शास्त्रीय, अर्थशास्त्रीय एवं उप शास्त्रीय संगीत (संगीत कला भाग 2)

शास्त्रीय, अर्थशास्त्रीय एवं उप शास्त्रीय संगीत (संगीत कला भाग 2)

Category :

शास्त्रीय, अर्थशास्त्रीय एवं उप शास्त्रीय संगीत (संगीत कला भाग 2)

 

विश्लेषणात्मक अवधारणा

शास्त्रीय संगीत में कुछ विशेष नियमों का पालन करना बहुत आवश्यक होता है। जैसे रागों का नियम पालन करना जरूरी होता है, लय और ताल की सीमा में रहना पड़ता है। गीत का कौन सा प्रकार हम गा रहे हैं ये ध्यान में रखकर और इसका नियम पालन करके गाया जाता है। भारतीय शास्त्रीय संगीत को दो वर्गों में बांटा गया है- हिन्दुस्तानी संगीत एवं कर्नाटक संगीत। इनमें हिन्दुस्तानी संगीत का विकास मुगल दरबार में मौजूद अरबी और फारसी संगीतकारों के साथ हुआ, जबकि कर्नाटक संगीत अपने मूल रूप में ही आगे बढ़ा। शास्त्रीय संगीत की शैली में ध्रुपद, ख्याल, धमार, चतुरंग, तराना, रागमाला, लक्षणगीत शैलियां शामिल हैं। उपशास्त्रीय संगीत में भी कुछ नियम होते हैं किंतु इन नियमों का पर्याप्त कठोरता से पालन नही किया जाता।

 

शास्त्रीय संगीत की उत्तर भारतीय शैली

  • (हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत) हिंदुस्तानी संगीत पर अरबी, ईरानी, तूरानी एवं अफगानी प्रभाव है।
  • हिंदुस्तानी संगीत में इस्तेमाल होने वाले संगीत वाद्ययंत्र तबला, सारंगी, सितार, संतूर, बांसुरी और वायलिन हैं।
  • इस शैली में हिंदू, उर्दू, पंजाबी, ब्रज, मराठा आदि भाषाओं का प्रयोग होता है।
  • हिंदुस्तानी संगीत में ध्रुपद, ख्याल, टप्पा, चतुरंगा, तराना, सरगम, ठुमरी और रागसागर, होरी और धमार जैसे गायन की दस प्रमुख शैलियां हैं।
  • इसमें आवाज लगाने की शैली खड़ी, दानेदार और खटकेदार होती है।
  • इसमें रागों की उत्पत्ति दस थाटों से मानी जाती है।
  • ध्रुपद गायन को मुख्यत: चार रूपों डागरी, दरभंगा, बेतिया, तलवंडी घरानों में विख्यात हैं।
  • ख्याल में प्रमुख घराने ग्वालियर, किराना, पटियाला, आगरा और भिंडीबाजार घराना सबसे पुराना है और इसे अन्य सभी घराना सम्मिलित हैं। इनमें ग्वालियर घराना सबसे पुराना है और इसे अन्य सभी घरानों की मां के नाम से भी जाना जाता है।
  • ठुमरी के मुख्य तीन बनारस, लखनऊ और पटियाला घराने हैं।
  • बेगम अख्तर ठुमरी शैली की सबसे लोकप्रिय गायिकाओं में से एक हैं।
  • ग्वालियर घराना के संस्थापक नन्थन खान, आगरा घराना के संस्थापक खान, रंगीला घराना के संस्थापक फैयाज खान, जयपूर घराना के संस्थापक अल्लादिया खान औरकिराना घराना (अवध) के संस्थापक अब्दूल वाहिद खान रहे हैं।

 

कर्नाटक संगीत

  • कर्नाटक संगीत के दो प्रमुख तत्व राग एवं ताल हैं।
  • संगीता रतनकारा ग्रंथ के रचनाकार सर्नगादेव, संगीता संप्रदाय प्रदर्शिनी के रचनाकार सूब्बाराम दीक्षितार के स्वारामेला कलानिधि के रचनाकार राममात्या, नाट्यशास्त्र के रचनाकार भरत मूनी एवं संगीता सूधा के रचनाकार गोविंदा दीक्षितार जी रहे हैं।
  • पूरंदर दास विजयनगर के एक प्रसिद्ध संगीतकार और रहस्यवादी कवि थे, इन्हें कर्नाटक संगीत का पिता या पितामाह कहा जाता
  • वेंकटमखी का कर्नाटक संगीत का भव्य सिद्धांतकार माना जाता है। 17वीं शताब्दी ई. में, उन्होंने मेलाकार्टाविकसित किया, जो दक्षिण भारतीय रागों को वर्गीकृत किया, जो दक्षिण भारतीय रागों को वर्गीकृत करने की प्रणाली थी। वर्तमान में 72 “पैमाना मेलाकार्टा” हैं।
  • त्यागराज, श्यामाशास्त्री और मूत्तूस्वामी दीक्षित को एक साथ कर्नाटक संगीत के ट्रिनिटि या त्रिमूर्तिके रूप में जाना जाता हैं।

