पर्यावरणीय रसायन

पर्यावरणीय रसायन

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पर्यावरणीय रसायन

 

विश्लेषणात्मक अवधारणा

 

पर्यावरणीय अध्ययन परिवेश हमारे सामाजिक, जैविक, आर्थिक, भौतिक तथा रासायनिक अंतर्सम्बन्ध को दर्शाता है। पर्यावरण में उपस्थित  रसायन स्पीशीज कुछ प्राकृतिक हैं तथा अन्य मनुष्यों के कार्यकलापों से जनित पर्यावरण प्रदूषण वातावरण में अनचाहे परिवर्तन का प्रभाव में है, जो पौधों, जानवरों तथा मानव के लिए हानिकारक है। पदार्थ की सभी (तीनों) अवस्थाओं में प्रदूषक विद्यमान रहते हैं जो विभिन्न क्रियाकलापों के फलस्वरूप उत्पन्न होते हैं और जिन्हें नियंत्रित किया जा सकता है।

 

पर्यावरणीय रसायन- परिवहन, पर्यावरण के साथ अभिक्रियाओं, प्रभावों, तथ्यों आदि पर्यावरणीय रासायनिक स्पीशीज के अध्ययन को पर्यावरणीय रसायन (Environmental chemistry) कहते हैं। इसके अंतर्गत वायु, जल, मृदा, वन आदि समाहित रहते हैं।

 

पर्यावरण अध्ययन (Environment study)- इसमें जैविक, भौतिक एवं रासायनिक प्रभावों के साथ साथ सामाजिक, आर्थिक प्रभाव का भी वातावरणं से सम्बंध का अध्ययन किया जाता है।

 

पर्यावरण प्रदूषण - परिवेश (Surrounding) में उत्पन्न अवांछनीय परिवर्तन जो जीवधारियों पर हानिकारक प्रभाव डालते हैं।

 

प्रदूषक (polutants)- ऐसे पदार्थ जिनकी मात्रा पर्यावरण में आवश्यकता से अधिक होने लगे तथा एक सीमा से अधिक बढ़ने के कारण जीवधारियों (वनस्पति एवं जीव-जंतु) को नुकसान पहुंचाने लगे, वह प्रदूषक कहलाते हैं। यह पदार्थ प्राकृतिक घटनाओं अथवा मानव के द्वारा उत्पन्न होते हैं। प्रदूषक ठोस, द्रव अथवा गैस अवस्था में हो सकते हैं।

ये दो प्रकार के होते हैं

(i)     प्राथमिक प्रदूषक- ये स्रोत से प्रत्यक्ष रूप में वातावरण में मिश्रित होते हैं।

(ii) द्वितीयक प्रदूषक-ये प्राथमिक प्रदूषकों के परस्पर रासायनिक

क्रियाओं से निर्मित होते हैं।

 

दूषक (Contaminant)- कुछ पदार्थ ऐसे होते हैं, जो प्रकृति में तो नहीं पाये जाते लेकिन मानव द्वारा कृत्रिम रूप से इनका निर्माण किया जाता हैं। ये पदार्थ नष्ट हुए बगैर पर्यावरण को दूषित करते हैं।

 

वायुमण्डलीय प्रदूषण (Atmospheric pollution)- वायुमण्डल, है जिससे पृथ्वी चारों तरफ से घिरी हुर्इ है, वायुमण्डलीय प्रदूषण का क्षोभमण्डल (Troposphere) तथा समतापमण्डल (Stratosphere) में अध्ययन किया जाता है।

 

क्षोभमण्डलीय प्रदूषण (Troposphere pollution) - वायु में अनावश्यक ठोस अथवा गैस कणों की उपस्थिति के कारण क्षोभमण्डलीय प्रदूषण होता है, क्षोभमण्डल में गैसीय तथा कणिकीय प्रदूषक पाये जाते हैं।

 

(1)    गैसीय वायु प्रदूषक- ये सल्फर, नाइट्रोजन तथा कार्बन के ऑक्साइड (\[C{{O}_{x}}\]), हाइड्रोकार्बन, ओजोन (\[{{O}_{3}}\]) तथा अन्य ऑक्सीकारक हैं।

