भारत स्वतंत्रता की ओर

भारत स्वतंत्रता की ओर

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भारत स्वतंत्रता की ओर

 

विश्लेषणात्मक अवधारणा

भारत को आजाद होना अब एक ऐसा स्वप्न था जो अब सच होता प्रतीत दिख रहा था और ‘भारत छोडो’ प्रस्ताव एक ऐसा प्रस्ताव था जिसने भारत के स्वतंत्रता संग्राम को एक विशिष्ट मोड़ दिया, इस प्रस्ताव ने तो जैसे सारा राजनैतिक माहौल ही बदल डाला। सारे देश में एक अभूतपूर्व उत्साह की लहर दौड़ गर्इ। लेकिन वह उत्साह उस वक्त राष्ट्रीय विस्फोट में बदल गया जब राष्ट्र के प्रमुख नेताओं की गिरफ्तारी ने तत्कालीन ब्रिटिश सरकार के इस कदम की जो तीव्र प्रतिक्रियाएं हुर्इ, वह सचमुच अभूतपूर्व थी। मानो सारा देश हिल गया। यदि सरकार उक्त कदम न उठाती तो क्या हाल होता, यह एक अन्तहीन बहस का विषय हो सकता है। लेकिन दमन के आधार पर यहां जमी हुर्इ विदेशी सरकार और कोर्इ तरीका जानती भी तो नहीं थी। तर्कसंगत अनुमान तो यही हो सकता है कि उक्त प्रस्ताव के फलस्वरूप एक विराट जन-आंदोलन उठ खड़ा होता और सरकार को देर-सबेर दमन-चक्र चलाना ही पड़ता। 8 अगस्त 1942 को जिस क्रांति का सूत्रपात हुआ. उसने स्पष्ट रूप से यह जाहिर कर दिया कि अंग्रेजी हुकूमत टिक नहीं सकती।

 

 

भारत छोड़ो आंदोलन

  • 14 जुलार्इ 1942 को वर्धा में कांग्रेस की कार्यकारिणी समिति ने ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन’ का प्रस्ताव पारित किया एवं इसकी सार्वजनिक घोषणा से पहले 1 अगस्त को इलाहाबाद (प्रयागराज) में तिलक दिवस मनाया गया।
  • 8 अगस्त 1942 को अखिल भारतीय कांग्रेस की बैठक बंबर्इ (मुंबर्इ) के ग्वालिया टैंक मैदान में हुर्इ और ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ के प्रस्ताव को मंजूरी मिली। इस प्रस्ताव में यह घोषणा की गर्इ था कि भारत में ब्रिटिश शासन की तत्काल समाप्ति भारत में स्वतंत्रता तथा लोकतंत्र की स्थापना के लिये अत्यंत आवश्यक हो गर्इ है।
  • भारत छोड़ो आंदोलन को ‘अगस्त क्रांति’ के नाम से भी जाना जाता है। इस आंदोलन का लक्ष्य भारत से ब्रिटिश साम्राज्य को समाप्त करना था। यह आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान काकोरी कांड के ठीक सत्रह साल बाद 9 अगस्त 1942 को गांधी जी के आºवान पर पूरे देश में एक साथ आरंभ हुआ।

 

आंदोलन के दौरान गतिविधिया

  • भारत छोड़ो आंदोलन का प्रस्ताव पारित होने के बाद ग्वालिया टैंक मैदान में गांधी जी जी ने कहा कि, ‘‘एक छोटा सा मंत्र है जो मैं आपको देता हूं। इसे आप अपने हृदय में अंकित कर लें और अपनी हर सांस में उसे अभिव्यक्त करें। यह मंत्र है- ‘‘करो या मरो’’। अपने इस प्रयास में हम या तो स्वतंत्रता प्राप्त करेंगे या फिर जान दे देंगे।’’
  • ब्रिटिश सरकार द्वारा 8-9 अगस्त की रात को 12 बजे अॉपरेशन जीरो अॉवर के तहत सभी बड़े नेता गिरफ्तार कर लिये गए और उन्हें देश के अलग-अलग भागों में जेल में डाल दिया गया। गांधी जी को पुणे के आगा खां पैलेस में रखा गया तो अन्य सदस्यों को अहमदनगर दुर्ग में रखा गया। साथ ही कांग्रेस को गैर-संवैधानिक संस्था घोषित कर इस पर प्रतिबंध लगा दिया गया। इसके विरोध में देश के प्रत्येक भाग में हड़तालों और प्रदर्शनों का आयोजन किया गया।
  • प्रमुख नेताओं के जेल चले जाने बाद नेतृत्व के अभाव में लोगों के बीच से नेतृत्व उभरा।
  • अरुणा आसफ अली ने 9 अगस्त 1942 को ग्वालिया टैंक मैदान में तिरंगा फहराकर आंदोलन को गति दी तो जयप्रकाश नारायण, राम मनोहर लोहिया, अच्युत पटवर्धन इत्यादि नेताओं ने भूमिगत रहकर आंदोलन को नेतृत्व प्रदान किया।
  • उषा मेहता ने अपने साथियों के साथ बंबर्इ से कांग्रेस रेडियो का प्रसारण किया। ब्रिटिश सरकार द्वारा पूरे देश में गोलीबारी, लाठीचार्ज और गिरफ्तारियां की गर्इ।
  • देश के कर्इ भाग जैसे- संयुक्त प्रांत (उत्तर प्रदेश) में बलिया, बंगाल में तामलूक, महाराष्ट्र में सतारा, कर्नाटक में धारवाड़ और उड़ीसा में तलचर व बालासोर में लोगों द्वारा अस्थायी सरकार की स्थापना की गर्इ।
  • पहली अस्थायी सरकार बलिया में चित्तू पाण्डेय के नेतृत्व में बनी थी।

