संघीय कार्यपालिका

संघीय कार्यपालिका

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विश्लेषणात्मक अवधारणा

 

भारत में संसदीय कार्यपालिका की व्यवस्था को स्वीकार किया गया है। इस व्यवस्था के अन्तर्गत राष्ट्रपति भारत में राज्य का औपचारिक प्रधान होता है तथा प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषद राष्ट्र स्तर पर सरकार चलाते हैं। राज्यों के स्तर पर राज्यपाल, मुख्यमंत्री और मंत्रिपरिषद मिलकर कार्यपालिका का निर्माण करते है। भारत के संविधान में औपचारिक रूप से संघ की कार्यपालिका शक्तियाँ राष्ट्रपति में निहित हैं परन्तु वास्तविक रूप में प्रधानमंत्री के नेतृत्व में बनी मंत्रिपरिषद के माध्यम से राष्ट्रपति इन शक्तियों का प्रयोग करता है। राष्ट्रपति 5 वर्ष के लिए चुना जाता है। राष्ट्रपति का निर्वाचन अप्रत्यक्ष विधि से होता है। इसका अर्थ यह है कि राष्ट्रपति का निर्वाचन आम नागरिक नहीं बल्कि निर्वाचित विधायक और सांसद करते हैं। यह निर्वाचन समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली और एकल संक्रमणीय मत सिद्धान्त के अनुसार होता है।

 

संविधान का भाग-V संघ से संबंधित है। संविधान के अनुच्छेद-52 से 78 कार्यपालिका के बारे में वर्णन करता है। इसके अंतर्गत राष्ट्रपति, उप-राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मंत्रिपरिषद् तथा भारत के महान्यायवादी संबंधी प्रावधान दिए गए हैं। ज्ञात है कि कार्यपालिका, विधायिका एवं न्यायपालिका भारतीय संविधान के 3 आधार स्तंभ हैं, जिन पर भारतीय शासन प्रणाली टिकी हुई है। जहां विधायिका का प्रमुख कार्य विधि निर्माण करना है, वहीं कार्यपालिका का कार्य इन विधियों के अनुसार शासन का संचालन करना है। न्यायपालिका को विधेयक (बिल) विवाद की स्थिति में समाधान प्रस्तुत करने एवं न्याय देने का दायित्व सौंपा गया है

 

भारत का राष्ट्रपतिः भारत का राष्ट्रपति भारत का प्रथम नागरिक होता है (वरीयता सूची में) भारत के संविधान के अनुच्छेद 52 में राष्ट्रपति पद का उल्लेख है। भारत सरकार की कार्यपालिका की समस्त कार्यवाही राष्ट्रपति के नाम से की जाती है यद्यपि राष्ट्रपति नाममात्र का कार्यपालिका प्रधान होता है क्योंकि कार्यपालिका की वास्तविक शक्ति प्रधानमंत्री व मंत्रिमंडल में निहित होती है।
  • राष्ट्रपति पद की अर्हताए/योग्यताएं: भारतीय संविधान के अनुच्छेद 58 के अंतर्गत अंतर्गत कोई व्यक्ति राष्ट्रपति निर्वाचित होने का पात्र तभी होगा जब वह निम्नलिखित योग्यताओं को पूरा करता होः
  1. वह भारत का नागरिक हो।
  2. 35 वर्ष की आयु पूरी कर चुका हूँ।
  3. लोकसभा का सदस्य निर्वाचित होने की योग्यता रखता हो।
  4. वह किसी लाभ के पद पर न हो               
  • राष्ट्रपति के निर्वाचन की पद्धतिः भारत में राष्ट्रपति का चुनाव अप्रत्यक्ष निर्वाचन प्रणाली द्वारा किया जाता है। संविधान का अनुच्छेद 55 में निर्धारित किया गया है कि, राष्ट्रपति का चुनाव अनुपातिक प्रतिनिधित्व से एकल संक्रमणीय मत पद्धति द्वारा होगा।
  • राष्ट्रपति के निर्वाचन मंडल के सदस्य
  1. संसद के दोनों सदनों अर्थात् राज्यसभा (उच्च सदन) एवं लोकसभा (निम्न सदन) के निर्वाचित सदस्य।
  2. सभी राज्यों एवं दिल्ली एवं पुडुचेरी संघशासित प्रदेशों की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य।राष्ट्रपति के निर्वाचन में मत मूल्य का निर्धारणः संविधान में यह प्रावधान किया गया है, कि राष्ट्रपति के निर्वाचन में विभिन्न राज्यों का उनकी जनसंख्या के अनुपात में प्रतिनिधित्व समान रूप से हो, साथ ही राज्य एवं संघ के मध्य भी समानता हो इसके लिए राज्य विधानसभाओं एवं संसद के प्रत्येक सदस्यों के मतों की संख्या निम्न प्रकार निर्धारित की जाती हैः
          मतमूल्य का निर्धारण
         विधायकों का मत मूल्य =

