पादप पोषण वृद्धि एवं परिवर्द्धन

पादप पोषण वृद्धि एवं परिवर्द्धन

Category :

पादप पोषण वृद्धि एवं परिवर्द्धन

 

विश्लेषणात्मक अवधारणा

 

पौधे विभिन्न अकार्बनिक तत्वों (आयन) एवं लवणों को अपने आस-पास के पर्यावरण से, विशेषकर, हवा, पानी तथा मृदा से लेते हैं। इन पोषकों की गति पर्यावरण से पौधों में, तथा एक पौधे की कोशिका से दूसरे पौधे की कोशिका तक, आवश्यक रूप से झिल्ली के आर-पार परिवहन के द्वारा होती है। कोशिका झिल्ली के आर-पार परिवहन, विसरण, सुसाध्य परिवहन या सक्रिय परिवहन के द्वारा. होता है। पादप. अपना अकार्बनिक पोषण वायु, जल और मृदा से प्राप्त करते हैं। पौधे कर्इ प्रकार के खनिज तत्वों का अवशोषण करते हैं। पौधों को उनके द्वारा अवशोषित सभी प्रकार के खनिज तत्वों की अनिवार्यता नहीं होती लेकिन उनमे में से कुछ तत्व पादपों की साधारण वृद्धि एवं परिवर्धन के लिए अनिवार्य तथा आवश्यक होते हैं। किसी भी जीवित प्राणी के लिए वृद्धि एक अत्यंत उत्कृष्ट घटना है। यह एक शरीर परिवर्तन, बढ़ोत्तरी तथा मापदंड में प्रकट होने वाली प्रक्रिया है जैसे कि आकार, क्षेत्रफलं, लंबार्इ, ऊंचार्इ, आयतन, कोशिका संख्या आदि। इसमें बढ़ा हुआ जीव द्रव्य पदार्थ शामिल है। पौधों में मेरिस्टेम वृद्धि का उपयुक्त स्थान होता हैं।

 

 

पादप विभिन्न पदाथोर्ं का जैसे खनिज, जल, हॉर्मोन तथा कम दूरी में कार्बनिक विलेय या लम्बी दूरी तक जैसे जल जड़ों से तने के शीर्ष तक परिवहन करता है। लम्बी दूरी परिवहन संवहन ऊतकों जैसे जाइलम तथा फ्लोएम द्वारा होता है जिसे प्रवाह परिवहन कहते हैं जो समूह प्रवाह द्वारा होता है। ट्रान्सलोकेशन की दिशा जल के सन्दर्भ में एकदिशीय होती है।

सरल विसरण (Simple Diffusion) - विसरण अक्रिय तथा धीमी गति से सा (Concentration gradient) के अनुसार पारगम्य झिल्ली द्वारा होता है। कोर्इ ऊर्जा खर्च नहीं होती। यह तरल तथा गैसों दोनों में पार्इ जाती है। विसरण दर सान्द्रता प्रवणता, कला की पारगम्यता, तापमान तथा दाब द्वारा प्रभावित होती है।

सहज विसरण (Facilliatated Diffusion) - लिपिड विलेय कण कोशिका . कला से आसानी से गुजर जाते हैं। परन्तु जलस्नेही विलेय गतिशीलता प्रयासरत् होती है। सहज विसरण के लिए कला में एक्वापोरिन (Aquaporin) या जल वर्णात्मक मार्ग नालियां ( Water Selective Channels) पाये जाते हैं। एक्वापोरिन कला में पाये जाने वाले प्रोटीन हैं जो बिना ऊर्जा का उपयोग करके जल विलेय पदाथोर्ं का निष्क्रिय परिवहन करते हैं।

सक्रिय परिवहन (Active Transport) - यह अणुओं को सान्द्रता प्रवणता (Concentration gradient) के विपरीत गति करने में ऊर्जा का उपयोग करता है। यह कला प्रोटीन द्वारा सम्पन्न होता है। सक्रिय परिवहन में गतिशील वाहक प्रोटीन होते हैं जिन्हें पम्प (Pump) कहते हैं। यह पम्प पदाथोर्ं को कम सान्द्रता से उच्च सान्द्रता की तरफ प्रवाहित करता है। वाहक प्रोटीन विशेष पदाथोर्ं को ही कला के आर-पार जाने देते हैं।

पादप-जल सम्बन्ध - पादपों के साथ-साथ सभी जीवित जीवों ऋऋ में शरीर क्रिया गतिविधियों के लिये जल की आवश्यकता होती है।

