स्थिर विद्युत एवं विद्युत धारा

स्थिर विद्युत एवं विद्युत धारा

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स्थिर विघुत एवं विघुत धारा

 

विश्लेषणात्मक अवधारणा

                विद्युत तथा चुम्बकीय बल परमाणुओं, अणुओं तथा स्थूल द्रव्य के गुण धर्मों का निर्धारण करता है। गतिमान आवेश विद्युत धारा का निर्माण करते हैं। हम अपने दैनिक जीवन में बहुत-सी युक्तियों में आवेशों के प्रवाह को देखते हैं। टॉर्च सेल से चलने वाले यंत्रों परिपथों सब का अध्ययन करेंगे जो परीक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण है।

 

                भूमिका (Introduction)-    लगभग 600 ईसा पूर्व ग्रीस देश के मिलेटस के वैज्ञानिक थेल्स ने ज्ञात किया कि ऐम्बर नामक को ऊन से रगड़ने पर उसमें कागज के छोटे-छोटे टुकड़े, तिनकों आदि को आकर्षित करने का गुण जाता है। ऐम्बर को यूनानी भाषा में इलेक्ट्रॉन कहते हैं। अत: उपर्युक्त घटना के कारण को इलेक्ट्रीसिटी नाम दिया गया। इसी इलेक्ट्रीसिटी का हिंदी रूपांतर विद्युत है। इस प्रकार वह कारक (Factor) जिसके कारण वस्तुओं को एक दूसरे के सम्पर्क में लाने या रगड़ने पर उनमे दूसरी वस्तुओं को अपनी तरफ आकर्षित करने का गुण उत्पन्न हो जाता है, विद्युत आवेश कहलाता है। स्थिर विद्युत के गुणों अनुप्रयोगों का अध्ययन करने वाले विज्ञान को स्थिर विद्युतिकी कहते हैं।

 

                कुलॉम का नियम

                दो स्थिर बिन्दु आवेशों के बीच कार्य करने वाला आकर्षण अथवा प्रतिकर्षण का बल दोनों आवेशों के परिणामों के गुणनफल के समानुपाती तथा उनके बीच की दूरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होता है। यह बल दोनों आवेशों को मिलाने वाली रेखा के अनुदिश कार्य करता है। इसे कूलॉम का व्युत्क्रम वर्ग का नियम भी कहते हैं। जब दोनों आवेश निर्वात में रखे होते हैं

            \[K=\frac{1}{4\pi {{\varepsilon }_{0}}}=9\times {{10}^{9}}\frac{N\times {{m}^{2}}}{{{c}^{2}}}\]होता है।

                यहां \[{{\varepsilon }_{0}}\] (एपसाइलॉन जीरो) को निर्वात की विद्युतशीलता कहते हैं।

                इसका मान \[8.854\times {{10}^{-12}}\frac{{{c}^{2}}}{N\times {{m}^{2}}}\] होता है

            विमा \[=\left[ {{M}^{1}}{{L}^{-3}}{{T}^{4}}{{A}^{2}} \right]\] होता है।

                माध्यम में विद्युत बल \[Fm=\frac{1}{4\pi \varepsilon }\frac{{{q}_{1}}{{q}_{2}}}{{{r}^{2}}}\]

 

                विद्युत क्षेत्र- किसी विद्युत आवेश के चारों ओर का वह क्षेत्र जिसमें रखे किसी अन्य आवेश के द्वारा आकर्षण अथवा प्रतिकर्षण बल का अनुभव होता हो, प्रथम आवेश का विद्युत क्षेत्र कहलाता है।

                \[\] जहां F = विद्युत बल, Q = आवेश, E = विद्युत क्षेत्र

 

                विद्युत फ्लक्स (Electric Flux)- विद्युत क्षेत्र में स्थित किसी क्षेत्रफल से अभिलम्बत गुजरने वाली कुल विद्युत क्षेत्र रेखाओं की संख्या को विद्युत फ्लक्स कहते है।

                विद्युत फ्लक्स एक अदिश राशि है। इसका SI मात्रक (न्यूटन)/कूलॉम \[\times \] मीटर2 (या) वोल्ट \[\times \] मीटर होता हैं।

            \[d\phi =\vec{E}.d\vec{S}\]

                कहा जाता है कि किसी विद्युत क्षेत्र में स्थिर पृष्ठ से निर्गत विद्युत फ्लक्स विद्युत क्षेत्र सदिश एवं सदिश क्षेत्रफल के बिन्दु गुणनफल के बराबर होता है। फलतः विद्युत फ्लक्स एक अदिश राशि है।

