भारत में लघु चित्रकला (चित्रकला भाग 3)

भारत में लघु चित्रकला (चित्रकला भाग 3)

Category :

भारत में लघु चित्रकला (चित्रकला भाग 3)

 

विश्लेषणात्मक अवधारणा

भारत की समृद्ध कला परम्परा की एक प्राचीनतम विधा लघुचित्र है। अजंता के भित्तिचित्रों के पश्चात चित्रकला का विकास अपभ्रंश शैली के अंतर्गत हुआ। इसी अनुक्रम में 10वीं शताब्दी में ताडपत्रों पर हस्तलिखित धार्मिक या पौराणिक कथाओं की सचित्र ग्रंथों के शुरुआत के साथ ही लघुचित्रों की भी शुरुआत हुई। ताडपत्रों पर रचित सबसे प्राचीन ग्रंथ “अधिनियुक्ति वृत्ति” मानी जाती है जिसमें कामदेव, श्रीलक्ष्मी पूर्णघट के चित्र पाये जाते है। भारत की लघुचित्र परम्पराओं में मुगल, राजस्थानी, पहाड़ी व दक्षिणी शैली प्रमुख हैं। 14वीं सदी के मध्य मुगलों के उदय के साथ लघुचित्रों की विशिष्ट शैली का प्रचलन हुआ। मुगल लघुचित्रों में दरबारी दृश्य, शिकार चित्र, पड़े-पौधे व पशु-पक्षी आदि शामिल थे। मुगलकाल में हम्मजनामा, बाबरनामा और अकबरनामा को भी लघु चित्रकलाओं से सुसज्जित किया गया था। इसी दौरान राजस्थान तथा पहाड़ी कला शैलियों ने भी लघुचित्र को विकसित किया। राजस्थानी व पहाड़ी लघुचित्रों के विषयवस्तु प्रकृति व बदलती ऋतुयें, प्रेम के विभिन्न भाव, पौराणिक व धार्मिक कथायें आदि है। इन सभी लघुचित्र रचनाओं में सूक्ष्मता के साथ विविधता, कलात्मकता व सम्प्रेषित भाव दर्शकों को कलाकार की कल्पना से जोड़ देते है।

 

