नृत्य परंपरा का परिचय एवं भारत में शास्त्रीय नृत्य (नृत्यकला भाग 1)
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नृत्य परंपरा का परिचय एवं भारत में शास्त्रीय नृत्य (नृत्यकला भाग 1)
विश्लेषणात्मक अवधारणा
मान्यताओं के अनुसार हिंदू धर्मग्रंथों में भगवान ब्रह्मा द्वारा नृत्य की कल्पना की गई है। ब्रह्मा द्वारा ऋषि भरत मुनि को नाट्य शास्त्र, कला प्रदर्शन पर एक पुस्तक लिखने के लिए प्रेरित किया, जहां से नृत्य और नाटक का आरम्भ हुआ। उन्होंने ऋग्वेद, यजुर्वेद से अभय (इशारों), समवेद से गीत (संगीत) और अथर्ववेद से रस (भावनाएँ) नाट्यवेद (नृत्य के बारे में ज्ञान का शरीर) बनाने के लिए पथ्य (शब्द) का उपयोग किया। शास्त्रीय नृत्य प्राचीन हिन्दू ग्रंथों के सिद्धातों एवं तकनीकों और नृत्य के तकनीकी ग्रंथों तथा कला संबद्धता पर पूर्ण या आंशिक रूप से आधारित है। पारंपरिक ढंग से भारतीय शास्त्रीय नृत्य अभिनय के माध्यम से किया जाता रहा है। इसके विषय मुख्यत: ‘वैष्णव”; “शैव, “प्रकृति (शक्ति)” आदि होते हैं। धार्मिक रंग लिए होने की वजह से ये कला अक्सर मंदिरों में और मंदिरों के आस-पास होती रही हैं।
- अंग-प्रत्यंग एवं मनोभागों के साथ की गई गति को नृत्य कहा जाता है।
- यह सार्वभौम कला के साथ मानवीय अभिव्यक्ति का रसमय प्रदर्शन है। भरत मुनि (द्वितीय शताब्दी ईसा पूर्व) के ‘नाट्य शास्त्र‘ को भारतीय नृत्यकला का प्रथम व प्रामाणिक ग्रंथ और पंचवेद उपनाम से भी जाना है।
- भारत के संगीत नाटक अकादमी ने भारतीय शास्त्रीय नृत्य की प्रमुख शैलियां 8 बताई हैं- भरतनाट्यम (सबसे पुरानी), कुचिपुड़ी (दक्षिण पूर्वी तट); कथक (उत्तर); कथकली, मोहिनीअट्टम (दक्षिण पश्चिम तट); ओडिसी, (पूर्वी तट);
- मणिपुरी (पूर्वोत्तर); और सत्रीया नृत्य (असम, उत्तर पूर्व)। - भरत नाट्यशास्त्र में नृत्य के दो प्रकार वर्णित हैं-
- मार्गी (तांडव)
- लास्य
- भरतनाट्यम् का उद्भव और विकास तमिलनाडु और उसके आस-पास के मंदिरों से हुआ। यह एकल स्त्री नृत्य है।
- कत्थक की उत्पति भक्ति आन्दोलन के समय हुई। संस्कृत में कथा कहने वाले को “कत्थक” कहा जाता है और कत्थक नृत्य के माध्यम से उस समय रामायण और महाभारत एवं अन्य पौराणिक कहानियों का प्रदर्शन किया जाता था।
- कत्थक ही भारत का वह एकमात्र शास्त्रीय नृत्य है जिसका सम्बन्ध उत्तर भारत तथा मुस्लिम संस्कृति से रहा है।
- कत्थकली अभिनय, नृत्य और संगीत के समन्वय की परिणति है।
- प्राचीन मान्यताओं के अनुसार आंध्र प्रदेश के कुचिपुड़ी गांव में योगी सिद्धेन्द्र, जो भगवन कृष्ण के भक्त थे, ने यक्षगान के रूप में कुचीपुड़ी नृत्य शैली की कल्पना की।
- कुचिपुड़ी में स्त्री-पुरुष दोनों नर्तक भाग लेते हैं और कृष्ण-लीला की प्रस्तुति करते हैं।
- मोहिनीअट्टम का अर्थ है “जादूगरनी का नृत्य,” जो केवल महिला नर्तकियों द्वारा किया जाने वाला केरल का एकल नृत्य रूप है। इस नृत्य में भरतनाट्यम और कत्थकली दोनों के तत्त्व शामिल होते हैं।
- ओडिसी (ओड़िसा) सबसे पुराने जीवित शास्त्रीय नृत्य रूपों मे से एक माना जाता है। नाट्यशास्त्र में इसे ओद्र नृत्य कहा जाता था।
- मणिपुरी नृत्य और संगीत की एक सदियों पुरानी परंपरा है, जो धार्मिक जीवन के साथ निकट सह-अस्तित्व में विकसित हुई है। इनके पारंपरिक नृत्य में ब्रह्माण्ड, दुनिया के निर्माण, मानव शारीर और मानवीय गतिविधियों का वर्णन किया जाता है।
- “सत्रीया नृत्य” में सत्तर शब्द - सत्र से लिया गया है जिसका अर्थ दृ मठ और नृत्य का अर्थ है-तरीका। सत्रीया नृत्य जप, कथा, नृत्य व संवाद का समन्वय है।
- सत्रीया नृत्य शैली को संगीत नाटक अकादमी द्वारा 15 नवम्बर 2000 को अपने शास्त्रीय नृत्य की सूची में शामिल किया जिससे शास्त्रीय नृत्यों की संख्या बढ़कर आठ हो गई है।