जैव अणु

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जैव अणु

 

विश्लेषणात्मक अवधारणा

 

 

 

इस प्रकृति में विविध प्रकार के जीव उपस्थित हैं और उनमें आश्चर्यजनक विभिन्नता होती है। इनकी रासायनिक संघटन व उपापचयी अभिक्रियाओं में असाधारण समानताएं देखने को मिलती हैं। जीव ऊतकों व निर्जीव द्रव्यों में पाए जाने वाले तत्वों के संघटन का यदि गुणात्मक परीक्षण किया जाए तो वे काफी समान होते हैं। फिर भी सूक्ष्म परीक्षण के बाद यह स्पष्ट है कि यदि जीव तंत्र व निर्जीव द्रव्यों की तुलना की जाए तो जीव तंत्र में कार्बन, हाइड्रोजन व ऑक्सीजन की अपेक्षाकृत अधिक बहुलता होती है।

 

 

एक जीवित तंत्र में भाग लेने वाले या उपस्थित सभी अणु जैव अणु (Biomolecules) कहलाते हैं। अकार्बनिक जैव अणुओं में जल, खनिज, गैसें एवं कार्बनिक जैव अणुओं में कार्बोहाइड्रेट, वसा, प्रोटीन, न्यूक्लिक अम्ल, विटामिन सम्मिलित हैं। विभिन्न जैव अणु रासायनिक रूप की तरह एल्डिहाइड, कीटोन तथा एरोमैटिक यौगिकों में तथा जैव-रासायनिक रूप की तरह जैसे-अमीनो अम्ल, न्यूक्लिक अम्ल तथा वसीय अम्ल में वर्गीकृत किये जाते हैं। वृहत अण (Macromolecules) का निर्माण बहुलीकरण (Polymerisation) द्वारा होता है। अपवाद-लिपिड।

कार्बोहाइड्रेट कार्बन, ऑक्सीजन तथा हाइड्रोजन के बने ऐसे योगिक होते हैं जिनमें कम से कम एक हाइड्रॉक्सिल ग्रुप\[\left( -OH \right)\] एवं एक कीटोन\[\left( -C=O \right)\]अथवा एक एल्डिहाइड समूह \[\left( -CHO \right)\]उपस्थित होता है। इसमें C, H, O का अनुपात 1 : 2 : 1 होता है।

पॉलीसैकेराइड - शर्करा की बनी लम्बी श्रृंखलाएं होती हैं जिनमें विभिन्न मोनोसैकेराइड्स संरचनात्मक खण्ड (Building block) की तरह पाये जाते हैं। इसमें मोनोसैकेराइड्स एक-दूसरे से ग्लाइकोसिडिक बन्ध द्वारा जुड़े रहते हैं तथा जिसका निर्माण दो समीप मौनोसैकेराइड के दो कार्बन परमाणुओं के मध्य निर्जलीकरण द्वारा होता है। पॉलीसैकेराइडस पौधों, कवकों व संधिपादों के बाह्य कंकाल के घटक हैं। ये ऊर्जा के संचित रूप (जैसे-स्टार्च व ग्लाइकोजेन) में भी मिलते हैं। पादपों में ऊर्जा संग्रहण स्टार्च के रूप में होता है। ग्लाइकोजन को जन्तु मण्ड (Animal starch) भी कहते हैं। यह प्राणि, जीवाणु तथा कवकों में एक संग्रहित भोज्य पदार्थ है। ग्लूकोस के अणुओं को 1-4 बीटा लिंकेज से एक साथ जोड़ने पर एक सेलुलोस अणु बनता है।

सजीवों में उपापचय आधार - वह उपापचयी प्रक्रिया (Metabolic pathway) जिसमें सरल संरचनाओं से जटिल संरचनाएं बनती हैं इन्हें जैवसंश्लेषी (biosynthetic) या उपचयी मार्ग (anabolic pathway) कहते है। वह प्रक्रिया जिसमें जटिल संरचनाओं से सरल संरचनाएं बनती हैं अपचयी मार्ग (Catabolic pathway) कहलाता है। दोनों को सम्मिलित रूप से उपापचय (Metabolism) कहते हैं। प्रकाश-संश्लेषण तथा प्रोटीन संश्लेषण उपचय (anaboilsm) के तथा श्वसन एवं पाचन अपचय (catabolism) के उदाहरण हैं। जीवित जगत में, सबसे महत्वपूर्ण ऊर्जा करेंसी का रूप ए.टी.पी. है।

