भारत में शिक्षा एवं प्रेस का विकास

भारत में शिक्षा एवं प्रेस का विकास

Category :

 

भारत में शिक्षा एवं प्रेस का विकास

 

विश्लेषणात्मक अवधारणा

इस अध्याय के अध्ययन का सार्थक उद्देश्य - विद्यार्थियों में भारत में विकसित हुर्इ शिक्षा एवं प्रेस की नर्इ व्यवस्थाओं से अवगत कराना है। सोलहवीं सदी में यूरोपीय व्यापारिक कंपनियों के आगमन के बाद भारत में संचार के क्षेत्र में छपार्इ हेतु- मुद्रण यंत्रों अर्थात प्रेस के जाने से विचारों के आदान-प्रदान एवं संप्रेषण तथा ज्ञानार्जन की प्रकिया केवल कम खर्चीली हो गर्इ, बल्कि उनकी पहुंच भी और व्यापक हो गयी। अंग्रेजी और देशी भाषा के समाचार-पत्रों में अनेक प्रतिबंधों के बावजूद तेजी से वृद्धि होने से औपनिवेशिक प्रशासन के अत्याचारों के विरुद्ध सशक्त जनमत तैयार हुआ, जिसने राष्ट्रवाद के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभार्इ। भारतीय समाचार-पत्रों का इतिहास यूरोपीय लोगों के आने के साथ ही आरंभ हुआ।

 

§  भारत में प्रिटिंग प्रेस की शुरुआत 16वीं सदी में उस समय हुर्इ जब गोवा के पुर्तगाली पादरियों ने 1557 र्इ. में एक पुस्तक छापी।

§  र्इस्ट इंडिया कंपनी ने अपना पहला प्रिटिंग प्रेस 1684 र्इ. में बंबर्इ में स्थापित किया। लगभग 100 वषोर्ं तक कंपनी के अधिकार वाले प्रदेशों में कोर्इ समाचार-पत्र नहीं छपा क्योंकि कंपनी के कर्मचारी यह नहीं चाहते थे कि उनके अनैतिक, अवांछनीय तथा निजी व्यापार से जुड़े कारनामों की जानकारी ब्रिटेन पहुंचे।

§  1766 र्इ. में कंपनी के असंतुष्ट कर्मचारी विलियम बोल्ट्स ने अपने द्वारा निकालने गए समाचार-पत्र में कोर्ट अॉफ डायरेक्टर्स की नीतियों के विरुद्ध लिखा, लेकिन, बोल्ट्स को शीघ्र ही इंग्लैंड भेज दिया गया।

§  पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रथम प्रयास जेम्स आगस्टस हिक्की द्वारा 1780 र्इ. में किया गया। उसके द्वारा प्रकाशित प्रथम समाचार-पत्र का नाम ‘बंगाल गजट’ अथवा ‘ कलकत्ता जरनल एडवरटाइजर’ था।

§  1784 र्इ. में कलकत्ता गजट, 1785 र्इ. में बंगाल जरनल तथा ओरियंटल मैंगजीन अॉफ कलकत्ता अथवा कलकत्ता एम्यूजमेंट, 1788 र्इ. में मद्रास कुरियर इत्यादि अनेक समाचार-पत्र निकलने आरंभ हुए।

§  हिन्दी में प्रकाशित पहला समाचार-पत्र उदन्त मार्तण्ड था, जिसका प्रकाशन 1826 र्इ. में कानपुर से जुगल किशोर ने किया।

§  1818 र्इ. में मार्शमैन द्वारा बांग्ला भाषा में दिग्दर्शन नामक मासिक पत्रिका का प्रकाशन आरंभ किया गया।

§  राजा राममोहन राय प्रथम भारतीय थे, जिन्हें राष्ट्रीय प्रेस की स्थापना का श्रेय दिया जाता है। उन्होंने 1821 र्इ. में अपने साप्ताहिक पत्र ‘संवाद कौमुदी’ और 1822 र्इ. में फारसी पत्र ‘मिरात-उल अखबार’ का प्रकाशन कर भारत में प्रगतिशील राष्ट्रीय प्रवृति के समाचार-पत्रों का शुभारंभ किया।

§  1851 र्इ. में दादा भार्इ नौरोजी के संपादकत्व में बंबर्इ से एक गुजराती समाचार-पत्र ‘रफ्त गोफ्तार’ का प्रकाशन आरंभ हुआ।

§  इसी समय 19वीं सदी के महान भारतीय पत्रकार हरिश्चंद्र मुखर्जी ने कलकत्ता से ‘हिन्दू पैट्रियाट’ नामक पत्र का प्रकाशन किया। एक अन्य साप्ताहिक समाचार-पत्र ‘चंद्रिका’ हिन्दू समाज के रूढ़िवादी वर्ग का प्रतिनिधित्व करता था।

§  19वीं सदी के महान भारतीय पत्रकार हरिश्चंद्र मुखर्जी ने कलकत्ता से हिन्दू पैट्रियाट नामक पत्र का प्रकाशन किया।

§  बाल गंगाधर तिलक ने बंबर्इ से अंग्रेजी में ‘मराठा’ और मराठी में ‘केसरी’ का प्रकाशन किया। प्रारंभ में ‘केसरी’ का संपादन अगरकर तथा ‘मराठा’ का संपादन केलकर किया करते थे।

§  भारत में अंग्रेजों द्वारा संपादित समाचार-पत्रों में प्रमुख इस प्रकार थे

टाइम्स अॉफ इंडिया (1861 र्इ.)

