मध्यकालीन भारत में मूर्तिकला (मूर्तिकला भाग 2)

मध्यकालीन भारत में मूर्तिकला (मूर्तिकला भाग 2)

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मध्यकालीन भारत में मूर्तिकला (मूर्तिकला भाग 2)

 

विश्लेषणात्मक अवधारणा

मध्यकाल में दक्षिण भारत में मूर्तिकला का अद्भुत विकास हुआ। मन्दिरों के बाहरी और अंतरंग भागों को अलंकृत करने के लिए तक्षण शिल्प व मूर्ति शिल्प का उपयोग किया गया। इस्लाम धर्म (मुगल सम्राटों का धर्म) मूर्ति पूजा में विश्ववास नहीं करता था, ऐसे में मध्यकालीन मूर्तिकला पर उसका विपरीत प्रभाव पड़ा। परन्तु अकबर के समय मूर्ति निर्माण की प्रक्रिया प्रारम्भ हुई। जहांगीर के समय भी मूर्तिकला को प्रोत्साहित किया गया। आगरा किले में झरोखा दर्शन के नीचे अमरसिंह व कर्णसिंह की मूर्तियां लगाई गई। फतेहपुर सीकरी में महल के हाथी पौर द्वार पर पत्थर के दो विशाल हाथी सजाये गये हैं। लेकिन औरंगजेब के समय पुन: मूर्तिकला के विकास में उदासीनता आ गई। निष्कर्षत: कहा जाता है कि मध्यकाल में मूर्तिकला को प्रोत्साहन नहीं मिला जिसके चलते मूर्तिकला प्रभावित हुई।।

 

पल्लवकालीन मूर्तिकला

  • इस काल में रथ मंदिर मूर्ति पहाड़ को काटकर रथ- मंडप का निर्माण किया गया जो कि विशालकाय मूर्तिनुमा संरचना है।
  • पल्लव काल की मूर्तिकला मुद्रा और प्रतिरूपेण में स्वाभाविक हैं।
  • पल्लव मूर्तिकला दुबले - पतले और दीर्घाकृत अंग आकृति की लंबाई पर बल देते हैं।
  • पल्लव मूर्तिकला के कुछ प्रमुख उदाहरण है- प्रस्तर पर उत्कीर्णन महिषासुरमर्दिनी, गिरि गोवर्धन फलक, अर्जुन का तप या गंगा का अवतरण, वाराह तुण्ड, त्रिविक्रम विष्णु और गजलक्ष्मी आदि।
  • महाबलीपुरम में प्रस्तर पर उत्कीर्ण महिषासुरमर्दिनी प्रतिमा एक महान कलाकृति है।

 

चालुक्यकालीन मूर्तिकला

  • चालुक्यकालीन मूर्तिकला के चार प्रमुख कर्नाटक राज्य में अवस्थित केन्द्र बादामी, ऐहोल,पट्टडकल और महाकूट हैं।
  • चालुक्य मूर्तियां बलिष्ठ और विशालकाय हैं तथा अंग-प्रत्यंग समानुपातिक हैं।
  • कर्नाटक के बादामी में मिली नटराज की 18 हाथों की मूर्ति, विष्णु के त्रिविक्रम स्वरूप की मूर्ति, वाराह अवतार मूर्ति तथा बैकुंठ नारायण विष्णु की प्रशंसनीय प्रतिमाएं मिली हैं।
  • पट्टडकल की मूर्तियां चालुक्य शिल्प में शांत, संतुलित, ऊर्जा से युक्त, जीवंत और भव्य हैं।
  • ऐहोल की मूर्तियों के आलंकारिक अंकनों में विशेष कुशलता दिखाई देती है; यथा- लयबद्धता, धोती एवं अन्य वस्त्रों पर गहरी धारी दिखती है।
  • ऐहोल में बना दुर्गा मंदिर चालुक्य मूर्तिशिल्प का महत्त्वपूर्ण उदाहरण माना जाता है।
  • महाकूट के महाकूटेश्वर मंदिर में अर्द्धनारीश्वर, लकुलीश और हरिहर की मूर्तियां विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।

 

चोलकालीन मूर्तिकला

  • चोल काल को दक्षिण भारतीय कला का स्वर्ण युग कहा जाता है।
  • चोल मूर्तिकला मुख्यत: वास्तुकला की सहायक थी, इसलिए अधिकांश मूर्तियों का उपयोग मंदिरों को सजाने में किया गया।
  • चोल कलाकारों ने पत्थर तथा धातु की मूर्तियों का निर्माण किया गया। पत्थर की मूर्तियां मंदिरों की सजावट में जबकि धातु या कांस्य की मूर्तियां स्वतंत्र रूप से निर्मित हुई।
  • चोल काल में कलाकारों द्वारा निर्मित मूर्तियों में देवी-देवताओं की मूर्तियां ही अधिक है।
  • शैव स्वावलंबी होने के कारण चोल मूर्ति कला में शैव परिवार की मूर्तियां अधिकता में बनाई गई।
  • चोल काल में नटराज की कांस्य प्रतिमा सर्वोत्कृष्ट है, इसे चोल कला का सांस्कृतिक निकष कहा जाता है।

 

