पादप जगत एवं पुष्पीय पादप

पादप जगत एवं पुष्पीय पादप

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पादप जगत एवं पुष्पीय पादप

 

विश्लेषणात्मक अवधारणा

पादप जीवों का एक बड़ा और विविध समूह है। सूचीबद्ध पौधों की लगभग 300,000 प्रजातियां हैं। इनमें से, लगभग 260,000 ऐसे पौधे हैं जो बीज उत्पन्न करते हैं। मॉस, फर्न, कॉनिफर और फूल वाले पौधे, पादप जगत में सम्मिलित होते हैं। निम्न और उच्च पादपों में शारीरिकी और आकारिकी के द्वारा विस्तृत अध्ययन कर सकते हैं। पादप जगत में में अधिकांशत: प्रकाश संश्लेषक जीव होते हैं कुछ परजीवी पादपों में प्रकाश संश्लेषण की क्षमता का समाप्त हो जाती है। पौधे अनियमित विकास को प्रदर्शित करते हैं, अर्थात पौधों के शरीर का रूप निर्धारित नहीं रहता है। जब तक पौधे जीवित रहते है तब तक शरीर का द्रव्यमान बढ़ता रहता है।

 

 

                पादप जगत में शैवाल, ब्रायोफाइट, टैरिडोफाइट, जिम्नोस्पर्म तथा एंजियोस्पर्म आते हैं।

                शैवाल में क्लोरोफिल होता है। वे सरल, थैलासाभ (Thylloid), स्वपोषी तथा मुख्यत: जलीय जीव हैं। वर्णक के प्रकार तथा भोजन संग्रह के प्रकार के आधार पर शैवाल को तीन वगोर्ं (क्लास) में विभक्त किए गए हैं, ये हैं - क्लोरोफाइसी, फीयोफाइसी तथा रोडोफाइसी। शैवाल प्राय: विखंडन (Fragmentation) द्वारा कायिक प्रवर्धन (Reproduction Vegetatively) करते हैं। अलैंगिक जनन (Asexually) में विभिन्न प्रकार के बीजाणु (Spores) द्वारा तथा लैंगिक जनन लैंगिक कोशिकाओं द्वारा करते हैं। लैंगिक कोशिकाएं समयुग्मकी (Isogamy), असमयुग्मकी (Anisogamy) तथा विषमयुग्मकी (Oogamy) हो सकती हैं। 

