भाषा सम्बन्धी उपबन्ध

भाषा सम्बन्धी उपबन्ध

Category :

            विश्लेषणात्मक अवधारणा

 

भारत विविधताओं वाला देश है। यहाँ पर विभिन्न प्रदेशों में कई प्रकार की जाति एवं जनजातियां विद्यमान हैं, जिनके द्वारा कई प्रकार की भाषाओं एवं बोलियों का प्रयोग सामान्य बोलचाल की भाषा में किया जाता है। हमनें इतिहास में देखा है कि, भारत में कई राज्यों का निर्माण भाषायी आधार पर किया गया है। इसी कारण भारतीय संविधान में विभिन्न प्रकार की भाषाओं के संरक्षण एवं संवर्द्धन के लिए संविधान के भाग-17 में भाषा संबंधी उपबंधों का समावेश किया गया है। भाषा की प्रकृति के आधार पर भाषा को राष्ट्रीय, राजकीय भाषा का दर्जा प्रदान किया गया है। भारतीय समाज की विविधताओं के कारण किसी एक भाषा को । भारत की राष्ट्रीय भाषा का दर्जा प्रदान नहीं किया गया है।

 

संविधान के भाग-17 में अनुच्छेद 343 से 351 तक राजभाषा के विषय में वर्णन किया गया है। इसके अतिरिक्त भाषा संबंधी अन्य उपबन्ध संविधान के विभिन्न अनुच्छेद, जैसे-29, 30, 1 120, 210, 394(क) और आठवीं अनुसूची में किए गए हैं। राजभाषा का अभिप्राय है, राज-काज अर्थात् राज्य के कार्यों । में प्रयुक्त होने वाली भाषा। ऐसी भाषा जिसका प्रयोग देश के राजकीय अथवा सरकारी कार्यों के लिए किया जाता है, उसे राजभाषा कहा जाता है।

  •  ऐतिहासिक पृष्ठभूमिः स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात्, भारत में सर्वाधिक लोकप्रिय एवं विस्तृत भौगोलिक क्षेत्र में बोली एवं समझी जाने वाली भाषा हिन्दी को राजभाषा का स्थान प्राप्त हुआ लेकिन गैर-हिन्दी भाषी क्षेत्रों के लोगों द्वारा हिन्दी को राजभाषा का दर्जा दिए जाने का विरोध किया गया। संविधान सभा में राज्य भाषा के प्रश्न पर बहस 11 से 14 सितंबर 1949 के दौरान हिन्दी को राजभाषा बनाने के पक्ष में अपार जन-समर्थन को देखते हुए संविधान सभा की नियम समिति ने हिन्दी के पक्ष में अपना निर्णय दिया। मंशी आयंगर फॉर्मूले के अंतर्गत 14 सितंबर, 1949 ईस्वी को हिन्दी को राजभाषा का संवैधानिक दर्जा प्राप्त हुआ। हिन्दी को संघ की राजभाषा के रूप में स्वीकार किया गया। इसी कारण प्रत्येक वर्ष 14 सितंबर को हिन्दी दिवस के रूप में मनाया जाता है।

संविधान के भाग 17 के उपबंधों को 4 प्रकार से विभाजित किया गया हैः

  •        

 

