हुमायू और शेरशाह सूरी

हुमायू और शेरशाह सूरी

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हुमायू और शेरशाह सूरी

 

विश्लेषणात्मक अवधारणा

भारत में पहले मुगल बादशाह बाबर या जहीरूद्दीन मुहम्मद के चार पुत्रों में हुमायूं सबसे बड़ा था। भारतीय इतिहास में हुमायूं के नाम से मशहूर यह दूसरा मुगल शासक नसीरूद्दीन मुहम्मद के नाम से भी जाना जाता है। 6 मार्च 1508 को काबुल में पैदा हुआ हुमायूं महज 12 वर्ष की अल्पायु में बदख्शा का सूबेदार नियुक्त कर दिया गया था। मुगल साम्राज्य की शासन व्यवस्था हुमायूं के हाथ में आने के बाद उसके संघर्ष की शुरूआत अफगान सरदार महमूद लोदी से हुई। महमूद लोदी की अफगान सेना और हुमायूं की सेना के बीच 1532 में दौहरिया युद्ध हुआ, इसमें जीत हुमायूं की हुई। बहरहाल, हुमायूं का अफगान शासक शेर खां या शेरशाह सूरी से संघर्ष का सिलसिला चुनार के घेरे से शुरू हुआ। इसमें समझौते के तहत शेर खां ने हुमायूं की अधीनता स्वीकार करते हुए अपने पुत्र कुतुब खां के नेतृत्व में एक अफगान सैन्य टुकड़ी हुमायूं के साथ भेज दी। 26 जनवरी 1556 को दीनपनाह भवन की सीढ़ियों से उतरते वक्त हुमायूं की गिरने से मौत हो गई। इतिहासकार लेनपूल ने कहा कि हुमायूं जिस तरह से अपनी पूरी जिंदगी गिरते-पड़ते चलता रहा, ठीक उसी प्रकार से एक सीढ़ी से गिरने के कारण उसकी मौत हो गई 

 

 

हुमायूं

 

पूरा नाम

नासिरुद्दीन मुहम्मद हुमायूं

जन्म

6 मार्च 1508

जन्म भूमि  

काबुल

शासन काल

26 दिसंबर 1530-17 मई 1540 और 22 फरवरी 1555-27 जनवरी 1556

राज्याभिषेक

30 दिसम्बर 1530 आगरा

पिता

बाबर

माता

माहम बेगम

पत्नी

हमीदा बानू बेगम, बेगा बेगम, बिगेह बेगम, चांद बीबी, हाजी बेगम, माह-चूचक, मिवेह-जान, शहजादी खानम

पुत्र

अकबर, मिर्जा मुहम्मद हाकिम

मृत्यु तिथि

27 जनवरी 1555

मृत्यु स्थान

दिल्ली

 

हुमायूं (1530-1556 ई.)

बाबर के चार पुत्रों हुमायूं, कामरान, अस्करी और हिन्दाल में हुमायूं सूबसे बड़ा था। बाबर की मृत्यु के 4 दिन पश्चात् हुमायूं 23 वर्ष की आयु में 30 दिसंबर 1530 को हिन्दुस्तान के सिंहासन पर बैठा।

हुमायूं मुगल शासकों में एकमात्र शासक था, जिसने अपने भाइयों में साम्राज्य का विभाजन किया था।

हुमायूं को वास्तव में कठिनाइयां अपने पिता से ही विरासत के रूप में मिली थी, जिसे उसके भाइयों एवं संबंधी मिर्जाओं ने और बढ़ा दिया था। प्रारंभ में बाबर के प्रमुख मंत्री निजामुद्दीन अली खलीफा हुमायूं को अयोग्य समझकर बाबर के बहनोई मेंहदी ख्वाजा को गद्दी पर बैठाना चाहता था। किन्तु बाद में अपना जीवन खतरे में समझकर उसने हुमायूं का समर्थन कर दिया।