  • लघु चित्र छोटे आकार के चित्र होते हैं जिन्हें सामान्य तौर पर कपड़े या कागज पर पानी के रंग से बनाया जाता है।
  • अजंता के भित्तिचित्रों के पश्चात चित्रकला का विकास अपभ्रंश शैली के अंतर्गत हुआ। इसी अनुक्रम में 10वीं शताब्दी में ताड़पत्रों पर हस्तलिखित धार्मिक या पौराणिक कथाओं की सचित्र ग्रंथो के शुरुआत के साथ ही लघुचित्रों की भी शुरुआत हुई।
  • पूर्व के लघुचित्र ताड़ के पत्तों या लकड़ी पर बनाये गये थे।
  • पश्चिम भारत में पाये जाने वाले कुछ लघुचित्र अधिक सुन्दर होते थे जिनका प्रयोग जैन ग्रंथों के वर्णन में किया गया है।
  • ताड़पत्रों पर रचित सबसे प्राचीन ग्रंथ “अधिनियुक्ति वृत्ति” मानी जाती है जिसमें कामदेव, श्रीलक्ष्मी पूर्णघट के चित्र पाये जाते है।
  • भारत में लघु चित्रकला के सबसे प्राचीन उदाहरण पूर्व भारत के पाल वंश के अधीन निष्पादित बौद्ध धार्मिक पाठों और ग्यारहवीं-बारहवीं शताब्दी ईसवी सन् के दौरान पश्चिम भारत में निष्पादित जैन पाठों के सचित्र उदाहरणों के रूप में विद्यमान हैं।
  • पालकालीन चित्रकला को बंगाल के पाल शासकों ने प्रश्रय दिया, जो बौद्ध धर्म के संरक्षक थे।
  • इस शैली के चित्र ताड़पत्र पर बनाए जाते थे जिसमें बीचों-बीच महात्मा बुद्ध के जीवन से संबंधित चित्र सजाए जाते थे।
  • इन चित्रों में बौद्ध धर्म की शाखा तंत्रयान का प्रभाव भी दिखाई देता है।
  • चित्रकला की पश्चिम भारतीय शैली गुजरात, राजस्थान और मालवा क्षेत्र में प्रचलित थी।
  • पश्चिमी भारत में कलात्मक क्रियाकलापों का प्रेरक बल जैनवाद था।
  • 15वीं शताब्दी के दौरान चित्रकला की फारसी शैली ने पश्चिम भारतीय शैली को प्रभावित करना शुरू कर दिया था।
  • पांडुलिपियों में गहरे नीले और सुनहरे रंगों का प्रयोग पश्चिम भारतीय शैली की विशेषता थी।
  • इस समूह में चौरपंचाशिका चित्रकला की शुद्ध स्वदेशी शैली (मेवाड़ से) है, जबकि ‘लाउरचंदा’ (मुल्ला दाउद की रचना) में फारसी और भारतीय शैलियों का मिश्रण है।
  • चित्रकला की मुगल शैली की शुरुआत सम्राट अकबर के शासनकाल में 1560 ईसवी में हुई।
  • बाबर के समकालीन प्रसिद्ध ईरानी चित्रकार बेहजाद था।
  • हुमायूं के दरबार में दो प्रसिद्ध ईरानी चित्रकार थे- अब्दुस्समद और मीर सैयद अली।
  • अकबरकालीन चित्रकला में प्रयुक्त रंग चमकदार हैं।
  • अकबरकालीन प्रमुख चित्र हैं- हमजानामा, अनवर-सुहावली, गुलिस्तां-ए-दीवान, आमिर शाही की दीवान, रज्मनामा (महाभारत का फारसी अनुवाद), अकबरनामा आदि।
  • अकबरकालीन प्रसिद्ध चित्रकार हैं- भीम गुजराती, धर्मदास, मधु, सूरदास, दसवंत, मिसकिन, नन्हा, बसावन, मनोहर, दौलत, मंसूर, केसू, लाल, शंकर, गोवर्धन और इनायत।
  • जहांगीरकालीन के काल में प्रकृति का अधिक सजीव और बारीक चित्रण किया गया है। पशु, पक्षी, फूलों, वनस्पतियों का बेहद सुंदर चित्रांकन किया गया है।
  • अकारिजा, आबुल हसन, मंसूर, बिशन दास, मनोहर, गोवर्धन, बालचंद, दौलत, मुखलिस, भीम और इनायत जहांगीर के दरबार के प्रसिद्ध चित्रकार थे।
  • शाहजहां के अधीन मुगल चित्रकला ने अपने अच्छे स्तर को बनाए रखा तथा इस गरिमा को प्राप्त की।
  • चौतरमन, अनुप चत्तर, मोहम्मद नादिर, इनायत और मकर शाहजहांकालीन प्रसिद्ध चित्रकार थे।
  • औरंगजेब के काल में मुगल चित्रकला में गिरावट आई।
  • दक्कन में चित्रकला के प्रसिद्ध केन्द्र अहमदनगर, बीजापुर और गोलकुंडा थे। प्रारंभ में यहां चित्रकला का विकास मुगल शैली से स्वतंत्र रूप में हुआ, किंतु बाद में में इस पर मुगल शैली का अधिकाधिक प्रभाव पड़ा।
  • बीजापुर में अली आदिल शाह और इब्राहिम द्वितीय ने चित्रकला को संरक्षण प्रदान किया।
  • विज्ञान के सितारे (’नजूम-अल-उलूम’) नामक विश्व कोश को अली आदिल शाह प्रथम के शासनकाल में सचित्र किया गया।
  • मोहम्मद कुली कुतुब शाह के समय चित्रांकित पांच आकर्षक चित्रकलाओं का एक समूह गोलकुंडा के लघु चित्रों में विशिष्ट है।
  • ‘मैना पक्षी के साथ महिला’, सूफी कवि की सचित्र ‘पांडुलिपि’ गोलकुंडा चित्रकला के उत्कृष्ट उदाहरण हैं।
  • मालवा शैली में गहरे रंगों का प्रयोग हुआ है तथा नीले रंग का प्रयोग बढ़ गया है।
  • मालवा शैली के प्रमुख उदाहरण रसिक प्रिया की श्रृंखला, ‘अमरूशतक’ तथा माधोदास द्वारा चित्रित की गई रागमाला की
  • श्रंखला आदि हैं।
  • मेवाड़ शैली के प्रमुख केन्द्र उदयपुर, नाथद्वारा और चावंड आदि हैं। जहां चित्रकारों ने चमकदार लाल, पीले और केसरिया रंगों का बहुतायत से प्रयोग किया है।
  • हिमालय की घाटी में, हिमाचल प्रदेश, पंजाब और जम्मू के पहाड़ी इलाकों में विकसित हुई चित्रकला को पहाड़ी चित्रकला कहा जाता है।
  • कुल्लू-मण्डी क्षेत्र में चित्रकला की एक लोक-शैली है।
  • इस शैली की विशेषता मजबूत एवं प्रभावशाली आरेखन और गाढ़े तथा हल्के रंगों का प्रयोग करना है।
  • कांगड़ा शैली का विकास 18वीं शताब्दी के चतुर्थांश में हुआ।
  • इसमें गुलेर शैली के आरेखन की कोमलता और प्रकृतिवाद की गुणवत्ता निहित है।
  • बशोली शैली चित्रकला का केन्द्र जम्मू-कश्मीर के कठुआ जिले की बशोली तहसील में है।

 

Other Topics


You need to login to perform this action.
You will be redirected in 3 sec spinner