स्टेट्समैन (1875 र्इ.)

 

फ्रेंड अॉफ इंडिया

मद्रास मेल

पायनियर (इलाहाबाद)

सिविल एंड मिलिटरी गजट (लाहौर)

इंग्लिश मैन आदि।

समाचार एजेंसी

स्थापना वर्ष

. पी. आर्इ. (असोसिएट प्रेस आफ इंडिया)

1880

फ्री प्रेस न्यूज सर्विस

1905

यू. पी. आर्इ. (यूनाइटेड प्रेस आफ इण्डिया)

1927

 

प्रेस पर लगाए गए प्रतिबंध

·         प्रेस नियंत्रण अधिनियम, 1799: ब्रिटिश भारत में प्रेस पर कानूनी नियंत्रण की शुरुआत सबसे पहले तब हुर्इ जब लॉर्ड वेलेजली ने प्रेस नियंत्रण अधिनियम द्वारा सभी समाचार-पत्रों पर नियंत्रण (सेंसर) लगा दिया।

·         भारतीय प्रेस पर पूर्ण प्रतिबंध, 1823: कार्यवाहक गवर्नर जरनल जॉन एडम्स ने 1823 र्इ. में भारतीय प्रेस पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया। इसके कठोर नियमों के अंतर्गत मुद्रक तथा प्रकाशक को मुद्रणालय स्थापित करने हेतु लाइसेंस लेना होता था तथा मजिस्ट्रेट को मुद्रणालय जब्त करने का भी अधिकार था। इस प्रतिबंध के चलते राजा राममोहन राय की पत्रिका ‘मिरात-उल-अखबार’ का प्रकाशन रोकना पड़ा।

·         लिबरेशन अॉफ दि इंडियन प्रेस अधिनियम, 1835: लॉर्ड विलियम बेटिक ने समाचार -पत्रों के प्रति उदारवादी –ष्टिकोण अपनाया। इस उदारता को और आगे बढ़ाते हुए चार्ल्स मेटकॉफ ने 1823 र्इ. के भारतीय अधिनियम को रद्द कर दिया। अत: चार्ल्स मेटकॉफ को भारतीय समाचारपत्र का मुक्तिदाता कहा जाता है।

·         लाइसेंसिंग अधिनियम, 1857: 1857 र्इ. के विद्रोह से निपटने के लिए ब्रिटिश सरकार ने एक वर्ष की अवधि के लिए बिना लाइसेंस मुद्रणालय रखने और प्रयोग पर प्रतिबंध लगा दिया।

·         पंजीकरण अधिनियम, 1867: इस अधिनियम के अंतर्गत प्रत्येक मुद्रिक पुस्तक तथा समाचार-पत्र पर मुद्रक, प्रकाशक और मुद्रण स्थान का नाम होना अनिवार्य था तथा प्रकाशन के एक माह के भीतर पुस्तक की एक प्रति स्थानीय सरकार को नि:शुल्क भेजनी होती थी।

·         वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट, 1878: लॉर्ड लिटन द्वारा लागू किया गया वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट:, 1878 मुख्यत: ‘अमृत बाजार पत्रिका’ के लिए लाया गया था जो बांग्ला समाचार-पत्र था। इससे बचने के लिए ही यह पत्रिका रातों-रात अंग्रेजी भाषा की पत्रिका में बदल गर्इ। इस अधिनियम को ‘मुंह बंद करने वाला अधिनियम’ कहा गया। जिन पत्रों के विरुद्ध इस अधिनियम को लागू किया गया, उनमें प्रमुख थे- सोम-प्रकाश तथा भारत-मिहिर। इस एक्ट को लॉर्ड

रिपन ने 1881 र्इ. में निरस्त कर दिया।

§  आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1898

§  समाचार-पत्र अधिनयम, 1908

§  भारतीय प्रेस अधिनियम, 1910: किसी मुद्रणालय के स्वामी या समाचार-पत्र के प्रकाशन से स्थानीय सरकार पंजीकरण जमानत मांग सकती है, जो कि न्यूनतम `500 तथा अधिकतम `2000 होगी।