 

गैसीय वायु प्रदूषक-

सल्फर के क्साइड- जीवाश्म र्इंधनों के जलाने से सल्फर के ऑक्साइड उत्पन्न होते हैं जिसमें प्रमुख रूप से सल्फर डाइ-ऑक्साइड (\[S{{O}_{2}}\]) है। विषैली गैस होने के कारण यह पौधों तथा जन्तुओं के लिए नुकसानदायक होती है।

\[2S{{O}_{2(g)}}+{{O}_{2(g)}}\to 2S{{O}_{3(g)}},S{{O}_{2(g)}}+({{O}_{3}})\]\[\to S{{O}_{3(g)}}+{{O}_{2(g)}},\]\[S{{O}_{2(g)}}+{{H}_{2}}{{O}_{(I)}}\to {{H}_{2}}S{{O}_{4(aq)}}\]

 

नाइट्रोजन के क्साइड- नाइट्रोजन उच्च ताप पर नाइट्रोजन के ऑक्साइड बनाती है, \[N{{O}_{2}}\]के ऑक्सीकरण से \[N{{O}_{3}}^{-}\] आयन का निर्माण होता है। जीवाश्म र्इधन को जलाने से डाइनाइट्रोजन तथा डाइऑक्सीजन की अभिक्रिया से नाइट्रिकऑक्साइड (NO) तथा नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (\[N{{O}_{2}}\]) का निर्माण होता है।

 

हाइड्रोकार्बन- यह पौधों में वृद्धि, ऊतकों के निम्नीकरण तथा पत्तियों, फूलों एवं टहनियों के लिए हानिकारक होते हैं। हाइड्रोकार्बन इनके उत्पाद कैंसर जनित होते हैं।

 

कार्बन के क्साइड -

कार्बन मोनोऑक्साइड (CO)- यह मुख्य वायु प्रदूषको में से एक है। यह जीव जंतुओं के रक्त में हीमोग्लोबिन के साथ संयुक्त होकर स्थायी संकुल निर्माण है, जो ऑक्सीहीमोग्लोबिन की तुलना में 300 गुना अधिक स्थायी होता है। इसके कारण सिरदर्द,  आंखों की रोशनी में कमी, तन्त्रकीय आवेग में कमी, हृदयवाहिका में परिसंचरण सम्बंधित विकार उत्पन्न होते हैं।

कार्बन डाइऑक्साइड (\[C{{O}_{2}}\])- यह जीवाश्म र्इंधन के दहन, सीमेन्ट निर्माण के समय चूना पत्थर के अपघटन से, मुक्त वायुमण्डल में जीवधारियों के श्वसन से उत्पन्न होती है। वायुमण्डल में \[C{{O}_{2}}\]की मात्रा की अधिकता से वायुमण्डल एवं पृथ्वी के ताप में वृद्धि होती है।

 

भूमण्डलीय तापवृद्धि तथा हरितगृह प्रभाव- मीथेन:, ओजोन, कार्बन डाइऑक्साइड, जलवाष्प, क्लोरोफ्लोरो कार्बन सूर्य किरणों की ऊष्मा को अवशोषित करने की क्षमता रखते हैं। इन गैसों को हरितगृह गैसें (Green House gases) कहते हैं तथा इनके कारण पृथ्वी पर ताप वृद्धि को भूमण्डलीय तापवृद्धि (Global warming) कहते हैं। गैसों का यह प्रभाव हरितगृह प्रभाव (green House gases) कहलाता है।

 

