कार्बन एवं इसके यौगिक

कार्बन एवं इसके यौगिक

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कार्बन एवं इसके यौगिक

 

विश्लेषणात्मक अवधारणा

 

कार्बन एक सर्वतोमुखी तत्व है जो सभी जीवों एवं हमारे उपयोग में आने वाली वस्तुओं का आधार है। कार्बन की चतु:संयोजकता एवं श्रृंखलन प्रकृति के कारण यह कर्इ यौगिक बनाता है। अपने बाहरी कोशों को पूर्ण रूप से भरने के लिए दो परमाणुओं के बीच इलेक्ट्रॉनों . की साझेदारी से सहसंयोजक आबंध बनता है। कार्बन अपने या दूसरे तत्वोंय जैसे-हाइड्रोजन, ऑक्सीजन, सल्फर, नाइट्रोजन एवं क्लोरीन . के साथ सहसंयोजक आबंध बनाता है। कार्बन ऐसे यौगिक भी बनाता है जिसमें कार्बन परमाणुओं के बीच द्वि-या त्रिआबंध होते हैं। कार्बन की यह श्रृंखला, सीधी, शाखायुक्त या वलीय किसी भी रूप में हो सकती है।

 

आवर्त सारणी का कार्बन ज्ञात तत्वों में सबसे प्राचीन तत्वों में से एक है। इसे आवर्त सारणी में p-ब्लॉक के अन्तर्गत आवर्त-2 एवं 2 वर्ग-14 में स्थान दिया गया है। ब्रह्माण्ड में चौथा सर्वाधिक (द्रव्यमान में) उपस्थित तत्व कार्बन है तथा मानव शरीर में उपस्थित तत्वों में ऑक्सीजन के पश्चात कार्बन का दूसरा स्थान (18 %) है। विभिन्न जैविक पदाथोर्ं में कार्बन की उपस्थिति अनिवार्य होती है। यह मुक्त संयुक्त दोनों अवस्थाओं में उपस्थित रहता है। प्रकृति में मुक्त अवस्था में कार्बन, हीरा, ग्रेफाइट कोयले के रूप में एवं यह अपने प्रोटीन, हाइड्रोकार्बन, कार्बोहाइड्रेट, ऑक्साइडों, कार्बोनेटों, बाइकार्बोनेटों तथा कर्इ अन्य जटिल यौगिकों के रूप में पाया जाता है। हीरा तथा ग्रेफाइट कार्बन के शुद्धत्तम रूप हैं। इसके अतिरिक्त कोयला (Coal), कोकं चारकोल कार्बन के अशुद्ध रूप होते हैं।

 

कार्बन में बंधन - कार्बन के कोशों में 6 इलेक्ट्रॉन उपस्थित रहते हैं। इसका इलेक्ट्रॉनिक विन्यास है- 152, 252, 221 कार्बन एक चतुर्थ संयोजी (tetarvalent) वाला अधातु तत्व है। कार्बन में संयोजी इलेक्ट्रॉनों की संख्या 4 है। अत: कार्बन अष्टक प्राप्त करने हेतु 4 इलेक्ट्रॉनों की दूसरे तत्वों से साझेदारी करके सहसंयोजी बंध का निर्माण करता है। सहसंयोजी बंध वाले अणुओं का बंध मजबूत होता है लेकिन इनका अंतर आण्विक बल दुर्बल होता है, जिसके कारण कार्बन के यौगिको का क्वथनांक एवं गलनांक का मान कम होता है। सहसंयोजी यौगिक विद्युत के कुचालक होते हैं।

 

कार्बन के विशेष गुण - रसायनशास्त्रियों द्वारा सूत्र सहित ज्ञात कार्बनिक यौगिकों की संख्या लगभग तीस लाख है एवं प्रकृति में अन्य यौगिकों की अपेक्षा कार्बन के यौगिकों की संख्या सर्वाधिक है। इतनी बड़ी संख्या में यौगिक बनाने की क्षमता के कारण निम्नलिखित हैं

