भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का प्रथम चरण-उदारवादी चरण

भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का प्रथम चरण-उदारवादी चरण

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भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का प्रथम चरण-उदारवादी चरण

 

विश्लेषणात्मक अवधारणा

इस अध्याय के अध्ययन का लक्ष्य विद्यार्थियों में सामाजिक धार्मिक जागृति का आरम्भ और उन सुधारों की स्वतंत्रता आंदोलन में महती भूमिका को मस्तिष्क के पटल. में स्थापित करना है। 19वीं सदी के सुधार आंदोलन मुख्यतः सामाजिक सुधारों के स्वरूप ऽ से युक्त दिखाई देते हैं। चूंकि भारतीय समाज के मूल्यय रीति.रिवाज धर्म पर आधारित थेए अतः अनेक कुरीतियों का समर्थन धर्म के आधार पर किया जाता था। अतः धर्म में सुधार लाए बिना समाज में सुधार संभव नहीं था। इसके अलावा ये सामाजिक धार्मिक आंदोलन राजनैतिक विचारों को प्रसारित कर समाज में स्वदेशी व स्वराज जैसी अवधारणाओं को मजबूत किया तो साथ ही नारी मुक्ति के स्वरूप से भी युक्त था।

 

आन्दोलन का प्रथम चरण (1885-1905.)

भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन के इस काल में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना हुई लेकिन इस समय तक कांग्रेस का लक्ष्य पूरी तरह से स्पष्ठ नहीं था। उस समय इस आन्दोलन का प्रतिनिधित्व अल्प शिक्षितए बुद्धिजीवी मध्यम वर्गीय लोगों के द्वारा किया जा रहा था। यह वर्ग पश्चिम की उदारवादी एवं अतिवादी विचारधारा से काफी प्रभावित था।

 

§    उदारवादी राष्ट्रीयता का युग -  कांग्रेस की स्थापना के आरम्भिक 20 वर्षों में उसकी नीति अत्यन्त ही उदार थीए इसलिए इस काल को कांग्रेस के इतिहास में ष्उदारवादी राष्ट्रीयता का कालश् माना जाता है। कांग्रेस के संस्थापक सदस्य भारतीयों के लिए धर्म और जाति के पक्षपात का अभावए मानव में समानताए कानून के समक्ष समानताए नागरिक स्वतंत्रताओं का प्रसार और प्रतिनिधि संस्थाओं के विकास की कामना करते थे। उदारवादी नेताओं का मानना था कि संवैधनिक तरीके अपना कर ही हम देश को आजाद करा सकते है।

§    तत्कालीन उदारवादी राष्ट्रवादी नेताओं में प्रमुख थे- दादाभाई नौरोजीए फिरोजशाह मेहताए सुरेन्द्रनाथ बनर्जीए दीनशा वाचाए व्योमेश चन्द्र बनर्जीए गोपाल कृष्ण गोखले महादेव गोविन्द रानाडेए मदन मोहन मालवीय आदि।

 

इस काल में कांग्रेस ने देश की स्वतंत्रता की नहीं अपितु कुछ रियायतों की मांग की। कांग्रेस की प्रमुख मांगे निम्नलिखित थीं

विधान परिषदों का विस्तार किया जाए।

परीक्षा की न्यूनतम आयु में वृद्धि की जाए।

परीक्षा का भारत और इंग्लैण्ड में आयोजन हो।

वायसराय तथा गवर्नर की कार्यकारणी में भारतीयों को अधिक प्रतिनिधित्व दिया जाए।

राष्ट्रीय आंदोलन में उदारवादियों का योगदान

§    ब्रिटिश साम्राज्यवाद की आर्थिक नीतियों की आलोचना

§    व्यवस्थापिका में सुधार

§    दीवानी अधिकारों की सुरक्षा

§    सामान्य प्रशासनिक सुधार हेतु उदारवादियों का प्रयास

उग्रवादी चरण (गरम दल का उदय)  1885 . में अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना हुई थी। शुरूआती दौर में कांग्रेस ने छोटी मोटी राजनैतिक और प्रशासनिक सुधारों की मांगें रखी। कांग्रेस के प्रारंभिक नेताओं ने बहुत ही उदार और सांवैधानिक तरीकों से कार्य किया फिर भी उनकी अधिकांश मांगों को पूरा नहीं किया गया बल्कि सरकार शांतिपूर्ण राष्ट्रीय आंदोलन को कुचलने के लिए दमनात्मक कार्रवाई करने में लगी रही। इससे उदारवादियों की विचारधारा और कार्यप्रणाली से लोगों का मोहभंग होने लगा। उन्नीसवीं सदी के अंतिम में वर्षों में कांग्रेस के अंदर ही एक नये आक्रमक गुट का उदय हुआ जो अपनी मांगों और कार्यप्रणाली में पुरानै उदारवादियों की अपेक्षा अधिक उग्र और जुझारू थे। इस गुट को गरम दल या उग्रपंथ कहा गया।