वसा तथा वसा जैसे पदार्थ जो कि कार्बनिक विलायक में  घुलनशील होते हैं लिपिड कहलाते हैं। ये सरल वसीय अम्ल है। उदाहरण-पामिटिक अम्ल के तीन अणु, सरल लिपिड ग्लिसरॉल के एक अणु के साथ क्रिया करके ट्रार्इपामिटिन बनाते हैं। वसीय अम्ल संतृप्त या असंतृप्त दोनों तरह के होते हैं।

न्यूक्लिक अम्लों में, फॉस्फेट अणु एक न्यूक्लियोसाइड के \[{3}'C\] शर्करा के तथा दूसरे न्यूक्लिओसाइड के शर्करा के \[{5}'C\] से जुड़ा होता है तथा \[{3}'-{5}'\]फॉस्फोडाइएस्टर बन्ध बनाने के लिये दो जल के अणु मुक्त करता है।

अमीनो अम्लों के बहुलीकरण से प्रोटीन का निर्माण होता है। अमीनो अम्ल एक दूसरे से पेप्टाइड बन्ध द्वारा जुड़े रहते

हैं जिसमें एक अमीनो अम्ल के\[-N{{H}_{2}}COOH\] समूह तथा दूसरे अमीनो अम्ल के \[-N{{H}_{2}}\] समूह के मध्य निर्जलीकरण (\[{{H}_{2}}O\]निष्कासन) द्वारा बनता है।

प्रोटीन - ये अमीनो अम्लों से निर्मित पॉलिपेप्टाइड शृंखलाएं होती हैं इनमें 20 प्रकार के अमीनों अम्ल पाये जाते हैं जो एक-दूसरे से अमीनो तथा कॉर्बोक्सिल समूह के मध्य पेप्टाइड बन्ध द्वारा जुड़े

 

रहते हैं। इनमें दो प्रकार के अमीनो अम्ल पाये जाते हैं- सजीवों से भोजन के साथ-साथ आवश्यक अमीनो अम्ल प्राप्त होते हैं। हमारे शरीर के कच्चे पदाथोर्ं से बनने वाले अम्ल अनावश्यक अमीनो अम्ल होते हैं। जन्तुओ में सबसे अधिक पार्इ जाने वाली प्रोटीन कोलेजन है। पॉलीपेप्टाइड श्रृंखला में अमीनो अम्लों के रेखीय क्रम को प्रोटीन की प्राथमिक संरचना कहते हैं। क्रम का प्रथम अमीनो अम्ल \[N-\] टर्मिनल अमीनो अम्ल तथा पेप्टाइड शृंखला के अन्तिम अमीनो अम्ल को \[C-\]टर्मिनल अमीनो अम्ल कहते हैं।

प्रोटीन को द्वितीयक संरचना कुण्डलन (Helix) बनाती है। यह संरचना तीन प्रकार की होती है ।

(i) अल्फा-हेलिक्स - इसमें पॉलीपेप्टाइड श्रृंखला दायीं ओर से सर्पिलाकार कुण्डलित होती है।

(ii) बीटा-प्लेटेड - दो या दो से अधिक पॉलीपेप्टाइड शृंखलाएं एक-दूसरे से इन्टर मॉलीक्यूलर हाइड्रोजन बन्धों द्वारा जुड़ी रहती हैं।

(iii) कोलेजन - इसमें तीन रज्जुक या पॉलीपेप्टाइड शृंखलाएं एक-दूसरे पर हाइड्रोजन बन्धों द्वारा कुण्डलित होते हैं। तृतीयक संरचना में, लम्बी प्रोटीन की श्रृंखला अपने ऊपर ही मुड़ जाती है।

चतुर्थ संरचना में प्रत्येक पॉलीपेप्टाइड अपनी तीसरी संरचना को विकसित करती है तथा प्रोटीन की उपइकार्इ का तरह कार्य करती है। उदाहरण हीमोग्लोबिन, वयस्क मनुष्य में हीमोग्लोबिन में 4 उप-इकाइयां होती है। इनमें से दो अल्फा इकार्इ तथा दो बीटा उप-इकार्इ है।

