अठारवहीं सदी का भारत

अठारवहीं सदी का भारत

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अठारवी सदी का भारत

 

विश्लेषणात्मक अवधारणा

18वीं सदी के पूर्व में ही मुगल साम्राज्य का पतन शुरू हो गया था औरंगजेब की मृत्यु 1707 ई. में हुई। 1730 ई. तक मुगलों का प्रभाव केवल दिल्ली और उसके आसपास तक ही रह गया था। 18वीं सदी का समय भारत में काफी उथल-पुथल रहा है। इसे लेकर विद्वानों में काफी मतभेद रहा है। 18वीं सदी में दक्षिणी भारत में मराठा तथा उत्तरी भारत में सिख एवं जाट ने अपनी शक्ति को बढ़ा दिया, जिसके कारण मुगल साम्राज्य और कमजोर हो गया। मराठा साम्राज्य की स्थापना महाराष्ट्र में शिवाजी ने की थी शिवाजी एवं अत्यंत समृद्धि साथ-साथ ही पाई जाती थी। फिर भी तात्कलिक जीवन को औपनिवेशिक शासन काल से बुरा नहीं कहा जा सकता।

 

महत्वपूर्ण अवधारणाएं एवं तथ्य

मुगलों का पतन

§  मुगल साम्राज्य में औरंगजेब के बाद उसके उत्तराधिकारी अयोग्य थे, वे नाम मात्र के सम्राट थे ।

§  औरंगजेब के बाद उसका बेटा मुअज्जम बहादुरशाह के नाम से आगरा की गद्दी पर बैठा, उसमें शासनात्मक क्षमता की कमी थी। यद्यपि वह हिन्दू तथा राजपूतों के प्रति उदार था परन्तु दुर्बल तथा वृद्ध था, उसका पुत्र जहांदारशाह भी कमजोर शासक सिद्ध हुआ। परिणामस्वरूप, उसका भाई फर्रुखसियार उसकी हत्या कर स्वयं ही गद्दी पर बैठ गया।

§  नादिरशाह फारस का शासक था। उसे ‘‘ईरान का  नेपोलियन’’ कहा जाता है। भारत पर नादिरशाह का आक्रमण 16 फरवरी 1739 को मुहम्मदशाह के समय हुआ था। वह बहुत ही महत्वाकांक्षी चरित्र का व्यक्ति था और भारत की अपार धन-सम्पदा के कारण ही इस ओर आकर्षित हुआ। मुगल सेना के साथ हुए नादिरशाह के मध्य 24 फरवरी 1739 को हुए युद्ध को ‘करनाल के युद्ध’ के नाम से जाना जाता है।

§  1759 ई. में राजगद्दी पर बैठने के साथ ही अली गौहर ने बादशाह होने पर ‘आलमशाह द्वितीय’ का खिताब धारण किया। इतिहास में वह ‘शाहआलम द्वितीय के नाम से प्रसिद्ध है।’ उसका राज्यकाल भारतीय इतिहास का एक संकटग्रस्त काल कहा जा सकता है। उसके पिता आलमगीर द्वितीय को उसके सत्तालोलुप और कुचक्री वजीर गाजीउद्दीन ने तख्त से उतार दिया था।

§  अंतिम मुगल शासक बहादुर शाह जफर (1837 ई.) था, जिन्होंने प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में भी भाग लिया था, जिसके बाद अंग्रेजों ने बहादुर शाह जफर को बर्मा भेज दिया, जहां उनकी मृत्यु हो गई।

§  18वीं सदी में मुगलों के पतन के फलस्वरुप भारत में हैदराबाद, अवध, मैसूर, बंगाल, रुहेलखंड आदि नवीन राज्यों की स्थापना हुई।

 

§  हैदराबाद राज्य

§  हैदराबाद में स्वतंत्र आसफजाही वंश की स्थापना, मुहम्मदशाह (मुगल बादशाह) द्वारा दक्कन में नियुक्त सूबेदार चिनकिलच खां (निजामुलमुल्क) ने 1724 ई. में की। 

