भारत की जलवायु

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भारत की जलवायु

 

विश्लेषणात्मक अवधारणा

विशाल भारत के भू-आकृतिक प्रदेशों में न केवल विविधता हैं अपितु उनमें विभिन्नता भी पार्इ जाती हैं। प्रस्तुत पाठ ‘‘भारत की जलवायु’’ का अध्ययन कर हम भारत की जलवायु में प्रादेशिक विभिन्नताओं का अध्ययन कर सकेंगे, ऋतु चक्र, भारतीय मानसून की विशेषताएं एवं भारतीय जलवायु व मानसून की प्रभावित करने वाले कारकों का विश्लेषण कर सकेंगे।

 

किसी भी स्थान की वायुमंडलीय दशाओं (तापमान, वायुमंडलीय दाब, पवन, आर्द्रता, वर्षण) की दीर्घकालीन (30 वर्ष से अधिक) स्थिर अवस्थाओं तथा विविधताओं का योग ही उस स्थान की जलवायु कहलाती है। जलवायु के विपरीत मौसम वायुमंडलीय दशाओं के अल्पकालीन परिवर्तन को दर्शाता है। विश्व को अनेक जलवायु क्षेत्रों में विभाजित किया गया है, जैसे- भूमध्य रेखीय जलवायु, भूमध्य-सागरीय जलवायु, मानसूनी जलवायु आदि।

 

भारतीय जलवायु

  • भारत की जलवायु ‘‘उष्ण मानसूनी’’ है। एशिया में इस प्रकार की जलवायु मुख्यत: दक्षिण तथा दक्षिण-पूर्व में पार्इ जाती है।
  • भारतीय मानसूनी जलवायु में व्यापक एकरूपता होते हुए भी देश की जलवायु अवस्था में स्पष्ट प्रादेशिक विभिन्नताएं देखने को मिलती है।
  • जलवायु की प्रादेशिक भिन्नताओं को पवनों के प्रतिरूप, तापक्रम और वर्षा, ऋतुओं की लय तथा आर्द्रता एवं शुष्कता की मात्रा के रूप में देखा जा सकता है- जैसे- गर्मियों में, राजस्थान के मरूस्थल में कुछ स्थानों का तापमान लगभग \[50{}^\circ \]से तक पहुंच जाता है, जबकि जम्मू-कश्मीर के पहलग्राम में तापमान \[20{}^\circ \]से रहता है। शीत ऋतु में द्रास (लद्दाख) का तापमान \[-45{}^\circ \] से तक हो सकता है, जबकि तिरूवनंतपुरूम् में यह \[22{}^\circ \] से हो सकता है।

 

भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक

अक्षांश

  • कर्क रेखा पूर्व-पश्चिम दिशा में देश के मध्य भाग से गुजरती है। इस प्रकार भारत का उत्तरी भाग शीतोष्ण कटिबंध में और कर्क रेखा के दक्षिण में स्थित भाग उष्ण कटिबंध में पड़ता है।
  • उष्ण कटिबंध भूमध्य रेखा के अधिक निकट होने के कारण पूरे वर्ष ऊंचे तापमान तथा कम दैनिक और वार्षिक तापांतर का अनुभव करता है। कर्क रेखा से उत्तर में स्थित भाग में भूमध्य रेखा से दूर होने के कारण उच्च दैनिक तथा वार्षिक तापांतर के साथ विषम जलवायु पायी जाती है।

 

हिमालय पर्वत

  • उत्तर में ऊंचा हिमालय अपने सभी विस्तारों के साथ एक प्रभावी जलवायु विभाजक की भूमिका निभाता है।
  • यह ऊंची पर्वत श्रृंखला उपमहाद्वीप को उत्तरी पवनों से अभेद्य सुरक्षा प्रदान करती है। जमा देने वाली ये ठंडी पवनें उत्तरी ध्रुव रेखा के निकट पैदा होती है और मध्य तथा पूर्वी एशिया में आर-पार बहती हैं।
  • इसी प्रकार हिमालय पर्वत मानसून पवनों को रोककर उपमहाद्वीप में वर्षा का कारण बनता है।

