भारत में दार्शनिक प्रवृतिया

भारत में दार्शनिक प्रवृतिया

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भारत में दार्शनिक प्रवृतिया

 

विश्लेषणात्मक अवधारणा

दर्शन’ शब्द संस्कृत के ‘दृश्’ धातु से बना है, जिसका अर्थ है देखना।’ इसलिए ‘दर्शन’ का अर्थ हुआ ‘जिसके द्वारा देखा जाये।’ यहां देखने का अर्थ आंखों से देखना नहीं है। अपितु, तार्किक एवं अंतर्दृष्टि से देखना है। व्यापक अर्थ में “दृश्यते यथार्थ तत्वमनेन” अर्थात् जिसके द्वारा यथार्थ तत्व की अनुभूति हो वही दर्शन है। दर्शन शास्त्र में, अनेक मतों पर प्रमाणों द्वारा चर्चा किया गया है। जो व्यक्ति दर्शन शास्त्र को जीता है, उसे दार्शनिक कहते है। भारत में पहली शताब्दी से पूर्व ही 6 आस्तिक व 3 नास्तिक दार्शनिक मतों का प्रतिपादन हो चुका था।

 

  • भारत में ‘दर्शन’ उस विद्या को कहा जाता है जिसके द्वारा तत्व का ज्ञान हो सके।
  • भारतीय दर्शन का आरंभ वेदों से होता है। “वेद” भारतीय धर्म, दर्शन, संस्कृति, साहित्य आदि सभी के मूल स्रोत हैं।
  • वे दर्शन जो वेद की सत्ता को मानते हैं, आस्तिक दर्शन कहलाते हैं।
  • वे दर्शन जो वेद की सत्ता को नहीं मानते हैं, नास्तिक दर्शन कहलाते हैं।
  • आस्तिक दर्शन - वैदिक दर्शनों में “षड्दर्शन (छ: दर्शन) अधिक प्रसिद्ध और प्राचीन हैं। ये छ: हैं- न्याय, वैशेषिक, सांख्य, योग, मीमांसा और वेदान्त। इन्हें “षडदर्शन या ‘आस्तिक दर्शन’ कहा जाता है।
  • नास्तिक दर्शन में बौद्ध, जैन तथा चार्वाक प्रमुख हैं, इसे भौतिकतावादी दर्शन भी कहते हैं। कपिल मुनि द्वारा प्रवर्तित सांख्य दर्शन को भारत का प्राचीनतम दर्शन माना जाता है। योग दर्शन के प्रणेता पतंजलि हैं जिन्होंने ‘योगसूत्र‘ नामक ग्रंथ की रचना की।
  • न्याय-दर्शन के प्रवर्तक महर्षि गौतम माने जाते हैं, जिनका ग्रंथ ‘न्यायसूत्र‘ इस दार्शनिक प्रवृत्ति का पहला ग्रंथ माना जाता है।
  • वैशेषिक दर्शन के प्रवर्तक महर्षि कणाद हैं जिन्होंने ‘कणाद-सूत्र‘ की रचना की।
  • कर्मकांड, यज्ञ आधारित मीमांसा दर्शन का प्रतिपादन में आचार्य जैमिनी ने किया है।
  • ईसा-पूर्व दूसरी सदी में संकलित बादरायण का ब्रह्मसूत्र वेदान्त
  • दर्शन का मूल ग्रंथ है। इसे उत्तर मीमांसा भी कहते हैं।

 

वेदांत आधारित अन्य दार्शनिक मत

  • अद्वैत विचारधारा के संस्थापक शंकराचार्य है उसे शांकराद्वैत भी कहा जाता है।
  • विशिष्टाद्वैत वेदांत के प्रतिपादक श्री रामानुजाचार्य है।
  • निम्बार्काचार्य द्वारा प्रतिपादित द्वैताद्वैत वेदांत सिद्धांत में ईश्वर
  • और जीव में एक प्रकार से अभेद के साथ ही अन्य प्रकार से भेद भी है।
  • शुद्धाद्वैत वेदांत के प्रतिपादक वल्लभाचार्य जी माया को पूर्णत: अस्वीकार करके एकमात्र ब्रह्म को ही शुद्ध तत्व मानते
  • अचिन्त्य-भेदाभेद वेदांत के प्रवर्तक माधवाचार्य जी के शिष्य चौतन्य महाप्रभु है। अन्य वैष्णव वेदांत सम्प्रदायों के सामान यह भी जगत की वास्तविक सत्ता को स्वीकार करते हैं साथ ही आचार्य शंकर के मायावाद का खंडन भी करते है।
  • इन सिद्धांतों के अतिरिक्त स्वामी विवेकानंद द्वारा प्रतिपादित व्यावहारिक वेदांत भी है, जो जन -जन-सामान्य के लिए नितांत ही उपयोगी है।

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