(i)             श्रृंखलन (Catenation)- कार्बन में कार्बन के ही अन्य परमाणुओं के साथ बंध निर्माण करने की विशिष्ट क्षमता होती है। एक ही तत्व के परमाणुओं द्वारा आपस में बंध निर्माण का गुण शृंखलन कहलाता हैं। कार्बन में शृंखलन का गुण अन्य तत्वों की अपेक्षा अधिक होता है।

(ii)            कार्बन-कार्बन परमाणुओं के मध्य प्रबल बंध- कार्बन परमाणु का आकार छोटा होने से परमाणु के अर्द्धपूरित (Half -filled) परमाणु कक्षकों को अतिव्यापन बहुत बेहतर तरीके एवं प्रभावी ढंग से होता है, जिससे उनके मध्य बना बंध काफी प्रबल होता है। कार्बन परमाणु आपस में एक बंध (C-C), द्विबंध (C=C) या त्रिबंध (\[C\equiv C\]) द्वारा जुड़े होते हैं। सामान्यत: कार्बन परमाणुओं की संख्या नहीं टूटती है लेकिन उनसे जुड़े हुए H परमाणु, Cl या अन्य समूह OH, CHO आदि विस्थापित हो जाते हैं।

(iii)           संयोजकता- C की संयोजकता 4 होने के कारण इसमें अन्य C परमाणुओं के साथ-साथ कुछ अन्य एक संयोजक तत्वों के परमाणुओं के साथ बंधन क्षमता रहती है, जिससे हाइड्रोजन, नाइट्रोजन, ऑक्सीजन, सल्फर, क्लोरीन. तथा अनेक अन्य तत्वों के साथ कार्बन के यौगिकों का निर्माण होता है।

(iv)           समावयवता (Isomerism) - यौगिकों में कार्बन तथा अन्य तत्व कर्इ प्रकार से जुड़ने के कारण उनके अणुसूत्र एक समान रहते हुए यौगिक भिन्न संरचना सूत्र वाले होते हैं। यह गुण समावयवता कहलाता है।

 

कार्बन के भौतिक गुण

 

(i)         इसका गलनांक 3853 K तथा क्वथनांक 5100 K है।

(ii)        यह जल में अविलेय है तथा ऊष्मा विद्युत का कुचालक होता है (अपवाद - ग्रेफाइट गैस कार्बन को छोड़कर)

(iii)       यह एक चतुष्क संयोजी यौगिक है, जिसकी परमाणवीय त्रिज्या 0.77 है।

(iv)       यह उदासीन प्रकृति का होता है।

 

कार्बन के अपररूप (Allotrops of carbon) - कार्बन के विभिन्न अपररूपों में हीरा (diamond) तथा ग्रेफाइट (graphite) क्रिस्टलीय होते हैं जबकि अन्य अक्रिस्टलीय रुप जैसे चारकोल, कोक, कोयला, काजल, हड्डी लकड़ी का कोयला आदि। X- किरणों की सहायता से देखने पर कार्बन के अक्रिस्टलीय अपरूपों में भी अतिसूक्ष्म क्रिस्टलीय कण दिखार्इ देते हैं।

 

1. हीरा (Diamond) - कार्बन का सबसे शुद्ध ठोस क्रिस्टलीय

रूप हीरा होता है, जिसमें कार्बन का प्रत्येक परमाणु चार अन्य कार्बन परमाणुओं के साथ एक बंध का निर्माण करके एक त्रि-आयामी

