जीवों में जनन एवं मानव जीवन

जीवों में जनन एवं मानव जीवन

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जीवो में जनन एवं मानव जीवन

 

विश्लेषणात्मक अवधारणा

जीवविज्ञान पृथ्वी पर जीवन प्रक्रिया का सार है। यद्यपि व्यष्टि जीव (Individual Organisms) का निश्चित रूप से अंत होता है, प्रजातियां (Species) लाखों वषोर्ं तक अस्तित्व में रहती हैं, जब तक कि उन्हें प्राकृतिक अथवा मानवोद्भवी विलुप्ति (Anthropogeni extinction) के खतरे की आशंका नहीं होती। जनन एक प्रकार से जीव संबंधी प्रक्रिया का रूप ले लेता है, जिसक बिना लंबे समय तक जीवित नहीं रह सकतीं। प्रत्येक व्यष्टि लैंगिक अथवा अलैंगिक विधियो से अपने पश्चात अपनी सतात का पता करती है। लैंगिक जनन की क्रियाविधिं नये रूपभेद (Varieties) को विकसित करने में सहायक होती है, अत: उत्तरजीवित संभावनाएं बढ़ जाती हैं। जीवित जीवों में होने वाली जनन प्रक्रियाओं के सामान्य सिद्धांतों के बारे में जानकारी ग्रहण करना तथा 3 पादपों एवं मानवों में इस प्रक्रिया को उनसे संबद्ध उदाहरणों सहित व्यापक रूप से समझना आवश्यक है। मानव जनन स्वास्थ्य जनन के जीवविज्ञान को समझने तथा जनन संबंधी बीमारियों से बचाव और प्रजातियों का अस्तित्व बनाये रखना है।

 

§     जीवों में जनन एक जीव अपने समान एक छोटे से जीव (संतति) को जन्म देता है। संतति में वृद्धि होती है, उनमें परिपक्वता आती है तथा इसके बाद वह नयी संतति को जन्म देती है। इस प्रकार जन्म, वृद्धि तथा मृत्यु चक्र चलता रहता है। जनन प्रजाति में एक पीढ़ी के बाद दूसरी पीढ़ी में निरंतरता बनाए रखती है।

§     प्रत्येक जीव अपने को बहुगुणित करने तथा संतति उत्पन्न करने के लिए अपनी ही विधि विकसित करता है। जीव किस प्रकार से जनन करता है उसके वास, उसकी आंतरिक शरीर क्रिया विज्ञान तथा अन्य कर्इ कारक सामूहिक रूप से उत्तरदायी हैं। जनन प्रक्रिया दो प्रकार की होती है जो एक अथवा दो जीवों के बीच भागीदारी पर आधारित रहती है। जब संतति की उत्पत्ति एकल जनक द्वारा गैमीट निर्माण की भागीदारी के साथ अथवा इसकी अनुपस्थिति में हो तो वह जनन अलैंगिक जनन (Asexual Reproduction) कहलाता है। जैसे- कवक, शैवाल तथा कुछ अकशेरूकी प्राणि। अलैंगिक प्रजनन द्वारा निर्मित संतति एक समान होते हैं। इन्हें क्लोन भी कहते है। अधिकांशत: शैवालों तथा कवकों में चलबीजाणु, कोनिडिया आदि सामान्य अलैंगिक संरचनाएं होती हैं। मुकुलन तथा जेम्यूल निर्माण प्राणियों में सामान्य अलैंगिक विधि देखी गर्इ है। प्रोकेरिऔट तथा एककोशीय जीव जनक कोशिका के कोशिका विभाजन अथवा द्विखंडन युग्मन से उत्पन्न होते हैं। पौधों में अलैंगिक जनन की विधि को कायिक प्रवर्धन कहते हैं।

§     जब दो जनक (विपरीत लिंग वाले) जनन प्रक्रिया में भाग लेते हैं तथा नर और मादा गैमीट में युग्मन होता है तो यह लैंगिक जनन (Sexual Reproduction) कहलाता है। अलैंगिक जनन की तुलना में यह एक जटिल एवं धीमी प्रक्रिया है। अधिकांश उच्चश्रेणी के प्राणी पूर्णत: लैंगिक विधि द्वारा जनन करते हैं। लीगक जनन की घटना को निषेचन पूर्व, निषेचन तथा निषेचन के बाद की घटना में श्रेणीबद्ध किया जा सकता है। निषेचन-के पहले घटना के अंतर्गत गैमिटोजिनेसिस तथा गैमीट स्थानांतरण जबकि निषेचन के पश्चात में गैमीट का निर्माण तथा भ्रूणोद्भव (Embryo Development) को ही शामिल किया गया है।