 

जल और स्थल का वितरण

  • भारत के दक्षिण में तीन ओर हिंद महासागर व उत्तर की ओर ऊंची व अविच्छिन्न पर्वत श्रेणी है।
  • स्थल की अपेक्षा जल देर से गर्म होता है और देर से ठंडा होता है। जल और स्थल से इस विभेदी तापन के कारण भारतीय उपमहाद्वीप में विभिन्न ऋतुओं में विभिन्न वायुदाब प्रदेश विकसित हो जाते हैं।
  • वायुदाब में भिन्नता मानसून पवनों के उत्क्रमण का कारण बनती हैं।

 

समुद्र तट से दूरी

  • लंबी तटीय रेखा के कारण भारत के विस्तृत तटीय प्रदेशों में समकारी जलवायु पायी जाती है।
  • भारत के अंदरूनी भाग समुद्र के समकारी प्रभाव से वंचित रह जाते हैं। ऐसे क्षेत्रों में विषम जलवायु पायी जाती है।
  • यही कारण है कि मुंबर्इ तथा कोंकण तट के निवासी तापमान की विषमता और ऋतु परिवर्तन का अनुभव नहीं कर पाते। दूसरी ओर समुद्र तट से दूर देश के आंतरिक भागों में स्थित दिल्ली, कानपुर और अमृतसर में मौसमी परिवर्तन पूरे जीवन को प्रभावित करते हैं।

 

समद्र तल से ऊंचार्इ

  • ऊंचार्इ के साथ तापमान घटता है। विरल वायु के कारण पर्वतीय प्रदेश मैदानों की तुलना में अधिक ठंडे होते हैं। उदाहरणत: आगरा और दार्जिलिंग एक ही अक्षांश पर स्थित हैं, किन्तु जनवरी में आगरा का तापमान \[16{}^\circ \]सेल्सियस, जबकि दार्जिलिंग में यह \[40{}^\circ \]सेल्सियस होता है।

 

उच्चावच

  • भारत का भौतिक स्वरूप अथवा उच्चावच तापमान, वायुदाब, पवनों की गति एवं दिशा तथा ढाल की मात्रा और वितरण को प्रभावित करता है। उदाहरणत: जून और जुलार्इ के बीच पश्चिमी घाट तथा असम के पवनाभिमुखी ढाल अधिक वर्षा प्राप्त करते हैं जबकि इसी दौरान पश्चिमी घाट के साथ लगा दक्षिणी पठार पवनाभिमुखी स्थिति के कारण कम वर्षा प्राप्त करता है।
  • वायुदाब एवं पवनों से जुड़े कारक हैं, जैसे-जेट स्ट्रीम, पश्चिमी विक्षोभ इत्यादि।

 

भारत की ऋतुएं

  • भारत की जलवायवी दशाओं को उसके वार्षिक ऋतु चक्र के माध्यम से सर्वश्रेष्ठ ढंग से समझा जा सकता है।
  • मौसम वैज्ञानिकों द्वारा भारत की जलवायु को निम्न चार ऋतुओं में विभाजित किया गया है -
  1. शीत ऋतु 2. ग्रीष्म ऋतु
  2. वर्षा ऋतु 4. शरद ऋतु

 

अंत: उष्ण कटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र (ITCZ)

ये विषुवतीय अक्षांशों में विस्तृत गर्त एवं निम्न दाब का क्षेत्र होता है। यहां पर उत्तर-पूर्वी एवं दक्षिण-पूर्वी व्यापारिक पवनें आपस में मिलती हैं। यह अभिसरण क्षेत्र विषवुत् वृत्त के लगभग: समानांतर होता है, लेकिन सूर्य की आभासी गति के साथ-साथ यह उत्तर या दक्षिण को ओर खिसकता है।

 

