कोशिका विज्ञान एवं ऊतक

कोशिका विज्ञान एवं ऊतक

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कोशिका विज्ञान एवं ऊतक

 

विश्लेषणात्मक अवधारणा

 

जीवों के स्वरूप एवं आकृति का विस्तृत विवरण ही सहज उनकी विविधता को प्रस्तुत करता है। कोशिका सिद्धांत या परिकल्पना इस विविध स्वरूपों में निहित एकत्व को इंगित करता है अर्थात जीवन के सभी स्वरूप में कोशिकीय संगठन बताता है। जीव और निर्जीव की अवधारणा को समझने के लिए जीवन की आधारभूत इकार्इ जीव कोशिका की उपस्थित एवं अनुपस्थित को समझना आवश्यक - होता है। कोशिका ऊतक, अंग और अंग तंत्र कार्य को इस प्रकार विभक्त कर लेते हैं कि शरीर का बना रहना सुनिश्चित रहे और इस तरह वे श्रम विभाजन प्रदर्शित करते हैं।

 

 

सभी जीव, कोशिका या कोशिका समूह से बने होते हैं। कोशिकाएं आकार व आकृति तथा क्रियाएं/कार्य की –ष्टि से भिन्न होती हैं। झिल्लीयुक्त केंद्रक व अन्य अंगकों की. उपस्थिति या अनुपस्थिति के आधार पर कोशिका या जीव को प्रोकैरियोटिक या यूकैरियोटिक नाम से जानते हैं। एक प्रारूपी (Typical) यूकैरियोटिक कोशिका, केंद्रक व कोशिकाद्रव्य से बना होता है। पादप कोशिकाओं में कोशिका झिल्ली (Cell Membrane) के बाहर कोशिका भित्ति (Cell Wall) पार्इ जाती है। जीवद्रव्यकला (Plasma Membrane) चयनित पारगम्य (Selective permeable) होती है और बहुत सारे अणुओं के परिवहन में भाग लेती है। अंत: झिल्लिकातंत्र (Endomembrane) के अंतर्गत अंतर्द्रव्यी जालिका (Endoplasmic Reticulum), गॉल्जीकाय, लयनकाय (lysosome) व रसधानी (Vacuols) होती है। सभी कोशिकीय अंगक विभिन्न एवं विशिष्ट प्रकार के कार्य करते हैं। पादप कोशिका में हरितलवक (Chloroplast) प्रकाश संश्लेषण के लिए आवश्यक प्रकाशीय ऊर्जा को संचित रखने का कार्य करते हैं। तारककाय (Centrosome) व तारककेंद्र (centriole) पक्ष्माभ (cillia) व कशाभिका (Flagilla) का आधारीयकाय (Basal body) बनाता है जो गति में सहायक है। जंतु कोशिकाओं में सेंट्रीअॉल कोशिका विभाजन के दौरान तन्त् उपकरण (Spindle apparatus) बनाते हैं। केंद्रक में केंद्रिका (Nucleoli) व क्रोमेटीन का तंत्र मिलता है। यह अंगकों के कार्य को ही नियंत्रित नहीं करता, बल्कि आनुवंशिकी में प्रमुख भूमिका अदा करता है। एन्डोप्लामिक रेटीकुलम (E.R.) नलिकाओं या कुंडों (Tubular or cisternae) से बनी होती है। ये दो प्रकार की होती हैं, खुरदरी व चिकनी। E.R. पदाथोर्ं के अभिगमन, प्रोटीन-संश्लेषण, लाइपोप्रोटीन संश्लेषण तथा ग्लाइकोजन के संश्लेषण में सहायक होते हैं। गॉल्जीकाय झिल्लियुक्त अंगक (Membranous organelle) हैं जो चपटे थैलीनुमा (Flatted sacs) संरचना से बने होते हैं। इनमें कोशिकाओं का स्राव (Secreation) संविष्ट (Packed) होता है और कोशिका से इसका स्थान्तरण होता है। लायसोसोम सिंगल मेंब्रेन वाली संरचना होती है। जिनमें सभी प्रकार के बड़े अणुओं के पाचन हेतु एंजाइम रहते हैं। राइबोसोम प्रोटीन-संश्लेषण में भाग लेते हैं। ये कोशिकाद्रव्य (cytoplasm) में स्वतंत्र रूप में या E.R. से सम्बंधित होते हैं। सूत्रकणिका (Mitochondria) अॉक्सीकारी फॉस्फोरिलीकरण तथा एडिनोसीन ट्रार्इफास्फेट (ATP) के निर्माण में सहायक होता है। ये द्विक झिल्ली (Double membrane) क्रिस्टी में अंतरवलित (Fold) होती है। लवक (Plastids) वर्णकयुक्त अंगक हैं जो केवल पादप कोशिकाओं में मिलते हैं। ये द्विक झिल्लीयुक्त रचनाएं हैं। लवक के ग्रेना में प्रकाशीय अभिक्रिया तथा पीठिका (Stroma) में अप्रकाशीय अभिक्रिया संपन्न होती है। हरे रंगीन प्लास्टिड्स क्लोरोप्लास्ट वर्णक होते हैं जिनमें क्लोरोफिल होता है। दूसरे रंग के प्लास्टिड्स क्रोमोप्लास्ट होते हैं जिनमे केरोटीन तथा जैन्थोफिल जैसे वर्णक मिलते हैं। सिलिया तथा फ्लैजिला कोशिका के गति में सहायक हैं। फ्लैजिला सिलिया से लंबे होते हैं। फ्लैजिला तरंगी गति से चलती है, जबकि सिलिया डोलनोदन द्वारा गति करता है।