अम्ल वर्षा (Acid Rain)- जब वायु प्रदूषण के वर्षा जल की. PH 5.6 से कम हो जाती है, इसे अम्ल वर्षा कहते हैं। वायुमण्डल में उपस्थित नाइट्रोजन तथा सल्फर के ऑक्साइड जल में विलेय होकर नाइट्रिक अम्ल (\[HN{{O}_{3}}\]) तथा सल्फ्यूरिक अम्ल (\[{{H}_{2}}S{{O}_{4}}\]) का निर्माण करते हैं।

\[4N{{O}_{2(g)}}+{{O}_{2(g)}}+2{{H}_{2}}{{O}_{(I)}}\to 4HN{{O}_{3(aq),}}\]

\[2S{{O}_{2(g)}}+{{O}_{2(g)}}+2{{H}_{2}}{{O}_{(I)}}\to 2{{H}_{2}}S{{O}_{4(aq)}}\]

 

(2)        कणिकीय प्रदूषक- कणिकीय पदार्थ वायु में निलम्बित सूक्ष्म ठोस कण एवं द्रवीय बूंद होते हैं। यह जीवित तथा अजीवित  दोनों प्रकार के हो सकते हैं। ये धूल, धूम्र, कोहरा, धुआं आदि हैं। जीवित कणिकाओं में जीवाणु, कवक, फफूंद, शैवाल आदि सम्मिलित रहते हैं। यह पौधों में रोग का कारण भी बनते हैं। अजीवित कणिकाओं को प्रकृति एवं आकार के आधार पर निम्न प्रकार से विभाजित किया है-

(i)     धूल (Dust) - यह ठोस पदाथोर्ं के पिसने, कुचलने से 3 बनते हैं। यह बारीक छोटे कण होते हैं (व्यास 1-4\[\mu m\] से अधिक)

(ii)    धूम्र (Smoke)- यह अनेक रासायनिक अभिक्रियाओं तथा विभिन्न धातुकर्म से उत्पन्न होते हैं।

 

(iii) धूम्र कणिकाएं (Smoke granules) - यह ठोस एवं ठोस-द्रव कणों का मिश्रण होते हैं जो कार्बनिक पदार्थो के जलाने से उत्पन्न होते हैं। उदाहरण- जीवाश्म र्इंधन के दहन, सिगरेट का धुआं से प्राप्त धूम्र आदि।

 

(iv) कोहरा (Fog) - वातावरण में विद्यमान द्रवकणों एवं वाष्प के वायु में संघनन से उत्पन्न होता है। यह शाकनाशी, कीटनाशी आदि के स्प्रे से भी उत्पन्न हो सकता है।

 

कणिकीय प्रदूषकों का हानिकारक प्रभाव

(i)         बड़े आकार के कणिकीय प्रदूषक सूर्य की किरणों को पृथ्वी

पर पहुंचने से रोक लेते हैं तथा तापमान में कमी जाती है। जिससे कोहरा उत्पन्न होता है।

 

(ii)        माइक्रोन से बड़े कणिकीय प्रदूषक नाक के माध्यम से श्वास

नली में जम जाते हैं तथा 1.6 माइक्रोन के कण फेफड़ों में प्रवेश करके कैंसर उत्पन्न करते हैं।

 

धूम्र कोहरा- यह धूम्र एवं कोहरे (Smog+fog=Smog) दो शब्दों से मिलकर बना है। स्मोग विश्व के अनेक देशों के प्रदूषण का प्रमुख कारण है। यह दो प्रकार का होता है

(i)             सामान्य धूम कोहरा -जो ठंडी नम जलवायु में होता है। धूम्र, कोहरे एवं सल्फर डाइऑक्साइड का मिश्रण है। रासायनिक रूप से यह एक अपचायक मिश्रण है। अत: इसे ‘अपचायक धूम-कोहरा’ (Reducing Smog) भी कहते हैं।

(ii)            प्रकाश रासायनिक धूम्र कोहरा (Photochemical Smog)- जो उष्ण, शुष्क एवं साफ धूपमयी जलवायु में होता है, स्वचालित वाहनों तथा कारखानों से निकलने वाले नाइट्रोजन के ऑक्साइडों तथा हाइड्रोकार्बनों पर सूर्यप्रकाश की क्रिया के कारण उत्पन्न होता है। प्रकाश रासायनिक धूम कोहरे की रासायनिक प्रकृति ऑक्सीकारक है। चूंकि इसमें ऑक्सीकारक अभिकर्मकों की सांद्रता उच्च रहती है. अत: इसे ‘ऑक्सीकारक धूम कोहरा (Oxidising smog) कहते हैं।