  • संघ की राजभाषाः संविधान के अनुच्छेद 343 (1) के अंतर्गत, हिन्दी को संघ की राजभाषा और देवनागरी को संघ की लिपि के रूप में स्वीकार किया गया है। हिन्दी को 26 जनवरी, 1950 से राजभाषा का दर्जा प्राप्त हुआ। संविधान के अनुच्छेद-243 (2) के अंतर्गत यह प्रावधान है कि संविधान के लागू होने के उपरांत 15 वर्ष तक सभी सरकारी कामकाज एवं प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी भाषा का प्रयोग भी होता रहेगा। इस संबंध में संसद को विधि के निर्माण का अधिकार दिया गया है।
  • इसी प्रावधान के तहत संसद द्वारा राजभाषा अधिनियम, 1963 पारित किया गया। इस अधिनियम के अनुसार, हिन्दी तो संघ की राजभाषा रहेगी ही परन्तु इसके साथ अंग्रेजी भाषा भी संघ के सभी राजकीय कार्यों के लिए उपयोग की जाएगी।
  • राजभाषा संशोधन अधिनियम, 1967 में यह व्यवस्था की गई कि, कुछ विशेष मामलों में हिन्दी के साथ अंग्रेजी का प्रयोग किया जाता रहेगा। सरकारी कामकाज में अंग्रेजी भाषा के प्रयोग को समाप्त करने के लिए ऐसे राज्यों के विधानमंडलों द्वारा एक संकल्प पारित करना होगा, जिन्होंने हिन्दी को अपनी राजभाषा के रूप में स्वीकार नहीं किया है। गैर-हिन्दी भाषी राज्यों के द्वारा पारित इस प्रकार के संकल्पों पर विचार करने के पश्चात संसद के दोनों सदनों द्वारा इसी प्रकार का संकल्प पारित करना होगा तभी अंग्रेजी को राजकीय कामकाज के प्रयोग से बाहर किया जा सकता है, परन्तु उपर्युक्त प्रक्रिया पूर्ण न होने की स्थिति में अंग्रेजी भाषा का प्रयोग पहले की ही तरह किया जाता रहेगा अर्थात् संघ की दूसरी राजभाषा के रूप में अंग्रेजी अनिश्चितकाल तक बनी रह सकती है क्योंकि, यदि भारत का कोई एक गैर-हिन्दी भाषी राज्य भी अंग्रेजी के पक्ष में रहता है तब भी अंग्रेजी भारत की सहायक राजभाषा के रूप में बनी रहेगी।
  • राज्य अथवा प्रादेशिक भाषाः भारतीय संविधान के अनुच्छेद-345 में प्रत्येक राज्य विधानमंडल को राजकीय कामकाज के लिए प्रयोग की जाने वाली भाषा चुनने का अधिकार प्रदान किया गया है परन्तु, जब तक राज्य विधानमंडल किसी भाषा को राजभाषा के रूप में स्वीकार नहीं करता है तब तक राजकीय अथवा सरकारी कार्यों के लिए अंग्रेजी भाषा का प्रयोग जारी रहेगा।
  • राज्य विधानमंडल के साधनों में प्रस्तुत किए गए विधेयक अथवा प्रस्तावित संशोधन एवं पारित सभी अधिनियम राष्ट्रपति अथवा राज्यपाल द्वारा जारी सभी अध्यादेश संसद व राज्य विधानमंडल द्वारा बनाए गए सभी आदेश, नियमों, विनियमों एवं उप-विधियों के पाठ अंग्रेजी भाषा में होंगे। इसी आधार पर भारत के 9 राज्यों, जैसे-उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार, झारखंड, राजस्थान, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश एवं केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली द्वारा हिन्दी को राजभाषा के रूप में स्वीकार किया गया है। महाराष्ट्र, गुजरात, पंजाब एवं चंडीगढ़ और अंडमान-निकोबार दीप समूह की सरकारों ने हिन्दी को द्वितीय राजभाषा के रूप में मान्यता प्रदान की है। मेघालय, मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश एवं नागालैंड की राजभाषा अंग्रेजी है।
  • संविधान के अनुच्छेद 346 के अनुसार, संघ की राजकीय कामकाज में प्रयोग की जाने वाली भाषा की संघ, राज्य एवं एक राज्य से दूसरे राज्य के बीच पत्र व्यवहार की भाषा होगी। उच्चतम, उच्च एवं अन्य न्यायालय की भाषाः संविधान के अनुच्छेद-348 के अनुसार जब तक संसद विधान द्वारा ऐसा प्रावधान न करे तब तकः
