भौतिक पदार्थों के सामान्य गुण

भौतिक पदार्थों के सामान्य गुण

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भौतिक पदार्थो के सामान्य गुण

 

विश्लेषणात्मक अवधारणा

                इस अध्याय के अन्तर्गत हम भौतिक पदार्थों के सामान्य गुण उनकी संरचना तथा आकार आदि के प्रसार, व्यवहार आदि का अध्ययन करेंगे। वस्तु का वह गुण जिसके कारण वह वस्तु पर लगाये गये विरूपक बल को हटाने या लगाने पर अपनी पूर्व अवस्था को प्राप्त कर लेती है, अथवा प्राप्त करने का प्रयास करती है प्रत्यास्थता कहलाती है। हुक के नियम, प्रत्यास्थता गुणांक, वस्तु की श्यानता, वायुमण्डलीय तथा बरनौली की प्रमेय के अनुप्रयोग का अध्ययन हम इस अध्याय के अन्तर्गत करेंगे।

 

                द्रवस्थैतिकी (Hydrostatics):  भौतिकी विज्ञान की वह शाखा जो द्रवों के सामान्य गुण-धर्मों तथा द्रवों के अंदर बल, दाब तथा तरल पदार्थों के बलों के परिणामस्वरूप उनके संतुलन की अवस्था का अध्ययन करती है द्रव स्थैतिकी कहलाती है।

                ऐसी वस्तुएं जो स्थान घेरती है और जिनमें द्रव्यमान होता है तथा जिनका अनुभव हम अपनी ज्ञानेन्द्रियों द्वारा कर सकते हैं द्रव्य कहलाता है, जैसे- जल, किताबें, वायु, लकड़ी आदि।

            पदार्थ की अवस्थाएं

            (1) ठोस (2) द्रव (3) गैस (4) प्लाज्मा (5) बोस-आइस्टीन-संघनी अवस्था है। ये द्रव्य या पदार्थ की अवस्थाएं होती है।

 

                द्रव्य के सामान्य गुण-धर्म

            (1) प्रत्यास्थता (2) अवस्था परिवर्तन (3) प्लवन (4) दाब (5)पृष्ठ तनाव (6) केशिकात्व (7) श्यानता ठोस

 

                द्रव तथा गैस की संरचना

                ठोस- आयतन और आकर दोनों निश्चित होता है पदार्थों के कण ठोस अवस्था में अत्यन्त कड़ाई से बंधे होते है। और इनके बीच

                अंतर-अणुक खाली स्थान अत्यन्त कम होता है।

            द्रव- केवल आयतन निश्चित होता है। और इनके बीच अन्तरपरमाणुक स्थान भी ठोस की अपेक्षा काफी अधिक होता है।

                गैस- इनका आकार और आयतन दोनों अनिश्चित होता है।

                विकृति (strain)- जब किसी वस्तु पर बाह्य बल लगाया जाता है तो उसके आकार या रूप में अथवा दोनों में परिवर्तन हो जाता है इसी को हम वस्तु की विकृति कहते हैं। अत: वस्तु के आकार अथवा रूप में विरूपक बल के कारण उत्पन्न होने वाले भिन्नात्मक परिवर्तन को वस्तु में उत्पन्न विकृति कहा जाता है।

           

 

            विकृति एक विमा विहीन राशि है। विकृति तीन प्रकार की होती है।

                (i) अनुद्धैर्य विकृति (ii) आयतन विकृति (iii) अपरूपण विकृति

               

                अनुदैर्य विकृति (Longitudinal Strain): बाह्य बल के प्रभाव में किसी वस्तु की एकांक लम्बाई में उत्पन्न परिवर्तन को अनुद्धैर्य विकृति कहते हैं।

 

                आयतन विकृति (Volume Strain): बाह्य बल के कारण किसी वस्तु के एकांक आयतन में उत्पन्न परिवर्तन को आयतन विकृति कहते हैं।

 

                अपरूपण विकृति (Shape Strain): यदि वस्तु की सतह के समान्तर बल लगाया जाए जिसके कारण वस्तु की आकृति में परिवर्तन होता है। अपरूपण विकृति कहलाती है।