वर्षा ऋतु

  • भारत में सामान्यत: 15 जून से 15 सितम्बर का समय वर्षा ऋतु का होता है।
  • 21 मार्च को सूर्य के उत्तरायण होने के साथ ही, ITCZ भी उत्तर की ओर खिसने लगती है।
  • 21 जून को जब सूर्य कर्क रेखा पर लम्बवत होता है, तो ITCZ भी कर्क रेखा के उत्तर में स्थित राजस्थान मरूस्थल व गंगा के मैदानों में स्थापित हो जाता है।
  • उत्तर भारत में बने अत्यधिक निम्न वायुदाब को नियंत्रित करने हेतु दक्षिणी गोलार्द्ध की व्यापारिक पवनें \[40{}^\circ \]और \[60{}^\circ \]पूर्वी देशांतरों के बीच विषुवत वृत्त को पार उत्तरी गोलार्द्ध में प्रवेश करती है।

 

  • कोरिऑलिस बल के प्रभाव से विषुवत वृत्त को पार करने वाली इन व्यापारिक पवनों की दिशा दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व की ओर हो जाती है। यही दक्षिण-पश्चिम मानसून है।

 

  • उत्तरी गोलार्द्ध में दिशा बदलते ही व्यापारिक पवनों को ‘‘मानसूनी पवनें’’ कहते हैं।

 

  • दक्षिण पश्चिम मानसून केरल तट पर 1 जून को पहुंचता है, और शीघ्र ही 10 और 13 जून के बीच में आर्द्र पवनें मुबंर्इ व कोलकाता तक पहुंच जाती हैं।

 

  • मध्य जुलार्इ तक संपूर्ण उपमहाद्वीप दक्षिण-पश्चिम मानसून के प्रभावाधीन हो जाता है।

 

  • भारत में दक्षिण-पश्चिम मानसून की उत्पत्ति का संबंध उष्ण-पूर्वी जेट स्ट्रीम से है। भारत में औसत वार्षिक वर्षा 120 - 130 सेंटीमीटर है, लेकिन इसमें क्षेत्रीय विभिन्नताएं पार्इ जाती है।

 

शरद ऋतु

  • 15 सितम्बर से 15 दिसम्बर तक का समय शरद ऋतु या मानसूनी पवनों के लौटने का काल कहलाता है।
  • सितम्बर से दिसम्बर के मध्य सूर्य के दक्षिणायन होने के कारण भारतीय उपमहाद्वीप में तापमान में कमी के साथ दाब में वृद्धि होती रहती है, जिसके कारण सितम्बर माह के मध्य से ही पंजाब, हरियाणा के मैदानों में उच्च वायुदाब का विकास होने के कारण मानसूनी पवनें लौटना प्रारंभ कर देती है, इसे ही ‘‘मानसून का लौटना या मानसून का निर्वतन’’ कहते है।
  • इस समय ताप कटिबंध के साथ-साथ ‘‘मानसूनी द्रोणी’’ (ITCZ) का भी दक्षिण की ओर विस्थापन हो जाता है। जिसके कारण उपोष्ण कटिबंधीय पश्चिमी जेट स्ट्रीम का तिब्बत का पठार से. हिमालय पर्वत की ओर विस्थापन प्रारंभ हो जाता है तथा उष्णकटिबंधीय पूर्वी जेट स्ट्रीम का भारतीय प्रायद्वीप से प्रभाव कम होने लगता है, जिसके कारण बंगाल की खाड़ी में उष्ण कटिबंधीय चक्रवात की उत्पत्ति के लिये अनुकूल दशाएं बन जाती है।
  • शरद ऋतु में जलप्लावित भूमि एवं तेज धूप के कारण लोगों को असहनीय उमस का सामना करना पड़ता है, जिसे ‘क्वार की उमस’ या ‘अक्टूबर की गर्मी’ या ‘कार्तिक मास की ऊष्मा’ कहा जाता है।

 

