भारत का वित्तीय बाजार
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भारत का वित्तीय बाजार
विश्लेषणात्मक अवधारणा
NCERT कक्षा-12 की व्यष्टि अर्थशास्त्र के अध्याय-5 (नई व पुरानी NCERT) उपभोक्ता एवं फर्म के व्यवहार को कीमत के रूप में दर्शाया जाता है। वित्तीय बाजार को ऐसी स्थिति के रूप में परिभाषित किया जाता है, जहाँ बाजार में सभी उपभोक्ताओं तथा फर्म की योजना को सुमेलित करके बाजार में उतारा जाता हैं।
वित्तीय बाजार के अंतर्गत हम कई प्रमुख वित्तीय संस्थानों के बारे में पढ़ते हैं। जैसे- इरडा- भारत सरकार के वित्त मंत्रालय का उपक्रम है
वित्तीय बाजार के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं
1. निवेशको एवं ऋणियों के मध्य आपसी समझौता करवाना।
2. वित्तीय संम्पति के लेनदेन को सुरक्षा प्रदान करना।
3. निवेशको के वित्तीय सम्पति के विक्रय को तरलता बनाना।
4. यह लेनदेनों डेव संबधित सूचना की न्यूनतम लागत सुनिश्चित करना।
भारत का वित्तीय बाजार
वित्तीय बाजार अर्थात वह मार्केटप्लेस जहाँ शेयरों, डिबेंचर, बॉन्ड, डेरिवेटिव मुद्राओं आदि वित्तीय परिसम्पत्तियों का निर्माण और व्यापार होता है।
§ वित्तीय बाजार के प्रमुख घटक
· मुद्रा बाजार
· पूँजी बाजार
· कमोडिटी बाजार
· डेरिवेटिव बाजार
· वायदा बाजार
· विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार
· मुद्रा बाजार- एक ऐसा बाजार जहाँ पर विभिन्न मौद्रिक एवं वित्तीय परिसम्पत्तियों का अल्पकाल (एक रात से एक वर्ष तक) के लिए क्रय-विक्रय किया जाता है।
मुद्रा बाजार के दो भाग हैं
संगठित/औपचारिक मुद्रा बाजार- बैंक सरकार संस्थायें
असंगठित/अनौपचारिक मुद्रा बाजार- महाजन, साहूकार, सेठ
· पूँजी बाजार- एक ऐसा बाजार जहाँ वित्तीय प्रतिभूतियां एवं परिसम्पत्तियों का मध्यम एवं दीर्घकाल (1 वर्ष से अधिक) के लिए क्रय-विक्रय किया जाता है। पूँजी बाजार को दो भागों में बाँटा जाता है
· प्राथमिक पूँजी बाजार
· द्वितीयक पूँजी बाजार
कमोडिटी बाजार- एक ऐसा बाजार जहाँ केवल प्राथमिक वस्तुओं का क्रय-विक्रय किया जाता है।
डेरिवेटव बाजार- व्युत्पन्न बाजार वह वित्तीय बाजार है, जिसमें वित्तीय अनुबंध होते हैं और जिसका मूल्य किसी अन्तनिर्हित सम्पत्ति से निकाला जाता है।
वायदा बाजार- इसमें भविष्य के लिए व्यापारिक समझौते एवं सौदे होते हैं।
विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार- यह वैश्विक विकेंद्रीकृत बाजार है।
निक्षेप निधि प्रणाली- यह एक ऐसी व्यवस्था है। जिसके अंतर्गत स्वामित्व संबंधी परिवर्तन इलेक्ट्रॉनिक बही प्रविष्ट अंतरण के द्वारा किया जाता है। इस प्रणाली में प्रतिभूतियों का भौतिक आदान-प्रदान नहीं किया जाता है।
डी-मैट खता- डी-मैट अकाउंट एक प्रकार बैंक खाता होता है, जिसमें रुपयों के स्थान पर प्रतिभूतियां अथवा बॉन्ड को इलेक्ट्रॉनिक रूप में रखा जाता है।
यदि कोई व्यक्ति शेयर बाजार में निवेश करना चाहता है तो उसका डी-मैट अकाउंट होना आवश्यक होता है।
§ क्रेडिट रेटिंग-
क्रेडिट रेटिंग की अवधारणा का विकास वर्ष 1999 में संयुक्त राज्य अमेरिका में हुआ था। क्रेडिट रेटिंग द्वारा ऋणी या उधार लेने वाले की साख क्षमता या उधार लौटाने की क्षमता का निर्धारण किया जाता है
§ भारतीय वित्तीय बाजार
(I) मुद्रा बाजार (II) पूँजी बाजार
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· माँग मुद्रा बाजार |
· प्राथमिक बाजार |
· वाणिज्यिक बिल बाजार |
· द्वितीयक बाजार |
· वाणिज्यिक प्रपत्र |
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· निक्षेप प्रमाण प्रत्र |
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· कोषागार बिल बाजार |
