A) सांख्य का
B) बौद्ध दर्शन का
C) वेदांत का
D) जैन दर्शन का
E) इनमें से कोई नहीं
Correct Answer: B
Solution :
उत्तर - बौद्ध दर्शन का |
व्याख्या - आत्मा का अर्थ मै होता है। किन्तु, प्राणी शरीर और मन से बने है, जिसमे स्थायित्व नही है। क्षण-क्षण बदलाव होता है। इसलिए, मै अर्थात आत्मा नाम की कोई स्थायी चीज नहीं। जिसे लोग आत्मासमझते हैं, वो चेतना का अविच्छिन्न प्रवाह है। आत्मा का स्थान मन ने लिया है। बौद्ध दर्शन में अनात्मवाद का सिद्धांत गौतम बुद्ध के प्रतीत्यसमुत्पाद के सिद्धांत से ही सिद्ध होता है। इसे नैरात्मवाद भी कहा जाता है। अनात्मवाद का शाब्दिक अर्थ है (आत्मा का अस्तित्व न होना)। चूंकि बौद्ध धर्म में आत्मा को परिवर्तनशील माना गया है, अत: अन्य धर्मों में आत्मा के माने गये गुण (शाश्वत, नित्य, स्थाई, अजर, अमर आदि) समाप्त होते हैं । इस रूप में बौद्ध दर्शन में आत्मा संबंधी सिद्धांत को अनात्मवाद कहा गया है। |
टिप्पणी - कुछ विचारकों के मतानुसार, अनात्मवाद का सिद्धांत केवल आत्मा पर लागू होता है। वस्तुत: इससे आत्मा और भौतिक जगत दोनों की ही व्याख्या होती है। जब गौतम बुद्ध सर्व अनात्मकम कहते हैं, तो इसका अर्थ है कि किसी नित्य चेतन या जड़ तत्व का अस्तित्व नहीं है। न तो आत्मा नामक नित्य द्रव्य का अस्तित्व है और न भौतिक पदार्थ नामक जड़ द्रव्य का। द्रव्यता, एकता, तादात्म्य एवं नित्यता आदि कल्पना मात्र है। |
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