शारीरिक द्रव एवं परिसंचरण तंत्र

शारीरिक द्रव एवं परिसंचरण तंत्र

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शारीरिक द्रव एवं परिसंचरण तंत्र

 

विश्लेषणात्मक अवधारणा

 

जीव जंतुओं में शरीर के विभिन्न कायोर्ं को सम्पन्न करने लिए भोजन से प्राप्त पदार्थों जैसे - ग्लूकोज, अमीनो अम्ल आदि को आवश्यकतानुसार शरीर के ऊतकों, अंगों आदि तक पहुंचाना आवश्यक होता है। इसके फलस्वरूप शरीर के भीतर के हानिकारक उत्सर्जी पदार्थों, जैसे- ब्वयय अमोनिया आदि को कोशिकाओं से निष्कासित करना भी जरूरी होता है। ये सभी कार्य निम्न श्रेणी के एककोशिकीय तथा बहुकोशिकीय जीवों में विसरण की क्रिया द्वारा पूर्ण होते हैं। सरल प्राणी जैसे स्पंज व सिलेंट्रेट बाहर से अपने शरीर में पानी का संचरण शारीरिक गुहाओं में करते हैं, जिससे कोशिकाओं के द्वारा इन पदार्थों का आदान-प्रदान सरलता से हो सके। विकसित: अर्थात उच्च श्रेणी के जीवों में तथा मनुष्य में परिवहन आतरिक परिसंचरण तंत्र के माध्यम से होता है।

 

 

प्राणियों में उत्सर्जी पदार्थों को विभिन्न भागों से एकत्र करके उत्सर्जी अंगों तक पहुंचाने के लिए विकसित संवहनी तंत्र उपस्थित होता है, जिसे परिसंचरण तंत्र (Circulatory System) कहते हैं, जबकि शरीर के अंदर विभिन्न पदार्थों का यह संवहन, परिसंचरण (Circulation) कहलाता है। विकसित प्राणी शरीर मे पदाथोर्ं के परिवहन के लिए विशेष तरल का उपयोग करते हैं।

  • मनुष्य सहित कशेरुकी प्राणियों में रक्त (द्रव संयोजी ऊतक)को पूरे शरीर में संचारित करते हैं जिसके द्वारा आवश्यक पदार्थ कोशिकाओं तक पहुंचाते हैं तथा वहां से अवशिष्टों को शरीर से बाहर निकालते हैं। दूसरा द्रव, जिसे लसीका (lymph) ऊतक द्रव कहते हैं, यह कुछ पदार्थों का परिवहन करता है।
  • रक्त, द्रव आधात्री (Matrix) प्लाज्मा तथा संगठित पदाथोर्ं से बना होता है। लाल रुधिर कणिकाएं (RBCs/इरिथ्रोसाइट), श्वेत रुधिर कणिकाएं (ल्यूकोसाइट) और प्लेटलेट्स, संगठित पदार्थों का हिस्सा है। मानव का रक्त चार समूहों A, B] AB] O में वर्गीकृत किया गया है। इस वर्गीकरण का आधार लाल रुधिर कणिकाओं की सतह पर दो एंटीजन A अथवा B का उपस्थित या अनुपस्थित होना है। दूसरा वर्गीकरण लाल रुधिर कणिकाओं की सतह पर Rh घटक की उपस्थिति या अनुपस्थिति पर किया गया है।
  • ऊतक की कोशिकाओं के मध्य एक द्रव पाया जाता है जिसे ऊतक द्रव कहते हैं। इस द्रव को लसीका भी कहते हैं जो रक्त के समान होता है, परंतु इसमें प्रोटीन कम होती है तथा संगठित पदार्थ नहीं होते हैं। सभी कशेरुकियों (Vertebrate) तथा कुछ अकशेरुकियों (invertebrate) में बंद परिसंचरण तंत्र होता है। हमारे परिसंचरण तंत्र के अंतर्गत पेशीय पम्पिंग अवयव (Muscular pumping organ), हृदय, वाहिकाओं का जाल तंत्र (a Network of Vessels) तथा द्रव, रक्त आदि सम्मिलित होते हैं।
  • हृदय में दो आलिंद (Two Auricles) तथा दो निलय (Two Ventricles) होते हैं। हृदय पेशीन्यास (Cardiac Muscles) स्व-उत्तेजनीय (Auto-excitable) होता है। शिरा आलिंद पर्वध्कोटरालिंद गांठ (Sino-atrial node-SAN) अधिकतम संख्या में प्रति मिनट (70/75 मिनट) क्रिया विभव (Action Potential) को उत्पन्न करती है और इस कारण यह हृदय की गतिविधियों की गति निर्धारित करती है। इसलिए

