संसद

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विश्लेषणात्मक अवधारणा

 

संसद में दो सदनों की क्या आवश्यकता है?

हमारी राष्ट्रीय विधायिका का नाम संसद है। राज्यों की विधायिकाओं को विधान मंडल कहते हैं। भारतीय संसद में दो सदन हैं। विधायिका जनता द्वारा निर्वाचित होती है और जनता के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करती है। विधायिका केवल कानून बनाने वाली । संस्था नहीं है। इसके अनेक महत्वपूर्ण कार्यों में से कानून बनाना भी एक कार्य है। यह सभी लोकतांत्रिक, राजनीतिक प्रक्रियाओं का केंद्र है। जब किसी विधायिका में दो सदन होते हैं, तो उसे द्वि-सदनात्मक विधायिका कहते हैं। भारतीय संसद के एक सदन को राज्यसभा तथा दूसरे को लोकसभा कहते हैं। संविधान ने राज्यों को एक सदनात्मक या द्वि-सदनात्मक विधायिका स्थापित करने का विकल्प दिया है। अब केवल 6 राज्यों में ही द्वि-सदनात्मक विधायिका है।

भारतीय संसद भारतीय शासन व्यवस्था में सर्वोच्च विधायी निकाय है। संविधान के भाग-5 में अनुच्छेद-79 से 122 तक संसद के गठन, संरचना, कार्यकाल, सम्बन्धित अधिकारियों, विभिन्न प्रक्रियाओं, संसद को प्राप्त विशेषाधिकारों एवं शक्तियों का उल्लेख किया गया है।

 

  • संसद का गठनः संसद जनता की सर्वोच्च प्रतिनिधि संस्था है। इसी माध्यम से आम जनता की संप्रभुता को अभिव्यक्ति मिलती है। संविधान के अनुच्छेद-79 के अनुसार, संसद में राष्ट्रपति, लोकसभा और राज्यसभा शामिल होंगे, यह निर्धारित किया गया है। यद्यपि राष्ट्रपति, संसद के किसी सदन का सदस्य नहीं होता है और न ही संसद में बैठता है फिर भी, राष्ट्रपति संसद का अभिन्न अंग है, क्योंकि संसद के सदनों द्वारा पारित विधेयक राष्ट्रपति के हस्ताक्षर (स्वीकृति) के बाद ही विधि (कानून) का रूप ग्रहण करता है। इसके अतिरिक्त, संसदीय प्रक्रिया में राष्ट्रपति के कुछ अन्य महत्वपूर्ण कार्य भी हैं, जो निम्नवत् हैं:
  1. नव-निर्वाचित लोकसभा के प्रथम सत्र के प्रारम्भ पर तथा प्रत्येक वर्ष के प्रथम सत्र के प्रारम्भ पर राष्ट्रपति संयुक्त रूप से दोनों सदनों में अभिभाषण करता है।
  2. राष्ट्रपति, दोनों सदनों के सत्र आहूत करता है एवं सत्रावसान करता है।
  3. राष्ट्रपति लोकसभा को विघटित कर सकता है।
  4. जब संसद का सत्र न चल रहा हो तो आवश्यकता पड़ने पर वह अध्यादेश जारी कर सकता है। भारतीय संसदीय व्यवस्था में विधायिका एवं कार्यपालिका में परस्पर निर्भरता की स्थिति है। इसलिए यह कहा जा सकता है कि भारत के राष्ट्रपति की स्थिति ब्रिटेन की संसद में ताज (क्राऊन) अर्थात् वहाँ के राजा/रानी के समान है जबकि, अमेरिकी राष्ट्रपति से सर्वथा भिन्न है।
  • राज्य सभा संसद का उच्च सदन है, जबकि लोकसभा संसद का निम्न सदन है। लोकसभा में राज्यों से निर्वाचित सदस्य लोकसभा सदस्य होते हैं। राज्य सभा राज्यों का प्रतिनिधित्व करती है। यहाँ राज्यों से तात्पर्य, राज्यों एवं संघ राज्यों क्षेत्रों दोनों से है। संविधान के अनुच्छेद 80 में राज्य सभा की संरचना के संबंध में वर्णन किया गया है जबकि संविधान के अनुच्छेद 81 में लोकसभा की संरचना का वर्णन किया गया है।