 

प्रकाश रासायनिक धूम्र कोहरे का प्रभाव- यह धातुओं, पत्थरों, भवन निर्माण के पदाथोर्ं एवं रंगी हुर्इ सतहों का क्षय करता है। यह नाक एवं गले में जलन उत्पन्न करता हैं।

प्रकाश रासायनिक धूम कोहरे का नियन्त्रण-

स्वचालित वाहनों में उत्प्रेरित परिवर्तक का इस्तेमाल किया जाता हैं, जो वायुमण्डल में हाइड्रोकार्बन और नाइट्रोजन के ऑक्साइड के उत्सर्जन को रोकते हैं।

इसके अतिरिक्त कुछ पौधे जैसे-पाइनस, विटिस, जुनीपेरस, क्वेरकस, पायरस आदि नाइट्रोजन ऑक्साइड का के प्रभाव को कम करते हैं।

 

समतापमण्डलीय प्रदूषण

ओजोन (\[{{O}_{3}}\]) का निर्माण- समतापमण्डल (Stratosphere) में पराबैंगनी किरणें ऑक्सीजन अणु को सक्रिय ऑक्सीजन परमाणु में विखण्डित कर देती है। यह आण्विक ऑक्सीजन से संयुक्त होकर ओजोन का निर्माण हैं। ओजोन ऊष्मागतिकीय रूप से अस्थायी होती है, अत: ओजोन निर्माण एवं विखण्डन में एक गतिकीय साम्य स्थापित हो जाता है।

ओजोन परत का नष्ट होना- वायुमण्डल में ओजोन परत सूर्य की पराबैंगनी किरणों को पृथ्वी पर पहुंचने से रोकती है लेकिन वर्ष 1980 के पश्चात ओजोन परत नष्ट हो रही है। इसके नष्ट होने का मुख्य कारण क्लोरोफ्लोरोकार्बन, नाइट्रोजन ऑक्साइड, कार्बन टेट्राक्लोराइड आदि हैं। क्लोरोफ्लोरोकार्बन समतापमण्डल में क्लोरीन मूलकों (Radicals) को उत्पन्न करने वाले एवं ओजोन परत का नुकसान करने वाले कारक हैं।

 

जल प्रदूषण- जल में अवांछित पदाथोर्ं की उपस्थिति जो सजीवों के लिए हानिकारक होते हैं, जल प्रदूषण कहलाता है। जल प्रदूषण के कारण-

(i)             कार्बनिकअपशिष्ट- अन्य मुख्य जल प्रदूषक कार्बनिक पदार्थ जैसे-सड़ी गली पत्तियां सब्जियां, कूड़ा कचरा आदि हैं जो जल को दूषित करते हैं। पादपप्लवकों की वृद्धि भी जल प्रदूषण का कारण है।

 

(ii)            रोगजनक (Pathogens) - ये जलप्रदूषक रोगों का मुख्य कारक है। रोगजनक में जीवाणु एवं अन्य सूक्ष्मजीव है जो घरेलू अपशिष्ट तथा पशु अपशिष्ट द्वारा जल स्रोतों में प्रवेश करते हैं।

 

जैव रासायनिक क्सीजन मांग (BOD)- जल के एक नमूने के निश्चित आयतन में उपस्थित कार्बनिक पदार्थ को विघटित करने के लिए जीवाणु द्वारा उपयोग की जाने वाली आवश्यक ऑक्सीजन को जैव रासायनिक ऑक्सीजन मांग (Biological oxygen demand) कहते हैं। स्वच्छ जल की BOD का मान 5ppm से कम होता है जबकि अत्यधिक प्रदूषित जल में BOD का मान 17ppm या इससे अधिक होता है।

 