 

शास्त्रीय संगीत की दक्षिणी भारतीय शैली

  • (कर्नाटक शास्त्रीय संगीत) कर्नाटक संगीत में अधिक धर्मनिरपेक्ष हिंदुस्तानी परंपराओं की तुलना में संयमित और बौद्धिक चरित्र है।
  • हिंदुस्तानी संगीत के प्रमुख मुखर रूप ध्रुपद, ख्याल, तराना, ठुमरी, दादरा और गजल हैं जबकि कर्नाटक संगीत में कई तरह की विधाएं हैं जैसे कि अलापाना, निरावल, कल्पनस्वरम, थानम और रागम थनम पल्लवी।
  • हिंदुस्तानी संगीत में लखनऊ, जयपुर, किराना, आगरा आदि विभिन्न घराने हैं, जबकि कर्नाटक संगीत में ऐसा कोई भी घराना नहीं है।
  • मुस्लिम आक्रमण से बचे रहने के कारण कर्नाटक संगीत मूलत: स्वदेशी है।
  • इस शैली में कन्नड़, तेलुगू, तमिल, मलयालम भाषाओं का प्रयोग होता है।
  • इसमें आवाज लगाने की शैलीमींडयुक्त अधिक होती हैं।
  • इसमें रागों की उत्पत्ति 72 मेलों से मानी जाती है।

 

अर्धशास्त्रीय या उपशास्त्रीय संगीत

  • ठुमरी भारतीय संगीत की एक गायन शैली है, जिसमें रस, रंग और भाव की प्रधानता होती है।
  • ठुमरी में रस के अनुकूल भावाभिव्यक्ति पर ध्यान रखना पड़ता है।
  • ठुमरी का जन्म स्थान लखनऊ माना जाता हैं। लखनऊ के ही उस्ताद सादिक अली खां इस अंग की गायकी के जनक कहे जाते हैं। इसे अर्द्धशास्त्रीय संगीत की श्रेणी में रखा जा सकता है। यह एक श्रृंगारिक शैली है।
  • बनारस की ठुमरी पण्डित जगदीप मिश्र जी से शुरू हुई।
  • टप्पा भी संगीत की अर्द्धशास्त्रीय गायन शैली है।
  • टप्पा भारत की प्रमुख पारंपरिक संगीत शैलियों में से एक है। यह माना जाता है की इस शैली की उत्पत्ति पंजाब व सिंध प्रांतों के ऊंट चलाने वालों द्वारा की गई थी।

 

  • नोट - ठूमरी, टप्पा को हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत में विशेषज्ञ कभी-कभी अर्धशास्त्रीय या उपशास्त्रीय श्रेणी में रखते हैं।
  • इन गीतों में मूल रूप से हीर और रांझा के प्रेम व विरह प्रसंगो को दर्शाया जाता है।
  • टप्पा गायन को मियां गुलाम नबी शोरी ने एक लोक शैली से ऊपर उठाकर एक उपशास्त्रीय शैली का रूप दिया था।
  • गजल संगीत की एक अत्यंत लोकप्रिय विधा है। इसमें विशेष रूप से उर्दू भाषा में लिखित रचना को गाया जाता है।
  • गालिब, जफर, राहत इंदौरी ,मुनव्वर राना आदि गजल के विख्यात लेखकों में से हैं। आजकल हिन्दी में भी गजलों की रचना की जा रही है।
  • जगजीत सिंह, गुलाम अली, पंकज उदास आदि प्रख्यात गजल गायक हैं।

 

प्रमुख सुर साधक

  • अमीर खुसरो को राष्ट्रीय एकता की मूलभावना से ओतप्रोत पहला महाकवि माना जाता है।
  • स्वामी हरिदास ने हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत को ध्रुपद से समृद्ध किया है।
  • तानसेन ध्रुपद की गौड़ीय वाणी के उल्लेखनीय गायक थे। उन्होंने अनेक नए रागों की रचना की।
  • विष्णु नारायण भातखंडे ने प्रसिद्ध पुस्तक हिंदुस्तानी संगीत पद्धतिलिखी। इन्होंने चतुरनाम से कुछ गीत भी लिखे।
  • उस्ताद बिस्मिल्लाह खां ने शास्त्रीय वाद्ययन्त्र के रूप में शहनाई को प्रसिद्धि दिलाई।


You need to login to perform this action.
You will be redirected in 3 sec spinner