किया गया था। इस संगम में देवता और महान संत शामिल थे। इस संगम का कोई साहित्यिक ग्रंथ उपलब्ध नहीं है।
  • दूसरा संगम कपाटपुरम् में आयोजित किया गया था, इस संगम का एकमात्र तमिल व्याकरण ग्रंथ तोल्काप्पिंयम ही उपलब्ध है।

               

 दक्षिण भारत के प्रमुख राजवंश

                चेर

  • चेरों ने आधुनिक राज्य केरल के मध्य और उत्तरी हिस्सों तथा तमिलनाडु के कोंगु क्षेत्र को नियंत्रित किया।
  • उनकी राजधानी वंजी थी तथा पश्चिमी तट, मुसिरी और टोंडी के बंदरगाह उनके नियंत्रण में थे।
  • चेरों का प्रतीक चिह्न "धनुष-बाण" था।
  • ईसा की पहली सदी के पुगलुर शिलालेख से चेर शासकों की तीन पीढ़ियों की जानकारी मिलती है।
  • चेर राजा रोमन साम्राज्य के साथ व्यापार से लाभ प्राप्त करते थे। चेरों के सबसे महान राजा सेंगुत्तुवन थे, जिन्हें लाल या अच्छे चेर भी कहा जाता था।
  • सेंगुत्तुवन ने चेर राज्य में पत्तिनी पूजा प्रारंभ की। इसे कण्णगी पूजा भी कहा गया।
  • सेंगुत्तुवन दक्षिण भारत से चीन में दूत भेजने वाले पहले व्यक्ति थे।

       

चोल

  • चोलों ने तमिलनाडु के मध्य और उत्तरी भागों को नियंत्रित
  • किया।
  • उनके शासन का मुख्य क्षेत्र कावेरी. डेल्टा था, जिसे बाद में चोलमंडलम के नाम से जाना जाता था।
  • उनकी राजधानी उरैयूर थी। बाद में करिकाल ने कावेरीपत्तनम या पुहार नगर की स्थापना कर उसे अपनी राजधानी बनाया।
  • इनका प्रतीक चिह्न बाघ था।
  • चोलों के पास एक कुशल नौसेना थी।
  • चोल राजाओं में राजा करिकाल या करिकल सर्वाधिक महत्वपूर्ण शासक था।
  • पत्तिनप्पाले में उनके जीवन और सैन्य अधिग्रहण को दर्शाया गया है।
  • विभिन्न संगम साहित्य की कविताओं में वेण्णि के युद्ध का उल्लेख मिलता है। इस युद्ध में करिकाल ने पाण्ड्य तथा चेर सहित ग्यारह राजाओं को पराजित किया।
  • करिकाल की सैन्य उपलब्धियों ने उन्हें पूरे तमिल क्षेत्र का अधिपति बना दिया।
  • करिकाल ने अपने शासनकाल में व्यापार और वाणिज्य क्षेत्र को संपन्न बनाया।
  • करिकाल ने पुहार या कावेरीपत्तनम शहर की स्थापना की और अपनी राजधानी उरैपुर से कावेरीपत्तनम में स्थानांतरित की।

 

नोट - 9वीं शताब्दी में चोल शासकों का पुनुरूत्थान हुआ

 

पाण्ड्य

  • पाण्ड्यों ने मदुरै से शासन किया। पाण्ड्य राज्य भारतीय प्रायद्वीप के सुदूर दक्षिण और दक्षिण-पूर्वी भाग में था।
  • कोरकई इनकी प्रारंभिक राजधानी थी, जो बंगाल की खाड़ी के साथ थम्परपराणी के संगम के पास स्थित थी।
  • पाण्ड्य वंश का प्रतीक चिह्न 'मछली' थी।
  • उन्होंने तमिल संगमों का संरक्षण किया और संगम कविताओं के संकलन की सुविधा प्रदान की।
  • संगम साहित्य के अनुसार, पाण्ड्य राज्य धनी और समृद्ध था।
  • पाण्ड्यों का पहला उल्लेख मेगाlस्थनीज ने किया है, उन्होंने इस राज्य को मोतियों के लिये प्रसिद्ध बताया था।
  • नल्लिवकोडन संगम युग का अंतिम ज्ञात पाण्ड्य शासक था।

 

सामाजिक व्यवस्था

संगम साहित्य में मिले प्रमाणों के अनुसार समाज को चार वर्गों में इस प्रकार बांटा गया था -