                         एक सांसद के मत का मूल्य =
सभी राज्यों (दिल्ली और पुडुचेरी) के सभा

  • मतगणनाः राष्ट्रपति पद के चुनाव में मतगणना के लिए एक विशेष प्रक्रिया अपनाई गई है, राष्ट्रपति पद के प्रत्याशियों में वही प्रत्याशी सफल घोषित किया जाता है जो कुल वैध मतों के 50 प्रतिशत से अधिक मत प्राप्त करता है। इन मतों को न्यूनतम कोटा कहा जाता है।
           न्यूनतम कोटा =

  • वी.वी. गिरि भारत के पहले ऐसे राष्ट्रपति थे, जो दूसरे चरण की मतगणना से निर्वाचित हुए थे।
  • राष्ट्रपति की पदावधिः राष्ट्रपति अपने पद ग्रहण की तारीख से 5 वर्ष की अवधि तक पद धारण करेगा, परन्तुः
  1. राष्ट्रपति, उप-राष्ट्रपति को संबोधित करते हुए अपने हस्ताक्षर सहित लिखित द्वारा अपना पद त्याग सकेगा।
  2. संविधान का अतिक्रमण करने पर राष्ट्रपति को संविधान के अनुच्छेद 61 में उपबंधित रीति से चलाए गए महाभियोग द्वारा पद से हटाया जा सकेगा।
  3. राष्ट्रपति अपने पद की अवधि समाप्त हो जाने पर भी तब तक पद धारण करता रहेगा जब तक उसका उत्तराधिकारी अपना पद ग्रहण नहीं कर लेता है।
  • यदि राष्ट्रपति का पद उसकी मृत्यु, त्याग-पत्र, महाभियोग अथवा किन्हीं अन्य कारणों से रिक्त हो तो उप-राष्ट्रपति, राष्ट्रपति के निर्वाचित होने तक कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में कार्य करेगा।
  • यदि उप-राष्ट्रपति का पद रिक्त हो तो भारत का मुख्य न्यायाधीश कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में कार्य करेगा। और यह पद्धति वरिष्ठता क्रम में चलती रहेगी।
  • राष्ट्रपति का पद रिक्त होने की तिथि से 6 माह के भीतर राष्ट्रपति का चुनाव कराया जाना आवश्यक है। वर्तमान या भूतपूर्व राष्ट्रपति संविधान के अन्य उपबन्धों के अधीन रहते हुए पद के लिए पुनर्निर्वाचन का पात्र होगा।
  • राष्ट्रपति द्वारा शपथ या प्रतिज्ञानः प्रत्येक राष्ट्रपति और प्रत्येक व्यक्ति, जो राष्ट्रपति के रूप में कार्य कर रहा है या उसके कत्यों का निर्वहन कर रहा है, अपना पद ग्रहण करने से पहले भारत के मुख्य न्यायमूर्ति या उसकी अनुपस्थिति में उच्चतम न्यायालय के उपलब्ध ज्येष्ठतम न्यायाधीश के समक्ष निम्नलिखित प्रारूप में शपथ लेगा या प्रतिज्ञान करेगा और उस पर अपने हस्ताक्षर करेगा, अर्थात्ः ‘‘मैं अमुक (ईश्वर की शपथ लेता हूँ)/(सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञान करता हूँ) कि मैं श्रद्धापूर्वक भारत के राष्ट्रपति के पद का कार्यपालन अथवा राष्ट्रपति के कृत्यों का निर्वहन करूंगा तथा अपनी पूरी योग्यता से संविधान और विधि का परिक्षण, संरक्षण और प्रतिरक्षण करूंगा और मैं भारत की कल्याण सेवा में निरत रहूंगा।‘‘
