मुद्रा एवं मुद्रास्फीति
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मुद्रा एवं मुद्रास्फीति
विश्लेषणात्मक अवधारणा
मुद्रा विनिमय का एक सर्वमान्य माध्यम है। जब एक से अधिक आर्थिक एजेंट बाजार के माध्यम से संव्यवहार शुरू करते हैं, तो मुद्रा विनिमय एक सुविधाजनक साधन होती है। मुद्रा सुविधाजनक लेखा की एक इकाई के रूप में कार्य करती है। मुद्रा की सर्वप्रथम भूमिका यह है कि वह विनिमय के रूप में कार्य करती रहे। मुद्रा सभी प्रकार की संपत्तियों में सबसे तरल संपत्ति है अर्थात् यह सार्वभौतिक रूप से स्वीकार्य है और इसका किसी दूसरी वस्तु के रूप में आसानी से विनिमय किया जा सकता है। आधुनिक अर्थव्यवस्था में मुद्रा के अंतर्गत मुख्य रूप से देश के मौद्रिक प्राधिकरण द्वारा जारी करेंसी नोट और सिक्के आते हैं। भारत में करेंसी नोट भारतीय रिजर्व बैंक जारी करता है, जोकि भारत का मौद्रिक प्राधिकरण है, लेकिन सिक्के भारत सरकार के द्वारा जारी किए जाते हैं। करेंसी नोट और सिक्कों के अतिरिक्त, व्यवसायिक बैंकों में लोगों द्वारा जमा किए गए बचत खाते और चालू खाते को भी मुद्रा कहा जाता है, क्योंकि इन खातों में आहरित चेकों का उपयोग संव्यवहार के लिए किया जाता है।
· मुद्रा- वस्तुओं एवं सेवाओं के विनिमय के माध्यम के रूप में जिसे प्रयोग किया जाता है, वह मुद्रा कहलाती है। मुद्रा वह वस्तु है जिसे सरकार मुद्रा घोषित करती है और प्रत्येक व्यक्ति उसे स्वीकार करने के लिए बाध्य होता है।
· वर्तमान में सभी मुद्राएँ फिएट प्रणाली पर आधारित हैं।
· प्रो. मार्शल के अनुसार- मुद्रा में उन सभी वस्तुओं का समावेश होता है, जो किसी भी समय या स्थान के बिना किसी संदेह और बिना किसी जाँच-पड़ताल के वस्तुओं एवं सेवाओं को खरीदने और भुगतान करने के साधन के रूप में स्वीकृत की जाती है। उपर्युक्त परिभाषा मुद्रा के विषय में विस्तृत ज्ञान प्रदान करती है।
· मुद्रा का निर्गमन सरकार एवं केन्द्रीय बैंक द्वारा किया जाता है।
· मुद्रा का अर्थ केवल नोट एवं सिक्के न होकर वे सभी वस्तुओं होती है जो भुगतान के रूप में स्वीकार की जाती है।
मुद्रा का इतिहास
प्राचीन समय में लोगों की आवश्यकताएँ एवं राज्य की सीमाएँ छोटी होती थीं। ऐसे में लोग अपने आधिक्य को अपनी आवश्यकता की वस्तु के बदले प्रदान कर देते थे।
वस्तु विनिमय प्रणाली उपयोग में लायी जाती थीए जिसमें अधिक उत्पादित वस्तुएँ दूसरे व्यक्ति को देकर अपनी आवश्यकता की वस्तुएँ खरीद लेते थे।
समय बदलने से समाज बाजार एवं व्यक्ति की आवश्यकाएँ भी बदलने लगी जिससे वस्तु विनिमय प्रणाली अव्यवहारिक हो गईं तथा मूल्य निर्धारित करने के लिए एक मानक की आवश्यकता से मुद्रा अस्तित्व में आई।
प्रारंभ में मुद्राएँ धातुओं से निर्मित होती थीं जैसे- सोना, चाँदी, ताँबा, पीतल आदि। बाद में मिश्र धातु तत्पश्चात् कागजी मुद्रा का प्रयोग शुरू किया गया।
वर्तमान में मुद्रा का रूप और आधुनिक होता चला जा रहा है। प्लास्टिक मुद्रा व ई-मुद्राए जैसे- क्रेडिट एवं डेबिट कार्ड एवं अन्य इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों से अब मुद्रा का हस्तांतरण होने लगा है।
वास्तविक मुद्रा- किसी देश में सामान्य रूप से प्रचलित मुद्रा अर्थात् दैनिक जीवन में प्रचलित मुद्रा वास्तविक मुद्रा कहलाती है, जैसे- भारत में प्रचलित नोट एवं सिक्के।
1. धातु मुद्रा- धातु विशेष से निर्मित मुद्राए धातु मुद्रा कहलाती है। ये मानक मुद्राए प्रतीक मुद्रा तथा सहायक मुद्रा के रूप में भी प्रयुक्त होती है।
2. कागजी मुद्रा- यह एक विशेष प्रकार के कागज पर अंकित प्रतिज्ञा पत्र होता है।
स्वीकार्य मुद्रा- ऐसी मुद्रा जिसे आम लोगों एवं समाज के बीच व्यापक रूप से स्वीकार्यता प्राप्त हो स्वीकार्य मुद्रा कहलाती है।
1. वैध मुद्रा- यह मुद्रा सरकार द्वारा प्रत्याभूत होती है। इसे जनता एवं सरकार दोनों के द्वारा भुगतान एवं ऋण चुकाने में प्रयोग किया जाता है।
