इलेक्ट्रॉनिकी एवं संचार

इलेक्ट्रॉनिकी एवं संचार

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इलेक्ट्रॉनिकी एवं संचार

 

विश्लेषणात्मक अवधारणा

            इलेक्ट्रॉनिक संचार का तात्पर्य सूचना अथवा संदेशों (जो विद्युत वोल्टता या धारा के रूप में उपलब्ध होते हैं) को एक बिन्दु से दूसरे बिन्दु तक विश्वसनीय ढंग से स्थानांतरित करना है। किसी संचार व्यवस्था के तीन मूल एकक- संप्रेषण, संप्रेक्षण चैनल तथा अभिग्राही होते हैं।

 

                भूमिका (Introduction)

                इलेक्ट्रानिकी, भौतिकी की वह शाखा है जिसके अन्तर्गत इलेक्ट्रॉन पुंज की गति की नियंत्रित कर विद्युत राशियों के प्रवर्धन (Amplification). दोलन, मॉडुलन, दिष्टकरण (Rectification), संसूचन आदि प्रक्रमों का अध्ययन किया जाता है। इन्हीं प्रक्रमों की सहायता से इलेक्ट्रॉनिक उपकरण जैसे- रेडियो, टेलीविजन, राडार, कंप्यूटर आदि का निर्माण किया जाता है। इलेक्ट्रॉनिकी का अध्ययन निम्न तीन रूपों में किया जाता है

                (i) वाल्व इलेक्ट्रॉनिकी

            (ii) अर्धचालक इलेक्ट्रॉनिकी

            (iii) क्वाण्टम इलेक्ट्रॉनिकी

 

            वाल्व इलेक्ट्रॉनिकी- वाल्व इलेक्ट्रॉनिकी के अन्तर्गत मुक्त इलेक्ट्रॉनों को धातु पृष्ठ से बाहर निकालकर, उनकी गतिकी का वाल्वों (निर्वात नलिकाओं) में उपयोग किया जाता है। ये वाल्व इनमें प्रयुक्त इलेक्ट्रोडों की संख्या के आधार पर डायोड, ट्रायोड, टेट्रोड, पेन्टोड आदि नामों से जाने जाते हैं। इन सभी वाल्वों में कांच के निर्वातित आवरण में एक कैथोड (इलेक्ट्रॉन उत्सर्जक) तथा एक एनोड अथवा प्लेट (इलेक्ट्रॉन संग्राहक) होते हैं। इन युक्तियों में इलेक्ट्रॉन केवल कैथोड से एनोड की ओर प्रवाहित कर सकते हैं अर्थात इलेक्ट्रॉन केवल एक ही दिशा में प्रवाहित हो सकते हैं। इसी कारण ऐसी युक्तियों को साधारणतया. वाल्व कहते हैं। ये युक्तियां उच्च वोल्टता पर कार्य करती हैं। इनका जीवनकाल कम होता है तथा ये मंहगी युक्तियां है। इनका आकार बड़ा होता है। इनमें शक्ति व्यय अधिकतम होता है।

 

                अर्धचालक इलेक्ट्रॉनिकी- अर्धचालक इलेक्ट्रॉनिकी में इलेक्ट्रॉनों तथा होलों या कोटरों (holes) का उपयोग अर्धचालक के भीतर किया जाता है। ये युक्तियां अल्प वोल्टता का कार्य करती है। इनका जीवन काल अधिक होता है तथा ये सस्ती युक्तियां है। इनका आकर बहुत छोटा होता है। इनमें शक्ति व्यय न्यूनतम होता है।

 

            क्वाण्टम इलेक्ट्रॉनिकी- क्वाण्टम इलेक्ट्रॉनिकी में इलेक्ट्रॉन की ऊर्जा अवस्थाओं का उपयोग कुछ कार्यों के लिए किया जाता है जैसे LASER तथा MASER आदि में।

                इस अध्याय में हम अर्धचालक इलेक्ट्रॉनिकी से सम्बन्धित कुछ मूल अवधारणाओं के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे तथा संधि डायोड एवं द्विध्रुवीय संधि ट्रांजिस्टर जैसी कुछ अर्धचालक युक्तियों का अध्ययन करेंगे।

 

            ठोसों में ऊर्जा बैंड (Energy Bands in Solids)