यह बहुत सारी पदाथोर्ं को घुलने का एक माध्यम प्रदान करता है। कोशिकाओं के जीवद्रव्यों में जल होता है जिसमें विभिन्न प्रकार के अणु विलीन निलम्बित होते हैं। स्थलीय पौधे जल अवशोषित करके जल को वाष्पोत्सर्जन प्रक्रिया द्वारा भाप के रूप में मुक्त करते हैं।

जीवद्रव्य सकुंचन (Plasmolysis) -यह क्रिया जीवित पादप कोशिका तथा बाह्य अतिपरासरारी (Hypertonic) विलयन के बीच होती है। इस क्रिया में जीवद्रव्य कला तथा टोनोप्लास्ट दोनों ही अर्द्धपारगम्य, झिल्ली या विभेदी पारगम्य झिल्ली का कार्य करते हैं। जीवद्रव्य सकुंचन एक बहि:परासरण क्रिया है जिसमें जल, रिक्तिका-रस से निकलकर बाहर अतिपरासरी विलयन में आता है। जीवद्रव्य सकुंचन के कारण कोशिकाएं सदैव श्लथ (Flaccid) दशा में आती हैं। जीवद्रव्य सकुंचन के कारण कभी-कभी जीवाणु एवं कवकों आदि की मृत्यु भी हो जाती है।

अन्त:शोषण (Imbibition) - यह जीवित तथा मृत कोशिकाओं में होने वाली क्रिया है। इसमें सामान्य सतह से जलवाष्प या जल का अवशोषण जल विभव प्रवणता के कारण होता है। इसमें अवशोषक (imbibiant) तथा माध्यम के अणुओं के मध्य आकर्षण होना आवश्यक है!

पौधों द्वारा जल का अवशोषण - मूल रोम विसरण द्वारा जल तथा खनिज विलेयों का अवशोषण करते हैं। अवशोषित जल गहरे स्तरों में दो पथों द्वारा पहुंचता हैं- एपोप्लास्ट पथ तथा सिमप्लास्ट पथ।

रसारोहण (Ascent of sap) - मुख्य बल सिद्धान्त-जल की जड़ों से लेकर तने की शाखाओं के शीषोर्ं एवं पत्तियों तक के ऊर्ध्वाधर गति को रसारोहण कहते हैं। वाइटल फोर्स नामक थ्योरी जे. सी. बोस ने वर्ष 1923 में प्रतिपादित की। शाकीय पौधों में द्रवित अवस्था में पत्ती के किनारों तथा शीर्ष पर जल की बूंदों के रूप में क्षति होती है जिसे बिन्दुस्त्राव (Guttation) कहते हैं।

 

संसजन तनाव सिद्धान्त(Cohesion Tension theory) - यह डिक्सॉन तथा जॉली ने 1894 में प्रतिपादित किया। इस सिद्धान्त के अनुसार, जल पत्तियों में वाष्पोत्सर्जन वाहक बल (Transpiration pull) द्वारा ऊपर खिंचता है। जल के अणु आपस में एक दूसरे से संसजन बल द्वारा जुड़े रहते हैं। वाहिकाओं तथा वाहिनिकाओं में जल के अणु आसंजन बल के कारण नहीं टूटते हैं। आसंजन बल जल के अणु तथा भित्ति के मध्य पाया जाता है।

अनिवार्य तत्वों का चार वगोर्ं में वर्गीकरण

(i) कोशिकाओं के संरचनात्मक तत्व तथा जैव अणुओं के तत्व या घटक; उदाहरण-कार्बन, हाइड्रोजन, अॉक्सीजन, नाइट्रोजन।

(ii) पौधों में ऊर्जा सम्बन्धी यौगिकों के घटक। उदाहरण-क्लोरोफिल में मैग्नीशियम तथा ATP में फॉस्फोरस।

(iii) एंजाइम की सक्रियता या निरोधकता। उदाहरण-ऐल्कोहॉल

डीहाइड्रोजिनेस की सक्रियता के लिए \[Z{{n}^{2+}}\],\[M{{g}^{2+}}\] एक सक्रिय तथा निरोध आदि।

(iv)  कोशिका के परासरणीय विभव (Osmotic Potential) के बदलने वाले तत्व उदाहरण-रन्ध्रों के खुलने व बन्द होने में  पोटैशियम की मुख्य भूमिका।