                प्रतिबल (Stress): साम्यावस्था में वस्तु के एकांक अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल पर कार्य करने वाले आंतरिक प्रति-क्रियात्मक बल को प्रतिबल कहते है।

                प्रतिबल वस्तु के अनुप्रस्थ काट के एकांक क्षेत्रफल पर लग रहे बल के बराबर होता है

               

               

                प्रतिबल का मात्रक- न्यूटन/मीटर2

            विमीय सूत्र- \[\left[ M{{L}^{-1}}\text{ }{{T}^{-2}} \right]\] होता है

 

                हुक का नियम (Hook's Law): किसी पदार्थ की प्रत्यास्थता की सीमा के अंदर, किसी वस्तु में उत्पन्न विकृति उस पर आरोपित प्रतिबल के अनुक्रमानुपाती होता है।

                प्रतिबल \[\propto \]विकृति

            प्रतिबल = नियतांक (E) \[\times \] विकृति

               

                नियतांक (E) को प्रत्यास्थता गुणांक कहते है।

 

            प्रत्यास्थता गुणांक (Modulus of Elasticity)

            प्रत्यास्थता सीमा के अंतर्गत प्रतिबल तथा विकृति के अनुपात को पदार्थ का प्रत्यास्थता गुणांक कहते है।

            मात्रक- न्यूटन / मीटर2, विमा- \[\left[ M{{L}^{-1}}\text{ }{{T}^{-2}} \right]\] होती है।

 

                प्रत्यास्थता गुणांक की निर्भरता

1.   इसका मान पिंड के पदार्थ की प्रकृति तथा उसके विकृत करने की विधा पर निर्भर करता है।

2.   इसका मान पिंड के ताप पर निर्भर करता है।

3.   इसका मान प्रतिबल तथा विकृति पर निर्भर करता है।

 

            संपीड्यता (Compressibility)- किसी पदार्थ के आयतनात्मक प्रत्यास्थता गुणांक के व्युत्क्रम को उस पदार्थ की संपीड्यता कहते हैं।

                \[[\beta =\frac{\Delta V}{P.V}]\]

                संपीड्यता यह प्रदर्शित करती है कि उस पदार्थ को कितनी आसानी से दबाकर उसके आयतन में कमी की जा सकती है।

            मात्रक- मीटर2/ न्यूटन

                विमा- \[\left[ {{M}^{-1}}L\text{ }{{T}^{-2}} \right]\]

 

                पॉयसन अनुपात त्रिज्या में परिवर्तन तथा प्रारंभिक त्रिज्या के अनुपात को पार्श्विक विकृति कहते है।

                लम्बाई में परिवर्तन तथा प्रारंभिक लम्बाई के अनुपात को अनुद्धैर्य विकृति कहते है, और पार्श्विक विकृति अनुद्धैर्य विकृति का अनुपात पॉयसन अनुपात कहलाता है।

               

                ऋणात्मक चिन्ह यह दर्शाता है कि तार खींचने पर उसकी त्रिज्या घट जाती है। यह विमाहीन एवं मात्रक विहीन होता है।

 

            Y, K, ŋ तथा σ में संबंध

            \[\sigma =\frac{3K-2\eta }{6K+2\eta }\]

                किसी भी व्यवहार के लिए पदार्थ के को (\[\sigma \]) मान 0.5 से कम होता है Y का मान सदैव \[\eta \] से अधिक होता है।

 

            प्रत्यास्थता के अनुप्रयोग या व्यवहारिक उदाहरण

                क्रेनों की धात्विक रस्सियां, धात्विक छड़ में अवगमन, पर्वत की अधिकतम ऊंचाई का अनुमान लगाना, छोटी शाफ्ट का उपयोग, साइकिल तथा रिक्शा के फ्रेम खोखले बनाये जाते हैं।

 

                तरल पदार्थ में यांत्रिक गुण-धर्म (Mechanical Properties of Liquid)

                तरल दाब पर गुरुत्व का प्रभाव

            यदि गुरुत्व प्रभाव को शून्य मान लिया जाए तो संतुलन की अवस्था में द्रव के भीतर प्रत्येक बिंदु पर दाब समान होता है।