(3 - D) संरचना का निर्माण करता है। इस संरचना के कारण हीरा प्रकृति का सबसे कठोरतम पदाथोर्ं में से एक होता है। प्रकृति में हीरा सिर्फ मुक्त अवस्था में पाया जाता है। इसकी उपस्थिति सामान्यत: किम्बरलाइट चट्टानों में होती है। इसकी संरचना में सभी इलेक्ट्रॉन मजबूती से बंधे होने के कारण गति करने के लिए स्वतंत्र नहीं होते हैं। इसलिए यह विद्युत का कुचालक होता है, परन्तु ऊष्मा का सुचालक (कॉपर से 5 गुना ज्यादा) होता है। शुद्ध हीरा रंगहीन (Colour Less), पारदर्शी (Transparent), जल में अविलेय (Insoluble in water) एवं विषाक्त (Poisonous) जैसे गुण विद्यमान रहते हैं। इसका घनत्व गलनांक बहुत उच्च (घनत्व 15\[^{o}C\]पर 3.51 ग्राम/घन सेमी गलनांक 3843 K ) होता है। रासायनिक अभिक्रियाओं की –ष्टि से यह लगभग अक्रिय होता है। इसीलिए स्वतंत्र अवस्था में उपस्थित रहता है। लेकिन 700\[^{o}C\]से अधिक ताप पर यह ऑक्सीजन से अभिक्रिया करके कार्बन डार्इआक्साइड का निर्माण करता है तथा सल्फ्यूरिक अम्ल (\[{{H}_{2}}S{{O}_{4}}\]) एवं पोटेशियम डार्इक्रोमेट (\[{{K}_{2}}C{{r}_{2}}{{O}_{7}}\]) के मिश्रण से 200\[^{o}C\] तापमान पर धीरे-धीरे

ऑक्सीकृत होता है। इसकी कठोरता का कारण इसकी विशेष त्रिविमीय चतुष्फलकीय संरचना होती है, जिसमें इसके क्रिस्टल बड़े एवं घनाकार होते हैं। हीरे का अपवर्तनांक उच्च होता है। इसे विभिन्न कोणों पर इस प्रकार से काटा एवं तराशा जाता है, जिससे प्रकाश का पूर्ण आंतरिक परावर्तन होने लगता है। इससे यह चमकदार बहुत आकर्षक दिखने लगता है! कुछ अशुद्धियों की उपस्थिति के कारण कुछ हीरे रंगीन भी दिखार्इ देते हैं। काले रंग के हीरे को बोर्ट कहते है। हीरा किसी अम्ल या क्षार से संक्षारित नहीं होता है। एक्स-किरणें इसमें से आसानी से गुजर जाती हैं।

प्रत्येक कार्बन परमाणु चार एकल बंध का निर्माण करते है। हीरे में  \[{{P}_{3}}\]संकरण पाया जाता है। आक्सीजन की अनुपस्थिति में लगभग 2000\[^{o}C\] तक गर्म करने पर यह ग्रेफाइट में परिवर्तित हो जाता है।

 

उपयोग - सबसे कठोरतम होने के कारण इसका उपयोग चट्टानों (rocks) में छेद करने (Drilling) कांच (Glass) काटने, काटने वाले कठोर औजारों में धार लगाने तथा कठोर सतहों पर पॉलिस करने में अपघर्षक (abrasine) के रूप में, टंगस्टन का तार बनाने में प्रयुक्त होने वाली डार्इ बनाने में होता है।

 

2.           ग्रेफाइट (Graphite) - यह कार्बन का एक शुद्ध रुप होता है। रासायनिक रूप में हीरे के समान ही होता है लेकिन ग्रेफाइट एवं हीरे की आण्विक संरचना भिन्न-भिन्न होती है। इस कारण उनके भौतिक गुण भिन्न होते हैं।

 

ग्रेफाइट के उपयोग

(i)     कृत्रिम हीरा, रंग, पेंसिल की लीड (lead), इलेक्ट्रोड तथा कार्बन आर्क बनाने में।

(ii)    इससे उच्च तापमान को सहने वाले क्रुसिबल (Refractory Crucibles) का निर्माण किया जाता हैं, जिसमें धातुओं या उसके अयस्कों को गर्म करके गलाया जाता है।

(iii) शुष्क स्नेहक के रूप में मशीनों में उपयोग किया जाता है।

(iv) विद्युत का सुचालक होने के कारण ग्रेफाइट का उपयोग

विद्युत धारा प्रवाह वाले यंत्रों में भी किया जा सकता है।

 

3.             फुलेरीन (Fullerene)- फुलेरीन का निर्माण एक ही प्रकार के कार्बन परमाणुओं से होता हैं। यह बेलनाकार, गोलाकार, घनाकार आदि विभिन्न आकृतियों के हो सकते हैं लेकिन इसका आंतरिक भाग खाली (Hollow) होता है। सामान्यत: यह फुटबॉल की गेन्द की तरह होता है।\[{{C}_{32}},{{C}_{50}},{{C}_{60}},{{C}_{70}},{{C}_{84}}\]आदि फुलेरीन के प्रमुख उदाहरण हैं। •