§  हैदराबाद की स्थापना के बाद मुगल सम्राट मुहम्मदशाह ने उसे आसफशाह की उपाधि प्रदान की।

§  शूकरखेड़ा के युद्ध में चिनकिलिच खां ने मुगल सूबेदार मुबारिज खां को पराजित किया था।

§  1748 ई. में चिनकिलिच खां की मृत्यु के बाद हैदराबाद में कोई ऐसा योग्य निजाम नहीं था जो अंग्रेजों से टक्कर ले सकता।

§  हैदराबाद भारतीय राज्यों में ऐसा प्रथम राज्य था, जिसने वेलेजली की सहायक संधि के तहत एक आश्रित सेना रखना स्वीकार किया।

 

§  बंगाल

§  1700 ई. में औरंगजेब ने मुर्शीदकुली खां को बंगाल का दीवान नियुक्त किया गया, जो 1707 ई. में औरंगजेब की मृत्यु के बाद बंगाल का पहला नवाब बना। अतः यहीं से बंगाल में वंशानुगत शासन कि शुरुआत हुयी।

 

बंगाल के नवाब

मुर्शिदकुली खान (1713-1727 ई.)

शुजाउद्दिन (1727-1739 ई.)

सफरराज खान (1739-1740 ई.)

अलीवर्दी खान (1740-1756 ई.)

सिराजद्दौला (1756-1757 ई.)

 

ब्रिटिश काल के नवाब

मीरजाफर (1757-1760 ई.)

मीरकासिम (1760-1763 ई.)

मीरजाफर (द्वितीय बार) (1763-1765 ई.)

नज्म-उद-दौला (1765-1766 ई.)

सैफ-उद-दौला (1766-1770 ई.)

 

अवध राज्य की स्थापना

§  सआदत खां ‘बुरहानुलमुल्क’ अवध के स्वतन्त्र राज्य का संस्थापक था। 1720 से 1722 ई. तक उसने आगरा के सूबेदार के पद पर कार्य किया। 1722 ई. में सम्राट मुहम्मदशाह ने उसे अवध का सूबेदार नियुक्त किया, जहां बाद में इसने मुगल साम्राज्य से अलग स्वतन्त्र अवध राज्य की स्थापना की।

§  1723 ई. में सआदत खां ने नयी ‘राजस्व बन्दोबस्त’ व्यवस्था को लागू किया।

§  1739 ई. में सआदत खां को नादिरशाह के खिलाफ लड़ने के लिए सम्राट मुहम्मदशाह ने दिल्ली बुलाया। कालान्तर में सआदत खां ने ही नादिरशाह को दिल्ली पर आक्रमण करने के लिए प्रेरित किया था। किन्तु उसने आक्रमणकारी को 20 करोड़ की आशा दिलायी थी, परन्तु नादिरशाह से किये गये वादे को न पूरा कर पाने के कारण ही सआदत खां ने 1739 ई. में जहर खाकर आत्महत्या कर ली।

§  सआदत खां की मुत्यु के बाद सम्राट मुहम्मदशाह ने सआदत खां के भतीजे एवं दामाद ‘सफदरजंग’ को अवध की नवाबी प्रदान की। 1748 ई. में मुगल सम्राट ने उसे अपना वजीर बनाया और इसके साथ ही उसे इलाहाबाद का भी प्रांत दे दिया गया। उसने मराठों के विरुद्ध एक लड़ाई लड़ी तथा हिन्दू एवं मुसलमानों में कोई भेद न करते हुए दोनों को बराबर महत्व दिया। उसने अपनी सरकार में महाराज ‘नवाबराय’ को उच्च पद प्रदान किया। 1754 ई. में उसकी मृत्यु हो गई।

 

सिख राज्य की स्थापना 

§  सिख संप्रदाय की स्थापना का श्रेय गुरू नानक (प्रथम गुरू) को जाता है।

§  गुरू नानक के अनुनायी ही सिख कहलाए। ये बादशाह बाबर एवं हुमायूं के समकालीन थे। सन् 1496 ई. की कार्तिक पूर्णिमा को नानक को आध्यात्मिक पुनर्जीवन का आभास हुआ।