  • उच्चतम न्यायालय तथा उच्च न्यायालय की सभी कार्यवाहियां या अंग्रेजी भाषा में होंगी। राजभाषा अधिनियम, 1963 के अनुसार संसद द्वारा उच्चतम न्यायालय में हिन्दी भाषा के प्रयोग से संबंधित कोई व्यवस्था नहीं की गई है। इसीलिए उच्चतम न्यायालय द्वारा केवल उन्हीं याचिकाओं को सुनवाई के लिए स्वीकार किया जाता है जो अंग्रेजी भाषा में होती हैं।
  • यदि राज्यपाल के द्वारा राष्ट्रपति से पूर्व अनुमति प्राप्त हो जाए तो उच्च न्यायालय की कार्यवाही हिन्दी भाषा में संचालित हो सकती है, परन्तु उच्च न्यायालय के निर्णय का आदेश या डिक्री अंग्रेजी भाषा में होंगे।
  • संसद में प्रयोग की जाने वाली भाषाः संविधान के भाग-17 में किसी बात के होते हुए भी किंतु संविधान के अनुच्छेद-348 के प्रावधानों के अधीन रहते हुए संसद में कार्य हिन्दी में या अंग्रेजी में किया जाएगा, परन्तु यथास्थिति यदि कोई सदस्य हिन्दी अथवा अंग्रेजी में नहीं बोल सकता है तो लोकसभा अध्यक्ष अथवा पीठासीन अधिकारी के द्वारा अपनी मातृभाषा में सदन को संबोधित करने की अनुमति दी जा सकती है।
  • भाषा सम्बंधी विशेष निर्देशः संविधान के अनच्छेद-350 के अनुसार, प्रत्येक नागरिक अपनी समस्याओं के समाधान के लिए संघ या राज्य के किसी अधिकारी को ऐसी किसी भी भाषा में आवेदन दे सकता है, जो भाषा संघ या राज्य में प्रयोग की जाती हो।
  • 7वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1956 के द्वारा संविधान के अनुच्छेद-350 (क) के अंतर्गत यह व्यवस्था की गई कि, प्रत्येक राज्य भाषायी अल्पसंख्यक वर्ग के बच्चों को प्राथमिक स्तर पर उनकी मातृभाषा में शिक्षा उपलब्ध कराने की व्यवस्था करेगा।
  • संविधान के अनुच्छेद-350 (ख) के अन्तर्गत, राष्ट्रपति द्वारा भाषायी अल्पसंख्यक वर्गों के लिए एक आयुक्त नियुक्त करने का प्रावधान भी किया गया है। यह आयुक्त अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय के अधीन कार्य करता है।
  • संविधान के अनुच्छेद-351 के अंतर्गत, संघ का यह कर्तव्य निर्धारित किया गया है कि, वह हिन्दी भाषा का प्रसार और उसका विकास कर, जिससे हिन्दी भारत की मिली-जुली संस्कृति के सभी तत्वों की अभिव्यक्ति का माध्यम बन सके।
  • राजभाषा आयोगः संविधान के अनुच्छेद-344 के अंतर्गत राष्ट्रपति द्वारा राजभाषा के विषय में सलाह देने के लिए एक आयोग और एक संसदीय समिति बनाने का प्रावधान किया गया है। राष्ट्रपति द्वारा संविधान लागू होने से 5 वर्ष की समाप्ति पर और उसके बाद प्रत्येक 10 वर्ष की समाप्ति पर एक राजभाषा आयोग गठित किया जाएगा। राजभाषा आयोग में एक अध्यक्ष तथा 8वीं अनुसूची में शामिल विभिन्न भाषाओं का प्रतिनिधित्व करने वाले सदस्य शामिल होंगे, जिनकी नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी। इस प्रकार राजभाषा आयोग में अध्यक्ष के अतिरिक्त 22 अन्य सदस्य होते हैं। राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद द्वारा जून 1955 में बाल गंगाधर खेर (बी. जी. खेर) की अध्यक्षता में प्रथम राजभाषा आयोग का गठन किया गया।
  • प्रथाम राजभाषा आयोग से निम्नलिखित विषयों पर अनुशंषाएँ मांगी गई थीं:
  1. संघ के राजकीय कार्यों के लिए हिन्दी भाषा का अधिक से अधिक प्रयोग करने के लिए सुझाव देना।
  2. राजकीय कार्यों में अंग्रेजी भाषा के प्रयोग को कम करने अथवा उस पर कुछ निर्बंधन के लिए आवष्यक सुझाव देना।
  3. उच्चतम न्यायालयों में प्रयोग की जान वाली भाषा के विषय में सुझाव देना।
  4. संघ सरकार के एक अथवा अधिक उद्देश्यों के लिए प्रयोग किए जाने वाले अंको के स्वरूप के विषय में सुझाव देना