रासायनिक प्रदूषक- जल में विलेय भारी धातुएं जैसे-निकेल (Ni), कैडमियम (Cd), मर्करी (Hg) आदि प्रदूषक हैं। यह सभी धातुए सजीवों के लिए हानिकारक हैं क्योंकि यह शरीर से बाहर निष्कासित नहीं होती हैं। समुद्री जल को प्रदूषित करने में जहाजों से रिसता हुआ पेट्रोलियम प्रमुख कारण है।

 

सुपोषण- जल स्रोतों में पौष्टिक तत्वों की वृद्धि के कारण शैवाल अन्य जीवों की वृद्धि से ऑक्सीजन की कमी हो जाती है। इस प्रक्रम को सुपोषण (Eutrophication) कहते हैं। सुपोषण के कारण जलीय जन्तुओं की मृत्यु हो जाती है जिससे जैव विविधता में कमी होती है।

 

रासायनिक क्सीजन मांग (COD) - प्रदूषक पदाथोर्ं को ऑक्सीकृत करने के लिए आवश्यक ऑक्सीजन की मात्रा को रासायनिक ऑक्सीजन मांग (Chemical oxygen demand) कहते हैं। प्रदूषित कृ जल के नमूने को ऑक्सीकारक पोटेशियम डार्इक्रोमेट (\[{{K}_{2}}C{{r}_{2}}{{O}_{7}}\]) की तनु \[{{H}_{2}}S{{O}_{4}}\]अम्ल की उपस्थिति में क्रिया कराते हैं।

 

मृदा प्रदूषण- मनुष्य द्वारा निर्मित रसायन जैसे कीटनाशक पीड़कनाशक एवं अन्य रसायन तथा प्राकृतिक मृदा में परिवर्तन मृदा प्रदूषण का मुख्य कारण है।

मृदा प्रदूषण के कारण

 

कीटनाशी (Pesticizers)- खेती में उपयोगी पीड़कनाशी संश्लेषित विषैले रसायन हैं, जो मृदा को प्रदूषित करते हैं।

 

अपशिष्टनिस्तारण (waste disposal) - औद्योगिक ठोस अपशिष्ट तथा धातुमल (gang) मृदा प्रदूषण का मुख्य कारण है।

 

खनन (Mining)- खनन की क्रिया के द्वारा अनेक अकार्बनिक कार्बनिक विषाक्त रसायन मुक्त होते हैं, जो जलीय स्थलीय जीवन के लिए हानिकारक होते हैं।

 

औद्योगिक अपशिष्ट (Industrial waste)- यह अजैव- निम्नीकृत अपशिष्ट है जो ताप शक्ति संयन्त्रों से उड़ने वाला धुआं, लोहा तथा स्टील संयन्त्र-धातुमल उत्पन्न करते हैं। यदि जैव अनअपघटनी औद्योगिक ठोस अपशिष्ट का उचित निस्तारण नहीं होने पर पर्यावरण के लिए हानिकारक होता है। वर्तमान की तकनीकी से स्टील उद्योग से उत्पन्न फ्लाइऐश तथा धातुमल का उपयोग सीमेन्ट बनाने में किया जाता है।

 

पर्यावरण प्रदूषण को नियन्त्रित करने के उपाय - अपशिष्ट का पुन: उपयोग तथा पुनर्चक्रण आवश्यक है। घरेलू अपशिष्टों का उचित प्रकार एकत्रित तथा पुन:चक्रण करना चाहिए। जैव निम्नीकरण अपशिष्ट कम्पोस्ट खाद में परिवर्तित हो जाता है।

 

हरित रसायन (Green Chemistry) - यह रसायन विज्ञान तथा विज्ञान के अन्य शाखाओं के उन सभी सिद्धान्तों का ज्ञान है, जिससे पर्यावरण के दुष्प्रभावों को कम किया जा सके।

 

हरित र्इधन - प्लास्टिक अपशिष्ट से प्राप्त र्इंधन जिसकी ऑक्टेन मान उच्च होता है। इस र्इधन में लेड तत्व अनुपस्थित होता है, इसे हरित र्इंधन (green fuels) कहते हैं।

 

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