अंग्रेजो की भारत विजय एवं ब्रिटिश शक्ति का प्रसार

अंग्रेजो की भारत विजय एवं ब्रिटिश शक्ति का प्रसार

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वैदिक कल

 

विश्लेषणात्मक अवधारणा

अंग्रेजों द्वारा किया गया बंगाल का अधिग्रहण भारत में 18वी सदी के उत्तरार्ध की ऐतिहासिक घटनाओं में प्रमुख है। केवल आठ वषोर्ं के अल्पकाल अर्थात 1757-1765 र्इ. के मध्य बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला, मीरजाफर तथा मीर कासिम अपनी संप्रभुता को कायम रखने में असफल सिद्ध हुए। परिणामस्वरूप, बंगाल में र्इस्ट इंडिया कंपनी की संप्रभुता स्थापित हो गयी। 1757. र्इ. का प्लासी का युद्ध एक खुला युद्ध नहीं था, वरन् यह एक विश्वासघात था क्योंकि वर्तमान युग में क्रिकेट मैच फिक्सिंग की तरह इसके परिणाम पहले से ही निश्चित हो चुके थे। इस युद्ध के बारे में कवि नवीनचंद्र ने लिखा है, ‘भारत में अनंत अंधकारमय रात्रि आरंभ हो गर्इ। 1757 र्इ. में प्लासी के युद्ध और 1764 र्इ. में बक्सर के युद्ध के माध्यम से अंग्रेज भारत के सर्वाधिक समृद्ध प्रांतों में से एक अर्थात् बंगाल के राजस्व पर नियंत्रण प्राप्त करने में सफल हुए।

 

बंगाल का अधिग्रहण -

§  अंग्रेजों द्वारा किया गया बंगाल का अधिग्रहण भारत में 18वीं सदी के उत्तरार्ध की ऐतिहासिक घटनाओं में प्रमुख है।

§  केवल आठ वषोर्ं के अल्पकाल अथार्त 1757-1764 र्इ. के मध्य बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला, मीरजाफर तथा मीर कासिम अपनी संप्रभुता को कायम रखने में असफल सिद्ध हुए। परिणामस्वरुप, बंगाल में र्इस्ट इंडिया कंपनी की संप्रभुता स्थापित हो गयी।

§  ब्लैक होल की घटना ( 20 जून 1756) - हालवेल के अनुसार 20 जून 1756 की रात को 146 अंग्रेज कैदियों को 18 फुट लम्बी तथा 14 फुट 10 इंच चौड़ी कोठरी में बंद कर दिया। अगले दिन हालवेल सहित मात्र 23 व्यक्ति जिन्दा बचे।

§  अलीनगर की सन्धि - फरवरी 1757 में संपन्न क्लाइव और सिराजुद्दौला के बीच हुर्इ इस संधि के अनुसार नवाब ने किलेबंदी की छूट, कैदियों के आदान-प्रदान, उन्हें क्षतिपूर्ति देना, विजित स्थानों को उन्हें लौटाने तथा सुरक्षा का वचन दिया। अंग्रेजों के विशेषाधिकार को भी नवाब ने स्वीकार किया ।

§  प्लासी का युद्ध (23 जून 1757 ) - प्लासी का युद्ध क्लाइव एवं नवाब की सेना के बीच आरम्भ हुआ। क्लाइव के सेनापति मीरजाफर ने सिराजुद्दौला को एक कपटपूर्ण परामर्श दिया और नवाब ने युद्ध को एक दिन के लिए स्थगित कर दिया। अगले दिन हुए युद्ध में तीनों विश्वासघातियों की सेनाएं बिना युद्ध किये ही वापस लौट गयी। इस युद्ध में नवाब के विश्वसनीय सैनिकों मीरमदान एवं मोहनलाल को वीरगति प्राप्त हुर्इ। सिराजुद्दौला ने भागकर मुर्शिदाबाद में शरण ली, जहा मीरजाफर के पुत्र मीरन ने उसकी हत्या करवा दी। सिराजुद्दौला के विरुद्ध “ाड़यंत्र में शामिल व्यक्ति कृष्णचन्द्र, जगतसेठ, अमीरचंद और मीरजाफर आदि थे।

