उत्सर्जन तंत्र

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उत्सर्जन तंत्र

 

विश्लेषणात्मक अवधारणा

 

शरीर में संचालित उपापचयी क्रियाओं के उत्पाद के रूप में कुछ ऐसे पदार्थों का भी जमाव शुरू हो जाता है जिनकी शरीर में कोर्इ आवश्यकता नहीं होती है। ये केवल अनावश्यक ही नहीं, बल्कि व्यर्थ एवं हानिकारक भी होते हैं। ये अवांछनीय पदार्थ कर्इ तरह के हो सकते हैं, विशेषकर नाइट्रोजनयुक्त पदार्थ, लवण, आयन्स आदि। शरीर के अंदर से इन अवांछनीय पदार्थों को निष्कासित करना आवश्यक हो जाता है। इन अनावश्यक तथा हानिकारक पदार्थों का निष्कासन उत्सर्जन अंगों के द्वारा होता है। ये सभी अंग मिलकर उत्सर्जन तंत्र का निर्माण करते हैं। यह प्रक्रिया शरीर के आन्तरिक वातावरण को सामान्य बनाये रखने में महत्वपूर्ण भूमिका रखती है।

 

शरीर के अंदर विभिन्न उपापचयिक प्रक्रियाओं के अंतर्गत निर्मित होने वाले अवांछित पदार्थों को, विशेषकर नाइट्रोजनयुक्त पदार्थों (यथाअमोनिया, यूरिया आदि) एवं N, k, Cl के आयन्स फॉस्फेट तथा सल्फेट को शरीर की कोशिकाओं, ऊतकों अंगो से अलग करके शरीर से बाहर निष्कासित करने को क्रिया को उत्सर्जन कहते हैं।

मनुष्य उत्सर्जन तन्त्र.- मनुष्य में एक जोड़ी वृक्क, एक जोड़ी मूत्र वाहिनी, मूत्राशय तथा यूरेथ्रा होता है। वृक्क (Kidney) लाल भूरे रंग के सेम के बीज के –श्य संरचना होती है जो अन्तिम वक्षीय तथा लम्बर या कटि वर्टीब्रा के मध्य स्थित होती है। 

·                     प्रत्येक किंडनी में अन्दर की तरफ एक गढा होता है जिसे

हाइलम कहते हैं जिससे मूत्रवाहिनी, रक्त वाहिकायें तथा तंत्रिका प्रवेश करती हैं।

·                     हाइलम के अन्दर एक चौड़ी कीपनुमा स्थान रहता है जिसे रीनल पेल्विस कहते हैं जिससे प्रक्षेपण निकलते हैं जो केिल्क्स होते हैं। किडनी के अन्दर दो क्षेत्र पाये जाते हैं- बाह्य कॉर्टेक्स तथा आंतरिक मेड्यूला

·                     कॉर्टेक्स मेड्यूलरी  पिरेमिड के मध्य फैलता है रीनल कॉलम की तरह जिसे ‘बरटिनी का कॉलम’ (Columns of Bertin) कहते है।

·                     किडनी की क्रियात्मक इकार्इ किडनी नलिकायेंध्नेफ्रॉन होती हैं। प्रत्येक वृक्क में दस लाख लगभग वृक्क नलिकायेंध्नेफ्रॉन्स उपस्थित होती हैं।

·                     प्रत्येक किडनी नलिका के दो भाग होते हैं-केशिकागुच्छ (Glomerulus) तथा नलिकाएं। प्रत्येक किडनी में वृक्क धमनी प्रवेश करने के बाद अनेक पतली शाखाओं में विभाजित हो जाती है जो वृक्क धमनिकाएं (Kidney Arterioles) कहलाती हैं। ये वृक्क धमनिकाएं प्रत्येक नेफ्रॉन के बोमेन सम्पुट में प्रवेश करती हैं। ग्लोमेरुलस में अभिवाही धमनिका (Afferent arteriole) द्वारा निर्मित केशिकाओं (Capillaries) का गुच्छा होता है। केशिकाएं ग्लोमेरुलस के बाद पुन: संयोजित होकर अपवाही धमनिका (Efferent Arteriole) बनाती है जो ग्लोमेरुलस से रुधिर को दूर ले जाती है।

·                     रीनल नलिकाएं बोमेन सम्पुट से शुरू होती हैं तथा नलिका . भागों जैसे समीपस्थ संवलित नलिका (Proximal Convoluted Tubule), हेन्ले लुप (Henle’s loop) तथा दूरस्थ संवलित नलिका (Distal Convoluted Tubule) में बढ़ती हैं।

·                     मैल्पीगी नलिका, PCT तथा DCT वृक्क नलिका के कॉर्टेक्स

क्षेत्र में तथा हेन्ले लूप मेडîूला में स्थित रहती हैं।

मूत्र निर्माण - इसमें तीन प्रक्रम होते हैं- i. केशिकागुच्छीय निस्पंदन, ii. पुन: अवशोषण iii. स्त्रावण।