शीत ऋतु

  • सामान्यत: 15 दिसम्बर से 15 मार्च तक समय शीत ऋतु का होता है।
  • 22 दिसम्बर को सूर्य के मकर रेखा पर लम्बवत होने के कारण, सम्पूर्ण उत्तरी गोलार्द्ध में शीत ऋतु का आगमन होता है।
  • जनवरी माह में \[20{}^\circ \]समताप रेखा, भारत को दो भागों में विभाजित करती है।
  • इस रेखा के उत्तर स्थित भाग महाद्वीपीय जलवायु क्षेत्र एवं दक्षिण स्थित भाग उष्ण कटिबंधीय जलवायु क्षेत्र कहलाता है।
  • शीतकालीन मानसूनी पवनें स्थल से समुद्र की ओर चलने के कारण वर्षा नहीं करती हैं। अपवादस्वरूप कुछ क्षेत्रों में शीत ऋतु में वर्षा होती है।
  • उत्तर-पश्चिम भारत में भू-मध्य सागर से आने वाले कुछ क्षीण शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात पंजाब, हरियाणा, दिल्ली तथा पंजाब पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कुछ वर्षा कराते हैं।
  • इस वर्षा की मात्रा मैदानों में पश्चिम से पूर्व की ओर तथा पर्वतों में उत्तर से दक्षिण की ओर घटती जाती है।
  • जाड़े के महीने में भारत के उत्तर-पूर्वी भाग में स्थित अरूणाचल प्रदेश तथा असम में भी 25 से 50 मि.मी. तक वर्षा हो जाती है।
  • उत्तर-पूर्वी मानसून पवनें अक्टूबर से नवम्बर के बीच बंगाल की खाड़ी को पार करते समय नमी ग्रहण कर लेती है, और तमिलनाडु, दक्षिण आंध्रप्रदेश, दक्षिण-पूर्वी कर्नाटक तथा दक्षिण-पूर्वी केरल में झंझावाती वर्षा करती हैं।
  • शीत ऋतु में भारत का सबसे ठंडा स्थान द्रास (लद्दाख) है। जहां तापमान \[-45{}^\circ C\]तक पहुंच जाता है।

 

ग्रीष्म ऋतु

  • भारत में सामान्यत: 15 मार्च से 15 जून का समय ग्रीष्मकाल कहलाता है।
  • 21 मार्च को सूर्य के उत्तरायण हाने के साथ ही सम्पूर्ण उत्तरी गोलार्द्ध के साथ भारत के तापमान में भी तीव्र वृद्धि होने लगती है एवं मर्इ माह में उत्तर भारत के कर्इ स्थानों का तापमान \[45{}^\circ C\] से भी अधिक हो जाता है। परिणामस्वरूप तेज गर्म हवाएं चलने लगती है जिन्हें स्थानीय भाषा में ‘लू’ कहते हैं।
  • ग्रीष्म ऋतु में स्थानीय शुष्क व गर्म पवन एवं समुद्री आर्द्र पवनों के टकराने से प्रचंड तूफानों की उत्पत्ति होती हैं, जिन्हें मानसून पूर्व चक्रवात कहते हैं।

 

भारत की परंपरागत ऋतुएं

  • भारतीय परंपरा के अनुसार वर्ष को द्विमासिक आधार में छ: ऋतुओं में बांटा जाता है।
  • उत्तरी और मध्य भारत में लोगों द्वारा अपनाए जाने वाले इस ऋतु चक्र का आधार उनका अपना अनुभव और मौसम के घटक का प्राचीन काल से चला आया ज्ञान है, लेकिन ऋतुओं की यह व्यवस्था दक्षिण भारत की ऋतुओं से मेल नहीं खाती, जहां ऋतुओं में थोड़ी विषमता पार्इ जाती है।

 

ऋतु

भारतीय कैलेंडर के अनुसार महीने

अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार महीने

बसंत

चौत्र-बैसाख

मार्च-अप्रैल

ग्रीष्म

ज्येष्ठ-आषाढ़

मर्इ-जून

वर्षा

श्रावण-भाद्र

जुलार्इ-अगस्त

शरद

आश्विन-कार्तिक

सितंबर-अक्टूबर

हेमंत

मार्गशीष-पौष

नवंबर-दिसंबर

शिशिर

माघ-फाल्गुन

जनवरी-फरवरी

 

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