¨      बेलनाकार (Cylindrical) फुलेरीन्स को कार्बन नैनोटîूब भी कहते हैं तथा गोलाकार फुलेरीन्स को बकमिन्स्टर फुलेरीन अथवा बकीबॉल्स (Buckyballs) भी कहते हैं।

¨      बकमिन्स्टर फुलेरीन का निर्माण वर्ष 1985 में क्रोटो, स्मेली तथा कर्ल द्वारा की गर्इ थी, जिस पर इन वैज्ञानिकों को वर्ष 1996 में नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया ड़्केथा। इसका नामकरण जियोडेसिक गुम्बद (Geodesic Dome) का निर्माण करने वाले वास्तुकार बकमिन्स्टर फुलर के नाम पर किया जाता है।

 

गुण -

(i)     सहसंयोजक प्रकृति होने के कारण कार्बनिक विलायकों में विलेय होता है।

(ii)    फुलेरीन के सभी गुण कार्बन के समान होते हैं। इस कारण समतलीय आकृति से बंध जितने विकृत होते हैं वे गोलीय आकृति में समान रुप से बंट जाते हैं, जिससे इनका अणु स्थायी होता है।

(iii) इसका विद्युत रासायनिक रुप से अपचयन कराकर \[{{C}_{60}}^{3-}\] आयन निर्मित किया जा सकता है, जो \[{{K}_{3}}{{C}_{60}}\] अणु प्रदान करता है। यह 18 K पर अतिचालक होता है।

(iv)   यह \[Os{{O}_{4}}\]से अभिक्रिया करके पिंजरे के अन्दर योगशील यौगिक बनाता है। यह प्लैटिनम के साथ भी संकुल का निर्माण करता है।

उपयोग- नैनोट्यूब्स का प्रयोग विद्युत परिपथ में अर्द्धचालक (Semiconductor) की तरह किया जाता है। इसके अलावा फुलेरीन्स का उपयोग स्नेहक एवं बैटरी, अत्यंत छोटी वॉल बेयरिंग एवं प्लास्टिक निर्माण में किया जाता है।

 

4.             ग्रेफीन (ळतंचीमदम)- ग्रेफीन को वैज्ञानिक आंद्रे जीम (Andre Geim) कोसया नोवोसेलोव (Kostya Novaselov) ने सन् 2004 में ग्रेफाइट से निष्कर्षित किया एवं वर्ष 2010 में भौतिकी का नोबेल पुरस्कार दिया गया था। यह कार्बन का एक अपररूप है, जिसमें कार्बन परमाणु आपस में जुड़कर संयुक्त हो कर “षट्कोणीय जाली (Hexagonal Lattice) के समान एकल परत (Single Layer) का निर्माण करते हैं। एकल परत की संरचना द्विविमीय (Two Dimensional) तरह से व्यवस्थित होती है। ग्रेफीन के उपयोग- यह सिलिकॉन से बने हुए उपकरणों एवं युक्तियों की तुलना में 10 गुना बेहतर रेडियो कम्युनिकेशन उत्पन्न कर सकते हैं। पुन: चार्ज होने योग्य (Reachagable) बैटरियों, मोबार्इल फोन में, कंप्यूटर चिप्स, टच स्क्रीन, सौर सेलों, ऊर्जा संग्राहकों (Capacitors) तथा जैविक एवं रासायनिक संवेदकों (Chemical and biological sensors), ट्रांजिस्टरों के निर्माण

 

5.             कोयला (Coal)- हजारों वर्ष पूर्व पेड़-पौधों एवं जीव-जन्तुओं के ‘पृथ्वी के धरातल में दब जाने पर ताप दाब के कारण धीरे-धीरे कोयले में परिवर्तित होते गये। इसका उपयोग र्इंधन के रूप में, संश्लिष्ट पेट्रोल (Synthetic Petrol) बनाने तथा गैसीय र्इधन आदि के निर्माण में आदि में किया जाता है।