पालकालीन मूर्तिकला

  • बंगाल के पाल शासक बौद्ध मतावलंबी थे, इसलिये उनके शासनकाल में बौद्ध कला को प्रश्रय मिला।
  • पाल मूर्तियां लेखयुक्त हैं और उनमें तिथियां भी दी गई हैं।
  • पाल प्रतिमाओं में मुख्यत: दैव-मूर्तियों के ही उदाहरण मिलते हैं, इनमें लौकिक विषयों का अभाव रहा है।
  • पाल शैली में बनी बौद्ध, जैन और ब्राह्मण मूर्तियों में शैली के स्तर पर समानता है।
  • पाल युग में बुद्ध, अवलोकितेश्वर, मैत्रेय, हरिति, बोधिसत्व, मंजूश्री, तारा आदि की मूर्तियां बनीं ।
  • पाल शैली में बनी मूर्तियों में भाव-भंगिमाओं की अधिकता, अलंकरण और लक्षणों की प्रधानता के तत्त्व प्रभावी रूप में दिखाई देते हैं।
  • पालकालीन मूर्तिकला पर सारनाथ कला का प्रभाव माना गया है, जिसके अंतर्गत हल्के, इकहरे बदन और पारदशÊ वस्त्र पहनी मूर्तियां प्रमुख हैं।

 

राष्ट्रकूटकालीन मूर्तिकला

  • इस दौर में मुख्यत: महाराष्ट्र के एलोरा, एलीफेंटा और कन्हेरी में मूर्तिशिल्प का काम हुआ है।
  • एलोरा या वेरूल और एलीफेंटा में शिव के विविध रूपों का विस्तारपूर्वक अंकन हुआ है।
  • एलोरा में शिव, विष्णु, शक्ति और सूर्य की मूर्तियों के उदाहरण हैं, जबकि महाराष्ट्र कन्हेरी में बौद्ध शिल्प के उदाहरण मिलते
  • एलोरा की मूर्तियों का ओज कथावस्तु के अनुसार है, लेकिन उसमें सजीवता नहीं दिखती।
  • मूर्तियां चट्टानों को काटकर उन्हें उभारकर बनाई गई हैं। मूर्तियों को वस्त्र कम लेकिन आभूषण अधिक पहनाए गए हैं।
  • एलोरा की सभी गुफाओं के बाहर अधिकांशत: द्वारपाल के रूप में गंगा एवं यमुना की मूर्तियां बनाई गई हैं।

 

बुंदेलखंड (खजुराहो) की मूर्तिकला

  • खजुराहो में शिल्प का उत्कर्ष काल 9वीं से 12वीं सदी के मध्य तक का माना जाता है।
  • खजुराहो में देवी-देवताओं, तीर्थंकरों और देव परिवार की मूर्तियों के साथ-साथ श्रृंगार-प्रधान मूर्तियां, लोक-जीवन की मूर्तियां एवं कल्पित पशु ‘व्याल’ की मूर्ति प्रमुख हैं।
  • खजुराहो में भी मंदिर की दीवारों, गर्भगृह, शिखर, प्रदक्षिणालय आदि जगहों पर मूर्तियां उकेरी गई हैं।
  • खजुराहो की मूर्तियों में कलागत के साथ-साथ काम-भावना के लक्षण स्पष्ट रूप से दिखाई देते हैं। रतिक्रिया में संलग्न ऐसी मूर्तियों में सामान्य और असामान्य दोनों प्रकार के संभोग के दृश्य हैं।

 

सल्तनत कालीन मूर्तिकला

  • मुसलमानों के भारत आने से पहले भारत में मूर्तिकला अत्यन्त ही उन्नत अवस्था में थी किन्तु मुस्लिम आक्रान्ता मूर्तियों को तोड़ना इस्लाम धर्म की सेवा तथा धार्मिक कर्त्तव्य मानते थे। अत: उन्होंने भारतीय मूर्तिकला पर घातक प्रहार किया।
  • मुहम्मद गौरी एवं कुतुबुद्दीन ऐबक के आक्रमण में दिल्ली, आगरा, अजमेर आदि में स्थित लगभग समस्त प्राचीन धार्मिक स्थलों की मूर्तियों को नष्ट कर दिया गया।
  • बहुत से मंदिरों ने अपने मंदिर के बाहर इस्लामिक चिà अंकित किये ताकि मुस्लिम आक्रांता उन्हें पूरी तरह नष्ट न कर सकें। फिर भी इन मंदिरों की मूर्तियों को पूर्णत: अथवा अंशत: विक्षत कर दिया गया।
  • सल्तनत काल में मंदिर एवं मूर्तियों के निर्माण पर पूरी तरह रोक लगा दी गई इसलिये उत्तर भारत में मूर्तिकला का विकास ठप्प हो गया।

 

मुगल कालीन मूर्तिकला

  • मुगलों के काल में भी भारत की मूर्तिकला का निरंतर ह्रास होता रहा।
  • बाबर और हुमायूँ भी कट्टर मुसलमान शासक थे और मूर्ति बनाना पाप समझते थे। उन्होंने अनेक मंदिरों एवं उनकी मूर्तियों को ध्वस्त कर दिया।
  • अकबर ने अपने उदार दृष्टिकोण के कारण मूर्तिकला को प्रोत्साहन दिया।
  • जहांगीर ने भी कुछ मूर्तियां बनवाई किन्तु शाहजहां और औरंगजेब ने इसे कोई प्रोत्साहन नहीं दिया, जिससे मूर्तिकला पतनोन्मुख हो गई।
  • औरंगजेब के शासन काल में मूर्तिकला को सर्वाधिक हानि हुई।

 

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