§  भारतीय प्रेस (संकटकालीन शक्तियां) अधिनियम, 1931  

§  समाचार-पत्र ( आपत्तिजनक विषय ) अधिनियम, 1951 भारत में शिक्षा का विकास

§  अंग्रेजो के द्वारा भारत में शिक्षा के विकास की शुरुआत 1781 र्इ. में वारेन हेस्टिंग्स के द्वारा कलकत्ता मदरसा की स्थापना से हुर्इ। इसका उद्देश्य मुस्लिम कानूनों तथा इससे सम्बंधित अन्य विषयों की शिक्षा देना था।

§  इसके उपरांत 1791 र्इ. में जोनाथन डंकन के प्रयत्नों से बनारस में संस्कृत कॉलेज की स्थापना की गर्इ जिसका उद्देश्य हिन्दू विधि एवं दर्शन का अध्ययन करना था।  1800 र्इ. में लार्ड वैलेजली के द्वारा फोर्ट विलियम की स्थापना की गर्इ, जहां अधिकारियों को विभिन्न भारतीय भाषाओं तथा विभिन्न भारतीय रीति रिवाजों की शिक्षा दी जाती थी।

§  1813 र्इ. के चार्टर एक्ट द्वारा पहली बार भारत में स्थानीय विद्वानों को प्रोत्साहित करने तथा देश में आधुनिक विज्ञान के ज्ञान को प्रारम्भ एवं उन्नत करने जैसे उद्देश्यों को रखा गया। और इसके लिए कंपनी के द्वारा एक लाख  रुपए की राशि स्वीकृत की गर्इ।

§  लार्ड मैकाले का स्मरण पत्र-1835 र्इ. में मैकाले ने कहा कि सरकार के सीमित संसाधनों के मद्देनजर पाश्चात्य विज्ञान एवं साहित्य की शिक्षा के लिए माध्यम के रूप में अंग्रेजी भाषा ही सर्वोत्तम है

·         सरकार ने स्कूलों और कॉलेजों में शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी बना दिया गया।

·         बड़े पैमाने पर स्कूलों और कॉलेजों की स्थापना कि गर्इ

जनसाधारण के शिक्षा की उपेक्षा की गर्इ।

§  चार्ल्स वुड डिस्पैच - चार्ल्स वुड डिस्पैच जिसे भारतीय शिक्षा का मैग्ना -कार्टा भी कहा जाता है, भारत में शिक्षा के विकास से सम्बंधित पहला विस्तृत प्रस्ताव था।

इस डिस्पैच की प्रमुख सिफारिशें निम्न थी -  

·         जनसाधारण के शिक्षा का उत्तरदायित्व सरकार वहन करे।

·         गावं में देशी भाषाओं में स्कूल, जिला स्तर पर आंग्ल देशी भाषार्इ हार्इ स्कूल तथा बम्बर्इ, कलकत्ता मद्रास में

·         विश्वविद्यालय की स्थापना की जाए।

§  हंटर शिक्षा आयोग- देश की प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षा के स्तर की समीक्षा के लिए सरकार ने डब्ल्यु. डब्ल्यु. हंटर के नेतृत्व में एक आयोग बनाया जिसे हंटर शिक्षा आयोग के नाम से जाना जाता है।

§  भारतीय विश्वविद्यालय अधिनियम 1904- 1902 र्इ. में गया जिसका उद्देश्य विश्वविद्यालय की स्थिति का आंकलन करना था। आयोग की सिफारिशों पर 1904 र्इ. में भारतीय विश्वविद्यालय अधिनियम पारित किया गया।

§  सैडलर विश्वविद्यालय आयोग- 1917 र्इ. में सरकार ने एम. सैडलर कि अध्यक्षता में एक का गठन किया जिसका कार्य कलकत्ता विश्वविद्यालय कि समस्याओं का अध्ययन कर इसकी रिपोर्ट सरकार को देना था।

§  हर्टोग समिति 1929- शिक्षण संस्थानों के अंधाधुंध वृद्धि के कारण शिक्षा स्तर में आर्इ गिरावट कि समीक्षा करने के लिए फिलिप होंग कि अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया।

§  वर्धा बुनियादी शिक्षा योजना, 1937- भारत सरकार अधिनियम, 1935 के प्रावधानों के अनुसार प्रांतों को उसी वर्ष स्वायत्ता दे दी गर्इ। इसके फलस्वरूप दो वषोर्ं में ही लोकप्रिय मंत्रिमंडल अपने-अपने प्रांतों में कार्य करने लगे। 1937 र्इ. में महात्मा गांधी ने अपने पत्र ‘ हरिजन’ में लेखों की एक श्रृंखला के माध्यम से एक शिक्षा योजना का प्रस्ताव प्रस्तुत किया। इसे ही वर्धा योजना कहा गया।

§  सार्जेट योजना, 1944- देश में शिक्षा के विकास के लिए केंद्रीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड ने 1944 र्इ. में एक राष्ट्रीय योजना की सिफारिश की। इस मंडल के अध्यक्ष सर जॉन सार्जेण्ट ही भारत के प्रमुख शिक्षा परामर्शदाता थे।

Other Topics


You need to login to perform this action.
You will be redirected in 3 sec spinner