§  बक्सर का युद्ध - 1762 र्इ. में मीरकासिम ने भारतीयों से व्यापारिक कर लेना बंद कर दिया और पटना में कुछ भारतीयों और अंग्रेज बंदियों का कत्ल कर दिया। जिसके कारण अंग्रेज एवं नवाब के बीच संघर्ष की भावना युद्ध में बदल गयी। इस युद्ध में बंगाल के नवाब मीर कासिम अवध के नवाब शुजाउद्दौला और मुगल सम्राट शाहआलम द्वितीय के संयुक्त मोर्चे के विरुद्ध 22 अक्टूबर 1764 को र्इस्ट इंडिया कंपनी के द्वारा बक्सर का युद्ध लड़ा गया।

§  बक्सर का युद्ध का महत्व - राजनैतिक –ष्टि से इस युद्ध में अंग्रेजों ने उत्तरी भारत के उस समय के सबसे शक्तिशाली प्रदेश पर कब्जा कर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया था ।

§  इलाहाबाद की प्रथम संधि ( 12 अगस्त 1765) - यह संधि क्लाइव, मुगल सम्राट शाहआलम द्वितीय तथा बंगाल के नवाब नज्मुद्दौला के मध्य सम्पन्न हुर्इ।इस संधि की शर्ते निम्नवत थी  

§  कंपनी को मुगल सम्राट शाहआलम द्वितीय से बंगाल, बिहार तथा उड़ीसा की दीवानी प्राप्त हुर्इ।

§  कंपनी ने अवध के नवाब से कड़ा और इलाहाबाद के जिले लेकर मुगल सम्राट शाहआलम द्वितीय को दे दिए।

§  कंपनी ने मुगल सम्राट को 26 लाख रूपये की वार्षिक पेंशन देना स्वीकार किया।

§  इलाहाबाद की द्वितीय संधि (16 अगस्त 1765) - यह संधि क्लाइव एवं शुजाउद्दौला के मध्य सम्पन्न हुर्इ।

इस संधि की शर्ते निम्नवत थी

§  इलाहाबाद और कड़ा को छोड़कर अवध का शेष क्षेत्र नज्मुद्दौला को वापस कर दिया गया।

§  कंपनी द्वारा अवध की सुरक्षा हेतु नवाब के खर्च पर एक अंग्रेजी सेना अवध में रखी गर्इ।

§  कंपनी को अवध में कर मुफ्त व्यापार करने की सुविधा प्राप्त हो रही है।

§  शुजाउद्दौला को बनारस के राजा बलवंत सिंह से पहले की ही तरह लगान वसूल करने का अधिकार दिया गया।

राजा बलवंत सिंह ने युद्ध में अंग्रेजों की सहायता की थी।

बंगाल में द्वैध - शासन (1765-1772 र्इ.) - 1765 र्इ. में सम्पन्न इलाहाबाद की प्रथम संधि बंगाल के इतिहास में एक युगांतकारी घटना थी क्योंकि कालांतर में इसने उन प्रशासकीय परिवर्तनों की पृष्ठभूमि तैयार कर दी, जिससे ब्रिटिश प्रशासनिक व्यवस्था की आधारशिला रखी गयी। नवाब की सत्ता का अंत हो गया और एक ऐसी व्यवस्था का जन्म हुआ जो शासन के उत्तरदायित्व से मुफ्त थी।

बंगाल के संप्रभुतासम्पन्न शासन के रूप में कंपनी - 1772 र्इ. में जब. वारेन हेस्टिंग्स को बंगाल का गवर्नर नियुक्त किया गया, तब क्लाइव द्वारा स्थापित राजनैतिक प्रणाली पूर्णत: विफल हो चुकी थी। इसलिए हेस्टिंग्स ने बंगाल पर विजित राज्य के रूप में शासन करना प्रारंभ कर दिया और छदम मुगल संप्रभुता के नकाब को उतार फेंका। नवाब को दी जाने वाली रकम (निर्वाह-भता) अब 32 लाख से घटाकर 16 लाख कर दी गयी।