केंद्रक (nucleus) डबल मेम्ब्रेन युक्त केंद्रक झिल्ली (nuclear envelope/membrane) से घिरा होता है जिसमें केंद्रक छिद्र (nuclear pore) पाए जाते हैं। भीतरी झिल्ली केंद्रक द्रव्य व क्रोमोटीन पदार्थ को घेरे रहता है। इस कारण कोशिका संरचनात्मक और कार्यात्मक इकार्इ होती है।

कोशिका सिद्धांत के अनुसार एक कोशिका का निर्माण पूर्ववर्ती (Preexistings) कोशिका से होता है। इस प्रक्रिया को कोशिका विभाजन कहते हैं। लैंगिक जनन करने वाले किसी भी जीवधारी का जीवन चक्र एक कोशिकीय युग्मनज (Zygote) से प्रारंभ होता है। कोशिका विभाजन जीवधारी के वयस्क बनने के बाद भी रुकता नहीं है, बल्कि यह उसके जीवन भर चलता रहता है। उन अवस्थाओं को जिनके अंतर्गत कोशिका एक विभाजन से दूसरे विभाजन की ओर गुजरती है, उसे कोशिका चक्र कहते हैं। कोशिका चक्र में दो प्रावस्थाएं (phases) होती हैं

(1)            अंतरावस्था (interphase) - कोशिका विभाजन की तैयारी की प्रावस्था तथा (2) सूत्री विभाजन (Mitosis) - कोशिका विभाजन का वास्तविक समय। इंटरफेज को पुन: G1, S, G2 प्रावस्थाओं में विभाजित किया गया है। G1 प्रावस्था में कोशिका सामान्य उपापचयी क्रिया संपन्न करते हुए वृद्धि करती है। इस अवस्था में अधिकांश अंगकों का द्विगुणन (Duplication) होता है। S प्रावस्था में डीएनए प्रतिकृति (Replication) व गुणसूत्र द्विगुणन होता है। G 2 प्रावस्था में कोशिकाद्रव्य की वृद्धि होती है। सूत्री विभाजन (Mitosis) को चार अवस्थाओं में विभाजित किया गया है जैसे पूर्वावस्था (Prophase), मध्यावस्था (Mitaphase), पश्चावस्था (anphase) व अंत्यावस्था (Telophase) प्रोफेज में गुणसूत्र संघनित होने लगते हैं। साथ ही सेंट्रीअॉल विपरीत ध्रुवों की ओर चले जाते हैं। केंद्रक आवरण (neclous envelope) व केंद्रिका (nucleolus) विलोपित हो जाते हैं व तर्वातंतु (Spindle fibers) दिखना प्रारंभ हो जाते हैं। मेटाफेज में गुणसूत्र मध्य पट्टिका (Equatorial plate) पर पंक्तिबद्ध (alignment) हो जाते हैं। एनाफेज के दौरान गुणसूत्रबिंदु (Centromeres) विभाजित हो जाते हैं और अर्द्धगुणसूत्र (chromatids) विपरीत धु्रवों की ओर . चलना