 

 

 

  • राज्य सभा एवं लोक सभा की संरचनाः संसद सदस्यों की योग्यताएँ संविधान का अनुच्छेद 84 संसद का सदस्य बनने के लिए कुछ अर्हताएँ निर्धारित करता है, जो निम्नलिखित है
  1. वह भारत का नागरिक हो
  2. राज्य सभा के लिए कम से कम 30 वर्ष तथा लोकसभा के लिए 25 वर्ष की आयु पूर्ण कर चुका हो।
  3. उसके पास ऐसी अन्य अर्हताएँ जो संसद द्वारा बनाई गई किसी विधि द्वारा या उसके अधीन वह अर्हताएँ पूर्ण करता हो।

         नोटः संविधान के अनुच्छेद-84 में संसद की सदस्यता के लिए अर्हताएँ दी गई है जबकि अनुच्छेद 102 में संसद की सदस्यता के लिए निरर्हताएँ निर्धारित की गई है।

  • संसद सदस्यों की निरर्हताएँ: संसद की सदस्यता से निरहित होने के लिए संविधान के अनुच्छेद 102 में तथा लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में कुछ स्थितियाँ निर्धारित की गई है। संविधान के अनुच्छेद 102 के आधार पर निरर्हताएँ इस प्रकार हैः
  1. यदि कोई व्यक्ति जो भारत सरकार या किसी राज्य सरकार के अधीन लाभ का पद धारण करता हो। इस संदर्भ में संसद को यह शक्ति है कि वह घोषित कर सकती है कि किस पद को धारण करने वाला व्यक्ति निरर्ह नहीं होगा।
  2. यदि व्यक्ति विकृत चित्त है और सक्षम न्यायालय की ऐसी घोषणा विद्यमान है।
  3. यदि व्यक्ति दिवालिया हो।
  4. यदि व्यक्ति भारत का नागरिक नहीं है या उसने किसी विदेशी राज्य की नागरिकता स्वेच्छा से अर्जित कर ली है या वह किसी विदेशी राज्य के प्रति निष्ठा या अनुषक्ति को अभिस्वीकार किये हुए है।
  5. यदि व्यक्ति संसद द्वारा बनाई गई किसी विधि द्वारा अयोग्य घोषित कर दिया गया है।
  • 10वीं अनुसूची के अन्तर्गत निरर्हता का निर्णयः 52वें संविधान संशोधन, 1985 के द्वारा संविधान में 10वीं अनुसूची जोड़ी गई। इसके अन्तर्गत दल-बदल के आधार पर सदस्यों को संसद की सदस्यता से अयोग्य घोषित करने से संबंधित कई प्रावधान जोड़े गए।
  1. यदि संसद सदस्य स्वेच्छा से उस राजनैतिक दल का त्याग कर दे, जिसके टिकट पर वह निर्वाचित होकर आया हो।
  2. यदि कोई संसद सदस्य सदन में अपने दल के निर्देशों के विरुद्ध मतदान करता है अथवा मतदान ही नहीं करता है तथा उस सदस्य को उसके दल के द्वारा अनुशासनहीनता की तिथि से 15 दिन के अन्दर क्षमा नहीं किया गया है।
  3. यदि सदन में निर्दलीय सदस्य किसी राजनैतिक दल में शामिल हो जाता है।
  4. यदि कोई मनोनीत सदस्य सदस्यता ग्रहण करने के 6 माह के बाद किसी राजनैतिक दल में शामिल हो जाता है।
        यदि 10वीं अनुसूची के अन्तर्गत दल-बदल के आधार पर निरर्हता का विवाद उत्पन्न होता है तो इसका समाधान राज्यसभा में सभापति तथा लोकसभा में अध्यक्ष के द्वारा किया जाएगा। इस प्रकार के विवाद में न्यायालय की कोई अधिकारिता नहीं है। न्यायालय इस विवाद के समाधान हेतु सभापति अथवा लोकसभा अध्यक्ष के द्वारा दिए गए निर्णय की न्यायिक समीक्षा कर सकता है।
       टिप्पणी-लोक प्रतिनिधि अधिनियम, 1951 के आधार पर संसद सदस्यों अथवा संसद के सदस्य बनने संबंधी कुछ निरर्हताएँ दी गई है, जो इस प्रकार हैं:
  1. यदि व्यक्ति निर्वाचन से संबंधित भ्रष्ट आचरण का दोषी पाया जाता है।
  2. यदि किसी अपराध का दोष सिद्ध होने पर उसे 2 वर्ष या अधिक समय की सजा दी गई हो।
  3. यदि वह निर्धारित समय सीमा में अपने चुनावी खर्च का विवरण देने में असफल रहा हो
  4. यदि वह ऐसे किसी निगम में निदेशक या किसी अन्य लाभ के पद पर हो, जिसमें सरकार की 25 प्रतिशत की या उससे अधिक की हिस्सेदारी हो
  5. यदि उसे भ्रष्टाचार अथवा सरकार के प्रति निष्ठाहीनता का दोषी पाया जाने पर सरकारी पद से हटा दिया गया हो।
  6. यदि उसे अस्पृश्यता, दहेज तथा सती जैसे सामाजिक अपराधों के प्रसार में संलिप्त पाया गया हो, आदि।
  •        संसद के अधिकारी

