Super Exam Chemistry Chemistry in Everyday Life / दैनिक जीवन में रसायन Question Bank दैनिक जीवन में रसायन

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    रंजकों के प्रयोग के समय इनमें रंग बंधक (Mordant) क्यों मिलाया जाता है?

    A) रंग बंधक रंजकों को जमने नहीं देते हैं।

    B) रंग बंधक मिलाने से रंजक की कम मात्रा खर्च होती है।

    C) रंग बंधक रंजक को सम्बंधित पदार्थ की सतह पर शीघ्र एवं स्थायी रूप से जमाने में सहायक होते हैं।

    D) उपर्युक्त सभी।

    Correct Answer: C

    Solution :

    उत्तर - रंग बंधक रंजक को सम्बंधित पदार्थ की सतह पर शीघ्र एवं स्थायी रूप से जमाने में सहायक होते हैं।
    व्याख्या - रंजक (dyes) ऐसे रंगीन पदार्थ हैं, जो रेशों, कपड़ों, कागज, चमड़े बालों आदि को रंगने में इस्तेमाल किए जाते हैं। रंजक द्वारा सम्बंधित पदार्थ को प्रदान किया गया रंग उस पदार्थ को प्रकाश के प्रभाव से, धोने या गर्म करने पर सरलता से धुंधला नहीं होता हैं। रंजकों का प्रयोग जलीय विलयन के रूप में किया जाता है तथा. सतह पर शीघ्र एवं स्थायी रूप से जुड़ने (चिपकने) के लिए इस में एक रंजक योजक अभिकर्मक (Dye Fixative Agent) मिश्रित किया जाता है, जिसे मॉर्डेन्ट (Mordant) कहते हैं।
    रजकों के सामान्य लक्षण - एक रंजक में निम्नांकित महत्वपूर्ण गुणधर्म होने चाहिए।
    1. इनमें कोर्इ विशेष रंग होना चाहिए।
    2. इनमें कपड़े या रेशे को सीधे या परोक्ष रूप से रंगने की क्षमता होनी चाहिए।
    3. ये प्रकाश से अप्रभावित रहने चाहिए।
    4. ये जल, तनुअम्ल-क्षारों, ताप, शुष्क धुलार्इ में प्रयुक्त विलायकों, साबुन, अपमार्जकों इत्यादि के प्रति प्रतिरोधी होने चाहिए।
    किसी पदार्थ का रंग उसमें उपस्थित रंजक पदार्थ तथा उस पर पड़ने वाले प्रकाश पर निर्भर करता है। प्रथम उपयोगी रंजक 1856 में सर्वप्रथम डब्लू.एच. पर्किन ने मात्र 18 वर्ष की आयु में संश्लेषित किया था। उसने अशुद्ध ऐनिलीन से एक बैंगनी - रंजक बनाया था जिसमें मुख्यत: छ. (फेनिल फीनो सेफेनीन) एवं उसके सजात थे। रंजकों के संरचनात्मक लक्षण-भौतिक एवं रासायनिक गुणों में समानता दर्शाने वाले कार्बनिक यौगिकों में रंग एवं रासायनिक संगठन के मध्य एक निश्चित सम्बंध होता है। उदाहरणार्थबैंजीन रंगहीन है जब कि इसका समावयवी फल्वीन रंगीन यौगिक है। ग्रेबी एवं लीबर मान ने रंग तथा रासायनिक संरचना के व्यवहार की सर्वप्रथम व्याख्या करने का प्रयास किया। 1876 में जर्मन रसायनज्ञ (ओटोविटनें) कार्बनिक पदाथोर्ं में रंग एवं उनकी संरचना के मध्य सम्बंध बताने के लिए ‘‘वर्णमूलकवर्णवर्धक सिद्धान्त’’ दिया जो ‘विट सिद्धान्त’ के नाम से जाना जाता है। इस सिद्धान्त के मुख्य बिन्दु निम्नानुसार हैं
    1. कार्बनिक यौगिकों में सामान्यतया रंग केवल तब ही पाया जाता है जबकि उनमें कोर्इ असंतृप्त या बहुबंध उपस्थित माहिए। हों। ऐसे समूहों को वर्णमूलक कहा जाता है जहां ये वर्ण (क्रोमा) एवं वर्धक (फोरस) अर्थात (क्रोमोफोर) समूह कहलाते हैं। ग्रीक में क्रोमोफोर का तात्पर्य रंग धारण करने से है। ये क्रोमोफोर समूह रंग धारण करने के लिए उत्तरदायी होते हैं।
    2. ऐसे यौगिक जिनमें वर्ण मूलक समूह पाया जाता है वर्णजन (Chromogen) कहलाते है तथा किसी क्रोमोजन में क्रोमोफोर समूहों की संख्या जितनी अधिक होती है उनके रंग प्रदान करने की क्षमता भी उतनी ही अधिक हो जाती है। कुछ क्रोमोफोर (वर्णमूलक) समूह जैसे -NO,\[-N{{O}_{2}},-N=N-\] इत्यादि स्वयं ही रंग प्रदान करने में सक्षम होते है।
    3. कुछ संतृप्त समूह ऐसे होते हैं जो अकेले यौगिक को रंग प्रदान करने में असमर्थ होते हैं परन्तु किसी-किसी वर्ण मूलक समूह युक्त यौगिक में प्रविष्ट करवा दिये जाने पर यौगिक को रंग प्रदान करने योग्य बना देते हैं अथवा उसका रंग गहरा कर देते हैं। ऐसे समूह वर्ण वर्धक (Auxochromes) कहलाते हैं। उपयोगिता के आधार पर रंजकों का वर्गीकरण:- रंजकों का उपयोग कपड़े, रेशों, कागज, चमड़ा, दिवारें, खाद्य पदाथोर्ं एवं अन्य अनेक पदाथोर्ं को रंगने में किया जाता है।


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