                सामान्यतः पदार्थों को तीन अवस्थाओं में वृर्गीकृत किया जा सकता है ठोस, द्रव अथवा गैस। ठोसों में परमाणु निकटवर्ती परमाणु से अति अल्प दूरी से पृथक्कृत होते हैं जिसे चालक नियतांक (Lattice constant) कहते हैं। पदार्थ अणुओं से मिलकर बना होता है अणु, परमाणु से मिलकर बने होते हैं। परमाणु, पदार्थ की वह मूलभूत इकाई है, जिसमें पदार्थ के गुण मौजूद होते हैं। लेकिन परमाणु स्वतंत्र अवस्था में नहीं रह सकता है। प्रत्येक परमाणु के केन्द्र में एक नाभिक होता है जिसमें धनावेशित प्रोटॉन तथा उदासीन न्यूट्रॉन होते हैं। इलेक्ट्रॉन नाभिक के चारों ओर चक्कर लगाते रहते हैं। जिस परमाणु में प्रोटॉनों तथा इलेक्ट्रानो की संख्या बराबर होती है वे उदासीन परमाणु कहलाते हैं। संयोजी बैंड चालन बैंड के मध्य के ऊर्जा अंतराल को वर्जित ऊर्जा अंतराल \[\Delta \]Eg (Forbidden energy gap) कहते हैं। यदि यह ऊर्जा तरंगदैर्ध्य (\[\lambda \]) या आवृत्ति (v) के विकिरण द्वारा प्रदान की जाती है तो

            \[\Delta Eg=\frac{h.c}{\lambda }=h.v\]

                जहां प्लांक नियंताक = \[=6.6\times {{10}^{-34}}\] जूल \[\times \] सेकेंड तथा C प्रकाश की चाल = \[3\times {{10}^{8}}\]मीटर/सेकेंड है।

 

                चालकता के आधार पर- विद्युत चालकता (\[\sigma \]) अथवा प्रतिरोधकता (\[\rho \]) के आधार पर ठोस पदार्थों का निम्न प्रकार से वर्गीकरण किया जा सकता है।

            (i) कुचालक एवं विद्युतरोधी       (ii) धातु    (iii) अर्धचालक

            पदार्थों को ऊर्जा बैंड के आधार पर तीन भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है- (i) कुचालक (ii) चालक (iii) अर्धचालक

 

            P-Nसन्धि (P-NJunction)

            जब P-प्रकार के अर्धचालक को एक N-प्रकार के अर्धचालक से परमाणवीय. स्तर पर इस प्रकार जोड़ दिया जाए कि सम्पर्क तल के परमाणु एक दूसरे से मिल जाए तो इस प्रकार बने सम्पर्क तल को P-N सन्धि कहते हैं। इस युक्ति को P-N सन्धि डायोड (P-N Junction Diode) कहते हैं। सिलिकन P-N सन्धि के लिए यह अवरोधी विभव ~0.7v होता है, जबकि जरमेनियम P-N सन्धि के लिए यह अवरोधी विभव ~0.3v होता है।

            P-N सन्धि एक संधारित्र के तुल्य माने तब हासी क्षेत्र या अवक्षय परत के दोनों ओर विपरीत प्रकृति के आदेश ओर मध्य भाग परावैद्युत माध्यम माना जा सकता है।

            अवरोधी विभव का मान (A) अर्धचालक की प्रकृति (B) मिलायी गयी अशुद्धि की प्रकृति तथा (C) ताप पर निर्भर करता है। C, Si तथा Ge की प्रतिरोधकताओ में अंतर इनके चालन तथा संयोजी बैडों के बीच ऊर्जा अंतराल पर निर्भर करता है। कार्बन, Si, Ge के लिए ऊर्जा अंतराल क्रमश 5.4ev, 1.1 ev तथा 0.7ev है। Sn भी चतुर्थ ग्रुप का तत्व है। परन्तु यह धातु है क्योंकि इसके प्रकरण में ऊर्जा अंतराल 0 ev है।

               

                विशिष्ट प्रयोजन P-N संधि डायोड (Special Purpose P&N Junction diodes) - अर्धचालक उपयोग उसके अभिलाक्षणिक गुणों पर निर्भर करता है। इलेक्ट्रॉनिक परिपथों में विभिन्न प्रकार के डायोड़ों का उपयोग किया जाता है। (i) जेनर डायोड (ii) फोटो डायोड (iii) प्रकाश उत्सर्जक डायोड (iv) सौर सेल

 

                अंकीय इलेक्ट्रॉनिकी (Digital Electronics)- इलेक्ट्रॉनिकी मुख्यतः दो प्रकार के संकेत प्रयुक्त करती है (i) अनुरूप संकेत (Analog signal), (ii) अंकरूप संकेत (Digital signal)