  • पौधों में विकास दो प्रक्रियाओं का योग है- वृद्धि तथा विभेदन। पौधों में वृद्धि तथा विकास को रोकने के लिये बाह्य तथा आन्तरिक कारक होते हैं। वृद्धि शुष्क भार, माप में बढ़ोत्तरी, जीवद्रव्य या कोशिका के आकार आयतन में बढ़त तथा अंग या जीवों की बढ़त होती है। यह जीवों में आन्तरिक होती है।
  • पौधों में वृद्धि एक मात्रात्मक घटना है जो समय के सापेक्ष मापी जाती है। पादप वृद्धि अनियत होती है क्योंकि पादप में जीवन भर असीमित वृद्धि होती है। पादप शरीर में कुछ विशेष स्थानों पर विभज्योतक ऊतक होते हैं।

वह पादप वृद्धि जिसमें विभज्योतक के कारण नर्इ कोशिकायें पादप शरीर में जुड़ती रहती हैं वह वृद्धि का खुला रूप कहलाता है। प्राथमिक वृद्धि जड़ शीर्ष विभज्योतक तथा प्ररोह शीर्ष विभोज्योतक पर निर्भर करती है तथा अक्ष के चारों ओर विस्तार करती है। पर्वसन्धि पर उपस्थित अन्तर्वेशी विभज्योतक पौधों में नर्इ शाखाओं या कलिका को जन्म देती हैं। पौधों में द्वितीयक वृद्धि पार्श्व विभज्योतक द्वारा होते हैं, जैसे- संवहन कैम्बियम तथा कॉर्क कैम्बियम।

पादप वृद्धि की परिस्थितियां - वृद्धि की आवश्यक अवस्था के अन्तर्गत जल, ऑक्सीजन तथा आवश्यक तत्व आते हैं। जल की आवश्यकता कोशिका की स्फीति बनाये रखने में तथा कोशिका दीर्घीकरण के लिये होती है। वृद्धि के लिये सामान्य तापक्रम एवं अन्य पर्यावरणीय परिस्थितियां आवश्यक अवस्था होती हैं।

शीर्ष विभज्योतक, कैम्बियम आदि में बनने वाली कोशिकाएं शुरुआत में समरूप होती हैं परन्तु बाद में विभेदीकरण के कारण विभिन्न रूपों में बदल जाती हैं। यह परिपक्वन प्रक्रिया विभेदन (Diffrerentiation) कहलाती है। जीवित विभेदित स्थायी कोशिकाएं जिनमें कोशिका विभाजन की क्षमता नहीं होती, उनमें से कुछ कोशिकाओं में पुन: विभाजन की क्षमता उत्पन्न हो जाती है। इस प्रक्रिया को निर्विभेदन (Differentiation) कहते हैं।

निर्विभेदित कोशिकाओं या ऊतकों से बनी कोशिकाएं अपनी विभाजन क्षमता समाप्त कर देती हैं और विशिष्ट कार्य करने के लिए रूपान्तरित हो जाती हैं। इस प्रक्रिया को पुनर्विभेदन (redifferentiation) कहते हैं।

परिवर्धन (Development) - परिवर्धन वह प्रक्रिया है जिसके अन्तर्गत एक जीव के जीवन चक्र में आने वाले वे सारे बदलाव शामिल होते हैं, जो बीजाकुरण तथा जरावस्था के मध्य आते हैं।

वृद्धि का मापन - कोशिकीय स्तर पर वृद्धि मुख्यत: जीवद्रव्य मात्रा में वर्धन का परिणाम है। वृद्धि दर मापन के कुछ मापदण्ड हैं जैसे ताजे भार में वृद्धि, शुष्क भार में वृद्धि, लम्बार्इ, क्षेत्रफल, आयतन तथा कोशिका संख्या में वृद्धि आदि।

विभज्योतक प्रावस्था - इसे कोशिका विभाजन तथा कोशिका निर्माण की प्रावस्था भी कहते हैं। यह मूल शीर्ष, प्ररोह शीर्ष तथा अन्य स्थानों पर जहां विभज्योतक ऊतक हो में होती है। इन कोशिकाओं में बड़े केन्द्रक तथा जीवद्रव्य पाया जाता है। इनकी कोशा भित्ति पतली तथा इनमें प्लाज्मोडेस्मेटल सम्पर्क होते है।

दीर्घीकरण प्रावस्था -विभज्योतक क्षेत्र में बनी नर्इ कोशिकाओं का दीर्घाकरण होता हैं। इनमें बढ़ी हुर्इ रिक्तिकाएं तथा नर्इ कोशिका भित्ति निक्षेप इसके दो लक्षण हैं।

परिपक्व प्रावस्था - दीर्घ कोशिकाएं संरचनात्मक तथा क्रियाविधि विभेदन के आधार पर यह विशेष या निश्चित कार्य के लिये विकसित होती है।

 

Other Topics


You need to login to perform this action.
You will be redirected in 3 sec spinner