मानव श्वसन तंत्र

मानव श्वसन तंत्र

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मानव श्वसन तंत्र

 

विश्लेषणात्मक अवधारणा

 

सजीव पोषक तत्वों जैसे- ग्लूकोज के विखंडन के लिए ऑक्सीजन का परोक्ष रूप से उपयोग करते हैं, जिससे विभिन्न क्रियाओं को - संपादित करने के लिए आवश्यक ऊर्जा प्राप्त होती है उपरोक्त अपचयी क्रियायों में कार्बनडाइऑक्साइड भी मुक्त होती है जो हानिकारक ‘ है। इसलिए यह आवश्यक है कि कोशिकाओं को लगातार \[{{O}_{2}}\]उपलब्ध करार्इ जाए और \[C{{O}_{2}}\]को बाहर मुक्त किया जाए। वायुमंडलीय \[{{O}_{2}}\]और कोशिकाओं में उत्पन्न \[C{{O}_{2}}\]के आदान-प्रदान (विनिमय) की इस प्रक्रिया को श्वासोच्छ्वास (Breathing) सामान्यतया श्वसन (Respiration) कहते है।

 

 

कोशिकाएं उपापचयी क्रियाओं के लिए क्सीजन का उपयोग करती हैं तथा ऊर्जा के साथ कार्बन डाइऑक्साइड जैसे हानिकारक पदार्थ भी उत्पन्न करती हैं। प्राणियों में कोशिकाओं तक ऑक्सीजन एवं वहां से कार्बन-डाइऑक्साइड को भी बाहर करने के लिए कर्इ तरह की क्रियाविधि विकसित हैं और जिनमें हमारे पास इस क्रिया के लिए एक पूर्ण विकसित श्वसन तंत्र है जिसके अंतर्गत दो फेफड़े और इनसे जुड़े वायु मार्ग है।

श्वसन का पहला चरण श्वासोच्छ्वास ( Breathing) है जिसमें वायुमंडलीय वायु कूपिकाओं (Alveolar) में ली जाती है (अंत: श्वसन- Inspiration)और कूपिकाओं से वायु को बाहर निकाला जाता है (नि:श्वसन- Expiration)। ऑक्सीजनित रहित रक्त और कूपिका के बीच \[{{O}_{2}}\]और \[C{{O}_{2}}\]का विनिमय, इन गैसों का रक्त द्वारा पूरे शरीर में परिवहन ऑक्सीजन युक्त रक्त और ऊतकों के बीच \[{{O}_{2}}\]और \[C{{O}_{2}}\]का विनिमय और कोशिकाओं द्वारा अॉक्सीजन का उपयोग (कोशिकीय श्वसन) अन्य सम्मिलित चरण हैं।

कृत्रिम श्वसन (Artificial Respiration) - पानी में डूबने पर या बिजली का करेंट लगने पर जब किसी व्यक्ति की श्वसन क्रिया रुक जाती है, तो कृत्रिम श्वासोच्छ्वास क्रिया की आवश्यकता होती है। इसके लिए प्रभावित व्यक्ति को पीठ के बल लिटाकर उसकी गर्दन के नीचे हाथ रखकर मुंह से वायु दी जाती है। यह क्रिया एक मिनट में 10-25 बार करनी होती है । जिससे व्यक्ति में पुन: श्वसन क्रिया प्रारम्भ हो सकती है।

  • श्वसन के कार्य - ऊर्जा का उत्पादन, अम्ल-क्षार सन्तुलन का नियमन,
  • ताप का नियमन, रुधिर तथा लिम्फ का लौटना।

अंत:श्वसन और नि:श्वसन के लिए वायुमंडल और कूपिका के बीच विशिष्ट अंतरापर्शक पेशियों (Specialised muscles) इंटरकोस्टल

और डायाफ्राम की सहायता से दाब प्रवणता पैदा की जाती है। इन क्रियाओं में सम्मिलित वायु के विभिन्न आयतन को स्पाइरोमीटर की सहायता से मापा जा सकता है जिनका चिकित्सीय व नैदानिक महत्व है।

श्वसन क्रिया में कुल ऊर्जा ( ATP के रूप में) की प्राप्ति - यूकैरियोटिक कोशिकाओं में ग्लाइकोलिसिस से 8 ATP ऊर्जा, पाइरुविक अम्ल के विखंडन से 6 ATP ऊर्जा तथा क्रेब्स चक्र के दौरान 24 ATP ऊर्जा का शुद्ध लाभ होता है। अत: कोशिकीय श्वसन क्रिया के माध्यम से 38 ATP ऊर्जा प्राप्त होती है।