                तर्क द्वार या तार्किक द्वार या लोजिक गेट (Logic Gates)तार्किक द्वार एक ऐसा तर्क संगत परिपथ है जिसमें एक या एक से अधिक निवेशी टर्मिनल (Input) परन्तु केवल एक निर्गत टर्मिनल (Output) होता है। तार्किक द्वार अंकरूप परिपथों का आधारभूत भाग है। तार्किक द्वार में निवेशी तथा निर्गत संकेत के मध्य एक तार्किक सम्बन्ध होता है।

 

                सत्य सारणी (Truth Table)

                सत्य सारणी एक ऐसी सारणी है जो किसी तार्किक द्वार के निवेशी तथा निर्गत संकेतों की समस्त सम्भावनाओं को दर्शाते हैं। विभिन्न प्रकार के तार्किक द्वार (Different type of gate)

            (i) OR द्वार (ओर या अपि द्वार)

            (ii) AND द्वार (ऐंड या अर्थ द्वार)

            (iii) NOT द्वार (नॉट या द्वार)

                इन द्वारों के परस्पर संयोजन से अन्य द्वार NOR तथा NAND द्वार भी निर्मित कर सकते हैं।

               

                बूलीय अभिगृहित तथा नियम-

               

(i)

वूलीय अभिगृहित

- 0+ A = A, 1 : A = A

 

 

\[1+A=1,{{0}^{.}}A=0,\text{ }A+\overline{A}=1\]

(ii)

तत्समक नियम

\[A+A=A,\text{ }{{A}^{.}}A=A\]

(iii)

निगेशन नियम

\[\overline{\overline{A}}=A\]

(iv)

क्रम -विनिमेय नियम

\[A+B=B+A,{{A}^{\mathbf{.}}}B=B.A\]

(v)

साहर्चय नियम

\[\left( A+B \right)+C=A+\left( B+C \right)\]

 

 

\[\left( A.B \right).\,C=A.\,\left( B.C \right)\]

(vi)

वितरण नियम

\[A.\,\,\left( B+C \right)=A.\,B\,\,+\,A.\,\,C\]

(vii)

डी मार्गन नियम-

\[\overline{A+B}=\bar{A}\,\,.\bar{B}.\,\overline{A.B}=\bar{A}\,+\bar{B}\]

 

 

\[A+B=A+B,A\left( \bar{A}+B \right)=AB\]

 

                विद्युत -चुम्बकीय तरंगों का संचरण

            (Propagation of Electromagnetic Waves)

            विद्युत चुम्बकीय तरंगों की तरंगदैर्ध्य परास बहुत अधिक होती है। रेडियो तरंगे, सूक्ष्म तरंगे, दृश्य प्रकाश, x-किरणें आदि सभी विद्युतीय चुम्बकीय तरंगे ही होती है। पृथ्वी के चारों ओर स्थित भौतिक अंतरिक्ष (मुक्त आकाश) का उपयोग करके संकेतों को भेजना तथा ग्रहण करना अंतरिक्ष संचार कहलाता है। इसमें कुछ सहस्त्र KHz से GHz आवृत्ति परास का उपयोग हो सकता है। रेडियो तरंग का उपयोग करने वाले संचार में एक सिरे पर प्रेषित्र होता है जिसका एन्टिना विद्युत -चुम्बकीय तरंगें विकिरत करता है जो अंतरिक्ष में गमन करती हुई दूसरे सिरे पर स्थित अभिग्राही के एन्टीना द्वारा ग्रहण कर ली जाती है। प्रेषित्र से अभिग्राही तक मुक्त आकाश संचरण द्वारा तरंगें संचरण की तीन विधियां है

(i)   भू-तरंग संचरण या पृष्ठीय तरंग संचरण (Ground Wave : Propagation)

(ii)         आकाश तरंग संचरण (Space Wave Propagation)

(iii)  व्योम तरंग संचरण (Sky Wave Propagation)

 

            संचार तंत्र (Communication System)

                वह व्यवस्था जिसके द्वारा सूचनाओं का एक स्थान से संप्रेषण किया जाता है। तथा फिर उसका दूसरे स्थान पर अभिग्रहण किया जाता है संचार व्यवस्था कहलाती है। ये तीन प्रकार के हैं

                (i) विद्युतीय            (ii) इलेक्ट्रॉनिक        (ii) प्रकाशीय

                इनके मुख्य अवयव निम्न हैं –

            (i) प्रेषित्र               (ii) संचार चौनल      (iii) अभिग्राही

            वह प्रक्रिया जिसके द्वारा उच्च आवृत्ति की वाहक तरंग के साथ संदेश या सूचना संकेत को सलंग्न अर्थात अध्यारोपित किया जाता है। मॉडुलन (Modulation) कहलाती है।

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