  5. संघ और किसी राज्य अथवा एक राज्य तथा दूसरे राज्य के राज्य के बीच पत्राचार की भाषा तथा उसके प्रयोग के विषय में सुझाव देना।
  6. राजभाषा से सम्बंधित अन्य विषयों पर सुझाव देना, जो राष्ट्रपति द्वारा राजभाषा आयोग को सौंपे जाएँ।
  • राजभाषा आयोग से यह अपेक्षा की गई थी कि वह अपनी अनुशंसाएं राष्ट्रपति को देते समय भारत की औद्योगिक, सांस्कृति और वैज्ञानिक प्रगति तथा गैर-हिन्दी-भाषी क्षेत्रों के लोगों के न्याय संगत दावों और हितों का पूरा ध्यान रखेगा। प्रथम राजभाषा आयोग ने वर्ष 1956 में अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति को सौंप दी थी।
  • संयुक्त संसदीय समितिः संविधान के अनुच्छेद-344(4) के अतंर्गत राजभाषा आयोग की अनुशंसाओं पर विचार करने के लिए एक संयुक्त संसदी का गठन किया जाता है। इस समिति में 30 सदस्य होते है, जिनमें 20 लोकसभा तथा 10 राज्य सभा के सदस्य होते है इनका चयन लोकसभा सदस्यों तथा राज्यसभा सदस्यों द्वारा एकल हस्तांतरणीय मत द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली से किया जाता है। समिति का यह उत्तरदायित्व होता है।, कि वह केन्द्र के प्रशासनिक उद्देश्यों के लिए हिन्दी के प्रयोग की दिशा में हुई प्रगति की समीक्षा करे। इसके बाद वह राष्ट्रपति को एक रिपोर्ट सौंपे, जिनमें उसकी अनुशंसाएं हों। राष्ट्रपति इस रिपोर्ट को संसद के पटल पर रखवाता है और सभी राज्य सरकारों को भी भेजता है। राष्ट्रपति, रिपोर्ट पर विचार के उपरांत और इस सम्बंध में राज्य सरकारों के विचार जानने के बाद पूरी रिपोर्ट या उसके कुछ अंशों पर निर्देश जारी कर सकते हैं। विशेष-प्रथम राजभाषा संयुक्त समिति वर्ष 1957 में पंडित गोविन्द बल्लभ पंत की अध्यक्षता में गठित की गई थी। समिति ने फरवरी, 1959 में अपना प्रतिवेदन प्रस्तुत किया, जिसके अंतर्गत प्रथम राजभाषा आयोग की प्रमुख सिफारिशों को मान लिया गया। इनमें हिन्दी को प्रमुख राजभाषा और अंग्रेजी को केन्द्रीय राजभाषा के रूप में बनाए रखने तथा वैज्ञानिक, प्रशासनिक एवं कानून सम्बंधी हिन्दी शब्दावली के विकास और अंग्रेजी कृतियों का हिन्दी अनुवाद करने की अनुशंसाएँ की गई थीं।
  • स्थायी राजभाषा आयोग का गठनः प्रथम राजभाषा आयोग की सिफारिश एवं राजभाषा संयुक्त संसदीय समिति के प्रतिवेदन के आधार पर वर्ष 1961 में स्थायी राजभाषा आयोग का गठन किया गया।
  • विधि शब्दावली के विकास, केन्द्रीय अधिनियमों के हिन्दी और अन्य भाषाओं में प्रकाशन के लिए राजभाषा (विधायी) आयोग का गठन किया गया था, जिसे वर्ष 1976 में समाप्त कर दिया गया। इसके कार्यों को भारत सरकार के विधायी विभाग को सौंप दिया गया।
  • हिन्दी शब्दावली के विकास के लिए शिक्षा मंत्रालय के अंतर्गत वैज्ञानिक और तकनीकी शब्दावली आयोग का गठन किया गया। यह आयोग वर्तमान में मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अधीन कार्य कर रहा है।
  • राजभाषा विभागः राजभाषा से संबंधित विधिक एवं संवैधानिक उपबंध के क्रियान्वयन हेतु गृह मंत्रालय के अंतर्गत वर्ष 1975 में राजभाषा विभाग का गठन किया गया। वर्तमान में संविधान की आठवीं अनुसूची में 22 भाषाओं का उल्लेख किया गया, इस अनुसूची के अन्तर्गत मूल संविधान में केवल 14 भाषाओं का उल्लेख था। इसके पश्चात 21वें संविधान संशोधन, 1967 के द्वारा सिंधी भाषा,71वें संविधान संशोधन, 1992 द्वारा कोंकणी, मणिपुरी और नेपाली तथा 92वें संविधान संशोधन, 2003 के द्वारा मैथिली, बोडो, संथाली और डोगरी भाषाओं को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया।
       संविधान में 8वीं अनुसूची में शामिल भाषाएँ
   क्र.