अरसर

राजपरिवार से जुड़े व्यक्ति

बेनिगर

व्यापारी वर्ग

बल्लाल

समाज में प्रतिष्ठित व्यक्ति

वेल्लार

कृषक समाज

               

इसके अलावा केवल ब्राह्मणे ही समाज में सम्मान पाने के अधिकारी थे और उन्हें यज्ञोपवीत पहनने का भी अधिकार था। समाज के शेष व्यक्ति अपने-अपने मूल प्रांत के नाम से जाने जाते थे। जैसे पर्वतीय इलाके वाले व्यक्ति 'कुटीजी', समुद्र किनारे रहने वाले 'नैइडल' के नाम से प्रसिद्ध थे।

  • संगम काल में 'दास प्रथा' का प्रचलन नहीं था और संपन्न व्यक्तियों के घर पक्के और चूने से बने होते थे।
  • संगम काल में स्त्रियां को अशुभ व निम्न स्तर का दर्जा दिया जाता था। इन्हें संपत्ति में भी कोई अधिकार प्राप्त नहीं था।
  • स्त्रियां शिक्षा ग्रहण कर सकती थीं और धार्मिक अनुष्ठानों में भी भाग लेती थीं। विधवा होने पर नारकीय जीवन जीने से तो वे स्वेच्छा से सती होना पसंद करती थीं।
  • प्रशासन व्यवस्था
  • संगमकाल में राजा अपने सलाहकारों की मदद से राजकाज का काम संभालते थे। इनके मुख्य सलाहकारों में पुरोहित, व्यापारी, ज्योतिषाचार्य और मंत्रिमंडल के प्रमुख मंत्री होते थे।
  • इस समूह को 'पंचारक' कहा जाता था। इसके साथ ही गुप्तचर भी राजा की शासन में मदद करते थे।
  • राजा मुख्य न्यायधीश के रूप में दंड देने का अधिकारी होता था।

               

धार्मिक व्यवस्था

  • संगम काल में ब्राह्मण को आदर व सम्मान की दृष्टि से देखा जाता था और उनकी आय का मुख्य स्रोत राजा से मिलने वाला दान होता था।
  • वेदों का प्रचार-प्रसार, नियमित यज्ञ करना और विभिन्न प्रकार के धार्मिक कार्यों का नियमित आयोजन करना ब्राह्मण समाज का काम होता था।
  • इस समय शिव, विष्णु, कृष्ण और बलराम आदि मुख्य पूजे जाने वाले देवता थे।
  • उस समय दक्षिण भारत में 'मुरूगन' सबसे प्रचलित देवता थे। किसान इन्द्र के रूप 'मरुगन' की उपासना करते थे। इसके अलावा उस समय पशु बलि भी धार्मिक आयोजन का मुख्य हिस्सा होती थी।

 

                संगम युग का अंत

  • तीसरी सदी के अंत तक संगम काल धीरे-धीरे पतन की तरफ अग्रसर होता गया।
  • 300-600 ई. पू. के बीच कालभ्रस ने तमिल देश पर कब्जा कर लिया था, इस अवधि को पहले के इतिहासकारों द्वारा एक अंतरिम या 'अंधकार युग' कहा जाता था।
  • संगम काल में ब्राह्मण को आदर व सम्मान की दृष्टि से देखा जाता था और उनकी आय का मुख्य स्रोत राजा से मिलने वाला दान होता था।
  • वेदों का प्रचार-प्रसार, नियमित यज्ञ करना और विभिन्न प्रकार के धार्मिक कार्यों का नियमित आयोजन करना ब्राह्मण समाज का काम होता था।
  • इस समय शिव, विष्णु, कृष्ण और बलराम आदि मुख्य पूजे जाने वाले देवता थे।
  • उस समय दक्षिण भारत में 'मुरूगन' सबसे प्रचलित देवता थे। किसान इन्द्र के रूप 'मरुगन' की उपासना करते थे। इसके अलावा उस समय पशु बलि भी धार्मिक आयोजन का मुख्य हिस्सा होती थी।

 

                संगम युग का अंत

  • तीसरी सदी के अंत तक संगम काल धीरे-धीरे पतन की तरफ अग्रसर होता गया।
  • 300-600 ई. पू. के बीच कालभ्रस ने तमिल देश पर कब्जा कर लिया था, इस अवधि को पहले के इतिहासकारों द्वारा एक अंतरिम या 'अंधकार युग' कहा जाता था।

 

Other Topics


You need to login to perform this action.
You will be redirected in 3 sec spinner