  • राष्ट्रपति के वेतन एवं भत्तेः संविधान के अनुच्छेद 59 के अनुसार राष्ट्रपति को निःशुल्क शासकीय आवास राष्ट्रपति भवन उपलब्ध होता है। राष्ट्रपति उन सभी उपलब्धियों भतों और विशेषाधिकार का हकदार होगा, जो संसद द्वारा समय पर निश्चित किए जाएंगे वर्तमान में राष्ट्रपति का वेतन 5 लाख रुपए है।
  • राष्ट्रपति पर महाभियोगः राष्ट्रपति को संविधान का अतिक्रमण करने पर संसद द्वारा एक विशेष प्रक्रिया से उसके पद से हटाया जा सकता है। इसे महाभियोग कहा जाता है। संविधान के अनुच्छेद 61 में राष्ट्रपति के विरुद्ध महाभियोग की प्रक्रिया दी गई है। राष्ट्रपति के विरुद्ध महाभियोग संसद द्वारा चलाई जाने वाली एक अर्द्ध-न्यायिक प्रक्रिया है राष्ट्रपति पर महाभियोग की प्रक्रिया अमेरिका के संविधान से ली गई है।
  • राष्ट्रपति की शक्तियाँ और कार्यः संविधान के अनुच्छेद 53 के अनुसार, ‘‘संघ की समस्तकार्यपालिकीय शक्ति राष्ट्रपति में निहित होगी जिसका प्रयोग वह स्वयं या अपने अधीनस्थ पदाधिकारियों के माध्यम से करेगा।‘‘ उसकी शक्तियों को दो भागों में विभाजित किया गया है। 
  • सामान्य कालीन शक्तियाँ: राष्ट्रपति की सामान्य कालीन शक्तियों को 4 भागों में बाँटा जा सकता हैः
  1. कार्यपालिका सम्बन्धी शक्तियाँ: कार्यपालिका का प्रधान होने के नाते संघ के समस्त कार्य राष्ट्रपति के नाम से किये जाते हैं। सभी उच्च पदाधिकारियों की नियुक्तियाँ, जैसे-प्रधानमंत्री, अन्य मंत्री, भारत के महान्यायवादी, राजदूत, नियंत्रक महालेखा परीक्षक, राज्यों के राज्यपाल, उच्च स्तरीय आयोगों, जैसे-संघ लोक सेवा आयोग, निर्वाचन आयोग, वित्त आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्य इत्यादिय राष्ट्रपति के नाम पर ही होती हैं। अन्य राष्ट्राध्यक्षों की तरह भारत का राष्ट्रपति भी अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में देश का प्रतिनिधित्व करता है तथा दूसरे देशों के राजदूतों के नियुक्ति पत्र स्वीकार करता है। अन्य देशों के राष्ट्रध्यक्षों की तरह ही वह सेना का प्रधान सेनापति भी है। उच्च पदाधिकारियों को अपने पद से हटाने का अधिकार भी राष्ट्रपति को प्राप्त है।
  2. विधायी शक्तियाः ब्रिटिश क्राऊन की तरह भारत का राष्ट्रपति भी संसद का अंग है। उसे संसद के सदनों के अधिवेशन बुलाने, उनका सत्रावसान करने तथा लोकसभा को भंग करने का अधिकार है। आवश्यक होने पर वह दोनों सदनों के संयुक्त अधिवेशन (अनुच्छेद 108) भी बुलाता है। लोकसभा निर्वाचन के बाद तथा प्रत्येक वर्ष के प्रथम सत्र में राष्ट्रपति संसद के संयुक्त अधिवेशन को संबोधित करता है। राष्ट्रपति के अभिभाषण पर दोनों सदनों में अलग-अलग चर्चा होती है। प्रथम अधिवेशन के अतिरिक्त भी राष्ट्रपति किसी सदन या दोनों सदनों की संयुक्त बैठक को संबोधित कर सकता है। वह संसद के किसी भी