 

 

  •        संसद के दोनों सदनों की प्रमुख शक्तियाँ एवं कार्य

राज्य सभा की शक्तियाँ

लोकसभा की शक्तियाँ

·  सामान्य विधेयकों पर विचार कर उन्हें पारित करती है और धन विधेयकों में संशोधन प्रस्तावित करती है।

·  संवैधानिक संशोधनों को पारित करती है। प्रश्न पूछ कर तथा संकल्प और प्रस्ताव प्रस्ताव प्रस्तुत करके कार्यपालिका पर नियंत्रण करती हे।

·  राष्ट्रपति और उप-राष्ट्रपति के  चुनावों में भागीदारी करती है तथा उन्हें और सर्वोच्च न्यायालय व उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को हटा सकती। है।

·  उप-राष्ट्रपति को हटाने का प्रस्ताव केवल राज्य सभा में ही लाया जा सकता है।

·  यह संसद को राज्य सूची के विषयों पर कानून बनाने का अधिकार दे सकती है।

·  संघ सूची और समवर्ती सूची के विषयों पर कानून बनाती है।

·  धन विधेयकों और सामान्य विधेयकों  को प्रस्तुत और पारित करती है।

·  कर-प्रस्तावों, बजट और वार्षिक  वित्तीय वक्तव्यों कों स्वीकृति देती है।

·  प्रश्न पूछ कर, परक प्रश्न पूछ कर, प्रस्ताव लाकर और अविश्वास प्रस्ताव के माध्यम से कार्यपालिका को नियंत्रित करती है।

·  संविधान में संशोधन करती  है। आपातकाल की घोषणा को  स्वीकृति देती है।

·  राष्ट्रपति और उप-राष्ट्रपति का  चुनाव करती है तथा उन्हें और सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालय  के न्यायाधीशों को हटा सकती है।

·  समिति और आयोगों का गठन करती है और उनके प्रतिवेदनों पर विचार करती है।

 