भाषा

क्र.

भाषा

क्र.

भाषा

1.

असमिया

9.

बांग्ला

17.

मणिपुरी

2.

हिन्दी

10.

मलयालम

18.

ओडिया

3.

कोंकणी

11.

नेपाली

19.

सिन्धी

4.

मराठी

12.

संस्कृत

20.

उर्दू

5.

पंजाबी

13.

तेलुगु

21.

मैथिली

6.

तमिल

14.

बोड़ो

22.

कन्नड़

7.

डोगरी

15.

गुजराती

 

 

8.

संथाली

16.

कश्मीरी

 

 

 

  • शास्त्रीय भाषाएं: भारत सरकार ने वर्ष 2004 में शास्त्रीय भाषा के नाम से एक अलग वर्ग बनाने का निर्णय लिया इसी के अंतर्गत वर्ष 2006 में किसी भाषा को शास्त्रीय भाषा का दर्जा प्रदान करने हेतु कुछ मानक तय किए गए, जो निम्नलिखित हैं:
  1. 1500-2000 वर्ष पुराने ग्रंथों में दर्ज इतिहास की पौराणिकता हो।
  2. भाषा के प्राचीन ग्रन्थ एवं साहित्य हों, जिन्हें पीढ़ी-दर-पीढ़ी अमूल्य माना जाता रहा हो।
  3. भाषा की मौलिक साहित्य परम्परा हो, जो दूसरे भाषा समुदाय से उधार न ली गई हो।
  • वर्तमान में 6 भाषाओं को शास्त्रीय भाषा का दर्जा प्राप्त हैः          
   क्रमांक

भाषा

घोषणा वर्ष

1.

तमिल

वर्ष 2004

2.

संस्कृत

वर्ष 2005

3.

तेलुगू

वर्ष 2008

4.

कन्नड़

वर्ष 2008

5.

मलयालम

वर्ष 2013

6.

ओड़िया

वर्ष 2014

 


You need to login to perform this action.
You will be redirected in 3 sec spinner