मुग़ल राजवंश
Category :
मुग़ल राजवंश
विश्लेषणात्मक अवधारणा
भारत में मुगल राजवंश महानतम शासकों में से एक था। मुगल शासकों ने हजारों लाखों लोगों पर शासन किया। भारत एक नियम के तहत एकत्र हो गया और यहां विभिन्न प्रकार की सांस्कृतिक और राजनैतिक समय अवधि मुगल शासन के दौरान देखी गई। पूरे भारत में अनेक मुस्लिम और हिन्दू राजवंश टूटे, और उसके बाद मुगल राजवंश के संस्थापक यहां आए। कुछ ऐसे लोग हुए हैं जैसे कि बाबर, जो महान एशियाई विजेता तैमूर लंग का पोता था और गंगा नदी की घाटी के उत्तरी क्षेत्र से आए विजेता चंगेज खान, जिसने खैबर पर कब्जा करने का निर्णय लिया और अंततः पूरे भारत पर कब्जा कर लिया।
मुगल वंष की शासक
शासक |
शासन काल |
बाबर |
1526-1530 ई. (4 वर्ष) |
हुमायूं |
1530-1540 ई. और 1555-1556 ई. (लगभग 11 वर्ष) |
अकबर |
1556-1605 ई. (49 वर्ष 9 माह) |
जहांगीर |
1605-1627 ई. |
शाहजहां |
1627-1658 ई. |
औरंगजेब |
1658-1707 ई. (48 वर्ष 7 माह 2 दिन) |
बहादुरशाह प्रथम |
1707-1712 ई. |
जहांदारशाह |
1712-1713 ई. |
फर्रुखसियर (षाहजहां द्वितीय) |
1713-1719 ई. |
रफीउद्दाराजात |
1719 ई. |
उफीउद्दौला |
1719 ई. |
नेकसियर |
1719 ई. |
मुहम्मद इब्राहीम |
1719 ई. |
मुहम्मदषाह (रौषन अख्तर) |
1719-1748 ई. |
अहमदशाह |
1748-1754 ई. |
आलमगीर द्वितीय |
1754-1759 ई. |
शाहआलम द्वितीय (अली गौहर) |
1759-1806 ई. (47 वर्ष) |
अकबर द्वितीय (मिर्जा अकबर) |
1806-1837 ई. |
बहादुरशाह द्वितीय |
1837-1858 ई. (21 वर्ष) |
मुगल वंश की स्थापना
21 अप्रैल 1526 में पानीपत के प्रथम युद्ध में दिल्ली सल्तनत. के अंतिम सुल्तान इब्राहीम लोदी की पराजय के साथ ही भारत में मुगल वंश की स्थापना हो गई थी। इस वंश का संस्थापक जहिर उद-दिन मुहम्मद बाबर था। बाबर का पिता उमर शेख मिर्जा, फरगना का शासक था, जिसकी मृत्यु के बाद बाबर राज्य का वास्तविक अधिकारी बना।
पूरा नाम |
जहिर-उद-दिन मुहम्मद बाबर |
वंश |
चगताई तुर्क |
अन्य नाम |
मुगलशाह, पादषाह-ए-गाजी |
जन्म |
14 फरवरी 1483 |
जन्म भूमि |
अन्दीना (फरगना राज्य की राजधानी) |
पिता |
उमर शेख मिर्जा, (चकताई तुर्क) |
माता |
कुतलुगनिगार |
पुत्र |
हुमांयू, कामरान, अस्करी हिन्दाल |
उपाधि |
गाजी (खानवा के युद्ध में विजय के बाद) |
शासन काल |
1526-1530 ई. |
मृत्यु |
26 दिसम्बर 1530 ई. |
मृत्यु स्थान |
आगरा (मकबरा-काबुल) |
1525 ई. में बाबर को मेवाड़ के राणा सांगा और पंजाब के दौलत खां लोदी का निमंत्रण प्राप्त हुआ। वस्तुतः इब्राहम लोदी ने दौलत खां के बेटे दिलाबर खां को दरबार में बुलाकर अपमानित किया था।
बाबर द्वारा लड़े गए युद्ध