2. ऐच्छिक मुद्रा- वह मुद्रा जिसे स्वीकारना या न
स्वीकारना पूर्णतः- भुगतान प्राप्तकर्ता की इच्छा पर निर्भर होता है। यह बाध्यता प्राप्त मुद्रा नहीं होतीय जैसे- हुंडी, प्रतिज्ञा पत्र, विनिमय पत्र।
दुर्लभ मुद्रा- वैश्विक स्तर पर जिस मुद्रा की आपूर्ति की तुलना में माँग अधिक होती है: जैसे- अमेरिकी डॉलर।
सुलभ मुद्रा- अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में जिस मुद्रा की आपूर्ति अधिक रहती है एवं माँग कम होती है: जैसे- भारतीय रुपया
हॉट मुद्रा- वह विदेशी मुद्रा जो अत्यधिक चलायमान होती है, जिस स्थान पर अधिक लाभ की संभावना हो वहीं स्थानांतरित हो जाती है जैसे- डॉलर, यूरो।
प्लास्टिक मुद्रा- बैंकों, वित्तीय संस्थाओं एवं कंपनियों द्वारा जारी डेबिट एवं क्रेडिट कार्ड।
आंतरिक मुद्रा- निजी संस्थाओं में आपस में ऋण भुगतान के लिए इस मुद्रा का प्रयोग किया जाता है।
बाद्य मद्रा- निजी क्षेत्र की वित्तीय आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिए सृजित नवीन मुद्रा बाह्य मुद्रा होती है।
कॉशन मनी- संविदा एवं दायित्व पूर्ति के लिए जमानत के तौर पर माँगी जाने वाली राशि को कॉशन मनी कहते हैं।
मुद्रा के कार्य |
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प्राथमिक कार्य |
द्वितीयक कार्य |
आकस्मिक कार्य |
अन्त कार्य |
विनिमय |
मूल्य का हस्तांतरण |
साख का आधार |
इच्छा की वाहक |
मूल्य का मापक |
विनिमय भुगतान का मान |
आय के वितरण |
तरल सम्पत्ति का रूप |
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मूल्य का संचय में सहायक |
पूंजी के सामान्य रूप का आधार |
भुगतान-क्षमता का सूचक |
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उपभोक्ता को सम-सीमांत उपयोगिता प्राप्त करने में सहायक |
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मुद्रास्फीति
अर्थव्यवस्था में वस्तुओं की कीमत स्तर में होने वाली निरन्तर वृद्धि को मुद्रास्फीति कहा जाता है। एक निश्चित अवधि में मूल्यों की उपलब्ध मुद्रा के सापेक्ष वृद्धि मुद्रास्फीति या महंगाई कहलाती है।
देश में वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन की तुलना में मुद्रा के प्रचलन में अपेक्षाकृत वृद्धि तीव्र गति से होती है, तो मुद्रास्फीति का संकट उत्पन्न होने लगता है।
1. कारण के आधार पर
1. माँग जनित- जब अर्थव्यवस्था में मुद्रा का प्रवाह बढ़ जाये तो लोगों के पास अधिशेष धनराशि बचती है जिसका प्रयोग अधिक उपभोग के उद्देश्य से होता है। इससे वस्तुओं की माँग बढ़ती, यदि पूर्ति समय पर न हो जाये तो मूल्यों में बढ़ोत्तरी हो जाती है, तब इसे माँग जनित मुद्रास्फीति कहते हैं।
2. लागत जनित मुद्रास्फीति- यदि कच्चे माल अथवा अन्य किसी प्रकार के उत्पादन के व्यय में बढ़ोत्तरी हो जाये, तब अंतिम उत्पादित वस्तु अथवा सेवा स्वतः ही महंगी हो जाती है।
3. संरचनात्मक मुद्रास्फीति-अर्थव्यवस्था में संरचनात्मक परिवर्तन जैसे- उत्पादन पर्याप्त हो एवं माँग सामान्य हो, तो यह स्थिति उत्पन्न होती है।
भंडारण की कमी, परिवहन सुविधा की कमी, जमाखोरी, कालाबाजारी एवं व्यावसायिक समूहीकरण भी इनका कारण बनते हैं।
2. दर के आधार पर मुद्रास्फीति
(i) रेंगती हुई मुद्रास्फीति- यदि किसी वित्तीय वर्ष में मुद्रास्फीति की दर 3% अथवा इससे कम हो, तो रेंगती हुई मुद्रास्फीति कहलाती है।
(ii) चलती हुई मुद्रास्फीति- जब मुद्रास्फीति की दर 3% से 10% के बीच रहे तब वॉकिंग इन्फ्ले शन (चलती हुई) मुद्रास्फीति कहते हैं।
(iii) भागती हुई मुद्रास्फीति- जब मुद्रास्फीति की दर 10% से ज्यादा एवं 30% के बीच रहे तब यह भागती हुई मुद्रास्फीति कहलाती है।
(iv) चरम मुद्रास्फीति- जब मुद्रास्फीति नियंत्रण से पूर्णतः बाहर चली जाये तब इसे चरम मुद्रास्फीति कहते हैं। यह किसी भी अर्थव्यवस्था के लिए अत्यधिक बुरा संकेत होता है।
