ब्रिटिश शासन के विरूद्ध 1857 का विद्रोह

ब्रिटिश शासन के विरूद्ध 1857 का विद्रोह

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ब्रिटिश शासन के विरुद्ध 1857 का विद्रोह

 

विश्लेषणात्मक अवधारणा

1857 र्इ. का विप्लव भारत-भूमि पर ब्रिटिश राज्य के इतिहास की सबसे अधिक रोमांचकारी और महत्वपूर्ण घटना थी। यह एक ऐसी भयानक घटना थी, जिसकी प्रचण्ड लपटों में एक बार तो अंग्रेजों का अस्तित्व जल कर मिटने वाला सा प्रतीत होने लगा था। भारत को स्वतंत्रता यद्यपि 1947 र्इ. में मिली थी परंतु इसके लिए संघर्ष लगभग सौ वर्ष पूर्व ही आरंभ हो चुका था। वास्तव में इस 1857 र्इ. की क्रान्ति का स्वर्णिम इतिहास ही कालान्तर में कर्इ स्वतंत्रता सेनानियों के लिए प्रेरणादायी बना। ये क्रान्ति तब हुर्इ थी जब संचार की ज्यादा विकसित सुविधाए नहीं थी, केंद्र में अंग्रेजों की सत्ता को हिलाने के लिए कोर्इ नेतृत्व भी नहीं था और ना ही कोर्इ संगठित समूह या निर्धारित योजना थी, जिससे क्रान्ति को सफल बनाया जा सके। लेकिन सैन्य वर्ग से लेकर आम-जनों में अंग्रेजों के खिलाफ फैले आक्रोश को अपना लक्ष्य दिखने लगा था। ये क्रान्ति असफल जरुर रही लेकिन इसने देश के लिए एक सुनहरे भविष्य की नींव रख दी थी। इतिहासकार ग्रिफिन ने लिखा है, भारत में 1857 की क्रांति से अधिक महत्वपूर्ण घटना कभी नहीं घटी।

 

प्रस्तावना

लॉर्ड कैनिंग के गवर्नर-जनरल के रूप में शासन करने के दौरान ही 1857 र्इ. की महान् क्रान्ति हुर्इ। इस क्रान्ति का आरम्भ 10 मर्इ 1857 को मेरठ से हुआ, जो कानपुर, बरेली, झांसी, दिल्ली, अवध आदि स्थानों पर फैल गया। इस क्रान्ति की शुरुआत तो एक सैन्य विद्रोह के रूप में हुर्इ, परन्तु कालान्तर में उसका स्वरूप बदल कर ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध एक जनव्यापी विद्रोह के रूप में हो गया, जिसे भारत का प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम कहा गया।

 

1857 की क्रांति के कारण

राजनैतिक कारण

§  राजनैतिक कारणों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण कारण के रूप में लॉर्ड डलहौजी की ‘हड़प नीति’ को माना जाता है। डलहौजी ने अपनी इस नीति के अन्तर्गत् सतारा, नागपुर, सम्भलपुर, झांसी तथा बरार आदि राज्यों पर अधिकार कर लिया था, जिसके परिणामस्वरूप इन राजवंशों में अंग्रेज हुकूमत के खिलाफ असन्तोष व्याप्त हो गया।

§  कुशासन के आधार पर डलहौजी ने हैदराबाद तथा अवध को अंग्रेजी साम्राज्य के अधीन कर लिया, जबकि इन स्थानों पर कुशासन फैलाने के जिम्मेदार स्वयं अंग्रेज ही थे।

§  कुलीनवर्गीय भारतीय तथा जमींदारों के साथ अंग्रेजों ने बुरा व्यवहार किया और उन्हें मिले समस्त विशेषाधिकारों को कंपनी की सत्ता ने छीन लिया।

 

आर्थिक कारण

§  1857 की क्रान्ति के लिए जिम्मेदार आर्थिक कारण इस प्रकार हैं. भारतीयों के धन का निष्कासन तीव्र गति से इंग्लैण्ड की ओर हुआ।

§  मुक्त व्यापार तथा अंग्रेजी वस्त्रों के भारत के बाजारों में अधिक मात्रा में जाने के कारण उसका प्रत्यक्ष प्रभाव यहां के कुटीर उद्योगों पर पड़ा, जिस कारण से यहां के कुटीर एवं लघु उद्योग नष्ट हो गये।

§  कृषि के क्षेत्र में अंग्रेजों की गलत नीति के कारण भारतीय किसानों की स्थिति अत्यन्त दयनीय हो गर्इ। अंग्रेजों द्वारा स्थापित स्थायी बंदोबस्त, रैय्यतवाड़ी व्यवस्था के लिए प्रतिकूल साबित हुआ।