  • ब्रायोफाइट- ऐसे पौधे हैं जो मिट्टी में उगते हैं लेकिन उनका लैंगिक जनन पानी पर निर्भर करता है। शैवाल की अपेक्षा उनकी पादपकाय अधिक विभेदित (Diffrentiated) होती है। यह थैलस की तरह होता है और शया/सीधा (Prostrate/erect) हो सकता है। ये मूलाभ द्वारा स्बस्ट्रेटम (Substratum by rhizoids) से जुड़े रहते हैं। इनमें मूल की तरह, तने की तरह तथा पत्तियों की तरह की रचनाएं होती है। ब्रायोफाइट लिवरवर्ट तथा मॉस में विभक्त होते हैं। लिवरवर्ट थैलसाभ तथा पृष्ठाधर (Dorsiventral) होते हैं। मॉस सीधे, पतले तने वाले होतेहैं जिस पर पत्तियां सर्पिल ढंग (Spirally) से लगी रहती हैं। ब्रायोफाइट की मुख्यकाय युग्मकोद्भिद (Gametophyte) होती है जो युग्मकों (Gamete) को उत्पन्न करते हैं। इसमें नर लैंगिक अंग होते है जिसे पुंधानी (Anthrida) कहते हैं। मादा लैंगिक अंग को स्त्रीधानी (Archegonia) कहते हैं। नर तथा मादा युग्मक इससे पैदा होते हैं जो संगलित हो कर युग्मनज (Zygote) बनाते हैं। युग्मनज से बहुकोशिक रचना बनती है, जिसे बीजाणु-उद्भिद् (Sporophyte) कहते हैं। इससे अगुणित बीजाणुं (haploid spore) बनते हैं। बीजाणुओं से गैमिटोफाइट बनते हैं।
  • टैरिडोफाइट में मुख्य पौधा स्पोरोफाइट होता है। इसमें वास्तविक मूल, तना तथा पत्तियां होती हैं। इसमें सुविकसित संवहन ऊतक होते हैं। स्पोरोफाइट में बीजाणुधानी (Sporangia) होती है। जिसमें मिअॉसिस द्वारा बीजाणु बनते हैं। बीजाणु अंकुरित होकर गैमिटोफाइट बनाते हैं। इन्हें वृद्धि के लिए ठंडे, नम स्थानों की आवश्यकता होती है। गैमिटोफाइट में नर तथा मादा लैंगिक अंग होते हैं। जिन्हें क्रमश: पुंधानी (Anthrida) तथा स्त्रीधानी (Archegonia) कहते हैं। नरयुग्मक के मादा युग्मक तक जाने के लिए पानी की आवश्यकता होती है। निषेचन के बाद युग्मनज बनता है। युग्मनज से स्पोरोफाइट बनता है।
  • अनावृतबीजी (Gymnosperms) - वे पौधे होते हैं, जिनमें बीजांड (ovule) किसी अंडाशय भित्ति (Ovary Wall) से ढका नहीं होता। निषेचन के बाद बीज अनावृत (Naked seeded) रहते हैं और इसीलिए इन्हें अनावृत बीजी पौधे (Naked seededPlant) कहते हैं। जिम्नोस्पर्म लघु बीजाणु (Microspores) तथा गुरु बीजाणु (Megaspores) उत्पन्न करते हैं, जो लघु बीजाणुधानी (Microsporangia) तथा गुरु बीजाणुधानी (Megasporangia) (बीजांड) में बनते हैं। ये धानियां बीजाणु पर्ण (Sporophyllus) में होती हैं। बीजाणु पर्ण - लघु बीजाणुपर्ण (Sporophyllus microsporophyllus) तथा गुरु बीजाणुपर्ण (Megasporophyllus) अक्ष पर सर्पिल रूप में लगी रहती हैं। जिनसे क्रमश: नर शंकु ( Male cones) तथा मादा शंकु (Female cones) बनते हैं। परागकण (Pollen Grains) अंकुरित होते हैं और परागनली (pollen tube) बनती है। जिससे नर युग्मक अंडाशय में निकल जाता हैं। यहां पर यह स्त्रीधानी में स्थित अंडकोशिका से संगलन हो जाता है। निषेचन बाद, युग्मनज भ्रूण (Embryo) में तथा बीजांड बीज में विकसित हो जाता हैं।
  • आवर्तबीजी (Angiosperms) में नर लैंगिक अंग [पुंकेसर (Stamen)], तथा मादा लैंगिक अंग [स्त्रीकेसर (Pistil)],फूल में उत्पन्न होते हैं। प्रत्येक पुंकेसर में एक तंतु तथा एक परागकोश (Anther) होता है। परागकोश में मिअॉसिस के बाद परागकण [नर युग्मकोद्भिद् (Gametophyte), बनते हैं। स्त्रीकेसर में एक अंडाशय (Ovary) होता है। जिसमें बहुत से बीजांड होते हैं। बीज युग्मक अथवा भ्रूणकोष ( Embryo sac) होता है। जिसमें अंड कोशिका (Egg cell) होती है। परागनली भूणकोष में जाती है जहां पर वह दो नर युग्मकों को छोड़ (discharged) देती है। एक नर युग्मक अंड कोशिका से संगलन (Fuses) (सिनगेमी) हो जाता है और दूसरा द्विगुणित द्वितीयक केंद्रक (Dipoid secondary neucleus (त्रिसंलयन)-triple fusion) से संगलन करता है। इस दो संगलन के प्रक्रम को द्विनिषेचन कहते हैं। यह प्रक्रम एंजियोस्पर्म के लिए अद्भुत है। एंजियोस्पर्म द्विबीजपत्री (Dicotyledons) तथा एकबीजपत्री (Monocotyledons) में विभक्त होता है। लैंगिक जनन करने वाले पौधों, जिसमें अगुणित (Haploid) गैमिटोफाइट युग्मक (Gametes) तथा द्विगुणित (Diploid) स्पोरोफाइट बीजाणु द्वारा उत्पन्न करने वाले में जीवन चक्र में पीढ़ी एकांतरण (Generation alternation) होता है। लेकिन विभिन्न पौधों के वगोर्ं तथा पौधों में जीवन चक्र अगुणितक (Haplontic), द्विगुणितक (Diplontic) तथा मिश्रित प्रकार के पैटर्न हो सकते हैं।
  • पुष्पीय पादप सर्वाधिक विकसित होते हैं। ये आकार, माप, संरचना, पोषण की विधि, जीवन काल, प्रकृति तथा आवास में अत्यधिक विविधता प्रदर्शित करते हैं। इनमें मूल (Root) तथा प्ररोह तंत्र (Shoot system) भली भांति विकसित होते हैं। इनमेंमूल तंत्र मूसला अथवा झकड़ा मूल (Tap or Fibrous Root) पार्इ जाती हैं। समान्यता द्विबीजपत्री पादपों में मूसला (tap root) जबकि एकबीजपत्री पादपों में झकड़ा मूल (Fibrous root) होती हैं। कुछ पादपों में मूल भोजन के संग्रहण तथा यांत्रिक सहारे तथा श्वसन के लिए रूपांतरित हो जाती हैं। प्ररोह तंत्र तना, पत्ती, पुष्प तथा फलों में बंटा रहता है। तने के आकारिकीय अभिलक्षण जैसे गांठों (Nodes) तथा पोरियों (internodes) की उपस्थिति, बहुकोशिक रोम, तथा धनात्मक प्रकाशानुवर्ती प्रकृति आदि की उपस्थिति से तने तथा जड़ में अंतर को आसानी से समझा जा सकता है। तने भी विभिन्न कायोर्ं जैसे खाद्य संचयन, कायिक प्रवर्धन (Vegetative propogation) तथा विभिन्न परिस्थितियों में संरक्षण के लिए अपने आप को रूपांतरित कर लेते हैं। पत्ती तने की पार्वीय उर्द्धव (lateral outgrowth) पर नोड से बर्हिजाति (exogenously) रूप में विकसित होती है। यह रंग में हरी होती है ताकि प्रकाश संश्लेषण को क्रिया संपन्न हो सके। पत्तियां आकार, माप, किनारे (margin), शीर्ष (ंapex) तथा पत्ती की स्तरिका के कटाव (Extent of incisions of leaf blade (lamina) में सुस्पष्ट विविधताएं प्रदर्शित करती हैं। पादपों के अन्य भागों की भांति पत्तियां भी अन्य भागों जैसे प्रतान (tendrils) चढ़ने के लिए तथा शूल (spines) संरक्षण के लिए अपने आप को रूपांतरित कर लेती हैं।