प्रारंभ कर देते हैं। क्रोमेटिडस के ध्रुवों पर पहुंचने के बाद गुणसूत्रों का लंबा होना प्रारंभ हो जाता है, व केंद्रिका तथा केंद्रक आवरण पुन: स्पष्ट होने लगते हैं। यह अवस्था टिलोफेज कहलाती है। केंद्रक विभाजन के बाद कोशिकाद्रव्य का विभाजन होता है. इसे कोशिकाद्रव्य विभाजन (cytokinesis) कहते हैं। अत: सूत्रीविभाजन (Mitosis) को समविभाजन (equitorial division) भी कहते हैं, जिसके द्वारा संतति कोशिका (doughter cells) में पितृ कोशिकाओं (parental cells) के समान गुणसूत्रों की संख्या बरकरार रहती है। माइटोसिस के विपरीत मिओसिस विभाजन उन द्विगुणित कोशिकाओं में होता है, जो युग्मको (Gametes) निर्माण के लिए निर्धारित होती हैं। इस विभाजन को मिओसिस विभाजन भी कहते हैं। इस विभाजन के बाद बनने वाले गैमिटस में गुणसूत्रों की संख्या आधी हो जाती है। लैंगिक जनन में गैमिटस के संगलन (fuse) से पैतृक कोशिका में पाए जाने वाले गुणसूत्रों की संख्या की वापसी (restored) हो जाती है। मिओसिस विभाजन को दो अवस्थाओं में विभाजित किया गया है। मिओसिस-I व मिओसिस- II, प्रथम अर्द्धसूत्री विभाजन में समजात गुणसूत्र जोड़े (Homolous chromosomal pairs) युगली (bivalent) बनाते हैं तथा इनमें विनिमय (crossing) होता है। मिओसिस- I की प्रोफेज लंबी होती है व पांच उप अवस्थाओं में विभाजित की गर्इ है। ये अवस्थाएं है- तनुपट्ट (लेप्टोटीन), युग्मपट्ट (जाइगोटीन), स्थूलपट्ट (पैकीटीन) द्विपटट (डिप्लोटीन) व पारगतिक्रम (डायकाइनेसिस)। मेटाफेज- I के समय बाइवेलेंट इक्विटोरियल प्लेट पर व्यवस्थित हो जाते हैं। इसके पश्चात एनाफेजमें समजात गुणसूत्र अपने दोनों अर्द्धगुणसूत्रों के साथ विपरीत ध्रुवों की ओर चले जाते हैं। प्रत्येक ध्रुवों जनक कोशिका की तुलना में आधे गुणसूत्र प्राप्त करता है। टिलोफेज-I के समय केंद्रक आवरण व केंद्रिका पुन: दिखार्इ देने लगते हैं।

मिओसिस-II माइटोसिस के समान होता है। एनाफेज-II के समय सिस्टर क्रोमेटिडस आपस में अलग हो. जाते हैं। इस प्रकार मिओसिस डिवीजन के पश्चात चार अगुणित कोशिकाएं (Haploid cells) बनती है।



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