 

धार्मिक कारण

§  1857 की क्रान्ति के लिए जिम्मेदार धार्मिक कारण इस प्रकार हैं

§  अंग्रेज अपनी नीति के अनुसार अधिकांश भारतीयों को र्इसार्इ बनाकर भारत में अपने साम्राज्य को सु–ढ़ करना चाहते थे।

§  अंग्रेज, र्इसार्इ धर्म स्वीकार करने वालों को सरकारी नौकरी, उच्च पद एवं अनेक सुविधाएं प्रदान करते थे।

§  1813 र्इ. के कंपनी के आदेश पत्र द्वारा र्इसार्इ पादरियों को आज्ञा प्राप्त करके भारत आने की सुविधा प्राप्त हो

 

गयी। परिणामत: बड़ी संख्या में र्इसार्इ पादरी भारत आए, जिनका मुख्य उद्देश्य र्इसार्इ धर्म का प्रचार करना था।

 

सामाजिक कारण

1857 की क्रान्ति के लिए जिम्मेदार सामाजिकं कारण इस प्रकार हैं

§  अंग्रेजों की अनेक नीतियां तथा कार्य ऐसे थे, जिनसे भारतीयों में असन्तोष की भावना जन्म लेने लगी थीं। गोरे अंग्रेज भारतीयों को ‘काली चमड़ी’ कहकर उनका उपहास किया करते थे।

§  विलियम बैंटिक ने अपने शासनकाल में सती प्रथा, बाल हत्या, नर हत्या आदि पर प्रतिबन्ध लगाकर तथा डलहौजी ने विधवा विवाह को मान्यता देकर रूढ़िवादी भारतीयों में असन्तोष भर दिया।

§  अंग्रेजों द्वारा रेल, डाक एवं तार क्षेत्र में किये गये कायोर्ं को भारतीयों में मात्र र्इसार्इ धर्म के प्रचार का माध्यम बनाने के कारण अंग्रेजों के प्रति उनके मन में विद्रोही भावना भड़क उठी।

सैनिक असन्तोष

§  1857 की क्रान्ति में सैन्य असन्तोष की भूमिका भी प्रमुख स्थान रखती थी। सेना में प्रथम धार्मिक विरोध 1806 र्इ. में वेल्लोर में तब हुआ था, जब लॉर्ड विलियम बैंटिक द्वारा माथे पर तिलक लगाने और पगड़ी पहनने पर रोक लगायी गर्इ। लॉर्ड डलहौजी के समय सैनिक विद्रोह हो चुके थे। 1857 में लॉर्ड कैनिंग द्वारा पारित ‘सामान्य सेवा भर्ती अधिनियम’ के अंतर्गत सैनिकों को सरकार जहां चाहे वहीं कार्य करवा सकती थी। 1854 र्इ. के ‘डाकघर अधिनियम’ में सैनिकों की नि:शुल्क डाक सुविधा समाप्त हो गयी। सैन्य असंतोष के इसी वातावरण में चर्बीयुक्त एनफील्ड राइफलों के प्रयोग के आदेश ने आग में घी का कार्य किया और ये सैनिकों के विद्रोह के लिए तात्कालिक कारण सिद्ध हुआ।

 

क्रांति का संगठन, उद्देश्य और समय

§  1857 की क्रांति के संबंध में यह कहा जाता है कि इसमें संगठन का अभाव था। इस क्रांति के लिए उद्देश्य, निश्चित समय, प्रचार, तैयारी, एकता, नेतृत्व से लेकर गांवों तक सम्प्रेषित किया गया था। संवाद प्रेषण के लिए कमल आदि प्रतीकों का प्रयोग किया गया था।

§  1857 की क्रांति का उद्देश्य निश्चित और स्पष्ट था। अंग्रेजों को देश से निकालना और भारत को स्वाधीन कराना क्रांतिकारियों का अंतिम लक्ष्य था।

§  सम्पूर्ण देश में क्रांति की शुरूआत का एक ही समय 31 मर्इ 1857 का दिन निर्धारित किया गया था।

 

क्रांति की शुरूआत

§  1857 की क्रांति का सूत्रपात मेरठ छावनी के स्वतंत्रता प्रेमी सैनिक मंगल पाण्डे ने किया। 29 मार्च 1857 को नए कारतूसों के प्रयोग के विरुद्ध मंगल पाण्डे ने आवाज उठायी।

§  अप्रैल, 1857 को मंगल पाण्डे को फांसी की सजा दी गर्इ। उसे दी गर्इ फांसी की सजा की खबर सुनकर सम्पूर्ण देश में क्रांति का माहौल स्थापित हो गया।

