संगीतकला का सामान्य परिचय (संगीत कला भाग 1)

संगीतकला का सामान्य परिचय (संगीत कला भाग 1)

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संगीतकला का सामान्य परिचय (संगीत कला भाग 1)

 

विश्लेषणात्मक अवधारणा

बोलचाल की भाषा में सिर्फ गायन को ही संगीत समझा जाता है मगर संगीत की भाषा में गायन, वादन व नृत्य तीनों के समूह को संगीत कहते हैं। संगीत वो ललित कला हैं जिसमें स्वर और लय के द्वारा हम अपने भावों को प्रकट करते हैं। कला की श्रेणी में 5 ललित कलायें आती हैं- संगीत, कविता, चित्रकला, मूर्तिकला और वास्तुकला। इन ललित कलाओं में संगीत को सर्वश्रेष्ठ माना गया है। वैदिक युग में ‘संगीत’ समाज में स्थान बना चुका था।

 

प्राचीन भारत मे संगीत

  • प्राचीन ग्रन्थ ‘ऋग्वेद’ में आर्यों के आमोद-प्रमोद का मुख्य साधन संगीत को बताया गया है।
  • ‘सामवेद’ संगीत का मूल ग्रन्थ है। ‘सामवेद’ में उच्चारण की दृष्टि से तीन और संगीत की दृष्टि से सात प्रकार के स्वरों का उल्लेख है।
  • चौथी शताब्दी में भरत मुनि ने ‘नाट्यशास्त्र‘ के छ: अध्यायों में संगीत पर ही चर्चा की।
  • लोगों द्वारा गाये-बजाये जाने वाले रागों को मतंग मुनि ने देशी राग कहा और देशी रागों के नियमों को समझाने हेतु ‘वृहद्देशी’ ग्रन्थ की रचना की।
  • पाणिनी के ‘अष्टाध्यायी’ में भी अनेक वाद्यों जैसे मृदंग, झर्झर, हुड़क तथा गायकों व नर्तकों सम्बन्धी कई बातों का उल्लेख है।
  • सातवीं - आठवीं शताब्दी में ‘नारदीय शिक्षा’ और ‘संगीत मकरंद’ की रचना हुई।

 

मध्यकालीन भारत मे संगीत

  • ग्यारहवीं शताब्दी में मुसलमान अपने साथ फारस का संगीत लाए।
  • मध्यकाल में, मुस्लिम आक्रमण के प्रभाव के परिणामस्वरूप भारतीय संगीत की प्रकृति में बदलाव आया। इस समय, भारतीय संगीत धीरे-धीरे हिंदुस्तानी और कर्नाटक संगीत के दो अलग-अलग रूपों में बंटने लगा।
  • बादशाह अकबर के दरबार में 36 संगीतज्ञ थे। उसी दौर के तानसेन, बैजूबावरा, रामदास व तानरंग खां के नाम आज भी चÆचत हैं।
  • जहांगीर के दरबार में खुर्रमदाद, मक्खू, छत्तर खां व विलास खां नामक संगीतज्ञ थे।
  • ग्वालियर के राजा मानसिंह भी संगीत प्रेमी थे। उनके समय में ही संगीत की खास शैली ‘ध्रुपद’ का विकास हुआ।
  • 12वीं शताब्दी में संगीतज्ञ जयदेव ने ‘गीतगोविन्द’ नामक संस्कृत ग्रन्थ लिखा, इसे सकारण ‘अष्टपदी’ भी कहा जाता है।
  • तेरहवीं शताब्दी में पण्डित शाड़्गदेव ने ‘संगीतरत्नाकर’ की रचना की।
  • सात अध्यायों में रचे होने के कारण इस उपयोगी ग्रन्थ को ‘सप्ताध्यायी’ भी कहा जाता है।

 

आधुनिक भारत मे संगीत

  • भारत में अंग्रेजों के आगमन के साथ संगीत कला में गिरावट आई।
  • 1960 के दशक में शास्त्रीय संगीत को भी देश से बाहर निर्यात किया जाने लगा और पश्चिमी शास्त्रीय संगीत को भारतीय शास्त्रीय रूप में संयोजित करने का एक प्रयोग किया गया।
  • 1970 और 1980 के दशक में डिस्को और पॉप संगीत ने भारतीय संगीत दृश्य में प्रवेश किया।
  • 1990 के दशक ने भारतीय दर्शकों के बीच पॉप संगीत को लोकप्रिय बनाया।
  • स्वर एक निश्चित ऊंचाई की आवाज का नाम है। यह कर्णप्रिय मधुर एवं आनंददायी होता है।
  • भारतीय संगीत में एक स्वर की उंचाई से ठीक दुगुनी उंचाई के स्वर के बीच 22 संगीतोपयोगी नाद हैं जिन्हें “श्रुति” कहा गया है।
  • वर्ण का अर्थ है मोड। संगीत मे 4 प्रकार के वर्ण होते हैं -आरोही वर्ण, अवरोही वर्ण, स्थाई वर्ण, संचारी वर्ण।
  • राग स्वरूप अपने विशेष प्रकार के आरोह-अवरोह के क्रम में रहता है। जिस राग में सातों स्वर सा रे ग म प ध नि हों उसे सम्पूर्ण जाति का राग कहते हैं।
  • थाट रागों के वर्गीकरण हेतु तैयार की हुई पद्धति है। पंडित विष्णु नारायण भातखंडे ने 10 थाट प्रचिलित किये।
  • भारतीय संगीत में गुरु ‘शिष्य परम्परा को घराना कहा जाता है।

 

प्रमुख वाद्ययंत्र

  • शहनाई भारत के सबसे लोकप्रिय वाद्य यंत्र में से है।
  • उस्ताद बिस्मिल्ला खां विश्व के सर्वश्रेष्ठ शहनाई वादक माने जाते हैं।
  • संतूर का भारतीय नाम शततंत्री वीणा है।
  • सारंगी मुख्य रूप से गायकी प्रधान वाद्य यंत्र है।
  • आधुनिक काल में गायन, वादन तथा नृत्य की संगति में तबले का प्रयोग होता है।
  • अमीर खुसरो ने सितार का अविष्कार किया।
  • मृदंग कर्नाटक संगीत में प्राथमिक ताल यंत्र होता है।
  • रूद्रवीणा, इसराज, रावणहत्था, सारिंडा, जलतरंग अन्य प्रमुख वाद्ययंत्र हैं।

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