मुद्रास्फीति के कारण |
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मौद्रिक आय में वृद्धि से संबंधित कारण |
उत्पादन की मात्रा में कमी से संबंधित कारण |
· सरकार की मुद्रा एवं साख संबंधी नियम |
· सरकार की करारोपण नीति |
· मुद्रा के संचालन वेग में वृद्धि |
· सरकारी व्यापारिक नीति |
· घाटे की वित्त व्यवस्था |
· प्रौद्योगिक रुग्णता |
· व्यापारिक बैंकों की साख नीति |
· जनसंख्या में वृद्धि |
· मुद्रा की आपूर्ति में वृद्धि |
· प्राकृतिक कारण |
· सस्ती मौद्रिक नीति |
· जमाखोरी कालाबाजारी |
§ मुद्रास्फीति का मापन-
· थोक मूल्य सूचकांक
· उपभोक्ता मूल्य सूचकांक
· थोक मूल्य सूचकांक- भारत में मुद्रास्फीति मापने का आधार थोक मूल्य सूचकांक है। थोक मूल्यं सूचकांक के अंतर्गत केवल वस्तुओं की कीमतों का सूचकांक ज्ञात किया जाता है। इसका प्रकाशन आर्थिक सलाहकार कार्यालय द्वारा किया जाता है।
उपभोक्ता मूल्य सूचकांक- उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) की गणना खुदरा बाजार के स्तर पर की जाती है। इसके अंतर्गत वस्तुओं एवं सेवाओं दोनों को सम्मिलित किया जाता है।
इसके अंतर्गत निम्न चार सूचकांक जारी किए जाते हैं
1. औद्योगिक कामगारों के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक
2. ग्रामीण श्रमिकों के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक
3. कृषि श्रमिकों के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक
4. श्रमिकेत्तर शहरी कर्मचारियों के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक
मुद्रास्फीति के प्रभाव |
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समुदाय |
मुद्रास्फीति (बढ़ने की स्थिति) |
मुद्रा संकुचन (बढ़ने की स्थिति) |
उत्पादक समुदाय |
लाभान्वित |
हानि |
व्यापारी वर्ग |
लाभान्वित |
हानि |
निश्चित आय वाले |
हानि |
लाभान्वित |
अनिश्चित आय वाले |
लाभान्वित |
हानि |
ऋणी |
लाभान्वित |
हानि |
ऋणीदाता |
हानि |
लाभान्वित |
श्रमिक |
हानि |
लाभान्वित |
बचत |
कमी |
वृद्धि |
आयात |
वृद्धि |
कमी |
निर्यात |
कमी |
वृद्धि |
सार्वजनिक ऋण |
वृद्धि |
कमी |
सार्वजनिक व्यय |
वृद्धि |
कमी |
आर्थिक विषमता |
वृद्धि |
कमी |
रोजगार के अवसरों |
अधिक |
कम |
औद्योगिक विकास |
वृद्धि |
कमी |
वृद्धि बैंकिंग एवं बीमा क्षेत्र का प्रदर्शन |
बेहतर |
निराशाजनक |
मुद्रास्फीति नियंत्रण के उपाय |
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मौद्रिक उपाय |
राजकोषीय उपाय |
अन्य उपाय |
· नई मुद्रा का निर्गमन |
· करों में वृद्धि |
· उत्पादन में कमी
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· नोट निर्गमन पर नियंत्रण |
· सार्वजनिक ऋणों में वृद्धि |
वस्तुओं का आयात
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· साख व मुद्रा पर नियंत्रण |
· नए कर लगाना |
· संग्रहण पर रोक |
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· सार्वजनिक व्यय में कमी |
· लाभ वितरण |
· बचतों को प्रोत्साहन |
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· मुद्रा का अधिमूल्यन |
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· संतुलित बाजार का प्रावधान |
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· मजदुरी प्रबंधन |
मुद्रा संकुचन या मुद्रास्फीति
वह स्थिति जब वस्तुओं एवं सेवाओं के मूल्य में निरंतर कमी की दशा हो मुद्रा विस्फीति या मुद्रा संकुचन कहलाता है।
मुद्रा विस्फीति: कारण
1. मुद्रास्फीति
2. मुद्रा के प्रसार में कमी-बैंक दर में वृद्धि
खुले बाजार की क्रियाएँ
बैंक की कराधान प्रणाली
3. उत्पादन या पुर्ति में वृद्धि
मुद्रा संकुचन: प्रभाव
लाभ- सामान्य जनता
नौकरी पेशा वर्ग
हानि- उद्योग तथा व्यापार
कृषक
मजदूर
सरकार
बैंकिंग व्यवस्था
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