हुमायूं ने कामरान को काबुल एवं कंधार, अस्करी को संभल तथा हिन्दाल को अलवर की जागीर दी तथा अपने चचेरे भाई सुलेमान मिर्जा को बदख्शां की जागीर दी।

हुमायूं ज्योतिष में अधिक विश्वास करता था। इसलिए वह सप्ताह में सातों दिन सात रंग के कपड़े पहनता था। मुख्यतः वह रविवार को पीले, शनिवार को काले एवं सोमवार को सफेद रंग के कपड़े पहनता था।

हुमायूं अफीम का शौकीन था।

 

अफगानों से संघर्ष

हुमायूं की सबसे बड़ी कठिनाई उसके अफगान शत्रु थे, जो मुगलों को भारत से बाहर खदेड़ने के लिए लगातार प्रयत्नशील थे।

हुमायूं का समकालीन अफगान नेता शेर खां था, जो इतिहास में शेरशाह सूरी के नाम से विख्यात हुआ।

हुमायूं के राजत्व काल में उसका अफगानों से पहला मुकाबला 1532 ई. में दोहर नामक स्थान पर हुआ।

अफगानों का नेतृत्व महमूद लोदी ने किया। परंतु अफगानों की पराजय हुई।

1532 ई. में जब हुमायूं ने पहली बार चुनार का घेरा डाला। उस समय यह किला अफगान नायक शेर खां के अधीन था।

शेर खां ने हुमायूं की अधीनता स्वीकार ली तथा अपने पुत्र कुतुब खां के साथ एक अफगान सैनिक टुकड़ी मुगलों की सेवा में भेज दी।

बहादुर शाह ने टर्की के प्रसिद्ध तोपची रूमी खां की सहायता से एक अच्छा तोपखाना तैयार कर लिया था।

हुमायूं ने 1535-36 ई. में बहादुर शाह पर आक्रमण कर दिया। बहादुर शाह पराजित हुआ। हुमायूं ने माण्डू और चंपानेर के किलों को जीत लिया।

बंगाल से लौटते समय हुमायूं एवं शेर खां के बीच बक्सर के निकट चैसा नामक स्थान पर 29 जून 1539 को युद्ध हुआ जिसमें हुमायूं की बुरी तरह पराजय हुई।

हुमायूं अपने घोड़े सहित गंगा नदी में कूद गया और एक भिश्ती की सहायता से अपनी जान बचायी। हुमायूं ने इस उपकार के बदले उस भिश्ती को एक दिन का बादशाह बना दिया था।

17 मई 1540 में कन्नौज (बिलग्राम) के युद्ध में हुमायूं पुनः परास्त हो गया यह युद्ध बहुत निर्णायक युद्ध था।

कन्नौज के युद्ध के बाद हिन्दुस्तान की सत्ता एक बार फिर अफगानों के हाथ में आ गयी।

अपने निर्वासन काल के ही दौरान हुमायूं ने मीर अली की पुत्री हमीदाबानों बेगम से 29 अगस्त 1541 में विवाह किया कालांतर में इसी से अकबर का जन्म हुआ।

 

हुमायू द्वारा पुनः राज्य प्राप्ति

1545 ई. में हुमायूं ने काबुल और कंधार पर अधिकार कर लिया। हिन्दुस्तान पर पुनः अधिकार करने के लिए हुमायूं 4 दिसंबर 1554 को पेशावर पहुंचा। फरवरी, 1555 में लाहौर पर अधिकार कर लिया।

15 मई 1555 को ही मुगलों और अफगानों के बीच सरहिन्द नामक स्थान पर युद्ध हुआ। इस युद्ध में अफगान सेना का नेतृत्व सिकंदर सूर तथा मुगल सेना का नेतृत्व बैरम खां ने किया। अफगान बुरी तरह पराजित हुए।

इस प्रकार 23 जुलाई 1555 हुमायूं एक बार फिर से दिल्ली के तख्त पर बैठा। किन्तु वह बहुत दिनों तक जीवित नहीं रह सका।