§  सिखों के अंतिम गुरु गोविंद सिंह थे। गुरू गोविन्द सिंह की हत्या 1708 ई. में नादेड़ नामक स्थान पर गुलखां नामक पठान ने कर दी। गुरु गोविंद सिंह के बाद गुरुत्व परंपरा समाप्त हो गई।

 

गुरुत्व परंपरा के बाद  

§  गुरु गोविंद सिंह की मृत्यु के बाद सिखों का नेतृत्व बन्दा बहादुर ने किया, इनके बचपन का नाम लक्ष्मण दास था। बन्दा की मौत के बाद सिख कई टुकड़ों में बंट गए थे। 1748 ई. में नवाब कर्पूरसिंह की पहल पर सभी सिख टुकड़ियों का दल - खालसा में विलय हुआ।

§  दल खालसा को जस्सा सिंह आहलूवालिया के नेतृत्व में रखा गया। इस दल को बाद में बारह दलों में बांटा गया, जिसे ‘मिसल’ कहा गया। ‘मिसल’ का अर्थ समान होता है।

§  रणजीत सिंह - महाराजा रणजीत सिंह पंजाब के महान राजा थे, वे शेर-ए पंजाब के नाम से प्रसिद्ध हैं। रणजीत सिंह का जन्म 1780 ई. में गुजरांवाला जो अब पाकिस्तान में हुआ था। महाराजा रणजीत एक ऐसे व्यक्ति थे, जिन्होंने न केवल पंजाब को एक सशक्त सूबे के रूप में एकजुट रखा, बल्कि अपने जीते-जी अंग्रेजों को अपने साम्राज्य के पास भी नहीं फटकने दिया।

§  1798 ई. में रणजीत सिंह लाहौर के शासक बने। रणजीत सिंह का राज्य चार सूबों में बंटा हुआ था, पेशावर, कश्मीर, लाहौर और मुल्तान।

§  1839 ई. में महाराजा रणजीत का निधन हो गया। उनकी समाधि लाहौर में बनवाई गई, जो आज भी वहां है।

 

मराठा साम्राज्य 

§  मराठा साम्राज्य भारतीय साम्राज्यवादी शक्ति थी, जो 1645-1818 ई. तक अस्तित्व में रही।

§  मराठा साम्राज्य की नींव छत्रपति शिवाजी महाराज ने 1645 ई. में डाली। उन्होंने कई वर्ष औरंगजेब के मुगल साम्राज्य से संघर्ष किया। बाद में आये पेशवाओं ने इसे उत्तर भारत तक बढ़ाया, ये साम्राज्य 1818 ई. तक चला और लगभग पूरे भारत में फैल गया।

 

सातारा वंश

छत्रपति शिवाजी महाराज (1627-1680 ई.)

छत्रपति सम्भाजी महाराज (1680-1689 ई.)

छत्रपति राजाराम प्रथम (1689-1700 ई.)

महाराणी ताराबाई (1700-1707 ई.)

छत्रपति शाहू (1707-1749 ई.)

छत्रपति रामराज (1749-1777 ई.)

छत्रपति शाहू द्वितीय (1777-1808 ई.)

 

मराठा साम्राज्य के पेशवा

बालाजी विश्वनाथ (1714-1720 ई.)

बाजीराव प्रथम. (1720-1740 ई. )

बालाजी बाजीराव (1740-1761ई.)

माधवराव पेशवा (1761-1772 ई.)

नारायणराव पेशवा (1772-1773 ई.)

रघुनाथराव पेशवा (1773-1774 ई.)

सवाई माधवराव पेशवा (1774-1795 ई.)

बाजीराव द्वितीय (1796-1818 ई.)