 

नलिकाओं के कार्य -

§     समीपस्थ संवलित नलिका (PCT) - महत्वपूर्ण पोषक तत्त्वों, 70-80% विद्युत अपघटî तथा जल का पुन:अवशोषण।

§     हेन्ले लूप - मेड्यूलरी  अन्तराऊतकीय द्रव की उच्च परासरणीय को बनाये रखना।

§     दरस्थ संवलित नलिका - सोडियम आयन तथा जल का पुन:अवशोषण एवं PH  तथा सोडियम पोटैशियम आयन्स का सन्तुलन रखना।

§     संग्रह नलिका - मूत्र सान्द्रण के लिए अत्यधिक मात्रा में जल का अवशोषण करना।

 

मूत्र की सान्द्रता की क्रियाविधि - हेन्ले लूप के दोनों भुजाओं में निस्वंद (Filter) का प्रवाह विपरीत दिशा में होता है जिससे प्रतिध रा का निर्माण होता है। वासा रेक्टा की दोनों भुजाओं में रुधिर का प्रवाह परासरणीयता मेड्यूला अन्तराऊतकीय (Intra Tissue) द्रव की ओर बढ़ जाता है।

पदाथोर्ं का परिवहन हेन्ले लूप तथा वासा रेक्टा की विशेष व्यवस्था द्वारा उत्प्रेरित होती है उसे प्रतिधारा क्रियाविधि कहते हैं।

वक्कों की क्रिया का नियमन - किडनी की क्रियाविधि का नियंत्रण संतुलन हाइपोथैलेमस के द्वारा नियंत्रित हार्मोन, जक्सटाकोशिकाओं (JGA) एवं कुछ सीमा तक हृदय द्वारा किया जाता है। रुधिर आयतन में बदलाव, शारीरिक तरल, आयन सान्द्रण परासरण संवेदी को शरीर में सक्रिय करता है जो हाइपोथेलेमस को वेसोप्रेसीन हॉर्मोन या ADH को मुक्त करने को उत्प्रेरित करता है। ADH नलिकाओं में जल अवशोषण करता है।

§     ग्लोमेरुलर रुधिर दाब घटाकर जक्सटा कोशिकाओं को

रेनिन हार्मोन स्त्रावित करने के लिए सक्रिय करता है। रेनिन एंजियोटेनिसोजन का परिवर्तन कर एंजियोटेनसिन- i - ii का निर्माण  करता है जो ग्लोमेरुलर रुधिर दाब में वृद्धि करता है तथा एल्डोस्टेरॉन स्त्रावित करता है यह सोडियम आयन तथा जल का पुन:अवशोषण बढ़ाता है।

§     मूत्रण - मूत्राशय से मूत्र के निष्कासन की प्रक्रिया को मूत्रण (Micturition) कहते हैं। वह तंत्रिका क्रियाविधि जो इसका कारण है मूत्रण प्रतिरक्षण कहलाते हैं। किडनी में निर्मित मूत्र मूत्राशय में संग्रहित होता है, केन्द्रिय तन्त्रिका तन्त्र को ऐच्छिक संकेत मिलने तक यह मूत्र संग्रहण जारी रहता है मूत्राशय की भित्ति पर उपस्थित खिंचाव संवेदी केन्द्रीय तंत्रिका तन्त्र को संकेत भेजता है जो मूत्राशय की रेखित पेशियों के संकुचन को प्रेरित करता है जो यूरेथ्रल स्फिंक्टर को मूत्र निष्कासित करने के लिए शिथिल करती है।

उत्सर्जन तन्त्र के विकार - यूरेमिया - किडनी के कुपोषण के कारण रुधिर में अप्रोटीन नाइट्रोजन की उच्च सान्द्रता होने लगती है। यूरिया को हीमोडाइलेसिस द्वारा हटाया जाता है।

§     किडनी फेल्यर (Renal Failure) - इसमें ग्लोमेरुलस निस्यद रुक जाता है तथा दोनों किडनी काम करना बंद कर देते हैं। इसका इलाज केवल वृक्क प्रत्यारोपण (Kidney Transplantation) है।

§     ग्लोमेरुलस किडनी ब्राइट रोग - वृक्क की ग्लोमेरुलस में सूजन आती है क्योंकि घाव होने से निस्यद में लाल रुधिर कोशिकाओं तथा प्रोटीन का प्रवेश होता है।

§     हीमोडायलेसिस - यूरेमिया के मरीजों में, हीमोडायलेसिस से यूरिया हटा दिया जाता है। इस प्रक्रम में, रुधिर धमनी से अपोहन इकार्इ में पम्प होता है इसे कृत्रिम किडनी कहते

 


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