दुर्भाग्य से एक दिन जब हुमायूं दिल्ली में दीनपनाह भवन में स्थित पुस्तकालय की सीढियों से उतर रहा था तो वह गिरकर मर गया।

 

लेनपूल ने हुमायूं पर टिप्पणी करते हुए कहा- “हुमायूं जीवनभर लड़खड़ाता रहा और लड़खड़ाते हुए मारा गया।

 

शेरशाह सूरी 

सूर साम्राज्य के संस्थापक शेरशाह सूरी के बचपन का नाम - फरीद था।

शेरशाह सूरी के पिता हसन खां एक अफगान अमीर जमाल खान की सेवा में थे।

1540 ई. में शेरशाह ने मुगल साम्राज्य को अपने हाथों में लिया था।

1545 ई. में शेरशाह की अकस्मात मृत्यु होने पर बेटा इस्लामशाह उनका उत्तराधिकारी बना। ये मूल से अफगानी थे।

शेरशाह सूरी के पिता का नाम हसन खां था जो जौनपुर के एक छोटे से जागीरदार थे।

दक्षिण बिहार के सूबेदार बहार खां लोहानी ने शेरशाह सूरी को शेर खां की उपाधि से नवाजा था। यह उपाधि शेरशाह सूरी द्वारा शेर को मार गिराने के कारण दी गयी थी। साथ ही बहार खां लोहानी ने शेरशाह सूरी को अपने पुत्र जलाल खां का संरक्षक भी नियुक्त किया।

बहार खां लोहानी की मृत्यु के पश्चात् शेर खां ने बहार खां की विधवा दूदू बेगम से विवाह कर लिया था।

शेरशाह सूरी ने 1529 ई. में बंगाल के शासक नुसरत शाह को युद्ध में हराकर ‘हजरत अली’ की उपाधि धारण की थी।

1539 ई. मुगल साम्राज्य के शासक हुमायूं और शेरशाह सूरी के बीच चैसा का युद्ध हुआ जिसमें हुमायूं को पराजित होना पड़ा।

शेरशाह मारवाड़ के युद्ध में राजपूतों के शौर्य से इतना प्रभावित हुआ कि उसने कहा- ‘‘मैं मुट्ठी भर बाजरे के लिए लगभग हिन्दुस्तान का साम्राज्य खो चुका था।’’

शेरशाह की मुद्रा व्यवस्था अत्यन्त विकसित थी। उसने पुराने घिसे-पिटे सिक्कों के स्थान पर शुद्ध चांदी का रुपया (180 ग्रेन) और तांबे का दाम (322 ग्रेन) चलाया।

शेरशाह के सिक्कों पर शेरशाह का नाम सुर, पद, अरबी या नागरी लिपि में अंकित होता था।

शेरशाह ने अनेक सड़कों का निर्माण कराया एवं पुरानी सड़कों की मरम्मत कराई।

बंगाल में सोनारगांव से शुरू होकर दिल्ली, लाहौर होते हुए . पंजाब में अटक तक का निर्माण कराया। इस सड़क मार्ग को ही ग्राण्ड-ट्रंक रोड कहा जाता है।

इस अभियान के दौरान जब वह उक्का नामक आग्नेयास्त्र चला रहा था। उसी दौरान किले की दीवार से एक गोला आकर पास रखे बारूद के ढेर पर गिरा और उसमें आग लग जाने से उसकी मृत्यु हो गयी।

शेरशाह ने बिहार के सासाराम में अपना मकबरा बनवाया जिससे स्थापत्य कला की एक नवीन शैली का प्रारम्भ हुआ।

शेरशाह ने हुमायूं द्वारा निर्मित दीनपनाह को तुड़वाकर उसके ध्वंसावशेषों से दिल्ली में पुराने किले का निर्माण करवाया। किले के अन्दर शेरशाह ने किला-ए-कुहना का निर्माण करवाया ।

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