                पुष्प एक प्रकार के प्ररोह (shoot) का रूपांतरित रूप है जो लैंगिक जनन संपन्न करता है। पुष्प विभिन्न प्रकार के पुष्पक्रम (Inflorescence) में विन्यस्त रहते हैं। यह संरचना, ज्यामिति, अन्य भागों के सापेक्ष अंडाशय की स्थिति, दलों (Petals), बाह्य दलों (Sepals), अंडाशय आदि का क्रमबद्ध विन्यास में भी विविधता प्रदर्शित करता है। निषेचन के पश्चात अंडाशय से फल तथा बीजांड से बीजों का निर्माण होता है। बीज एकबीजपत्री अथवा द्वि बीजपत्रीय हो सकते हैं वे आकार, माप तथा जीवन क्षमता काल में विविध रूप के होते हैं। पुष्पीय अभिलक्षण पुष्पीय पादपों के वर्गीकरण तथा पहचान के आधार माने जाते हैं। इसका वर्णन कुलों के अर्द्ध तकनीकी विवरण से चित्रों सहित किया जा सकता है। अत: एक पुष्पी पादप का वर्णन वैज्ञानिक शब्दावली का उपयोग करते हुए निर्दिष्ट क्रम में कर सकते हैं। पुष्पीय अभिलक्षण संक्षिप्त रूप पुष्पीय चित्रों, पुष्पीय अंगों के सूत्रों (Floral formula) द्वारा निरूपित कर सकते हैं।

शारीरिकी –ष्टि से पौधा विभिन्न प्रकार के ऊतकों से बना है। ऊतक मुख्यत: मेरिस्टेमेटिक [शीर्ष (apical), पाश्वीय (Lateral) तथा अंतर्वेशी (intercalary), तथा स्थायी (सरल तथा जटिल) में विभक्त होते हैं। ऊतक अनेकों कार्य करते हैं जैसे स्वांगीकरण (assimilation), यांत्रिक सहारा, संचय तथा पानी, खनिज लवण तथा प्रकाश संश्लेषी जैसे पदाथोर्ं का संवहन। तीन प्रकार के ऊतक तंत्र होते हैं- जैसे बाह्य त्वचीय (epidermal), भरण (Ground) तथा संवहन (vascular)।बाह्य त्वचीय तंत्र में - बाह्य त्वचीय कोशिकाएं (Epidermal) रंध्र (stomata) तथा बाह्य त्वचीय उपांग (epidermal appendages) होते हैं। भरण ऊतक तंत्र के तीन क्षेत्र होते हैं- वल्कुट (Cortex), परिरंभ (Pericycle) तथा पिथ। संवहन ऊतक तंत्र में जाइलम तथा फ्लोएम होता है। जाइलम तथा फ्लोएम की स्थिति के अनुसार संवहन बंडल विभिन्न प्रकार के होते हैं। संवहन बंडल संवहन रचना बनाते हैं और पानी, खनिज तथा खाद्य पदाथोर्ं का स्थानांतरण करते हैं।द्विबीजपत्री तथा एकबीजपत्री पौधों की आंतरिक रचना में बहुत अंतर होता है। ये प्रकार, संख्या तथा संवहन बंडल की स्थिति के आधार पर अलग-अलग होते हैं। द्वितीयक वृद्धि द्विबीजपत्री पौधों के तने तथा जड़ में होती है। वस्कुलर और कार्क कैम्बियम की सक्रियता से इनका गर्थ व्यास (Girth diameter) बढ़ जाता है। काष्ठ (Wood) वास्तव में द्वितीयक जाइलम है उनके संघटक तथा समय उत्पादन के अनुसार काष्ठ विभिन्न प्रकार के होते हैं।


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