· मांग मुद्रा बाजार- इस बाजार में जिस दर पर लेन-देन होता है उसे मांग दर कहा जाता है। यह दर मुद्रा की मांग एवं आपूर्ति के आधार पर निर्धारित होती है।
· वाणिज्यिक बिल बाजार- इस बाजार का प्रयोग कृषि एवं औद्योगिक वस्तुओं घरेलू एवं विदेशी वस्तुओं को बाजार में लाने तथा भण्डारण के वित्तीयन के लिए किया जाता है।
· वाणिज्यिक प्रपत्र- भारत में इनकी शुरुआत वर्ष 1990 में की गई थी। यह पूँजी बाजार में सूचीबद्ध कम्पनियों द्वारा 25 लाख रुपये के गुणकों में जारी किये जाते हैं।
· निक्षेप प्रमाण पत्र- यह विशिष्ट विनिमय योग्य वित्तीय प्रपत्र होते हैंए जो बैंक द्वारा अपने पास जमा की गई मुद्रा के बदले जमाकर्ता को जारी किए जाते हैं।
· कोषागार बिल बाजार- यह अल्पकालिक प्रतिभूतियाँ है जिनके माध्यम से सरकार उधार लेती है। इनका निर्गमन सरकार के लिए भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा किया जाता है।
§ पूंजी बाजार
प्राथमिक पूँजी बाजार- यह नये निर्गमनों या अंश से संबंधित बाजार है, जहाँ कोषों की गति सदैव नई प्रतिभूतियों के रूप में होती है। द्वितीयक बाजार- इसके अंतर्गत पुरानी प्रतिभूतियों का व्यापार होता है।
द्वितीयक बाजार- इसके अंतर्गत पंजीकृत स्टॉक एक्सचेंज आते हैं।
§ म्यूचुअल फंड (पारस्परिक कोष)
म्यूचुअल फंड कंपनियाँ एक माध्यम है जो छोटे निवेशकों की बचतों को अनुभव तथा कुशलता के साथ संतुलित पोर्टफोलियो में विनियोजित करती है।
§ म्यूचुअल फंड के प्रकार
· खुला कोष
· बंद कोष
· आय कोष
· सन्तुलित
· कर बचत योजनायें
§ बीमा -
एक व्यक्ति द्वारा उसके नियंत्रण के बाहर किसी दुर्घटना से होने वाली हानि की पूर्ण अथवा आंशिक भरपाई के लिए जो प्रबंध किया जाता है, वह बीमा कहलाता है।
यह किसी आकस्मिक एवं अनिश्चित हानि से संरक्षण प्रदान करता है।
बीमा कंपनी द्वारा दो प्रकार के बीमा सेवा उपलब्ध कराई जाती है
1. जीवन बीमा 2. साधारण बीमा
जीवन बीमा दुर्घटना से मुत्यु एवं साधारण मृत्यु तक का जोखिम वहन करना है।
साधारण बीमा परिसम्पत्तियों से जुड़े जोखिम का बीमा करता है।
भारत में सर्वप्रथम बीमा कंपनी 1818 ई. में ओरिएंटल लाइफ इंश्योरेंस कंपनी ने जीवन बीमा संबंधी कार्य शुरू किया था।
भारत में जीवन बीमा कंपनियों का राष्ट्रीयकरण 19 जनवरी 1956 को हुआ।
इस समय भारत के 154 जीवन बीमा कंपनियां 16 विदेशी बीमा कंपनियां और 75 प्रोविडंड सोसायटीज कार्यरत थी।
· बीमा उद्योग की संरचना
नई बीमा योजनायें
प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना- वर्ष 2015-16 में भारत सरकार द्वारा शुरू की गई। यह योजना आकस्मिक मृत्यु-सह-अपंगता की स्थिति में सरुक्षा प्रदान करती है। इस योजना में वार्षिक प्रीमियम राशि RS. 12 प्रतिवर्ष है इसके अंतर्गत आकस्मिक मृत्यु या पूर्ण विकलांगता की स्थिति में RS. 2 लाख एवं स्थायी आंशिक विकलांगता की स्थिति में RS. 1 लाख तक की वित्तीय सुरक्षा उपलब्ध कराने का प्रावधान है।
प्रधानमंत्री जीवन ज्योति योजना- यह योजना वर्ष 2015 में शुरू की गई है, जो 15 से 50 वर्ष के आयु वर्ग के लिए है। इस योजना की वार्षिक प्रीमियम राशि RS. 330 है एवं इसमें प्रत्येक बैंक खाताधारकों को RS. 2 तक का जीवन बीमा उपलब्ध कराती है।
राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना- यह योजना श्रम एवं रोजगार मंत्रालय भारत सरकार द्वारा गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले परिवारों के लिए शुरू की गई है। इस योजना के तहत गरीबी रेखा से नीचे जीवन-यापन करने वाले परिवारों को प्रति परिवार अस्पताल में भर्ती होने के दौरान उपचार पर किये गये खर्चों की पूर्ति हेतु प्रतिवर्ष RS. 30,000 स्मार्ट कार्ड आधारित धनराशि प्रदान की जाती है।
नामांकन के लिए RS. 30 प्रति परिवार भुगतान करना पड़ता हैं।
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