कंकाल तंत्र

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कंकाल तंत्र

 

विश्लेषणात्मक अवधारणा

 

संचलन जीवों की एक महत्वपूर्ण विशेषता है। जंतुओं एवं पादपों में अनेकों तरह के संचलन होते हैं। किसी एक स्थान से दूसरे स्थान पर किसी जीव के सम्पूर्ण शरीर का स्थानान्तरण संचलन कहलाता है जबकि शरीर को स्थिर रखकर किसी भी अंग या अंगों की स्थिति - में या उसके स्थित होने की दिशा में परिवर्तन गति कहलाता है। कर्इ जीव पक्ष्माभ, कशाभ और स्पर्शक द्वारा संचलन दर्शाते हैं। चलना, दौड़ना, चढ़ना, उड़ना, तैरना आदि सभी संचलन के ही कुछ रूप हैं। चलन संरचनाओं का अन्य प्रकार की गति में संलग्न संरचनाओं से भिन्न होना आवश्यक नही है। इसी तरह हृदय - फेफड़ों में प्रकुंचन एवं शिथिलन, जबड़ो जिºवा का हिलना, नेत्र गोलक का आगे-पीछे होना, पलकों का हिलना, आहारनाल में क्रमानुकुंचन आदि गति के उदाहरण

हैं।

 

§     गमन किसी व्यष्टि में एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचने का एक ऐच्छिक संचलन है। सभी गमन संचलन होते हैं परन्तु सभी संचलन गमन नहीं होते।

§     रुधिर में महाभक्षकाणु (Macrophages) तथा श्वेत रुधिराणु (leucocytes) में अमीबॉयड प्रकार गति पार्इ होती है। ट्रैकिया में पक्ष्माभ (Cilia) की समन्वय गति धूल के कणों को हटाने के लिये एवं अण्डवाहिनी (Fallopian tube) में अण्डे का मार्ग पक्ष्माभ गति (Ciliary movement) के उदाहरण हैं। कशाभि गति (Flagellar movement) स्पर्मेटोजोआ को तैरने में, स्पंजों में नाल प्रणाली में जल धारा का नियमन तथा प्रोटोजोआ जैसे यूग्लीना में गमन आदि में सहायक होता है।

§     जीभ, जबड़े, पैरों में गति में गति पेशीय गति (Muscular movement) कहलाती है। पेशियों का संकुचन गुण उच्च जीवों तथा मनुष्यों में गति के लिये काम आता है।

§     पेशियां मीसोडर्मल उद्गम की विशेष ऊतक होती हैं। इनमें उत्तेजनशीलता, संकुचनशीलता, खिंचाव तथा लचीलापन आदि

विशेष गुण पाये जाते हैं।

§     स्थिति के आधार पर तीन प्रकार की पेशियां पार्इ जाती हैं

(i) रेखितपेशियां (Skeletal Muscles)

(ii) आंत की पेशियां (Visceral muscles)

(iii) हृदय पेशियां (Cardiac Muscles)

§     पेशी रेशा (muscle Fibers), पेशी की शारीरीय इकार्इ है। प्रत्येक पेशी रेशे में कर्इ सामानांतर रूप से व्यवस्थित पेशीतंतुक (microfibrile) होते हैं। मायोफाइबिल की बनी एक संकुचन की क्रियात्मक इकार्इ पेशी कला (Sacromere) कहलाती हैं।

§     रेखित पेशी बण्डल पेशियों के बने होते हैं जो एक-दूसरे कोलेजन के बने संयोगी ऊतकों से बंधे होते हैं जिन्हें फेसिया (Fascia) कहते हैं। प्रत्येक पेशी बण्डलों में असंख्य पेशी तन्तु पाये जाते हैं। प्रत्येक पेशी तन्तु का स्तर प्लाज्मा कला द्वारा निर्मित होता है जिसे पेशी कला (Sarcolema) कहते हैं, जिसमें पेशीद्रव्य (Sarcoplasm) भरा रहता है। पेशी तन्तु में अर्द्धव्यवस्थित मायोफाइब्रिल उपस्थित होता है जिनमें हल्की तथा गहरी पट्टियां एकान्तरित क्रम में एक्टिन तथा मायोसिन प्रोटीन की उपस्थिति के कारण सुव्यवस्थित होती हैं।

§     हल्की पट्टी में एक्टिन होता है जो I-पट्टी (Isotropic Band) कहलाती है तथा गहरी पट्टी में मायोसिन होता है जिसे A-पट्टी (aAnisotropic Band) कहलाती है।

 