अंग्रेजों की मैसूर विजय

§  अंग्रेजों द्वारा मैसूर के मामले में हस्तक्षेप के कर्इ कारण थे, जिनमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण कारण वाणिज्यिक था।

§  प्रथम आंग्ल-मैसूर युद्ध 1767-1769 र्इ. - बंगाल में मिली विजय के पश्चात् कंपनी का आत्मविश्वास बहुत बढ़ गया था। अब उसने अपना ध्यान दक्षिण भारत की ओर केन्द्रित किया। अंग्रेजों द्वारा हैदरअली के विरुद्ध 1766 र्इ. में हैदराबाद के निजाम के साथ एक संधि की गयी। निजाम ने अंग्रेजों को हैदर के विरुद्ध सहायता प्रदान करना स्वीकार किया। जिसके बाद 1767 से 1769 तक प्रथम आंग्ल मैसूर युद्ध हुआ।

§  द्वितीय आंग्ल-मैसूर युद्ध 1780-84 र्इ. - 1771 र्इ. में जब मराठों ने हैदरअली पर आक्रमण किया तब अंग्रेजो ने मद्रास की संधि का उललंघन करते हुए उसकी कोर्इ सहायता नहीं की। अंग्रेज मद्रास की संधि के प्रति निष्ठावान नहीं थे। परिणामस्वरूप, दोनों के मध्य एक बार फिर से युद्ध के बादल मंडराने लगे। फलस्वरूप 1780 से 1784 में द्वितीय आंग्ल मैसूर युद्ध हुआ। इस युद्ध के दौरान हैदर की 1780 र्इ. में मृत्यु हो गर्इ।

तृतीय आंग्ल-मैसूर युद्ध (1790-1792 र्इ.) कारण () मंगलौर की संधि का अस्थायित्व

() टीपू का फ्रांसीसियों से सम्पर्क

() मराठों के भेजे पत्र में कार्नवालिस द्वारा टीपू को मित्रों की सूची में शामिल न करना।

§  परिणाम - श्रीरंगपटटनम की संधि, 1792 र्इ. – टीपू और अंग्रेज इस संधि के अनुसार अंग्रेजों अर्थात कार्नवालिस को टीपू सुल्तान द्वारा अपना आधा राज्य तथा तीन करोड़ रूपये जुर्माने के रूप में दिए गए।

चतुर्थ आंग्ल-मैसूर युद्ध (1799 र्इ.) कारण

§  टीपू का फ्रांसीसियों से सम्पर्क

§  भारत पर नेपोलियन के आक्रमण का खतरा

§  वेलेजली की आक्रामक नीति

परिणाम

§  टीपू के राज्य का विभाजन

§  दक्षिण भारत पर अंग्रेजी प्रभुत्व तथा वेलेजली की प्रतिष्ठा

में वृद्धि, टीपू की मृत्यु।

आंग्ल -फ्रांसीसी संघर्ष

§  कर्नाटक में आंग्ल -फ्रांसीसी प्रतिस्पर्धा - अन्तिम दो यूरोपीय कम्पनियों अंग्रेज और फ्रांसीसियों के बीच कर्नाटक में अपने वर्चस्व के लिए संघर्ष प्रारम्भ हुए। इन संघषोर्ं में अन्तत: अंग्रेज विजयी हुए। कर्नाटक में कुल तीन युद्ध लड़े गये। इसमें प्रथम और तृतीय युद्ध विदेशी कारणों से प्रभावित थे जबकि द्वितीय युद्ध यहां के आन्तरिक कारणों से प्रभावित था।

§  कर्नाटक का प्रथम युद्ध (1746-48 र्इ.)

§  कर्नाटक का द्वितीय युद्ध (1749-54 र्इ.)  

§  कर्नाटक का तृतीय युद्ध (1756-63 र्इ.)

वांडिवास का युद्ध (22 जनवरी 1760)- अंग्रेज सेनापति अमरकूट और फ्रांसीसी सेनापति काउण्ट लाली के बीच। अन्तत: फ्रांसीसियों की पराजय हुर्इ और भारत में अंग्रेजी राज्य की स्थापना का मार्ग प्रशस्त हो गया।

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