 

§    गरमपंथी नेता- महाराष्ट्र में बाल गंगाधर तिलकए पंजाब में लाला लाजपत रायए बंगाल में विपिन चन्द्र पालए अरविंद घोषए बारींद्र कुमार घोषए बंकिमचंद्र चटर्जीए अश्वनी कुमार दत्ताए एस चक्रवर्तीए बी. पी. दास आदि गरमपंथी नेता थे।

§    उग्रवाद के उदय के कारण- उग्रवाद के उदय के निम्नलिखित मुख्य कारण हैं

§    नरमपंथियों की कार्य-प्रणाली और उपलब्धियों से असंतोष

§    प्लेग और अकाल

§    अंग्रेजी शासन के शोषक स्वरुप की पहचान

§    अंतर्राष्ट्रीय घटनाओं का प्रभाव

§    लार्ड कर्जन और बंगाल विभाजन

§    गरम दल के उद्देश्य- उग्रपंथियों का एकमात्र उद्देश्य था स्वराज्य की प्राप्ति। वे छोटे-मोटे राजनैतिक और प्रशासनिक  सुधारों की बात नहीं करते थे। अतः वे सुधारवादी नहीं थे। वे परिवर्तन वादी थे।

 

§    तिलक ने कहा था-  “स्वराज्य के बिना कोई सामाजिक सुधार नहीं हो सकते न कोई औद्योगिक प्रगतिए न कोई शिक्षा और न ही राष्ट्रीय जीवन की परिपूर्णता।” इसीलिए तिलक ने नारा दिया था - स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा।

§    अरविंद घोष के अनुसार राजनैतिक स्वतंत्रता एक राष्ट्र का जीवन श्वास है।

§    लाला लाजपत राय के अनुसार दास जाति की कोई आत्मा नहीं होती।

§    उग्रवादियों के कार्यकलाप- उदारवादी लोग यूरोपीय विचारधारा विशेषकर ब्रिटिश संस्कृति से प्रभावित नजर आते हैं लेकिन उग्रपंथियों ने इस प्रकार के सांस्कृतिक आत्मसमर्पण की निंदा करते हुए कहा कि इससे भारतीयों में हीनभावना उत्पन्न होगी और स्वराज्य की लड़ाई के लिए आवश्यक राष्ट्रीय गौरव का उत्थान नहीं हो पाएगा। इसीलिए गरम दलीय नेताओं ने भारत के

प्राचीन इतिहास विशेषकर वेदकालीन और गुप्त काल के इतिहास से प्रेरणा लेकर कार्य किया।

§    उन्होंने सम्राट अशोकए चंद्रगुप्त के द्वारा भारत को महान देश बनाने के कार्य को लोगों के सामने रखा।

§    इसी प्रकार मुगलों के विरुद्ध महाराणा प्रताप और शिवाजी के राजनैतिक संघषों को विदेशियों के खिलाफ आजादी की लड़ाई के रूप में वर्णित किया गया।

§    तिलक ने महाराष्ट्र में शिवाजी उत्सव के द्वारा राजनैतिक चेतना जगाने का कार्य किया।

§    गरम दल के लोग पाश्चात्य बुद्धिवाद और उदारवाद के बजाय भारतीय अध्यात्म और दर्शन से प्रेरित थे।

§    स्वदेशी और बहिष्कार ये दो गरमपंथियों की कार्य.प्रणाली के मुख्य अंग थे। स्वदेशी चीजों और विचारों को अपनाना और विदेशी वस्तुओं और शासन का बहिष्कार करनाण्श् स्वराज्य की लड़ाई में इनके मुख्य हथियार थे। स्वदेशी के बारे में लाला लाजपत राय ने कहा था- मैं इसी में देश की मुक्ति समझता हूं।

§    गरम दल की उपलब्धियां- गरम दल के प्रयासों से भारत का राष्ट्रीय आंदोलन एक नये युग में प्रवेश किया। ये गरमपंथी अपनी मांगों और कार्यप्रणाली में अपने पूर्ववर्ती उदारवादियों की अपेक्षा अधिक आक्रमक थे।

§    उदारवादी चरण में कांग्रेस वर्ष में एक बार अधिवेशन करके शांत हो जाती थी। जबकि इन्होंने लगातार राजनीति गतिविधियां जारी रखीं। देश के लिए पहली बार जेल जाने वाले कांग्रेसी नेता तिलक ही थे।

§    गरम दल वालों ने राष्ट्रीय आंदोलन को जन आंदोलन बनाने की भरसक कोशिश की। इन्होंने कांग्रेस को निम्न मध्यम वर्ग से जोड़ने में सफलता पाई।

§    पुराने उदारवादियों ने केवल शिक्षित बुद्धिजीवियों के लिए  राजनैतिक सुधारों की बात की थी, लेकिन गरमपंथियों ने जनता के अधिकारों के लिए सक्रिय और पूर्णकालिक राजनीति के माध्यम से अपना सबकुछ अर्पित कर दिया।

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