गैसों का विनिमय - कूपिका एवं ऊतकों में \[C{{O}_{2}}\]और \[{{O}_{2}}\] का विनिमय विसरण (Diffusion) द्वारा होता है। विसरण दर \[{{O}_{2}}\] (p\[{{O}_{2}}\]) और \[C{{O}_{2}}\](p\[C{{O}_{2}}\]) के आंशिक

 

दाब प्रवणता उनकी घुलनशीलता और विसरण सतह की मोटार्इ पर निर्भर है। ये कारक हमारे शरीर में कूपिका से ऑक्सीजन का विऑक्सीजनित रक्त में तथा रक्त से ऊतकों में विसरण सुगम बनाते हैं। ये कारक \[C{{O}_{2}}\] के अर्थात ऊतकों से कूपिका में विसंरण के लिए भी अनुकूल होते हैं। ऑक्सीजन का मुख्य रूप से ऑक्सीहीमोग्लोबिन के रूप में परिवहन होता है कूपिका में जहां p\[{{O}_{2}}\]अधिक रहता है। ऑक्सीजन हीमोग्लोबिन से युग्मित हो जाती है तथा ऊतकों में जहां p\[{{O}_{2}}\]कम, p\[C{{O}_{2}}\]एवं \[{{H}^{+}}\] की सांद्रता अधिक होती है सरलता से वियोजित हो जाती है। लगभग 70 प्रतिशत कार्बन-डाइऑक्साइड का परिवहन कार्बोनिक एनहाइड्रेज एंजाइम की सहायता से बाइकार्बोनेट (H\[C{{O}_{2}}\]) के रूप में होता है। 20-25% कार्बन-डाइऑक्साइड हीमोग्लोबिन द्वारा कार्बामीनो हीमोग्लोबिन के रूप में वहन की जाती है। ऊतकों में जहां p\[C{{O}_{2}}\]उच्च और p\[{{O}_{2}}\]  निम्न होता है, वहां यह रक्त से युग्मित होता हैय जबकि कूपिका में जहां p\[C{{O}_{2}}\] निम्न और चव, उच्च रहता है यह रक्त से निष्कासित हो जाती है।

हीमोग्लोबिन (Hb) - यह एक आयरन युक्त प्रोटीन है, जिसका निर्माण आयरन युक्त वर्णक (Pigment ) हीम या हिमेटिन (Heam or heametin) तथा ग्लोबिन (Globin) प्रोटीन से हुआ है। जहां हीम एक आयरन पॉरफाइरिन तथा ग्लोबिन रंगहीन प्रोटीन होता है। ये वायु के सम्पर्क में एक अस्थायी यौगिक ऑक्सी-हीमोग्लोबिन का निर्माण करता है, जो रक्त में घुलकर शरीर के ऊतकों में पहुंचाता है तथा वहां पर ऑक्सीजन का वितरण करता है और ऑक्सीजन फेफड़ो तक लाता है

श्वसन लय (Respiratory rhythm) मस्तिष्क के मेड्यूला क्षेत्र स्थित श्वसन केंद्र द्वारा बनाए रखी जाती है। मस्तिष्क के पोंस क्षेत्र स्थित श्वास अनुचन श्वास प्रभावी केंद्र (pneumotinic) तथा एक रंसो संवेदी क्षेत्र (Chemosensitive) श्वसन क्रियाविधि को परिवर्तित कर सकते हैं।

 

श्वसन के विकार (Respiratory Disorder)

 

दमा (Asthamaa) - में श्वसनी और श्वसनिकाओं की शोथ के कारण श्वसन के समय घरघरहाट होती है तथा श्वास लेने में कठिनार्इ होती है।

श्वसनी शोथ (Bronchitis) - यह श्वसनी की शोथ है जिसके विशेष लक्षण श्वसनी में सूजन तथा जलन होना है जिससे लगातार खांसी होती है।

वातस्फीति (Emphysema) - एक चिरकालिक रोग है जिसमें कूपिका भित्ति क्षतिग्रस्त हो जाती है जिससे गैस विनिमय सतह घट जाती है। धूम्रपान इसके मुख्य कारकों में से एक है।

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