आनुवंशिकी एवं विविधता के सिद्धांत

आनुवंशिकी एवं विविधता के सिद्धांत

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आनुवंशिकी एवं विविधता के सिद्धांत

 

विश्लेषणात्मक अवधारणा

 

आनुवंशिकी में वंशागति और विविधता दोनों सम्मिलित रहते हैं जिससे जनक और संतति के लक्षणों में समानता या असमानता के कारण की जानकारी प्राप्त हो। वंशागति आनुवंशिकी का आधार है। वंशागति जिससे लक्षण जनक से संतति में जाते हैं तथा विविधता जनक और संतति के लक्षणों की असमानता की अवस्था है। मानव को आदिकाल में यह –श्य ज्ञान हो चुका था कि विविधता का कारण लैंगिक जनन की प्रक्रिया में छिपा हुआ है। उसने पादपों और जंतुओं की प्रकृति में उपस्थित जीव विविधता का लाभ उठाया और लाभदायक लक्षणों वाले जीवों को चुनकर उनका प्रजनन करवाया तथा उनसे इच्छित लक्षणों के जीव प्राप्त किए।

 

आनुवंशिकी - इसमें वंशागति के सिद्धांतों (Principales Of Inheritance) और व्यवहार का अध्ययन करते हैं। संतति (Offspring) अपने जनकों (Parents) से आकृतिक (Morphological) और शारीरिक क्रियात्मक लक्षणों (Physiological Features) से मिलती-जुलती है यह तथ्य अनेक जीव वैज्ञानिकों का ध्यान आकर्षित करता है। इस घटना का क्रमबद्ध अध्ययन करने वाले सर्वप्रथम वैज्ञानिक मेंडल थे। मटर के पौधों में विपरीत लक्षणों (contrasting Character) की वंशागति के प्रतिरूपों (Pattern of inheritance) का अध्ययन करते हुए मेंडल ने उन सिद्धांतों को प्रस्तावित किया जो आज वंशागति के ‘मेंडल के नियम’ के नाम से जाने जाते हैं। उन्होंने प्रतिपादित किया कि लक्षणों

के नियामक ‘कारक’ (बाद में जीन नाम) जोड़े में पाए जाते हैं। जिन्हें . एलील कहा गया। उन्होंने देखा कि संतति में लक्षणों की अभिव्यक्ति अलग प्रथम पीढ़ी (F1), द्वितीय पीढ़ी (F2) तथा अगली पीढ़ियों में  एक निश्चित प्रकार से होती है। कुछ लक्षण दूसरे के ऊपर प्रभावी (Dominant) होते हैं। प्रभावी लक्षणों की अभिव्यक्ति तभी होती है जब कारक विषम युग्मजी (heterozygous) अवस्था में भी विद्यमान रहते हैं  [प्रभाविता नियम (Low of Dominance), अप्रभावी (Recessive) लक्षणों की अभिव्यक्ति केवल समयुग्मजी (Homozygous) अवस्था में ही होती है। एक अप्रभावी गुण जो विषमयुग्मजी अवस्था में अभिव्यक्त नहीं होता उसकी समयुग्मजी अवस्था में अभिव्यक्ति हो जाती है। अतएव युग्मकों के उत्पादन के दौरान लक्षणों का विसंयोजन (Seregate) हो जाता है।

सभी लक्षण वास्तविक प्रभाविता (True Dominance) नहीं  दर्शाते। कुछ लक्षण अपूर्ण प्रभाविता तथा कुछ सह-प्रभाविता (Co- Dominance) दिखलाते हैं। जब मेंडल ने दो जोड़े लक्षणों की वंशागति का अध्ययन किया तो पाया गया कि कारक (Factors/genes) स्वतंत्र रूप से अपव्यूहित (Independentaly Assort) होते हैं और यह सभी संभाव्य विकल्पों के साथ होता है। - [स्वतंत्र अपव्यूहन नियम (Low of Independent Assortment), पनेट वर्ग (Punnet Square) नामक वर्ग तालिका में युग्मकों के विभिन्न संयोजनों का सैद्धांतिक दर्शाया गया है। क्रोमोसोम में स्थित कारक (अब जीन) जो लक्षणों का नियमन करते हैं ‘जीनोटाइप’ कहलाते हैं और शारीरिक रूप से व्यक्त लक्षणों को फीनोटाइप कहा जाता है।