इस विजय के बाद बाबर के मुंह से निकला ‘‘काबुल की गरीबी अब हमारे लिए फिर नहीं’’।
खानवा का युद्ध (16 मार्च 1527)
चन्देरी (मध्य प्रदेश) का युद्ध (29 जनवरी 1528)
घाघरा का युद्ध (6 मई 1929)
बाबर ने अफगानों से समझौता कर बिहार के अनेक क्षेत्र अफगानों पर ही रहने दिए।
बाबर की मृत्यु
बाबर भारत पर मात्र चार वर्ष ही शासन कर पाया। 26 दिसंबर 1530 को इसकी आगरा में मृत्यु हो गयी। मृत्यु के बाद इसके शव को आगरा के नूर अफगान (आधुनिक आरामबाग) में रखा गया। यह बाग ज्यामिति विधि पर बाबर द्वारा ही लगवाया गया था, परंतु उसकी अंतिम इच्छा के अनुसार उसका शव काबुल ले जाकर दफनाया गया। काबुल में ही उसका मकबरा स्थित है।
बाबर की मृत्यु से जुड़ी ऐतिहासिक कहानी
पहले मुगल सम्राट बाबर की मौत का इतिहास बेहद दिलचस्प है। इतिहासकारों के मुताबिक बाबर ने अपने बेटे हुमायूं को अपनी जागीर संभालने भेजा था। वहां वह बेहद बीमार पड़ गया। उसे गंभीर हालत में नाव से आगरा लाया गया। आगरा किले में उसकी हालत ज्यादा ही खराब हो गई। उसका इलाज कर रहे हकीमों ने हाथ खड़े कर दिए। उस वक्त हुमायूं की बीमारी की कारगर दवा हकीमों को समझ में नहीं आ रही थी। पुस्तक ‘तवारीख-ए-आगरा’ के अनुसार तब उस वक्त के मशहूर फकीर अबूबका ने बाबर से अपनी सबसे कीमती वस्तु दान करते हुए खुदा से हुमायूं की जिंदगी के लिए प्रार्थना करने को कहा। बाबर ने स्वयं को सबसे कीमती बताया और हुमायूं के पलंग की परिक्रमा करते हुए कहा कि हुमायूं की बीमारी उस पर आ जाए। साक्ष्यों के अनुसार इसके बाद बाबर बीमार हो गया। उसकी हालत बिगड़ने लगी। दूसरी ओर हुमायूं स्वस्थ होने लगा। जब हुमायूं पूरी तरह ठीक हो गया, तब 26 दिसम्बर 1530 को आगरा में बाबर की मृत्यु हो गई। बाबर के शव को अस्थाई रूप से जमुना पार चार बाग में रखा गया और बाद में उसकी इच्छानुसार काबुल ले जाकर अंतिम रूप से दफना दिया गया। बाबर की मृत्यु के चार दिन बाद 30 दिसम्बर 1530 को हुमायूं आगरा के सिंहासन पर बैठा।
हालांकि बाबर के इस तरह निधन की बात का प्रमाणिक आधार नहीं मिल. सका है। यह संभव है कि बाबर हुमायूं से पहले ही बीमार चल रहा था, क्योंकि उसने एक साल पहले ही अपनी आत्मकथा ‘बाबरनामा’ लिखना बंद कर दिया था। वह युद्ध के लिए भी युद्धभूमि पर नहीं उतर रहा था, जबकि भारत का बड़ा हिस्सा उससे अविजित था। हालांकि कोई भी पिता अपने युवा पुत्र को असाध्य रोग में ग्रस्त देखकर यह दुआ कर सकता है कि ‘‘ईश्वर बेटे के बदले उसे उठा ले’’। बाबर की ईश्वर से प्रार्थना को रखकर देखा जाना सही है, इसे चमत्कारिक घटना के रूप में जोड़ना, तर्कसंगत नहीं है।
You need to login to perform this action.
You will be redirected in
3 sec