  • लोकसभा का विघटनः लोकसभा के विघटन का तात्पर्य है- लोकसभा को भंग किया जाना। संविधान के अनुच्छेद-85(2)(ख) में राष्ट्रपति को लोकसभा के विघटन की शक्ति प्रदान की गयी है। सामान्य परिस्थितियों में राष्ट्रपति, मंत्रिपरिषद की सलाह पर लोकसभा का विघटन करता है, परन्तु यदि सरकार अल्पमत में है अथवा अन्य आपवादिक परिस्थितियां विद्यमान हों तो राष्ट्रपति स्वविवेक का प्रयोग करता है। विघटन के पश्चात् लोकसभा का कार्यकाल स्वतः समाप्त हो जाता है। उसके पश्चात् पुनः निर्वाचन होते हैं और नई लोकसभा का गठन किया जाता है। राज्यसभा एक स्थायी सदन है इसलिए राज्यभा का कभी विघटन नहीं होता है। लोकसभा के विघटन के पश्चात् सदन में लम्बित सभी प्रस्ताव, विधेयक अथवा संकल्प जो लोकसभा से पारित हो चुके हैं अथवा विचाराधीन हैं, स्वतः समाप्त हो जाते हैं। यदि इन पर पुनः कार्य करना है, तो नई लोकसभा के गठन के पश्चात् इन प्रस्तावों, विधेयकों एवं संकल्पों को पुनः सदन में प्रस्तुत करना होगा।
  • संसद में प्रयोग की जाने वाली भाषाः संविधान के अनुच्छेद-120 के अनुसार, संसदीय कार्य हिन्दी अथवा अंग्रेजी में किया जाएँगे। परन्तु, सदन का पीठासीन अधिकारी किसी ऐसे सदस्य को उसकी मातृभाषा में सदन को सम्बोधित करने की अनुमति दे सकता है, जो हिन्दी अथवा अंग्रेजी में अपनी बात को भली-भाँति व्यक्त नहीं कर सकता है।
  • संसदीय विशेषाधिकारः संविधान के अनुच्छेद-105 के द्वारा संसद के सदनों, उसके सदस्यों तथा उनकी समितियों के अधिकारों, विशेषाधिकारों आदि के सम्बंध में प्रावधान किया गया है। सदस्यों को ये विशेषाधिकार केवल तभी तक उपलब्ध है जब तक वे संसद में जन-प्रतिनिधियों के रूप में कार्य करते हैं एवं अपने संसदीय दायित्वों का निर्वहन करते हैं। सदन के विशेषाधिकारों को दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता हैः
  1. संसद सदस्यों के व्यक्तिगत विशेषाधिकारः बोलने की स्वतंत्रता, गिरफ्तारी से उन्मुक्ति, गवाह के रूप में उपस्थित होने से मुक्ति।
  2. सदन के सदस्यों का सामूहिक विशेषाधिकारः संसदीय चर्चा एवं कार्यवाहियों के प्रकाशन का अधिकार, न्यायालय द्वारा संसद की कार्यवाही की जाँच का निषेध, सदन के आंतरिक विषयों का विनियमन, सदन की आवमानना हेतु दण्डित करने का अधिकार, गैर-सांसदों एवं अपरिचितों को सदन से निष्कासित करने का अधिकार।
  • संसद की विधायी प्रक्रियाः संसद में प्रस्तुत किए किये जाने वाले विधेयक और उनक पारित करने की प्रक्रिया के आधार पर विधेयक को निम्नलिखित भागों में बांटा जाता हैः
  • साधारण विधेयकः यह वह प्रारूप होता है। सदन में विधि निर्माण हेतु प्रस्तुत किया जाता है। कोई भी विधेयक तब विधि का रूप धारण करता है जब उसे संसद के दोनों सदर तथा राष्ट्रपति की स्वीकृति प्राप्त हो जाती है। साधारण विधेयक के दो स्वरूप होते हैं:
  1. सरकारी विधेयकः ये विधेयक मंत्रियों द्वारा प्रस्तुत किये जाते हैं। इनका संबंध आम जनता से भी हो सकता है और किसी विशेष वर्ग, संस्था अथवा क्षेत्र से भी
  2. गैर-सरकारी विधेयकः ऐसे विधेयक, जो मंत्रियों के द्वारा नहीं बल्कि संसद के किसी अन्य सदस्य द्वारा प्रस्तुत किए जाते है गैर-सरकारी विधेयक कहलाते हैं। ये भी आम जनता, विशेष वर्ग, संस्था अथवा क्षेत्र से सम्बंधित हो सकते हैं।