सुभाष चंद्र बोस एवं आजाद हिन्द फौज

  • 17 जनवरी 1941 को सुभाष चंद्र बोस (Subhash Chandra - Bose) कलकत्ता से अचानक गायब हो गये, वे पेशावर काबुल होते हुए रूस पहुंचे।
  • जर्मनी में सुभाष ने हिटलर से मुलाकात कर भारतीय स्वतंत्रता हेतु सहयोग मांगा। जर्मनी में ही भारतीयों द्वारा सुभाष चंद्र बोस को प्रसिद्ध नेता जी की उपाधि प्रदान की गयी।
  • जर्मनी मे सुभाष चंद्र बोस द्वारा फ्री इंडिया सेंटर की स्थापना की गर्इ। इसी संस्था द्वारा सुभाष ने पहली बार जयहिंद का नारा दिया।
  • टोकियो सम्मेलन में रास बिहारी बोस ने जापान में रह रहे भारतीय सेना के अफसरों द्वारा भारत की मुक्ति के लिए भारतीय राष्ट्रीय सेना के गठन पर विचार किया।
  • इसी सम्मेलन में रास बिहारी बोस ने इंडिया इंडिपेंडेंस लीग की स्थापना की। ब्रिटिश भारतीय सेना के एक अधिकारी मोहन सिंह के दिमाग में सर्वप्रथम आजाद हिन्द फौज की। स्थापना का विचार आया।
  • आजाद हिन्द फौज के प्रथम सेनापति सुभाष चंद्र बोस थे।
  • 7 जुलार्इ 1943 को रास बिहारी बोस ने आजाद हिन्द फौज की कमान सुभाष चंद्र बोस को सौंप दी। सुभाष INA के सर्वोच्च सेनापति (कमांडर) घोषित किये गये।
  • 21 अक्टूबर 1943 को सुभाष ने सिंगापुर में स्वतंत्र भारत की अस्थायी सरकार का गठन किया, जिसके मंत्रियों में एच. सी. चटर्जी (वित्त) एम. ए. अय्यर (प्रचार) तथा लक्ष्मी स्वामिनाथन (स्त्रियों के विभाग) आदि शामिल थे।
  • सुभाष चंद्र बोस ने अस्थायी सरकार का मुख्यालय रंगून बनाया, जमनी तथा जापान ने अस्थायी सरकार का समर्थन किया।
  • सुभाष चंद्र बोस ने लक्ष्मीबार्इ के नाम पर रानी झांसी रेजिमेंट महिलाओं के लिए स्थापित किया। आजाद हिन्द फौज के तीन और ब्रिगेड का नाम क्रमश: सुभाष ब्रिगेड, नेहरू ब्रिगेड, गांधी ब्रिगेड रखा गया।
  • मलेशिया में सैनिकों का आºवान करते हुए सुभाष चंद्र बोस ने कहा कि बहुत त्याग किया है, किन्तु अभी प्राणों की आहुति देना शेष है, आजादी को आज हम अपने शीश फल चढ़ा देने वाले पागल पुजारी की आवश्यकता है, जो अपना सिर काटकर स्वाधीनता की देवी को भेंट चढ़ा सके, तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा।
  • दिल्ली चलो, का नारा भी सुभाष चंद्र बोस ने ही दिया था।
  • 6 नवंबर 1943 को जापानी सेना ने आजाद हिन्द फौज को अंडमान और निकोबार द्वीप सौंप दिये।

 

आजाद हिन्द फौज पर मुकदमा

  • 1945 र्इ. में आजाद हिन्द फौज में सिपाहियों द्वारा समर्पण के बाद सरकार ने उन पर निष्ठा की शपथ (सरकार के प्रति) तोड़ने के आरोप में लालकिले में मुकदमा चलाने का निर्णय लिया।
  • सरकार के इस निर्णय के विरुद्ध समूचे देश में आंदोलन शुरू हो गये, कांग्रेस ने INA (Indian National Army) के सिपाहियों को बचाने के लिए आजाद हिंद बचाव समिति की स्थापना की।
  • बचाव पक्ष के वकीलों के विरुद्ध में मूलाभार्इ देसार्इ प्रमुख थे, उनका सहयोग करने के लिए तेज बहादुर सपू, काटजू, जवाहर लाल नेहरू ने भी अदालत में बहस की।
  • आजाद हिन्द फौज के सिपाही सरदार गुरू बख्श सिंह, श्री प्रेम सहगल, साह नवाज पर मुकदमा चलाया गया। संक्षिप्त मुकदमें के बाद इन्हें फांसी की सजा सुनार्इ गर्इ।

 

महत्व

  • यह आंदोलन स्वतंत्रता के अंतिम चरण को इंगित करता है। इसने गांव से लेकर शहर तक ब्रिटिश सरकार को चुनौती दी।
  • इससे भारतीय जनता के अंदर आत्मविश्वास बढ़ा और समानांतर सरकारों के गठन से जनता काफी उत्साहित हुर्इ।
  • इसमें महिलाओं ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया और जनता ने नेतृत्व अपने हाथ में लिया। जो राष्ट्रीय आंदोलन के परिपक्व चरण को सूचित करता है।
  • इस आंदोलन के दौरान पहली बार राजाओं को जनता की संप्रभुता स्वीकार करने को कहा गया।
  • ज्ञातव्य है कि भारत छोड़ो आंदोलन में कम्युनिस्ट पार्टी व मुस्लिम लीग ने भागीदारी नहीं की थी।


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