§     जीव द्विलिंगी अथवा एकलिंगी हो सकते हैं। युग्मक प्राकृतिक रूप से सदैव अगुणित होते हैं और प्राय: अगुणित जीवों को छोड़करय जहां युग्मकों का निर्माण समसूत्रण द्वारा होता है यह समसूत्री विभाजन के प्रत्यक्ष संतति माने जाते हैं। लैंगिक जनन में नर गैमीट का स्थानांतरण वास्तव में एक अपरिहार्य घटना है। यह द्विलिंगी जीवों में अपेक्षाकृत सरल होती है। एकलिंगी प्राणियों में यह मैथुन (Copulation) द्वारा संपन्न होती है। पुष्पीय पादपों में एक विशेष प्रक्रिया परागण द्वारा होता हैं। युग्मक संलयन (Gamete fusion-fertilization) नर एवं मादा युग्मकों के मध्य संपन्न होता है। युग्मक संलयन जीव के शरीर के बाहर अथवा भीतर पूर्ण होता है। युग्मक संलयन से बनने वाली कोशिका जिसे जाइगोट कहते हैं, का निर्माण होता है।

§     जाइगोट से भ्रूण के विकास की प्रक्रिया भ्रूणोद्भज (Embryogenesis) कहलाती है। प्राणियों में इसके निर्माण के तुरंत बाद जाइगोट बनने लगता है। प्राणि अंडप्रजक (oviparous) या सजीव प्रजक (Viviparous) दोनों हो सकते हैं। सजीव प्रजक जीवों में भ्रूणीय संरक्षण एवं भली प्रकार से देखभाल को अच्छा समझा गया है। पुष्पी पादपों में निषेचन के पश्चात् अंडाशय फल में विकसित होता है तथा बीजांड परिपक्व होकर बीज बनता है। फल के भीतर परिपक्व बीज अगली पीढ़ी का संचारक भ्रूण होता है।

§     मानव लैंगिक रूप से जनन करने वाला एवं जरायुज या वीवीपेरस है। इसके पुरुष जनन तंत्र में एक जोड़ा वृषण (Testis), नर लिंग सहायक नलिकाएं, सहायक ग्रंथियां और बाह्य जननेंद्रिय (External genetilia) शामिल होते हैं। प्रत्येक वृषण में लगभग 250 कक्ष होते हैं और इन्हें वृषण पालिका (testicular lobules) कहते हैं। प्रत्येक वृषण पालिका में एक से लेकर तीन तक उच्च कुंडलित (Highly coiled) शुक्रजनक नलिकाएं (Semniferous tebeles) होती हैं। प्रत्येक शुक्रजनक नलिका की भीतरी सतह शुक्राणुजनों (Spermatogonia) और सर्टोली कोशिकाओं से स्तरित (Lined) होती हैं। शुक्राणुजनों में अर्द्धसूत्री विभाजन के फलस्वरूप शुक्राणु (Sperm) का निर्माण होता है, जबकि सर्टोली कोशिकाएं विभाजित होने वाली जर्म कोशिकाओं को पोषण प्रदान करती हैं। शुक्रजनक नलिकाओं के बाहर लीडिंग कोशिकाएं (Leyding Cells), वृषण हॉर्मोन (Androgen) का संश्लेषण और स्त्रावण करती हैं। पुरुष के बाहरी जननेन्द्रिय (External Genetelia) को शिश्न (Penis) कहा जाता है।

§     स्त्री जनन तंत्र के अंतर्गत एक जोड़ा अंडाशय, एक जोड़ा अंडवाहिनी (Oviducts), एक गर्भाशय (aa Uterus), एक योनि (aaaa vegina), बाह्य जननेन्द्रिय और एक जोड़ा स्तन ग्रंथियां (Mamary Gland) होती हैं। अंडाशय से मादा युग्मक (अंडाणु- Ovum) तथा कुछ स्टेरॉयड हार्मोन (Ovarian hormone ) पैदा होते हैं। अंडाशयी पुटक (Ovarian Follicle) अपने परिवर्धन के विभिन्न चरणों में पीठिका (Stroma) में अन्त:स्थापित (Embedded) होते हैं। अंडवाहिनी, गर्भाशय और योनि, स्त्री की सहायक जनन नलिकाएं (Accessory Ducts) हैं। गर्भाशय की दीवार में तीन स्तर होते हैं जिन्हें परिगर्भाशय स्तर (Perimetrium) गर्भाशय पेशीस्तर (myometrium) और गर्भाशय अंत:स्तर (Endometrium) कहते हैं। स्त्री के बाह्य जननेंद्रिय के अंतर्गत जघन शैल (mons pubis), वृहद् भगोष्ठ (alabia Majora), लघु भगोष्ठ (Labia Manora), योनिच्छद (hymen) और भगशेफ (Clitoris) शामिल हैं। स्त्री की स्तन ग्रंथियां उसकी एक गौण लैंगिक अभिलक्षण हैं।