संकचनशील प्रोटीन की संरचना

§     प्रत्येक पतला तन्तु (एक्टिन) दो कुण्डलित एक-दूसरे से लिपटे ‘F’ एक्टिन निर्मित होता है। अन्य प्रोटीन ट्रोपोमायोसिन तथा ट्रोपोनिन के दोनों तन्तु एक-दूसरे के समान्तर गति करते हैं। मोटा तन्तु मायोसिन का बना होता है जो भार से पेशी प्रोटीन का 55% बनाता है। मायोसिन ट्रिप्सिन एन्जाइम के कारण दो खण्डों में टूटता है जो हल्के मेरोमायोसिन तथा गहरे मेरोमायोसिन कहलाते हैं। प्रत्येक मेरोमायोसिन का गोलीय शीर्ष तथा छोटी भुजा एवं पंछ बनाता है। गोलीय शीर्ष में  ATP बन्धन स्थान होता है। पूछ बनाता है।

पेशीय संकुचन की क्रियाविधि

§     छड़ विसर्पण सिद्धान्त (Sliding Filament Theory) द्वारा पतला तन्तु मोटे तन्तु पर विसर्पण करता है।

§     पेशी संकुचन CNS के आवेगों द्वारा जो मोटर न्यूरॉन द्वारा पहचाये जाते हैं से शुरू होता है। तंत्रिका सिग्नल

 

न्यूरोट्रांसमीटर (ऐसीटाइल-कोलीन) को मुक्त करता है जो पेशी कला में क्रिया विभव उत्सर्जित करता है।

§     लाल रेशे (क्सी पेशी) में मायोग्लोबिन (लाल रंग का क्सीजन ग्रहण वर्णक) पाया जाता है जिसमें असंख्य माइटोकॉण्ड्रिया उपस्थित होती है जो इनमें संग्रहित ज्यादा मात्रा में क्सीजन का उपयोग करता है। वह पेशीय रेशे जिनमें कम मात्रा में मायोग्लोबिन पाया जाता है श्वेत रेशे कहलाते हैं।बार-बार उत्तेजित करने से पेशी में थकान (श्रांति) हो जाती है।

कंकाल तन्त्र - कंकाल तन्त्र में अस्थि का खांचा तथा उपास्थि होता है। कंकाल तन्त्र के दो मुख्य विभाजन हैं

(i)     अक्षीय कंकाल (Axial Skeleton80 अस्थि) - खोपड़ी, कशेरुक दण्ड, स्टर्नम तथा पसलियां इसके अन्तर्गत आती हैं। खोपड़ी (29 अस्थि) में कपाल, कर्ण, चेहरे हाइयॉड की अस्थियां पार्इ जाती हैं। कपाल (Cranium) (8 अस्थि) मस्तिष्क की सुरक्षा के लिये आवरण होता है। चेहरे में 14 अस्थियां होती हैं जो खोपड़ी के सामने होती है। मुख गुहा के आधार पर 1हाइयॉड अस्थि (U-आकार) होती है।

§     कशेरुक दण्ड में क्रमानुसार व्यवस्थित 26 वर्टीब्रा (शिशु में 33) होती हैं। पहली कशेरुक एटलस होती है जो क्सीपिटल कॉण्डायल से संयुक्त होता है। यह गर्दन को सीधा रखता है। इसके अतिरिक्त 7 सरवाइकिल, 12-वक्षीय (Thoracic Vertebrae) 5-कमर (Lumber), 1-सैक्रल, 1-कॉकिजियल (Coccya) हैं।

§     कशेरुक दण्ड से जुड़ी पृष्ठीय 12 जोड़ी पसलियां यानी 24 अस्थियां पार्इ जाती हैं तथा इसमें 1 आधारीय स्टर्नम अस्थि होती है।

(ii)    उपांगीय कंकाल (aAppendicular Skeleton -126 अस्थि) - यह पादों तथा मेखलाओं की अस्थियां होती हैं। प्रत्येक हाथ पैर में 30-30 अस्थियां (कुल 120) होती हैं। 4 पेक्टोरल गर्डल्स एवं 2 पेल्विक गर्डल्स अस्थियां होती है।

संधि एवं इनके प्रकार - सन्धियां दो अस्थियों के मध्य सम्पर्क बिन्दु या दो अस्थियों के मध्य तथा अस्थि तथा उपास्थि के मध्य बिन्दु।

(i)     रेशेदार सन्धि - यह कोर्इ गति नहीं करती है। खोपड़ी की अस्थियां चपटी होती हैं। इनमें रेशेदार सन्धि पार्इ जाती हैं।

(ii)    उपास्थिय सन्धि - कशेरुकों में अस्थियों का एक साथ जुड़ना उपस्थित के कारण होता है।

(iii) साइनोवियल सन्धि - साइनोवियल गुहा में तरल, गति प्रदान

करता है। उदाहरण-कंदुक खल्लिका संधि, कब्जा संधि, धुराग्र संधि, ग्लाइडिंग संधि।

 

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