  • धन विधेयकः साधारणतः सार्वजनिक आय-व्यय से सम्बन्धित सभी विधयेक धन विधेयक कहलाते हैं। संविधान के अनुच्छेद-110 में धन विधेयक को परिभाषित किया गया है। धन विधेयक के अन्तर्गत निम्नलिखित विषय शामिल किए गए हैं:
  1. किसी कर को लगाना, समाप्त करना, उसमें परिवर्तन करना अथवा करों का विनियमन करना।
  2. भारत सरकार द्वारा धन उधार लेना या इससे सम्बंधित कानूनों का संशोधन।
  3. भारत की संचित निधि या आकस्मिक निधि की अभिरक्षा या ऐसी किसी निधि में धन जमा करना अथवा उस निधि से धन निकालना।
  4. भारत की संचित निधि से धन का विनियोग।
  5. किसी व्यय को भारत की संचित निधि पर भारित व्यय घोषित करना या ऐसे किसी व्यय की राशि को बढाना।
  6. संघ अथवा राज्य के लेखाओं का लेखा-परीक्षण।
  • विनियोग विधेयकः संविधान के अनुच्छेद-114 के अनुसार, लोकसभा में प्रस्तुत अनुदानों की मांगों और संचित निधि पर भारित व्यय हेतु धन प्राप्त करने के लिए विनियोग विधेयक को लोकसभा में प्रस्तुत किया जाता है, क्योंकि विनियोग विधेयक के बिना भारत की संचित निधि से कोई धन नहीं निकाला जा सकता है। विनियोग विधेयक भी धन विधेयक की तरह पारित किया जाता है। इनमें एक शर्त यह भी है कि इसमें किसी भी सदन में कोई संशोधन प्रस्तावित नहीं किया जाएगा।
  • प्रश्न कालः प्रतिदिन सदन की कार्यवाही का प्रथम घंटा प्रश्नकाल कहलाता है, जिसमें प्रश्न पूछे जाते है एवं उनके उत्तर दिए जाते है। प्रश्नों के माध्यम सदस्यों द्वारा राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय, सभी महत्वपूर्ण विषयों के संबंध में सूचना प्राप्त की जा सकती है।
  • बजटः संविधान के अनुच्छेद-112 के अन्तर्गत प्रत्येक आगामी वित्तीय वर्ष के लिए राष्ट्रपति की ओर से वित्त मंत्री अथवा उसकी उपस्थिति में कोई अन्य मंत्री देश के आय-व्यय का वार्षिक वित्तीय विवरण बजट के रूप में प्रस्तुत करता है। बजट केवल लोकसभा में ही प्रस्तावित किया जा सकता है, राज्य सभा में नहीं।
  • संसदीय समितियाँ: संसद के कार्य संचालन में सहायता के लिए अनेक संसदीय समितियों की व्यवस्था की गयी है। संसदीय समितियाँ एक छोटे सदन के रूप में कार्य करती हैं, क्योंकि इसमें लगभग सभी दलों के संसद सदस्यों को स्थान प्राप्त होता है। संसदीय समितियों द्वारा संसद को विशेषज्ञता भी प्राप्त होती है, क्योंकि इन समितियों में संबंधित विषय के विशेषज्ञों को शामिल किया जाता है। इन समितियों की बैठकें गोपनीय होती हैं। संसदीय समितियों को निम्नलिखित रूपों में वर्गीकृत किया जा सकता हैः
  • संसद के विभिन्न प्रकार के प्रस्तावः संसद में विभिन्न प्रस्तावों का वर्गीकरण 2 प्रकार से किया जाता है
  1. अविलम्बनीय लोक महत्व के विषयों से संबंधित प्रस्तावः स्थगन प्रस्ताव, ध्यानाकर्षण प्रस्ताव, अल्पकालीन चर्चा आदि।
  2. सार्वजनिक महत्व के अन्य विषयों से संबंधित प्रस्तावः मूल प्रस्ताव (अविश्वास प्रस्ताव, विशेषाधिकार प्रस्ताव), विश्वास प्रस्ताव, निंदा प्रस्ताव, कटौती प्रस्ताव (नीतिगत कटौती, अर्थगत कटौती, सांकेतिक कटौती), धन्यवाद प्रस्ताव।

 

 

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