 

§  मैसूर राज्य

§  विजयनगर साम्राज्य के पतन के बाद, 1565 ई. में हिन्दू वडियार वंश द्वारा मैसूर राज्य को स्वतंत्र राज्य घोषित कर दिया गया। वडियार वंश के अंतिम शासक चिक्का कृष्णराज द्वितीय के शासनकाल में वास्तविक सत्ता देवराज (दलवाई या सेनापति) और नंजराज (सर्वाधिकारी या वित्त एवं राजस्व नियंत्रक) के हाथों में आ गयी थी। यह क्षेत्र पेशवा और निजाम के बीच विवाद का विषय बन गया था।

§  1761 ई. में हैदर अली, जिसने अपने जीवन की शुरुआत एक सैनिक के रूप में की थी, ने मैसूर के राजवंश को हटाकर राज्य पर अपना कब्जा कायम कर लिया।

§  टीपू सुल्तान (1782-1799 ई.) हैदर अली का पुत्र था और हैदर के बाद मैसूर राज्य की सत्ता संभाली, जिसने वीरतापूर्वक अंग्रेजों से युद्ध लड़कर अपने राज्य की रक्षा की।

§  टीपू सुल्तान पहला शासक था, जिसने पश्चिमी पद्धतियों को अपने प्रशासन में लागू करने का प्रयास किया।

§  टीपू ने सैन्य प्रशिक्षण में आधुनिक तकनीकों का प्रयोग किया और आधुनिक हथियारों के उत्पादन के लिए एक कारखाना भी स्थापित किया।

§  चतुर्थ आंग्ल-मैसूर युद्ध (1799 ई.) के दौरान लड़ते हुए उसकी मृत्यु हो गयी।

 

18वीं सदी के भारत की आर्थिक व्यवस्था

§  18वीं सदी में भारत आर्थिक रूप से सम्पन्न था। हालांकि उन दिनों का भारत विषमताओं का देश हो गया था। अत्यंत दरिद्रता तथा अत्यंत समृद्धि साथ-साथ ही पाई जाती थी।

§  कृषि तकनीक पिछड़ी एवं जड़वत थी। किसान कठिन परिश्रम करता था, जिससे औसत उत्पादन हो जाता था, लेकिन इसका लाभ किसानों को नहीं मिल पाता था।

§  सूती वस्त्र, कच्चा रेशम, रेशमी कपड़े, लोहे का सामान, नील, शोरा, अफीम, चावल, गेहूं, चीनी, काली मिर्च, अन्य मसालें, रत्न, औषधि आदि का निर्यात किया जाता था।

§  कश्मीर ऊनी वस्त्र का केंद्र था जबकि महाराष्ट्र, आन्ध्र

§  प्रदेश, बंगाल में जहाज निर्माण उद्योग विकसित हुआ। 

 

सामजिक स्थिति (जाति और वर्ण व्यवस्था )

§  हिन्दू समाज की मुख्य विशेषता के रूप में जाति प्रथा विद्यमान थी। समाज चार वर्गों में बंटा था। जाति धर्म का कठोरता से पालन किया जाता था तथा इसी से व्यक्ति की सामाजिक प्रतिष्ठा का निर्धारण भी होता था।

§  उदाहरण के लिए ब्राह्मणों को सर्वाधिक रूप से अधिकार प्राप्त होते थे तथा उन्हें समाज में सर्वाधिक प्रतिष्ठा दी जाती थी। 

§  परिवार मुख्य तौर पर पितृ सत्तात्मक था परन्तु केरल का नायर समुदाय सहित कई समुदाय इसके अपवाद थे। यूरोपीय पर्यटक एवं अन्य के अनुसार महिलाओं को काफी सम्मान दिया जाता था, मगर उनसे घरेलू जिम्मेदारियों को निभाने तक सीमित बने रहने की आशा की जाती थी अर्थात कहा जा सकता है कि 18वीं सदी के भारतीय समाज में महिलाओं का अस्तित्व नगण्य था।

§  विवाह प्रधान तय करते थे। लड़के-लड़की को मिलने की मनाही थी। बहुपत्नी प्रथा थी लेकिन समृद्ध लोग ही एक या एक से अधिक पत्नी रखते थे। बाल विवाह पूरे भारत में प्रचलित थी। दहेज कुप्रथा का रूप ग्रहण कर चुकी थी। राजपूताना तथा बंगाल में यह गहरी पैठ जमा चुकी थी।

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