A) अंगों का उपयोग तथा अनुपयोग किए जाने से
B) बिलों में रहने के प्रति अनुकूलन से
C) प्राकृतिक चयन से
D) उपार्जित लक्षणों की वंशानुगति से
Correct Answer: A
Solution :
उत्तर - अंगों का उपयोग तथा अनुपयोग किए जाने से |
व्याख्या - लैमार्क द्वारा प्रतिपादित उपार्जित लक्षणों की वंशानुगति सिद्धान्त के अनुसार जीवधारियों में किसी अंग के उपयोग तथा अनुपयोग से उनके लक्षणों के परिवर्तन के आधार पर भविष्य में विकसित होते गए हैं। इनके अनुसार परिवर्तन शरीर के उपयोग एवं अनुपयोग के कारण होते हैं। जीव बदलते वातावरण में नर्इ आवश्यकताओं को पूरा करने लिए कुछ अंगों का ज्यादा उपयोग करते हैं एवं कुछ का कम। |
जिन अंगो का प्रयोग अधिक होता है, वे मजबूत और सुविकसित होते है, जबकि कम उपयोग में आने वाले अंग निष्क्रिय एवं लुप्त हो गए है। जिससे नए लक्षण आने वाली सन्तानों में दिखने लगें हैं। जैसे-पक्षियों में पंख की उत्पत्ति, जिराफ की गर्दन लम्बी होना आदि अंगों के लम्बे समय तक उपयोग के कारण हैं, वहीं सांपों में टांगों का लोप होना इसके कम प्रयोग के कारण है। यह सिद्धान्त लैमार्कवाद कहलाता है। |
लैमार्क के अनुसार सर्प का विकास वातावरण के प्रभाव से हुआ। प्रारम्भ में सर्पो के पैर थे। जो सर्पो को घास-फूस, झाड़ियों में दौड़ने, बिलों में घुसने के लिए पैर रुकावट उत्पन्न करते थे धीरे धीरे पैरों का उपयोग न होने से वह धीरे-धीरे छोटे होते गए तथा अन्त में पूर्णत: विलुप्त हो गए तथा शरीर पतला व लम्बा हो गया। इसी विकास के परिवर्तन में हजारों वर्ष लगें यही गुण वर्तमान सर्पो में स्थायी लक्षण बन गया। |
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