जीन क्रोमोसोमों पर स्थित होते हैं यह जानने के पश्चात, मेंडल के नियमों और मिओसिस के दौरान होने वाली क्रोमोसोमों के विसंयोजन और अपव्यूहन के बीच सहसंबंध स्थापित किया जा सका। मेंडल नियमों को विस्तार देकर ‘वंशागति का क्रोमोसोम-वाद (Chromosomal theory of inheritance)’ कहा जाने लगा। बाद में पता चला कि यदि जीन एक ही क्रोमोसोम में स्थित हों तो मेंडल का ‘स्वतंत्र अपव्यूहन’ नियम लागू नहीं होता। ऐसी जीन को ‘सहलग्न (linked genes)’ कहा गया। आस पास स्थित जीन एक साथ रहकर ही अपव्यूहित हुर्इ और दूरस्थ (distantly) जीनों ने पुनसर्ंयोजना (recombinant) होकर स्वतंत्र अपव्यूहन प्रदर्शित किया। सहलग्नता-मानचित्र (क्रोमोसोम-मैप) (linked map) वास्तव में, एक ही क्रोमोसोम में स्थित जीनों के विन्यास से सम्बंधित होते हैं।

अनेक जीन लिंगो (Sexes) से जुड़ी होती है जो लिंग सहलग्न जीन (sex linked genes) कहलाती है। दो लिंगों (नर और मादा) में क्रोमोसोमों का एक जोड़ा (सेट) बिल्कुल समान होता है और और भिन्न होता है। जो सेट भिन्न होता है, वे लिंग क्रोमोसोम (Sex Chromosomes) कहलाते हैं। शेष सेट को अलिंग गुणसूत्र (Autosome Chromosome) कहा गया। सामान्य नारी में 22 जोड़े  ऑटोसोम क्रोमोसोम के और एक जोड़ा सेक्स क्रोमोसोम (XX) का होता है। नर में टोसोम क्रोमोसोम के 22 जोड़े तो होते ही हैं, एक जोेड़ लिंग सत्रों का (XY) भी होता है। कुक्कुट (chicken) नर में सेक्स क्रोमोसोम तथा मादा में सेक्स क्रोमोसोम  होते हैं।

आनुवंशिक द्रव्य (Gentic Chromosome) के परिवर्तन को 2 उत्परिवर्तन कहते हैं। डी एन के एकल क्षारक युग्म (Single base) का परिवर्तन ‘बिन्दु-उत्परिवर्तन (Point mutation)’ कहलाता है। दात्र कोशिका (Sikle Cell) एनीमिया रोग का कारण हीमोग्लोबिन में की बीटा-श्रृंखला का संकेतन (कोडिंग) करने वाली जीन के एक क्षारक में परिवर्तन है। वंशागत उत्परिवर्तनों का अध्ययन वंशवृक्ष (Pedigree of a family) बनाकर किया जा सकता है। कुछ उत्परिवर्तन पूरे क्रोमोसोम समुच्चयध्सेट के परिवर्तन से बहुगुणिता (polyploidy) या अपूर्ण समुच्चयध्सेट से (असुगुणितता- Anueploidy) सम्बंधित हो सकता है। आनुवंशिक विकारों (genetic Disorder) के उत्परिवर्तनी आधार को समझने में इससे सहायता मिलती है। डाउन सिंड्रोम का कारण. क्रोमोसोम 21वे की त्रिसूत्रता (Trisomy) अर्थात् एक अतिरिक्त 21वे क्रोमोसोम का पाया जाना है, जिसके फलस्वरूप कुल क्रोमोसोम संख्या 47 हो जाती है। टर्नर सिंड्रोम में एक X क्रोमोसोम गायब हो जाता है और सेक्स क्रोमोसोम X0 हो जाते हैं, क्लाइनफेल्टर सिंड्रोम में अवस्था ग्ग्ल् प्रदर्शित होती है। इसे केंद्रक-प्रारूपों (कैरियोटाइपों) के अध्ययन से आसानी से समझा जा सकता है।

 

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