न्यूक्लिक अम्ल - ये पॉलीन्यूक्लिओटाइड होते हैं। एक न्यूक्लिक अम्ल में तीन रासायनिक घटक पाये जाते हैं। विषमचक्रीय यौगिक (नाइट्रोजनी क्षार), पॉलीसैकेराइड (राइबोस या डीऑक्सी राइबोस शर्करा), फॉस्फेट या फॉस्फोरिक अम्ल। न्यूक्लिक अम्लों में राइबोस या डीऑक्सी राइबोस शर्करा पार्इ जाती है। वह न्यूक्लिक अम्ल जिसमें डीऑक्सीराइबोज शर्करा होती है डी. एन.ए. (deoxyribonucleic acid) तथा जिनमें राइबोस शर्करा होती है आर.एन.ए. (Ribonucleic acid) कहलाते हैं। सभी जैव अणु लगातार रूपान्तरित होकर अन्य जैव अणु बनाते हैं।

विकर (Enzymes) - यह प्रोटीन से निर्मित पदार्थ होते हैं जो किसी भी उपापचयी अभिक्रियाएं को बिना अपने अन्दर कोर्इ बदलाव लाए उत्प्रेरित करने में सक्षम होते हैं । ये जैव उत्प्रेरक होते हैं।

राइबोजाइम - जो न्यूक्लिक अम्ल एंजाइम की तरह व्यवहार करते हैं। अकार्बनिक उत्प्रेरक उच्च दाब व ताप पर अधिक प्रभावशाली होते हैं। जबकि कार्बनिक उत्प्रेरक (एंजाइम) उच्च ताप पर नष्ट हो जाते हैं। ताप स्थार्इत्व (Thermal stability) एंजाइम का मुख्य गुण है जो इसे तापस्नेही जीवों से पृथक् करता है।

एंजाइम सक्रियता को प्रभावित करने वाले कारक

ताप - एंजाइम सामान्य ताप पर ही सक्रिय होते हैं। वह ताप जिस पर एंजाइम अधिक सक्रिय होते हैं वह अनुकूलन ताप (Optimum Temperature) कहलाता है। इस ताप के घटने या बढ़ने से एंजाइम सक्रियता कम होती है।

PH - प्रत्येक एंजाइम एक विशिष्ट PH पर ही सक्रिय होता है। कर्इ अन्तराकोशिकीय एंजाइम उदासीन PH पर कार्य करते हैं।।

क्रियाधार की सान्द्रता (concentration of substrate) - यदि एंजाइम की मात्रा अधिक हो तो क्रियाधार की सान्द्रता बढ़ाने से अभिक्रिया की दर तेज हो जाती है।

प्रतियोगी संदमक (competitve Inhibitors) - क्रियाधार अप्राकृतिक अनुरूप पदार्थ एन्जाइम के सक्रिय स्थल के लिये प्रतिस्पर्धा (Competition) करते हैं। इनकी उपस्थिति से एन्जाइम सक्रियता में कमी आती है। इन पदाथोर्ं को प्रतियोगी संदमक कहते हैं।

एंजाइम का वर्गीकरण

ऑक्सीडोरिडक्टेज - यह दो क्रियाधारों के मध्य उत्प्रेरण का कार्य करता है।

ट्रांस्फेरेज - यह एमीनो, कीटो या फॉस्फेट समूहों का स्थानान्तरण एक सबस्ट्रेट से दूसरे सबस्ट्रेट में करने को उत्प्रेरित करता है।

हाइड्रोलेजेज - यह पेप्टाइड, एस्टर के जल अपघटन को उत्प्रेरित करता है।

लाइगेज (Ligase) - दो यौगिकों को जोड़ने में उत्प्रेरित करता है।

लायेजेज (Lyases) - यह क्रियाधार से बिना जलीय अपघटन के समूहों को हटाता है।

आइसोमरेज - यौगिक के अणुओं में परमाणुओं के विन्यास को बदल देते हैं।

एंजाइम के अप्रोटीन (Non- protein ) घटक को सहकारक (co-factor) कहते हैं। जो एंजाइम को उत्प्रेरण के लिये सक्रिय करते हैं। एंजाइम का प्रोटीन वाला भाग एपोएन्जाइम कहलाता है। को-एन्जाइम का आवश्यक रासायनिक घटक विटामिन होते है


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