            विद्युत द्विध्रुव (Electric Dipole)- जब परिणाम में समान विपरीत प्रकृति वाले दो अल्प आवेश अत्यल्प दूरी पर होते हैं तो उनके इस आवेश युग्म को विद्युत द्विध्रुव कहते हैं।

 

विद्युत द्विध्रुव आघूर्ण- यदि q -q आवेश के बीच का अल्प विस्थापन \[\vec{d}\] हो तो इनसे मिलकर बने द्विध्रुव का आघूर्ण \[\vec{P}=q.\left( {\vec{d}} \right)\] यह एक सदिश राशि है। SI मात्रक- कूलॉम \[\times \] मीटर या डिबाई होता है। 1 डिबाई (Debye) = \[3.3\times {{10}^{-30}}\] कूलॉम \[\times \] मीटर

विमा = \[\left[ {{M}^{0}}{{L}^{1}}{{T}^{1}}{{A}^{1}} \right]\] होता है।

गाउस का नियम (Gauss Law)- कार्ल फ्रिडरिच गाउस ने किसी . बंद पृष्ठ से गुजरने वाले विद्युत फ्लक्स तथा उसमें उपस्थित आवेश के बीच सम्बन्ध बताने के लिए एक नियम का प्रतिपादन किया जिसे गाउस का नियम कहते हैं। इस नियम के अनुसार निर्वात में उपस्थित किसी बंद पृष्ठ से पारित विद्युत फ्लक्स का कुल मान उस बंद पृष्ठ से घिरे आयतन में उपस्थित नेट आवेश \[\left( \sum{q} \right)\] तथा \[\frac{1}{{{\varepsilon }_{0}}}\] के गुणनफल के बराबर होता है।

                        \[\phi =\frac{\sum{q}}{{{\varepsilon }_{0}}}\]

                व्यापक रूप में गाऊसीय प्रमेय

            \[\]

 

             विद्युत क्षेत्र (Electric Field)- किसी विद्युत आवेश अथवा समुदाय के चारों ओर का वह क्षेत्र जिसमें कोई अन्य आवेश आकर्षण अथवा प्रतिकर्षण बल का अनुभव करता है। उस आवेश अथवा आवेश समुदाय का विद्युत क्षेत्र कहलाता है।

 

                विद्युत द्विध्रुव (Electric Dipole)- ऐसा निकाय जिसमें दो बराबर परन्तु विपरीत प्रकार के बिन्दु आवेश +q तथा -q एक-दूसरे से अल्प दूरी (2l) पर स्थित हो, विद्युत द्विध्रुव कहलाता है। उदाहरण

            (1) HCL तथा \[{{H}_{2}}O\] और \[N{{H}_{3}}\](अमोनिया)

            (2) KL तथा HBr

            (3) \[C{{H}_{4}}\] तथा \[C{{O}_{2}}\] आदि के अणु

 

            विद्युत विभव (Electric Potential)- विद्युत क्षेत्र में किसी धन परीक्षण आवेश (\[{{q}_{0}}\]) को अनंत से किसी बिन्दु तक लाने में किये गये - कार्य (W) तथा परीक्षण आवेश के अनुपात को उस बिन्दु पर विद्युत विभव कहा जाता है। एक अदिश राशि है। SI पद्धति में विद्युत विभव का मात्रक कि.ग्रा.-मीटर2 सेकेंड-3 ऐम्पियर-1 होता है।

 

                विद्युत धारिता (Electric Capacity)- किसी चालक के विभव एकाक वृद्धि के लिए जितनें आवेश की आवश्यकता होती है, आवेश की यह मात्रा ही उस चालक की विद्युत धारिता कहलाती है। विद्युत धारिता  =\[\], SI मात्रक फैराडे होता है। .