सदन को संदेश भेज सकता है। राष्ट्रपति संसद द्वारा पारित विधेयक को स्वीकृति भी प्रदान करता है। राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बिना कोई भी विधेयक विधि का रूप नहीं ले सकता। राष्ट्रपति धन विधेयक को छोड़कर, अन्य विधेयकों को पुनर्विचार के लिए भेज सकता है। यदि संसद उसी विधेयक को पुनः पारित करती है तो उसे उस पर हस्ताक्षर करने पड़ते हैं। राष्ट्रपति, राज्यों की विधानसभाओं द्वारा पारित उन विधेयकों का हस्ताक्षर करता है जो उसको स्वीकृति के लिए संबंधित राज्यपाल द्वारा आरक्षित किए जाते हैं। राष्ट्रपति को अध्यादेश (अनुच्छेद 123) जारी करने का अधिकार है।
  3. वित्तीय शक्तियाँ: राष्ट्रपति को वित्तीय क्षेत्र में कुछ महत्वपूर्ण शक्तियाँ प्राप्त है। राष्ट्रपति द्वारा प्रत्येक वित्तीय वर्ष के प्रारम्भ में संसद के दोनों सदनों के समक्ष वर्ष का आय-व्यय विवरण रखवाया जाता है। उसकी आज्ञा के बिना धन विधेयक, वित्त विधेयक अथवा अनुदान माँग लोकसभा में प्रस्तुत नहीं की जा सकती। भारत की ‘आकस्मिक निधि‘ राष्ट्रपति के नियंत्रण में होती है, जिसमें से व्यय के लिए वह धनराशि दे सकता है यद्यपि इसके लिए संसद द्वारा स्वीकृति आवश्यक है। उसके द्वारा हर पाँच वर्ष पर एक वित्त आयोग को भी नियुक्ति की जाती है जो संघ और राज्यों के मध्य वित्तीय संसाधनों के बँटवारे के विषय में अपनी संस्तुति देता है।
  4. न्यायिक शक्तियां: संघ का प्रधान होने के नाते राष्ट्रपति को कुछ न्यायिक शक्तियाँ भी प्राप्त हैं। वह सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति करता है। उसे किसी अपराध के लिए दोषी ठहराये गये किसी व्यक्ति के दण्ड को क्षमा करने,कम करने या स्थगित करन की शक्ति प्राप्त है।
  • आपातकालीन शक्तियाँ: भारत के राष्ट्रपति को संविधान के 18वें भाग में आपातकालीन स्थिति से निपटने के लिए विशिष्ट शक्तियाँ प्रदान की गई हैं। राष्ट्रपति को ऐसी शक्तियों का प्रयोग करने का अधिकार तीन परिस्थितियों में प्रदान किया गया हैः
  1. राष्ट्रीय आपात की स्थिति में (अनुच्छेद-352)
  2. राष्ट्रपति शासन की स्थिति में (अनुच्छेद-356)
  3. वित्तीय आपात की स्थिति में (अनुच्छेद-360)
      44वें संविधान संशोधन, 1978 से पूर्व आंतरिक अशान्ति की वजह से भी आपात स्थिति की घोषणा की जा सकती थी, किन्तु 44वें संविधान संशोधन के अंतर्गत आपातकाल की घोषणा के लिए आंतरिक अशान्ति शब्द को हटाकर सशस्त्र विद्रोह कर दिया गया है।
  • अब तक तीन बार राष्ट्रीय आपातकाल (अनुच्छेद-352 ) की घोषणा की गई हैं:
  1. वर्ष 1962 में भारत पर चीन द्वारा आक्रमण के कारण।
  2. वर्ष 1971 में भारत पर पाकिस्तान द्वारा आक्रमण के कारण।


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