§     शुक्राणुजनन (Spermatogenesis) के कारण शुक्राणु का निर्माण होता है जो पुरुष लिंग की सहायक नलिकाओं द्वारा वाहित किए जाते हैं। एक सामान्य मानव शुक्राणु में एक शीर्ष (Head), ग्रीवा (Neck), मध्यखंड (middle piece) और एक पूछ होती है। एक परिपक्व स्त्री युग्मक ( Mature Female Gamete) के निर्माण की प्रक्रिया अंडजनन (Oogenesis) कहलाती है।

मादा प्राइमेट्स के जनन चक्र को आर्तव चक्र (menstrual Cycle) कहते हैं। मेंसटूअल चक्र की शुरूआत स्त्री के लैंगिक रूप से परिपक्व होने (Puberty) पर ही होती है। प्रति मेंसटूअल चक्र में अंडोत्सर्ग (Ovulation) के दौरान केवल एक अंडाणु मोचित होता है। मेंसटूअल चक्र के दौरान अंडाशय तथा गर्भाशय में चक्रीय परिवर्तन पीयूषग्रंथि तथा अंडाशयी हॉर्मोनों के स्तर में बदलाव से प्रेरित होता है। मैथुन के अंत में शुक्राणु योनि से स्वयं संकीर्ण पथ (isthmus) तथा तुंबिका (aampulla) की संधि स्थल (Junction Site) की ओर वाहित होते हैं। यहां शुक्राणु, अंडाण का निषेचन करता है और उसके पश्चात् द्विगुणित युग्मनज (Diploid Zygote) की रचना होती है।

§     शुक्राणु में मौजूद X या Y गुणसूत्र के कारण भ्रूण का लिंग निर्धारित होता है। जाइगोट में लगातार समसूत्री विभाजन होता है जिससे कि ब्लास्टोसिस्ट का निर्माण होता है। यह ब्लास्टोसिस्ट गर्भाशय की भित्ति में अंतर्रापित (implanted) हो जाती है जिसके फलस्वरूप गर्भधारण (Pregnancy) होता है। नौ महीने तक गर्भधारण के पश्चात् गर्भ पूर्णरूप से विकसित और प्रसव के लिए तैयार हो जाता है। शिशु-जन्म की प्रक्रिया को प्रसव (Prtuition) कहा जाता है, जो एक जटिल तंत्रिअंत:स्रावी (neuroendocrine) क्रियाविधि द्वारा प्रेरित होते हैं जिसमें, कॉर्टिसॉल, एस्ट्रोजन्स और अॉक्सीटोसिन शामिल हैं। सगर्भता (Pregnancy) के दौरान स्तन ग्रंथियों में कर्इ प्रकार के परिवर्तन होते हैं और शिशु जन्म के बाद इससे दुग्ध स्त्रावित (Secrete milk) होता है। जन्म के बाद प्रारम्भ के कुछ महीनों तक माता द्वारा नवजात शिशु को स्तनपान (Lactation) कराया जाता है।

§     जनन स्वास्थ्य का तात्पर्य जनन के सभी पहलुओं जैसे शारीरिक, भावनात्मक, व्यावहारिक तथा सामाजिक स्वास्थ्य से है। जनन स्वास्थ्य हासिल करने की दिशा में, लोगों के बीच जनन अंगों, किशोरावस्था (aadolescence) एवं उससे जुड़े बदलावों, सुरक्षित एवं स्वच्छता पूर्ण यौन-प्रक्रियाओं, एच आर्इ वी/एड्स सहित यौन संचारित रोगों (Sexually Transmitted Diseases-STD) के बारे में परामर्श देना एवं जागरूकता पैदा करना इस दिशा में पहला कदम है। चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध कराना तथा आर्तव (Menstrual) में अनियमितताएं, गर्भधारण संबंधी पहलुओं, प्रसव, चिकित्सीय गर्भधारण समापन आदि से जुड़ी समस्याओं की देखभाल. इनके लिए चिकित्सा सेवा उपलब्ध कराना, और जन्म नियंत्रण, प्रसवोत्तर शिशु (Post natal Child) एवं माता की देखभाल एवं प्रबंधन आदि प्रजनन और बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम (RCH progammes) से जुड़े अन्य महत्त्वपूर्ण पहलू हैं।

 

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