 

6.             कोक (Coke) - कोयले (Bituminous Coal) को वायु की अनुपस्थिति में गर्म करने पर इसमें उपस्थित वाष्पशील अवयव बाहर निष्कासित हो जाते हैं तथा शेष बचे हुए पदार्थ को कोक कहते हैं। इसमें 80-85 % तक कार्बन पाया जाता है। जलाने पर यह बिना धुएं के साथ जलता है। इसका उपयोग अवकारक (Reducing agent) के रूप में, र्इधन के रूप में तथा इलेक्ट्रोड बनाने में किया जाता है।

 

7.             गैस कार्बन (Gas-carbon) - बिटुमिनस कोयले को वायु की अनुपस्थिति में गर्म करने पर उत्पन्न होने वाले कुछ कण रिटॉर्ट की दीवारों पर जमा हो जाते हैं, जिसे कार्बन कहते हैं। इसमें 98-99 % तक कार्बन होता है।

 

कार्बन के यौगिक- कार्बन के यौगिकों को प्रमुखत: दो वगोर्ं में बांटा जा सकता है।

 

अकार्बनिक यौगिक (Inorganic Compounds)- ये कार्बन के धातुओं के साथ तथा हाइड्रोजन के अतिरिक्त अन्य अधातुओं के साथ बनने वाले यौगिक होते हैं। इनमें कार्बन-कार्बन बंध अनुपस्थित होता है।

 

कार्बनिक यौगिक (Organic compounds)- ये कार्बन और हाइड्रोजन के यौगिक (हाइड्रोकार्बन) तथा उनके व्युत्पन्न होते हैं। इनमें कार्बन-कार्बन बंध उपस्थित होता है। कार्बन के अकार्बनिक यौगिक - इनके अन्तर्गत कार्बन के ऑक्साइड, हैलाइड, कार्बाइड, कार्बोनेट और बाइकार्बोनेट आते

1.             कार्बन के क्साइड - कार्बन के तीन ऑक्साइड हैं-

कार्बन सबऑक्साइड (\[C{{O}_{2}}\]), कार्बन मोनोऑक्साइड (CO) और कार्बन डाइऑक्साइड (\[C{{O}_{2}}\]) जिनमें कार्बन मोनोऑक्साइड और कार्बन डाइऑक्साइड ही प्रमुख हैं।

2.             कार्बन के हैलाइड - कार्बन के चार टेट्रा हैलाइड (\[C{{F}_{4}},CC{{l}_{4}},CB{{r}_{4}},\] और \[C{{l}_{4}}\]) ज्ञात हैं। इनके अतिरिक्त मिश्रित है लाइड (\[CFC{{l}_{3}},C{{F}_{2}}C{{l}_{2}},CC{{l}_{3}}Br\]) भी ज्ञात हैं, जो रासायनिक –ष्टि से निष्क्रिय ज्वलनशील गैस या द्रव रहते हैं।

 

3.             कार्बाइड- कार्बन के द्विअंगी यौगिक (Binary Compunds), जिनका निर्माण कार्बन अपने से कम विद्युत-ऋणी तत्वों के साथ करता है, कार्बाइड कहलाते हैं। कार्बाइड मुख्यत: चार प्रकार के होते हैं

(i) आयनिक कार्बाइड,

(ii) धात्विक कार्बाइड,

(iii) माध्यमिक कार्बाइड 

(iv) सहसंयोजी कार्बाइड-सिलिकॉन कार्बाइड (SiC) व बोरॉन कार्बाइड (\[{{B}_{4}}C\]) सहसंयोजी कार्बाइड कहलाते हैं।

 

4.             कार्बन के सल्फाइड- यह 3 प्रकार के होते हैं

(i) कार्बन मोनोसल्फाइड (CS)  

(ii) कार्बन डाइसल्फाइड (\[C{{S}_{2}}\]) एवं

(iii) कार्बन सबसल्फाइड (\[{{C}_{2}}{{S}_{2}}\])

 

 

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