इसे गतिप्रेरक (Pacemaker) कहते हैं। आलिंद (auricles) द्वारा पैदा क्रिया विभव और इसके बाद निलयों (Ventricles) की आकुंचन (Contraction) (प्रकुंचनेलेजवसम) का अनुकरण अनुशिथिलन (Relaxation (Disaster) द्वारा होता है।

  • यह प्रकुंचन (Systole) रक्त के आलिंद (auricle) से निलयों (ventricles) की ओर बहाव के लिए दबाव डालता है और वहां से फुप्फुसीय धमनी ( Pulmonary artery) और महाधमनी (aArota) तक ले जाता है। हृदय की इस क्रमिक घटना को एक चक्रं के रूप में बार-बार दोहराया जाता है जिसे हृदय चक्र (Cardiac cycle) कहते हैं। एक स्वस्थ व्यक्ति प्रति मिनट ऐसे 70 चक्रों को प्रदर्शित करता है। एक हृदय चक्र के दौरान प्रत्येक निलय द्वारा लगभग 70 मिली रक्त हर बार पंप किया जाता है। इसे स्ट्रोक या विस्पंदन आयतन (Beat volume) कहते हैं। हृदय के निलय द्वारा प्रति मिनट

 

पंप किए गए रक्त आयतन को हृदय निकास (Cardiac output) कहते हैं और यह स्ट्रोक आयतन तथा स्पंदन दर (Beating Rate) के गुणक बराबर होता है। यह प्रवाह आयतन प्रति मिनट हृदय दर (लगभग 5 लीटर) के बराबर होता है। हृदय में विद्युत क्रिया का आलेख विद्युत हृदय आलेख (ElectrocardiacGraph) मशीन के द्वारा किया जा सकता है तथा विद्युत हृदय आलेख को ECG कहते हैं, जिसका चिकित्सीय महत्व है।

  • मानव में पूर्ण दोहरा संचरण (Double circulation) होता हैं अर्थात दो परिसंचरण पथ मुख्यत: फुप्फुसीय (Pulmonary) तथा दैहिक (Systemic) होते हैं। फुप्फुसीय परिसंचरण में ऑक्सीजन रहित रक्त को दाहिने निलय से फेफड़ों में पहुंचाया जाता है, जहां पर यह रक्त ऑक्सीजनित होता है तथा फुप्फुसीय शिरा (Pulmonary Veins) द्वारा बाए अलिंद में पहुंचता है।
  • दैहिक परिसंचरण में बाएं निलय से ऑक्सीजन युक्त रक्त को महाधमनी द्वारा शरीर के ऊतकों तक पहुंचाया जाता है तथा वहां से ऑक्सीजन रहित रक्त को ऊतकों से शिराओं (Veins) के द्वारा दाहिने अलिंद में वापस पहुंचाया जाता है। यद्यपि हृदय स्वउत्तेज्य (Auto Excitable) होता है, लेकिन इसकी क्रियाशीलता को तंत्रिकीय तथा हॉर्मोन की क्रियाओं से नियमित किया जा सकता है।


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