               

                संधारित्र (Capacitor)- संधारित्र किसी भी प्रकार के ऐसे दो चालकों का युग्म है जो कि एक-दूसरे के समीप हो और जिन पर बराबर और विपरीत आवेश हो तथा जिसकी एक प्लेटं पृथ्वी से जुड़ी हो।

               

                संधारित्रो का संयोजन (Combination of Capacitors) -

                श्रेणीक्रम संयोजन \[\frac{1}{C}=\frac{1}{{{C}_{1}}}+\frac{1}{{{C}_{2}}}+\frac{1}{{{C}_{3}}}+......+\frac{1}{{{C}_{n}}}\]होता है।

                समान्तर संयोजन \[=C={{C}_{1}}+{{C}_{2}}+{{C}_{3}}\] होता है।

 

                विद्युत धारा (Electric current)- जब किसी चालक में आवेश एक स्थान से किसी अन्य स्थान तक प्रवाहित होता है तो इस आवेश प्रवाह की दर को विद्युत धारा कहते हैं। किसी परिपथ में 1 सेकेंड में जितना आवेश प्रवाहित होता है उसे ही उस परिपथ की विद्युत धारा कहते हैं। विद्युत धारा का SI मात्रक एम्पियर है। धारा का CGs मात्रक धारा का विद्युत चुम्बकत्व मात्रक (emu of current) है इसे बायट (Biot . Bi) या एब (ab) एम्पियर कहते हैं।

           

                                \[=\frac{1}{10}\] Bi (ab-ampere)

 

                ओम का नियम (Ohm's Law)- सन 1826 में जर्मन वैज्ञानिक डॉ. जार्ज साइमन ओम ने बताया यदि किसी चालक की भौतिक अवस्था (जैसे- ताप, लम्बाई, क्षेत्रफल आदि) अपरिवर्तित रखी जाए तब उसके सिरों पर लगाये गये विभवान्तर तथा उसमें प्रवाहित होने वाली धारा का अनुपात नियतः रहता है।

                \[\frac{V}{l}\]= नियतांक (R) जहां R = चालक का प्रतिरोध

            1 ओम = 1 वोल्ट/1 एम्पियर = विभव का. \[{{10}^{8}}\] emu /धारा. का 10-1emu.

            = प्रतिरोध का \[{{10}^{9}}\] emu

            प्रतिरोध की विमा- \[\left[ M{{L}^{2}}{{T}^{-3}}{{A}^{-2}} \right]\]

           

            विघुत चालकता (Elewctrical Conductance)- प्रतिरोध R के व्युत्क्रम को विघुत चालकत्व G कहते है।

                        \[G=\frac{1}{R}\]

            G का मात्रक ओम- होता है। मात्रक ओम-1 को सीमेन () भी कहते है। किसी पृथ्वी के चालकत्व का मान पदार्थ की प्रकृति, आकृति, आकार तथा ताप पर निर्भर करता है।

           

            [ढाल = \[\tan \theta =\frac{1}{V}=\frac{1}{R}=G\]]

           

            सेल- विद्युत सेल एक ऐसी युक्ति है जो रासायनिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदलकर किसी विद्युत परिपथ में आवेश या धारा के प्रवाह को निरन्तर रखता है।

                सेल का विद्युत वाहक बल (Electromotive force of a cell) एकांक आवेश को पूरे परिपथ में (सेल सहित) प्रवाहित करने में सेल द्वारा जो ऊर्जा दी जाती है उसे सेल का विद्युत वाहक बल (emf) कहते है। \[E=\frac{W}{q}\] "जूल/कूलॉम, इस मात्रक को 'वोल्ट' कहते हैं।

 

                किरचॉफ के नियम (Kirchoff's Law)- किरचॉफ ने सन 1842 में दो नियम दिए जिनकी सहायता से परिपथ के किसी भाग में प्रवाहित धारा, किसी जटिल परिपथ का तुल्य प्रतिरोध, परिपथ के किन्ही दो बिन्दुओं के मध्य विभवान्तर आदि ज्ञात किये जा सकते हैं।

                किरचॉफ का प्रथम नियम- किसी विद्युत परिपथ में किसी भी सन्धि (Junction) पर मिलने वाली समस्त धाराओं का बीजगणितीय योग (algebraic sum) शून्य होता है।

                \[\sum{/={{/}_{1}}+{{l}_{2}}+{{/}_{3}}+\_\_\_\_\_\_\_\_\_\_\_\_=0}\]

                 व्हीटस्टोन सेतु- इंग्लैंड के वैज्ञानिक प्रोफेसर CF Wheat stone ने चार प्रतिरोधों, एक धारामापी एवं एक सेल को जोड़कर एक विशेष प्रकार का परिपथ तैयार किया जो व्हीटस्टोन सेतु के नाम से जाना जाता है। इसकी सहायता से हम अज्ञात प्रतिरोध ज्ञात कर सकते हैं।

 

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