                गुरुत्व बल को प्रभावी मान लेने पर गहराई के साथ द्रव-दाब बढ़ता जाता है परन्तु समान गहराई पर द्रव का दाब तब भी समान रहता है। गुरुत्व की अनुपस्थिति में द्रव भीतर एक ही तल से सभी बिन्दुओं पर दाब समान होता है।

 

                स्टोक का नियम एवं सीमांत वेग

                जब किसी गोलाकार सूक्ष्म पिंड को द्रव में गिराया जाता है तब पिंड द्रव की परतों को अपने साथ नीचे धकेलता है परन्तु पिंड से दूर स्थित द्रव की परतें विराम अवस्था में रहती है। इस प्रकार द्रव की परतों के मध्य आपेक्षित गति उत्पन्न हो जाती है जिससे पिंड की गति अवमंदित होने का प्रयास होता है। अतः एक स्थिति ऐसी भी प्राप्त होती है। जब पिंड नियत वेग से गति करता है। यह अंतिम वेग या - सीमान्त वेग (Terminal Velocity) कहलाता है।

            स्टोक के अनुसार यदि त्रिज्या का एक छोटा गोला अंनंत विस्तार के पूर्णतः समांग तरल में सीमान्त वेग V से गति कर रहा हो तो गोले पर श्यान बल F = 6\[\Pi \]r n v होता है। जो सदैव ठोस की गति के विपरीत होता है।

 

            धारा रेखीय प्रवाह (Streamline Flow)

                जब कोई द्रव इस प्रकार बहता है कि किसी बिंदु से गुजरने वाले द्रव का प्रत्येक कण उसी मार्ग पर चलता है जिस मार्ग पर उससे पहले वाला कण चलकर गया था तो द्रव के इस प्रवाह (Flow) को धारा रेखीय प्रवाह कहते है। तथा कण के चलने के मार्ग को धारा रेखा कहते है।

 

            क्रान्तिक वेग Sallifiers art (Critical Velocity)

            क्रान्तिक वेग किसी तरल के प्रवाह का वह अधिकतम वेग है जिससे कम वेग पर तरल प्रवाह धारा रेखीय तथा जिससे अधिक वेग पर तरल प्रवाह विक्षुब्ध प्रवाह होता है।

                रेनाल्ड्स के प्रयोगों के आधार पर यह निष्कर्ष निकलता है कि क्रान्तिक वेग का मान (i) श्यानता गुणांक (n) के समानुपाती (ii) तरल के घनत्व (p) के व्युत्क्रमानुपाती तथा (iii) नली के व्यास - (D) के व्युत्क्रमानुपाती होता है। नियंताक R रेनाल्ड्स संख्या है

                \[{{V}_{C}}=R{{n}^{x}}{{p}^{y}}{{D}^{z}}\]

            \[[{{V}_{C}}=R{{n}^{1}}{{p}^{-1}}{{D}^{-1}}]\]

           

            संसजक तथा आसंजक बल (Cohesive and Adhesive Forces)

                संसजक बल- एक ही पदार्थ के अणुओं के मध्य कार्य करने वाले आकर्षण बल को संसजक बल कहते है, जैसे- जल के अणुओं के मध्य लगने वाला बल।

                संजक बल- भिन्न-भिन्न पदार्थों के अणुओं के मध्य कार्य करने ले आकर्षण बल को आसंजक बल कहते है, जैसे- जल तथा कांच अणुओं के मध्य लगने वाला बल।

 

            केशिकत्व (Capillarity)

                जब किसी नली में बहुत बारीक (केश के समान) छिद्र हो तो वह केशनली कहलाती है। यदि किसी कांच की केशनली जिसके दोनों सिरे खुले हो, को सीधा द्रव में डुबोया जाए तब पृष्ठ तनाव के कारण द्रव या तो केशनली में ऊपर चढ़ जाता है या नीचे उतर जाता है। इस घटना को केशिकात्व कहते हैं। केशिकात्व का मूल कारण पृष्ठ तनाव है।

                उदाहरण- कांच की केशनली को पानी में सीधा डुबोया जाए तब पानी केशनली में ऊपर चढ़ जाता है, लालटेन में मिट्टी का तेल बत्ती के धागे के बीच बनी केशनलियों द्वारा ऊपर चढ़ता है।

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