§  मेरठ के सैनिकों ने 10 मर्इ 1857 को जेलखानों को तोड़ना, भारतीय सैनिकों को मुक्त करना और अंग्रेजों को मारना शुरू कर दिया।

§  1857 की क्रांति में हिन्दू और मुसलमानों ने एक साथ मिलकर भाग लिया। क्रांति ने एक-दूसरे का पूरा साथ दिया। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान अंग्रेजों के विरोध में कारण यह था कि अंग्रेजों ने फूट डालो और राज करो की नीति को हिन्दुओं और मुसलमानों को तोड़ने में लागू नहीं किया था।

 

क्रांति का दमन

क्रांति के राष्ट्रव्यापी स्वरूप और भारतीयों में अंग्रेजी सरकार के प्रति बढ़ते आक्रोश सरकार ने निर्ममतापूर्ण दमन की नीति अपनायी। तत्कालीन वायसराय लॉर्ड केनिंग ने बाहर से अंग्रेजी सेनाएं मंगवायीं। जनरल नील के नेतृत्व वाली सेना ने बनारस और इलाहाबाद में क्रांति का अमानवीय तरह से दमन किया।

 

क्रांति की असफलता के कारण

इस महान् क्रांति की असफलता के अनेक कारण थे, जिनमें कुछ प्रमुख इस प्रकार हैं

§  निश्चित समय की प्रतीक्षा करना

§  देशी राजाओं का देशद्रोही रूख

§  साम्प्रदायिकता

§  सम्पूर्ण देश में प्रसारित होना

§  शस्त्रास्त्रों का अभाव

§  सहायक साधनों का अभाव

 

क्रांति के परिणाम

1857 की क्रांति के जो परिणाम अंग्रेजों के पक्ष में गए, उनमें प्रमुख हैं

§  क्रांति के बाद भारत में सत्ता र्इस्ट इंडिया कंपनी के हाथों से निकलकर ब्रिटिश सरकार के हाथों में चली गयी। इसके लिए भारत शासन अधिनियम, 1858 पारित हुआ। अब भारत का शासन प्रत्यक्षत: ब्रिटिश नीति से होने लगा।

§  1857 की क्रांति के बाद अंग्रेजों ने सेना और सैन्य सामग्रियों पर एकाधिकार कर लिया, जिससे भविष्य में भारतीय सैनिकों की ओर से उनके लिए कोर्इ खतरा उत्पन्न हो।

§  अंग्रेजी सरकार ने भारत की साधारण जनता के बीच अस्त्र-शस्त्र रखने की मनाही कर दी। इससे भारतीयों की आक्रामक शक्ति को पूर्ण रूप से पंगु बना दिया गया।

§  1857 की क्रांति के बाद अंग्रेजी सरकार ने देशी राजाओं के साथ फिर से मित्रतापूर्ण संबंध स्थापित किए।

§  1857 की क्रांति के बाद अंग्रेजी सरकार ने ऐसी शिक्षा-पद्धति को लागू किए जाने को प्रोत्साहित किया, जिससे भारतीय अपने धर्म और संस्कृति को भूल जाएं तथा पाश्चात्य संस्कृति की ओर आकृष्ट हों।

§  1857 की क्रांति का जिस निर्ममता के साथ अंग्रेजी सरकार ने दमन किया था, उससे उसका असली चेहरा भारतीयों के सामने उजागर हुआ।

 

 

विद्रोह के केंद्र एवं नेता

 

दिल्ली

जनरल (सैन्य नेतृत्व बख्त खान), बहादुरशाह (II)

कानपुर

नाना साहब, तात्याटोपे (सैन्य नेतृत्व)

लखनऊ

बेगम हजरत महल, बिरजिस काद्रि

बरेली

खान बहादुर

बिहार

कुंवर सिंह

फैजाबाद

मौलवी अहमदउल्ला

झांसी

रानी लक्ष्मी बार्इ

इलाहाबाद

लियाकत अली

ग्वालियर

तात्या टोपे

गोरखपुर

गजाधर सिंह

 

विद्रोह के समय प्रमुख अंग्रेज जनरल (दमनकर्ता)

दिल्ली

लेफ्टिनेंट विलोबी ,निकोलसन , हडसन

कानपुर

सर ह्यू व्हीलर कॉलिन कैम्पबेल

लखनऊ

हेनरी लॉरेंस , हेनरी हैवलॉक , जेम्स आउट्रम , सर कोलिन कैम्पबेल

झांसी

सर ह्यू रोज

बनारस

कर्नल जेम्स नील

इलाहाबाद

लियाकत अली

बरेली

खान बहादुर खां

जगदीशपुर

विलियम टेलर विन्सेंट इनवार

 


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